पढ़ाई के लिए छोड़ना पड़ा घर 16 फ्रैक्चर, 8 सर्जरी के बाद भी आईएएस बनीं – उम्मुल खेर, सिविल सेवा आईएएस 2017 में चयनित

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     राजस्थान के पाली मारवाड़ में जन्मी उम्मुल की मां बहुत
बीमार रहती थीं।
पापा उन्हें छोड़कर दिल्ली आ गए। मां ने कुछ दिन तो अकेले संघर्ष
किया
, पर सेहत ज्यादा बिगड़ी, तो बेटी को पापा के पास दिल्ली भेज दिया। तब उम्मूल पांच साल की थी। दिल्ली
आकर पता चला कि पापा ने दूसरी शादी कर ली है। वह अपनी नई बीवी के साथ एक झुग्गी
में रहते हैं। नई मां का व्यवहार शुरू से अच्छा नहीं रहा। पापा निजामुद्दीन स्टेशन
के पास पटरी पर दुकान लगाते थे। मुश्किल से गुजारा चल पाता था। उम्मुल के आने के
बाद खर्च बढ़ गया। यह बात नई मां को बिल्कुल अच्छी नहीं लगी।

     पापा ने झुग्गी के करीब एक स्कूल में उनका दाखिला करा दिया।
बरसात के दिनों में घर टपकने लगता
, तो पूरी रात जागकर गुजारनी पड़ती। आस-पास गंदगी का अंबार
होता था। मां की बड़ी याद आती थी। बाद में पता चला मां नहीं रहीं। उम्मुल का पढ़ाई
में खूब मन लगता था
, पर नई मां चाहती थीं कि वह घर के कामकाज में हाथ बंटाएं। स्कूल से लौटने के
बाद वह किताबें लेकर बैठ जातीं। यह बात नई मां को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती। उम्मुल
बताती हैं
, बस्ती में पढ़ने-लिखने का माहौल न था। बहुत कम बच्चे स्कूल जाते थे। ऐसे में,
मेरा किताबों से
चिपके रहना अजीब बात थी
, इसलिए डाॅट पड़ती थी।
     उन दिनों उम्मुल कक्षा सात में पढ़ रही थीं। अचानक पुलिस का
अभियान चला और पापा की दुकान हटा दी गई। कमाई का जरिया पूरी तरह बंद हो गया।
झुग्गी भी उजाड़ दी गई। परिवार बेघर हो गया। मजबूरी में वे लोग निजामुद्दीन छोड़
त्रिलोकपुरी बस्ती में रहने आ गए। पापा ने छोटा सा कमरा किराये पर ले लिया। उम्मुल
परिवार की दिक्कतों को समझ रही थीं। वह बस्ती में रहने वाले छोटे बच्चों को ट्यूशन
पढ़ाने लगीं। एक बच्चे से पचास-साठ रूपये फीस मिलती थी। उम्मुल बताती हैं
, दोपहर तीन बजे स्कूल से
लौटने के बाद बच्चों को पढ़ाने बैठ जाती थी। रात नौ बजे तक ट्यूशन क्लास चलती थी।
इसके बाद रात में खुद की पढ़ाई करती थी।
     उनकी कमाई से घर का खर्च चलने लगा। वह घर चलाने के लिए
जी-तोड़ मेहनत कर रही थीं
, पर नई मां खुश नहीं थीं। उनकी बेटी के स्कूल जाने पर घोर आपत्ति थी। जैसे ही
उन्होंने आठवीं कक्षा पास की
, मम्मी ने चेतावनी दे दी कि अब तुम स्कूल जाना बंद कर दो। हम
तुम्हारे निकाह की तैयारी कर रहे हैं। पर उम्मुल शादी के लिए बिल्कुल राजी न थीं।
वह पढ़-लिखकर अच्छी नौकरी करना चाहती थीं। सबसे दुखद बात यह थी कि पापा ने भी मम्मी
का साथ दिया। जब वह नहीं मानी
, तो पापा ने कह दिया कि अगर तुम पढ़ाई नहीं छोड़ोगी, तो तुम्हें वापस राजस्थान
भेज देंगे। यह सुनकर उम्मुल घबरा गईं। लगा एक बार गांव वापस गई
, तो पढ़ना-लिखना असंभव हो
जाएगा। उम्मुल बताती हैं
, मेरा परिवार पुराने ख्यालात का था। उन्हें लगता था कि स्कूल जाने वाली लड़कियां
बड़ों का सम्मान नहीं करती हैं।
     बेटी की पढ़ाई को लेकर परिवार में आए दिन हंगामा होने लगा।
उनको राजस्थान भेजने की तैयारी होने लगी। पर अब उम्मुल बागी हो चुकी थीं। उन्होंने
परिवार से अलग रहकर पढ़ाई करने का फैसला किया। ट्यूशन से इतनी कमाई होने लगी थी कि
उनके जरूरी खर्चे निकल जाते। वह उसी बस्ती में किराये पर घर लेकर रहने लगीं। बेटी
इस तरह बागी हो जाएगी
, किसी ने नहीं सोचा था। पर उम्मुल को किसी की परवाह नहीं थी। उनका पूरा फोकस
अपनी पढ़ाई पर था। बस्ती के कुछ लोग उन पर तंज कसने लगे। देखो
, कैसी लड़की है, मां-बाप से अलग रहती है?
पढ़ाई में होशियार थी,
इसलिए स्कूल से
स्काॅलरशिप मिल गई। इस दौरान उम्मुल के पैरों में काफी तकलीफ रहने लगी। डाॅक्टर ने
बताया कि उन्हें हड्डियों की गंभीर बीमारी है। उम्मुल बताती हैं
, मेरी हड्डियां इतनी कमजोर
हैं कि जरा सी चोट लगने पर टूट जाती हैं। कई बार मेरी हड्डियां टूट चुकी हैं। काफी
समय व्हील-चेयर पर रहना पड़ा। आॅस्टियो जेनेसिस बीमारी के चलते उसकी हड्डियां
बार-बार टूट जाती हैं।
28 की उम्र तक उसे 16 फ्रैक्चर व आठ सर्जरी का सामना करना पड़ा, पर उसने हार नहीं मानी।
     तमाम मुश्किलों के बावजूद 10वीं व 12वीं में काॅलेज टाॅप किया। चूंकि बोर्ड में अच्छे
अंक मिले थे
, इसलिए दिल्ली यूनिवर्सिटी में आसानी से दाखिला मिल गया। उम्मुल ने अप्लाइड
साइकोलाॅजी में बीए किया। इसके बाद जेएनयू से इंटरनेशनल रिलेशन्स में एमए। जेएनयू
में आने के बाद उन्होंने बस्ती छोड़ दी। उम्मुल बताती हैं
, जेएनयू ने मेरी जिंदगी बदल
दी। यहां मुझे अच्छे माहौल में रहने का मौका मिला। मेस में बढ़िया खाना मिलने लगा।
इस दौरान मैंने दिव्यांग बच्चों के लिए काफी काम किया। सामाजिक कार्यों के दौरान
कई बार विदेश जाने का मौका भी मिला। फिर उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी
शुरू कर दी। सपना पूरा हुआ। इस साल पहली ही कोशिश में उनका आईएएस बनने का सपना
पूरा हो गया। उम्मूल कहती हैं- नतीजे आने के बाद मैंने पहला फोन मम्मी-पापा को
किया। अब मैं उन्हें अपने साथ रखूंगी। मेरी कामयाबी पर उनका पूरा हक है। आईएएस
2017 के नतीजों के बाद उम्मुल
हौसले की नई मिसाल बन गई है। आईएएस
2017 के परिणाम में उसने 420वें पायदान पर जगह बनाकर
सारे हालात को हरा दिया। वह सब प्रशासनिक अधिकारी बनकर जरूरतमंद और शारीरिक
दुर्बलताओं से जूझ रही महिलाओं के लिए कुछ करना चाहती है।
प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी
साभार: हिन्दुस्तान

संकलन: प्रदीप कुमार सिंह

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