“परिस्थिति “

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रोचिका शर्मा
       चेन्नई

अपनी बेटी के
बी. ए. अंतिम वर्ष में दाखिला लेते ही मैने उसके लिए योग्य वर तलाशना शुरू कर दिया
और बेटी को बोला ” थोड़ा घर का काम-काज भी सीखो
,
सिलाई , कढ़ाई और साथ-साथ में ब्यूटी-पार्लर का कोर्स भी कर लो ।
लड़का योग्य हो तो उसके परिवार वाले लड़की में भी तो कुछ गुण देखेंगे ना । वैसे तो
हम अपने व्यवसाय वाले लेकिन लड़की नौकरी वाला लड़का चाहती थी सो नौकरी वाला लड़का ढूँढना शुरू किया । इधर बेटी ने भी पास के ब्यूटी-पार्लर में
कोर्स करना शुरू कर दिया ।


एक वर्ष में
कोर्स  होते-होते बेटी की सगाई एक फ़ौजी
अफ़सर से हो गयी । बेटी की तो खुशी का ठिकाना न रहा । एक ही माह  में विवाह  की तिथि पक्की हो गयी । टेंट
,बाजा ,घोड़ी ,हॉल सभी की बुकिंग का काम चालू हुआ । बेटी भी शादी के मेकप
के लिए ब्यूटी-पार्लर बुक करने जाने लगी ।


उसे टोकते हुए
मैने कहा
,” पड़ोस का ब्यूटी-पार्लर न बुक करना , कोई दूसरा पार्लर देखो ” । बेटी बोली पड़ोस का अच्छा
तो है माँ
, और फिर मैने वहाँ से कोर्स किया है , खुशी-खुशी अच्छा मेकअप करेगी । मैने अपनी नाक सिकोडते हुए
कहा ” पर है तो विधवा ! न न अपशकुन होता है ” । इतना सुनते ही बेटी तो
मानो बिफर गयी
,बोली ” कैसी दाखियानूसी बातें करती हो माँ ?आज के जमाने में ये सब ! ” मैने बेटी की एक ना सुनी और
उसे हुक्म दिया दूसरा पार्लर बुक करने को । बेटी भी झमेले में नहीं पड़ना चाहती थी
,
सो दूसरा पार्लर बुक कर आई । विवाह के दिन लाल जोड़े में मेरी
बेटी  लक्ष्मी का स्वरूप लग रही थी ।मेरे
तो पैर ज़मीन पर ना थे । विवाह संपन्न हुआ और बेटी विदा हो गयी । एक ही साल में
उसने सुंदर बेटी को जन्म दिया ।जब-तब लाल बत्ती की गाड़ी में आती और हम से मिल
जाती ।फ़ौजियों की पार्टी-शार्टी
, शान-शौकत , मैं भी उसका रुतबा देख फूली ना समाती । कुछ ही दिनों में उसके पति की
नियुक्ति पाक- सीमा पर हो गयी ।दामाद के माँ-बाप तो थे नहीं
,
सो बेटी दिल्ली  में
अकेली ही रहती । एक दिन खबर आई कि दामाद बम -ब्लास्ट में मारे गये । मेरे तो मानो
पैरों तले से ज़मीन खिसक गयी । दुख का पहाड़ टूट पड़ा था पूरे परिवार पर ! अंतिम
क्रिया कर्म की सब रीतियों के बाद हमने बेटी को अपने ही पास रखने का फ़ैसला किया ।


 तभी एक माह बाद पड़ोस की पार्लर वाली आई और बेटी
को सांत्वना देते  हुए बोली
,
पहाड़ सी
जिंदगी
,कैसे  जियोगी ?, ऊपर से एक बेटी भी ! कोई छोटी-मोटी नौकरी के लिएबाहर जाओगी ,इससे तो ब्यूटी-पार्लर खोल लो । घर की घर में बेटी को भी
संभाल सकती हो
, औरतों  का ही आना जाना रहताहै ,
सुरक्षित एवं मनलगाने वाला काम है ।  आज के जमाने में बिना  सहारे की जवान औरत को भी तो लोग ठीक दृष्टि से
नहीं देखते हैं । उसकी बात मुझे ठीक लगी । जाते-जाते बोली बहिन पार्लर खोलने में
कोई मदद चाहिए तो मैं करूँगी ।उसके जाने पर मैंने  भी बेटी को समझाया कि वह ठीक ही कह रही है ।
इतना सुनते ही बेटी  बोली लेकिन माँ मैं तो
विधवा हूँ
,कौन आएगा
मेरे पार्लर में
? तुम ही तो कहती थीं कि अपशकुन होता है ।


आज मुझे अपनी
ग़लती का एहसास हो रहा था । मेरीआँखें  भर
आईं थीं  । मुझे पश्चाताप हो रहा था अपने
किए पर । बहुत शर्मिंदा थी मैं अपनी ओछि सोच पर
, अपनी संकीर्ण मानसिकता पर , मैं समझ गयी थी कि कितनी ग़लत थी मैं । जहाँ एक तरफ नारी
उत्थान की बातें होती हैं
, औरतें हर क्षेत्रमें आगे बढ़ रही हैं वही आज के युग में एसी
सोच ! शायद ईश्वर ने इसीलिए एसी परिस्थिति में डाल दिया था मुझे  । वरना मैं अपनी सोच कभी ना बदल पाती ।  उस पार्लर वाली का धन्यवाद करते हुए मैं मन ही
मन उसके परिवार के लिए मंगल कामना करने लगी ।
                                                  

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2 COMMENTS

  1. समाज में रहने वाले लोग जब इस तरह की असामाजिक बात करते है तो बहुत दुःख होता है लेकिन यह हकीकत है | आज भी कई लोग इस निम्न सोच से बाहर नहीं निकल पाए है | लोगों को यह समझना होगा कि मनुष्य का बड़ा होना अच्छी बात है लेकिन उसके विचारों में शुद्धता होना भी उतना ही जरुरी है | बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति रोचिका जी | धन्यवाद |

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