“ भाग्य बड़ा है या कर्म “ ये एक ऐसा प्रश्न है जिसका सामना हम रोजाना की जिन्दगी में करते रहते है | इसका सीधा – सादा उत्तर देना उ...
“ भाग्य बड़ा है या कर्म “ ये
एक ऐसा प्रश्न है जिसका सामना हम रोजाना
की जिन्दगी में करते रहते है | इसका सीधा – सादा
उत्तर देना उतना ही कठिन है जितना की “पहले मुर्गी आई थी
या अंडा “का | वास्तव में देखा जाए तो भाग्य और कर्म एक सिक्के के दो पहलू हैं | कर्म से भाग्य बनता है और ये भाग्य हमें ऐसी परिस्तिथियों में डालता रहता है जहाँ हम कर्म कर के विजयी सिद्ध हों या परिस्तिथियों के आगे हार मान कर हाथ पर हाथ रखे बैठे रहे और बिना लड़े ही पराजय स्वीकार कर लें | भाग्य जड़ है और कर्म चेतन | चेतन कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है | जैसा की जयशंकर प्रसाद जी “ कामायनी में कहते हैं की
उत्तर देना उतना ही कठिन है जितना की “पहले मुर्गी आई थी
या अंडा “का | वास्तव में देखा जाए तो भाग्य और कर्म एक सिक्के के दो पहलू हैं | कर्म से भाग्य बनता है और ये भाग्य हमें ऐसी परिस्तिथियों में डालता रहता है जहाँ हम कर्म कर के विजयी सिद्ध हों या परिस्तिथियों के आगे हार मान कर हाथ पर हाथ रखे बैठे रहे और बिना लड़े ही पराजय स्वीकार कर लें | भाग्य जड़ है और कर्म चेतन | चेतन कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है | जैसा की जयशंकर प्रसाद जी “ कामायनी में कहते हैं की
कर्म का
भोग, भोग का कर्म,
यही जड़ का
चेतन-आनन्द।
अब मैं
अपनी बात को सिद्ध करने के लिए कुछ तर्क देना चाहती हूँ | जरा गौर करियेगा की हम
कहाँ – कहाँ भाग्य को दोष देते हैं पर हमारा वो भाग्य किसी कर्म का परिणाम होता है |
1)कर्म जब फल की चिंता रहित हो तो सफलता दिलाता है
हमारी भारतीय संस्कृति जीवन
को जन्म जन्मांतर का खेल मानते हुए कर्म से भाग्य और भाग्य से कर्म के सिद्धांत पर
टिकी हुई है |गीता का तीसरा अध्याय कर्मयोग के नाम से ही जाना जाता हैं | ये सच है
की जन्म – जन्मांतर को तार्किक दृष्टि से सिद्द नहीं किया जा सकता | फिर भी कर्म
योग के ये सिद्धांत आज विश्व के अनेक विकसित देशों में MBA के students को पढाया जा रहा है | और
और इसे पुनर्जन्म पर नहीं तर्क की दृष्टि से सिद्ध किया जा रहा है | जैसा की प्रभु श्री
कृष्ण गीता में कहते हैं की ..
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
उसकी तार्किक व्याख्या इस प्रकार दी जाती है की ....फल की चिंता अर्थात स्ट्रेस या तनाव जब हम कोई काम करते समय जरूरत
से ज्यादा ध्यान फल या रिजल्ट पर देते हैं तो तनाव का शिकार हो जाते हैं | तनाव
हमारी परफोर्मेंस पर असर डालता है | हम लोग दैनिक जीवन की मामूली से मामूली बातों
में देख सकते हैं की स्ट्रेस करने से थकान महसूस होती है , एनर्जी लेवल डाउन होता
है और काम बिगड़ जाता है |पॉजिटिव थिंकिंग की अवधारणा इसी स्ट्रेस को कम करने के
लिए आई | मन में अच्छा सोंच कर काम शुरू करो , जिससे काम में जोश रहे , दिमाग
फ़ालतू सोंचने के बजाय काम पर फोकस हो सके | कई बार पॉजिटिव थिंकिंग के पॉजिटिव
रिजल्ट देखने के बाद भी हम अपनी निगेटिव थिंकिंग को दोष न देकर कहते हैं .... अरे
पॉजिटिव , निगेटिव थिंकिंग नहीं ये तो भाग्य है |J
२ ) भाग्य नहीं गलत डिसीजन है असफलता का कारण
कई बार जिसे हम भाग्य समझ कर दोष
देते हैं वो हमारा गलत डिसीजन होता है | उदाहरण के लिए किसी बच्चे की रूचि लेखक बनने
की है | पर माता – पिता के दवाब में , या दोस्तों के कहने पर बच्चा गणित ले लेता
है | निश्चित तौर पर वो उतने अच्छे नंबर नहीं लाएगा | हो सकता है फेल भी हो जाए | अब
परिवार के लोग सब से कहते फिरेंगे की मेरा बच्चा तो दिन रात –पढता है पर क्या करे
भाग्य साथ नहीं देता |मैंने ऐसे कई बच्चे देखे जिन्होंने तीन , चार साल मेडिकल या
इंजिनीयरिंग की रोते हुए पढाई करने के बाद लाइन चेंज की | और खुशहाल जिन्दगी जी |
बाकी उसी को बेमन से पढ़ते रहे , असफल होते रहे और भाग्य को दोष देते रहे | क्या आप
को नहीं लगता हमीं हैं जो भाग्य की ब्रांडिंग करते हैं | J J
३)प्रतिभा और परिश्रम बनाते हैं भाग्य
इसी प्रतियोगिता में ही शायद मैंने
पढ़ा था की हर चाय वाला मोदी नहीं हो जाता | यानी हम ये मान कर चलते हैं की हर
अँगुली बराबर होती है |J प्रतिभा को हमने सिरे से ख़ारिज कर दिया , और उन स्ट्रगल्स को भी जो मोदी ने मोदी बनने के दौरान
की | पूरे देश घूम – घूम कर जनसभाएं की | लोगों से जुड़ने का प्रयास किया | उनकी
समस्याएं समझी , सुलझाई | क्या हर चाय वाला इतना करता है | या इतना महत्वाकांक्षी
भी होता है | हम सब ने बचपन में संस्कृत का एक श्लोक पढ़ा है |
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न
मनोरथैः ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥
हम ये श्लोक पढ़कर एग्जाम पास कर लेते हैं | पर तर्क ये देते हैं की
हम भी चाय बेंचते हैं | फिर हम मोदी क्यों नहीं बने | चाय वाला =चायवाला , सबको
मोदी बनना चाहिए | अरे ,ये तो भाग्य है | J
4)सफलता बरकरार रखने के लिए भाग्य पर नहीं स्ट्रेटजी पर ध्यन दें
अब जरा गौर करते हैं , उन किस्सों पर जिनमें शुरू में प्रतिभा बराबर होती है | कई
बार शुरूआती प्रतिभा बराबर होने के बाद भी हम लगातार उतने सफल नहीं हो पाते |
क्योंकि एक बार सफलता पाना और उसे बनाए रखना दो अलग – अलग चीजे हैं | उसके लिए
अनुशासन , फोकस , अपने अंदर जूनून को जिन्दा रखना , असफल होने के बाद भी प्रयास न
छोड़ना आदि कर्म आते हैं | जो लगातार करने पड़ते है | चोटी पर बैठा व्यक्ति जिस स्ट्रेस को झेलता है , उस
के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करना पड़ता है |
Our greatest weakness lies in giving up. The most certain
way to succeed is always to try just one more time. — Thomas Edison
काम्बली और तेंदुलकर का उदहारण अक्सर
दिया जाता है |क्या सचिन तेंदुलकर की निष्ठा जूनून , लगन , अनुशासित जीवन और
हार्ड वर्क को हम नकार सकते हैं | पर हम किसी लगातार सफल व्यक्ति के ये गुण खुद में उतारने के स्थान पर लगेंगे भाग्य
को दोष देने | J
5 )कर्म तय कराता है महा गरीबी से महा अमीरी का सफ़र
एक और स्थान जिसे हम भाग्य के
पक्ष में रखते हैं | एक ही समय पैदा हुए बच्चों में एक राजा के यहाँ पैदा होता है
और एक भिखारी के यहाँ | अब अगर आप पिछले जन्म में किये गए कर्म कों नहीं मानते तो
आप इसे विज्ञान के अनुसार “रैंडम सिलेक्शन
ऑफ़ नेचर “ कह सकते हैं | पर फिर भी कर्म
के आधार पर इसे बदला जा सकता है | जैसा की बिल गेट्स कहते हैं की..
आप गरीब घर में पैदा हुए इसमें आपकी
कोई गलती नहीं है पर अगर आप गरीब मर जाते है तो इसमें आप की गलती है |
न जाने कितने नाम हैं जिन्होंने महागारीबी से महाअमीरी तक का सफ़र
तय किया |ये मंजिलें तय करने के लिए उन्हें बहुत मेहनत और योजनाबद्ध तरीके से काम
करना पड़ा | हम सब जानते हैं असफलताओं और मेहनत से भरा ये सफ़र आसान नहीं है | आसान
तो यह कहना है की हमारा तो बचपन से ही भाग्य खराब है | J
तर्क बहुत सारे हैं , जो ये
सिद्ध करते हैं की जिसे हम भाग्य कहते हैं वो हमारे कर्मों से ही बनता है | वैसे
इस प्रतियोगिता में मेरा भाग लेने का इरादा नहीं था | पर जैसा की मैंने शुरू में
ही कहा की “ भाग्य बड़ा है या कर्म “ ये एक ऐसा प्रश्न है जिसका सामना हम रोजाना की जिन्दगी में करते
रहते है |और रोज कन्फ्यूज होते रहते हैं |इसलिए मैंने इस विषय पर लिखने का मन
बनाया | अब अगर मेरे विचार आपको तार्किक लगें व् कर्म की ओर प्रेरित करें तो आप
इसे क्या कहेंगे ...
“ मेरा कर्म या मेरा भाग्य “
फैसला
आप पर है J
वंदना बाजपेयी
नोट - achhikhabar.com , जो भारत की एक लोकप्रिय वेबसाइट है | उसमें डिबेट प्रतियोगिता में मेरे द्वारा रखे गए तर्कों को मैंने लेख का रूप दिया है | |