फीलिंग लॉस्ट : जब लगे सब खत्म हो गया है

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आज मैं लिखने जा रही हूँ उन तमाम निराश हताश लोगों के बारे में जो जीवन में किसी मोड़ पर चलते – चलते अचानक से रुक गए हैं | जिन्हें गंभीर अकेलेपन ने घेर लिया है और जिन्हें लगता है की जिंदगी यहीं पर खत्म हो गयी है |सारे सपने , सारे रिश्ते , सारी संभावनाएं खत्म हो गयीं | यही वो समय है जब बेहद अकेलापन महसूस होता है | ऐसे ही कुछ चेहरे शब्दों और भावों के साथ मेरी आँखों के आगे तैर रहे हैं , जहाँ जिन्दगी अचानक से अटक गयी थी और उसका कोई दूसरा छोर नज़र ही नहीं आ रहा था ……..

* निशा जी , दो बच्चों की माँ , जब उसके सामने पति का दूसरा प्रेम प्रसंग सामने आया तो उसे लगा जैसे सब कुछ खत्म हो गया है | अपनी सारी त्याग , तपस्या प्रेम सब कुछ बेमानी लगने लगा | उस पर समाज का ताना ,” पति को सँभालने का हुनर नहीं आता , वर्ना क्यों वो दूसरी के पास जाता ” , जले पर नमक छिडकने के लिए पर्याप्त था | मृत्यु ही विकल्प दिखती , पर उसे जीना था , अपनी लाश से खुद ही नकालकर … अपने बच्चों के लिए |

*सुजाता , एक जीनियस स्टूडेंट जिसकी आँखों में बहुत सारे सपने थे | पर क्योकर उसका पढाई से मन हटता चला गया | वो खुद भी नहीं समझ पायी |

कॉलेज जाने के लिए रोज खुद को मोटिवेट करती पर रोज निराश हो तकिये में मुंह छिपा कर सो जाती | रोज खुद को उत्साहित करने व् निरुत्साहित होने का एक ऐसा चक्रव्यूह चला की वो उससे निकल ही नहीं पायी | अकेली होती गयी | परिणाम वही हुआ जिससे वो भाग रही थी | असफलता … न सिर्फ उसके बल्कि उसके माता – पिता व् परिवार के सपनों की |

* प्रशांत ने एक स्टार्ट अप शुरू किया , उसकी आँखों में चमक थी उन बहुत सारे सपनों की … जो शायद रियलिस्टिक नहीं थे | पर उसने उन्हें पूरा करने अपना सारा समय , पैसा व् अथाह परिश्रम झोंक दिया | पर सपनों ने सपनों सा परिणाम नहीं दिया कम्पनी बंद हो गयी | निराशा के अंधियारे ने उसे अकेलेपन में डुबो दिया |

ये मात्र कुछ उदाहरण हैं .. उन बहुत सारे लोगों के जो जीवन में कभी न कभी लॉस्ट या सब कुछ खतम हो गया महसूस करते हैं | अगर आप या आपका कोई अपना भी ऐसी ही मन : स्तिथि से गुजर रहा है | तो शायद मेरा यह लेख आपके कुछ काम आ सके |

कुछ लिखने से पहले मैं अपनी प्लेलिस्ट ऑन कर देती हूँ | और संयोग से आज जो पीछे से मधुर गीत बज रहा है वो मुझे बहुत प्रेरणा दे रहा है | गीत के बोल हैं ,” चल अकेला , चल अकेला चल अकेला …. तेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला | ” एक दार्शनिक सा गीत जिसमें जीवन का सार छुपा हुआ है | और कहीं न कहीं यह भी छुपा हुआ है की हमसे आपसे पहले बहुत से लोग इस ” सब कुछ खत्म हो गया ” वाली भावनात्मक दशा से गुज़र चुके हैं |इस गीत को सुनते हुए मुझे राधिका जी ( परिवर्तित नाम ) याद आ जाती हैं | राधिका जी जो इस समय एक सफल डॉक्टर हैं अपने अनुभव बताते हुए कहती हैं , ” आज मैं सफल , सुखी और संतुष्ट नज़र आती हूँ पर कभी कभी इस प्रकार के भावों से मुझे भी दो चार होना पड़ा | तब इस गीत को सुन कर मुझे लगा की शायद हम सब ” अपने अपने अकेलेपन को भोगने के लिए आये हैं |”क्या ये खूबसूरत धरती मात्र पेट भरती है ,”मन नहीं ” ? लेकिन इसमें एक खास बात थी | 

                                      जितना ज्यादा मैं इस अकेलेपन या , निराशा या सब खत्म हो गया के बारे में सोंचती , उतना ही मुझे इस अकेलेपन की ख़ूबसूरती दिखाई देने लगती | एक ऐसे ख़ूबसूरती जिससे मैं अभी तक अनभिग्य थी | वह खूसुरती थी उस शख्स को जानने समझने का अवसर जिससे हम सबसे ज्यादा प्यार करते हैं , यानि हम खुद | ये अकेला पन हमें खुद से कनेक्ट होने का अवसर देता है | आइये जानते हैं कैसे

अकेले हो कर भी हम अकेले नहीं
सब से पहले तो जान लीजिये की अकेला होंना इतना आसान नहीं है | जब आप को लगता है की आप के जीवन में यह निराशा की चरम सीमा है , सब कुछ खत्म हो गया है , आप किसी लायक नहीं है , आप को कोई प्यार नहीं करता और आप दुनिया में बिलकुल अकेले हैं |यकीन मानिए ठीक उसी समय बहुत से लोग जिनका रूप , रंग , आकर आपसे भिन्न होगा | वो आपसे परिचित , अपरिचित हो सकते हैं आप से मीलों दूर हो सकते हैं पर अपने बारे में ठीक वैसा ही सोंच रहे हैं | मतलब आप अकेले हो कर भी अकेले नहीं हैं , आप उस बहुत बड़े group का हिस्सा हैं जो खुद को अकेला महसूस करता है |

जब छोड़ देना साथ चलने से बेहतर लगे

जब आप अकेलापन महसूस करते हैं तब आप अकेले रहना चाहते हैंकभी आप ने सोंचा है की जब आप अकेले होना चाहते हैं तभी आपकेलापन महसूस करते हैं | कभी – कभी आप भीड़ में भी बेहद तनहा मह्सूस करते हैं तो कभी अकेले घर में मधुर संगीत और एक कप कॉफ़ी के साथ तरोताज़ा महसूस करते हैं | यानी आप का ध्यान आप के अकेलेपन पर जाता ही नहीं |अब जरा गौर करिए जब आपके अन्दर ग्लूकोज की कमी हो जाती है और आप काम में लगे होते हैं , तो कौन बताता है आप को की आप को कुछ खा लेना चाहिए … आप का दिमाग | जी हाँ ! आप का दिमाग सिग्नल देता है और आप को जोर की भूख लगती है | ठीक वैसे ही जब आप सब कुछ खत्म हो गया की फीलिंग के साथ अकेलापन महसूस करते हैं तो उस समय इसे आपके दिमाग द्वारा भेजा हुआ सिग्नल मानिए | जो यह जानता है की इस समय आप का खुद के साथ रहना व् खुद पर काम करना बेहद जरूरी हो गया है | यही वह समय है जब आप अपने असली विचार जान सकते हैं आप अपनी दिल की आवाज़ सुन सकते हैं | कोशिश करिए और सुनिए |

नाउम्मीद करती उमीदें

कुछ पाने से पहले खोना जरूरी है
सूरज उगने से पहले रात का जाना जरूरी है | जहाँ सूरज उग कर हमें सफलता की दास्ताँ लिखने की प्रेरणा देता है वहीँ रात के साथ विदा होती है हमारी नींद , आरामतलबी | जब आप बिलकुल लुटा -पिटा व् अकेला महसूस करते हैं तभी एक नया द्वार खोलने की कोशिश भी होती है | यह वो द्वार है जिसे आप ने अभी तक देखा ही नहीं था | अब आप अपने अनुभव से सही दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं | कहीं न कहीं आप परिस्तिथियों को झेलने के लिए पहले से ज्यादा मजबूत हो गए हैं | जरा ठहर कर सोचिये |
यह आप को रियलिस्टिक बनता है 
कहावत है सावन के अंधे को सब हर ही हरा दिखता है | जब इंसान सपनों की दुनिया में जीता है तो उसे लगता है बस जरा सा हाथ बढ़ाएंगे और छू ल्रेंगे आसमान | पर जिंदगी अन एक्सपेक्टेड टर्नस आते ही रहते हैं | एक पल सफलता के शिखर पर तो दूसरे पल विफलता की गहरी खाई में हो सकते हैं | जिंदगी कहीं चलते चलते अचानक से रुक जाती है और कहीं रुकी जिंदगी हुई झट से चल पड़ती है | कहते है वह स्वप्नदृष्टा था , उसने हवाई जहाज बनाया पर जो रियलिस्टिक था उसने पैराशूट बनाया | जितना महवपूर्ण उड़ना है उतना ही गिरते हुए खुद को बचाना | जब हमें सब कुछ खोकर कुछ सोचने का समय मिलता है तब हमें पता चलता है की हमने जिंदगी से कितनी अवास्तविक अपेक्षाएं पाल रखी थी | जो पूरा होना संभव नहीं था | तो अब जब कदम बढ़ाएंगे वो पहले से ज्यादा , ठोस , सधा हुआ होगा |

बदलाव किस हद तक ?

खुद को स्वीकारना“आप तो ऐसे नहीं थे “…. समाज , परिवार , प्रियजनों का ये छोटा सा वाक्य आप को उसी तरह से व्यव्हार करने को विवश कर देता है जैसे आप हुआ करते थे |आप एक सामाजिक द्वाब में जीते है | पर जब आप ” सब कुछ खत्म हो गया ” वाली फीलिंग से गुज़र जाते हैं , तब आप को यह महसूस होता है की आप की जिन्दगी वैसी नहीं रही जैसी हुआ करती थी | तब आप वैसे ही कैसे रह सकते हैं जैसे आप हुआ करते थे | जिंदगी के उतार – चढ़ाव देखने के बाद अब आपका बेटर वर्जन सामने आया है | अब आप खुद को स्वीकार करने लगते हैं | जब आप खुद को स्वीकार करने लगते हैं तब ही आप सामाजिक दवाब से मुक्त हो कर अपनी पसंद का काम कर सकते हैं |

आप समझने लगते हैं की दूसरों की राय का महत्व एक सीमा तक है
पापा की पसंद से इंजिनीयर बन गए , मम्मी की पसंद से शादी कर ली , पति की पसंद के कपडे पहन लिए | आप का अपना व्यक्तित्व क्या रहा ? इस त्याग से आप का क्या फायदा हुआ | जब आप डूब रहे होते हैं तभी हाथ – पाँव मारते हैं | ठीक वैसे ही इस स्तिथि में पहुँचने के बाद ही आप को पता चलता है की , दूसरों की राय एक सीमा तक ही मानी जा सकती है | आप अपनी जिन्दगी की डोर अपने हाथों में लेना सीखते हैं |
आप वर्तमान के महत्व को समझने लगते हैं
न जिंदगी कभी एक ढर्रे पर चली है न चलेगी | एक बार ” सब खत्म हो गया ” के भाव से गुजरने के बाद ही आप यह समझ सकते हैं की जो भी है बस यही एक पल है “|क्या पता अगला पल क्या पैगाम लेकर सामने आये | तो क्यों न इसे भरपूर जी लिया जाए | आप जान गए हैं की आप ने जितनी योजनायें बनायीं थी सब धरी की धरी रह गयी है | जिंदगी आप के सामने अपने हिसाब से पन्ने खोलती है और आप को उन्ही को पढना है | हमारी ज्यादातर चिंताएं पुरानी गलतियों के अपराधबोध या भविष्य की योजनाओं के असफल हो जाने के भय से जुडी होती हैं | अब सब समझने के बाद हर अच्छे पल को अतीत और भविष्य के बोझ से मुक्त कर के जीना हमें आ जाता है |
अंत भला तो सब भलाअब तो आप जान ही गए होंगे की ” feeling lost ” या सब कुछ खत्म हो गया का भाव थोड़े समय के लिए ही है | इससे बहुत कुछ सीख कर जब आप मजबूत बन जाते हैं और सफलता के नए मापदंड स्थापित करते हैं तब आप उन्र रातों पर जो आप ने अकेले किसी किताब पर आँखे गडाए , या बालकनी में बैठ कर या किसी बेवफा मित्र की याद में बिताई थी …. मुस्कुराते हैं |और कह उठते हैं
सब कुछ खोकर ही मैंने
ढूंढ लिया खुद को
फिर महत्वहीन हो गया
खोना और पाना


वंदना बाजपेयी

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#अगला_कदम के बारे में 
हमारा जीवन अनेकों प्रकार की तकलीफों से भरा हुआ है | जब कोई तकलीफ अचानक से आती है तो लगता है काश कोई हमें इस मुसीबत से उबार ले , काश कोई रास्ता दिखा दे | परिस्तिथियों से लड़ते हुए कुछ टूट जाते हैं और कुछ अपनी समस्याओं पर कुछ हद तक काबू पा लेते हैं और दूसरों के लिए पथ प्रदर्शक भी साबित होते हैं |
जीवन की रातों से गुज़र कर ही जाना जा सकता है की एक दिया जलना ही काफी होता है , जो रास्ता दिखाता है | बाकी सबको स्वयं परिस्तिथियों से लड़ना पड़ता है | बहुत समय से इसी दिशा में कुछ करने की योजना बन रही थी | उसी का मूर्त रूप लेकर आ रहा है
” अगला कदम “
जिसके अंतर्गत हमने कैरियर , रिश्ते , स्वास्थ्य , प्रियजन की मृत्यु , पैशन , अतीत में जीने आदि विभिन्न मुद्दों को उठाने का प्रयास कर रहे हैं | हर मंगलवार और शुक्रवार को इसकी कड़ी आप अटूट बंधन ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं | हमें ख़ुशी है की इस फोरम में हमारे साथ अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ व् कॉपी राइटर जुड़े हैं |आशा है हमेशा की तरह आप का स्नेह व् आशीर्वाद हमें मिलेगा व् हम समस्याग्रस्त जीवन में दिया जला कर कुछ हद अँधेरा मिटाने के प्रयास में सफल होंगे

” बदलें विचार ,बदलें दुनिया “

4 COMMENTS

  1. वंदना जी,आज हर ओर भीड़ का साम्राज्य होने के बावजूद ज्यादातर लोग अकेलापन महसूस करते है। आपका यह आलेख ऐसे सभी लोगों को बहुत ही उपयोगी साबित होगा।

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