सुनो, तुम मुझसे झूठ तो नहीं बोल रहे

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सुनोतुम मुझसे झूठ  तो नहीं बोल रहे


घर की बालकनी की खिड़की खोली बाहर का दृश्य देख मुंह
 से निकल पड़ा – देखो चीकू के पापा 
कितना मनोरम दृश्य है । रोज की तरह रजाई
ताने  बिस्तर से चीकू के पापा ने कहा –
 पहले चाय तो
बना लाओं । और सुनों -अख़बार आगया  होगा वो भी लेती आना ।दुनिया में कई जगह
ऐसी है जहाँ की प्रकृति खूबसूरत है । हर साल सोचते आए
  की
अब चले किन्तु जीवन की भाग दौड़ में समय निकालना मुश्किल ।
 



करवाचौथ के दिन मंजू  सज धज के पति का इंतजार कर
रही थी |  शाम को घरचीकू के पापा
  
आएंगे तो  छत पर जाकर चलनी
में उनका   चेहरा देखूँगी । मंजू ने गेहूँ की कोठी मे से धीरे से 
चलनी निकाल
कर छत पर रख दी थी । चूँकि गांव में पर्दा प्रथा की परंपरा होती है साथ 
ही ज्यादातर काम सास -ससुर की सलाह लेकर ही करना ,संयुक्त परिवार में सब  का ध्यान भी रखना  और आँखों में शर्म का  पर्दा भी रखना  होता है ।  पति को  बुलाना हो तो
पायल
,चूड़ियों की खनक के इशारों  ,या खांस  कर ,या
बच्चों के जरिये ही खबर देना होती ।



चीकू के पापा  घर आए 
तो साहित्यकार के हिसाब से वो मंजू  से मिले । कविता के रूप में करवा चौथ पे मंजू को कविता की लाइन सुनाने लगे
-“आकाश की आँखों में /रातों का सूरमा /सितारों की गलियों में /गुजरते रहे
मेहमां/ मचलते हुए चाँद को/कैसे दिखाए कोई शमा/छुप छुपकर जब/ चाँद हो रहा हो
  जवां “। कविता की लाइन  और आगे बढ़ती
इसके पहले
 माँ की आवाज अंदर
से आई -“कही टीवी पर कवि सम्मेलन तो नहीं आ रहा
,शायद
मै
, टीवी बंद करना भूल गई होंगी । मगर 
,लाइट अभी ही गई और मै तो लाइट  का इंतजार
भी कर रही हूँ फिर यहाँ आवाज कैसी आरही ।


 फिर  आवाज  आई- आ गया बेटा । बेटे ने कहा -हाँ  ,माँ  मै आ गया हूँ  । अचानक लाइट  आगई ।  उधर सास अपने पति का चेहरा  देखने
के लिए चलनी ढूंढ रही थी । किन्तु चलनी
  तो मंजू
बहु छत पर ले गई थी । और वो बात मंजू के
  सास ससुर को
मालूम न थी । जैसे ही मंजू  ने चीकू के पापा
  का चेहरा चलनी में देखने के लिए चलनी उठाई ।  तभी नीचे से  मंजू की सास की  आवाज आई  –बहु चलनी देखी  क्या?  गेहूँ छानना है । बहू ने जल्दीबाजी  कर पति का और चाँद का चेहरा चलनी में देखा और कहा  –लाई  माँ ।चीकू के
पापा
 ने फिर कविता की अधूरी लाइन बोली
 –    “याद रखना बस /इतना न तरसाना /मेरे चाँद तुम खुद /मेरे पास चले आना ”
। 


इतना कहकर चीकू के पापा भी मंजू  की पीछे -पीछे
नीचे आ गए । अब मंजू की
 सासूं माँ , मंजू के ससुर को लकर छत पर चली गई । अचानक
 सासूं माँ को ख्याल आया  कि
  –लोग बाग  क्या कहेंगे ।  लेकिन प्रेम और आस्था और
पर्व
  उम्र को नहीं देखते   । जैसे ही  मंजू के ससुर का चेहरा चलनी
में
  देखने के लिए सास ने चलनी  उठाई। अचानक मंजू  ने मानो
 चौक्का  जड़ दिया ।
  वो ऐसे –  नीचे से मंजू ने सास की तरह  आवाज लगाई-” माजी आपने चलनी देखी  क्या
?” आप गेहूँ मत चलना में चाल  दूंगी । ये बात सुनकर   चलनी गेहू की कोठी
में चुपके से कब आ गई कानों कान
  किसी को पता भी न
चला
    । मगर ऐसा लग रहा था कि चाँद ऊपर से सास बहु के चलनी खोज  का
करवाचौथ पर
  खेल देख कर  हँस रहा था  और मानो जैसे  कह रहा  था ।  मेरी भी पत्नी होती तो मै भी चलनी
में अपनी चांदनी का चेहरा देखता ।

करवाचौथ  की  रात मंजू
श्रृंगार  से ऐसे लग रही थी । मानों कोई अप्सरा धरती पर उतरकर आई हो ।चीकू के
पापा ने बड़े प्यार से पूछा -मंजू क्या मांगना चाहती हो । आज जो भी तुम कहोगी
,मुझे मंजूर होगा । परंतु ख़ुशी के मरे मंजू घूमने ले जाने वाली बात कहना ही
भूल गई ।मंजू
  कहा -सुनोजी ,आप
मुझे नई  महँगी साड़ी कल ला कर
  देना और वो भी  गुलाबी कलर वाली ।अपनी पड़ोसन के पास तो एक से एक महँगी साड़ियां है और मेरे
पास एक भी नहीं । चीकू के पापा ने सोचा की -अच्छा हु हुआ ।  घूमने ले जाने
वाली बात भूल गई और मै कम पैसे में इसकी बात को मान गया । यदि घूमने जाने का कहती
तो मुझे ऑफिस से पार्ट फायनल से पैसा निकलना पड़ता और वो भी ज्यादा ।
 

 
 
मंजू ने धीरे से मस्का लगा कर कहा की -अजी सब गर्मियों की
छुट्टियों में हिल स्टेशन पर जाते है । अब की बार सब साथ में चलेंगे । चीकू
 के पापा  ने कहा की – इस बार मनाली का प्रोग्राम बनाएंगे । इतना कहना
था की मंजू ने आखिर पूछ ही लिया -“सुनों
,तुम मुझसे झूठ तो
नहीं बोल रहे हो “
 घर के आसपास घूमने जाने की बात
फैल चुकी थी । तैयारियां और खरीददारी में कोई कसर बाकी नहीं रही । कुछ नगद तो कुछ
उधार लेते वक्त लोगों को घूमने जाने वाली बात भी ख़ुशी के  मारे मंजू सबसे
 कहना नहीं भूलती ।मंजू सोचती , की अब की बार अपनी
पड़ोसन को घूमने जाने वाली और वहां से आने के बाद ही इस बात का राज खोलूंगी । वे हर
साल घूमके आती और वहां की खूबसूरती और मिलने वाली चीजों की तारीफ कई दिनों तक सबसे
शेयर करती रहती । अबकी बार ढेरों सामान की खरीददारी और वहां के मनोरम दृश्यों की
तस्वीरें अपने साथ लाऊंगी । ख्वाब सजाते सजाते घूमने जाने के दिन नजदीक आते गए ।
 ससुराल से खबर आई की- सांस बीमार है एक बार देखने आ जाओं ।उनसे 
ज्यादा  उम्र में चला फिरा  नहीं
जाता और बीमार तो भला कैसे काम चलगा उनका
  ।उनको 
संभाल की भी तो आवश्यकता होती है ।



 ये बात पडोसी ने खबर के तौर  पर उन तक भिजवाई थी ,उन्होंने
अपना पडोसी धर्म निभा
या ।


 सुबह बैग तैयार कर ससुराल चल
दिए ।  वहां साँस की तबियत के बारे में विस्तार से पूछा । सांस कहा जब तक
साँस है तब तक आस है ।सास ने दामादजी से कहा की – मंजू को दामादजी महीने में एक आध
बार मेरे पास भेज दिया करों । मन को सुकून मिल जाता है ।
 दामाद बेचारा सोचने लगा की -मेरे समय पर खाने और ऑफिस जाने के अलावा
बच्चों को स्कूल भेजने की कैसे व्यवस्था होगी । दामादजी ने कहा की – कोई बात नहीं
मै मंजू को आपके पास महीने में दो चार दिनों के लिए भेज दिया करूँगा ।मंजू ने
 धीमे स्वर में  कहां कि -सुनों
,तुम मुझसे झूठ तो
नहीं बोल रहे ।


 अरे मंजू कैसी बात करती हो -मै क्या तुमसे झूठ बोलूंगा । भले ही हम
हिल स्टेशन अगले साल जाएंगे किन्तु इस वक्त घूमने से ज्यादा संभाल की आवश्यकता है
 

मंजू असमझ में पड गई ।उसकी  स्थिति दो नावों में सवार पैर रखने जैसी हो गई ।क्योकि मंजू ने अपनी
पड़ोसनों को अपनी माँ के बीमार होने की खबर को छुपा रखा था । वो उनसे हिल स्टेशन का
घूमने का बता कर मायके गई थी ।
 जब वापस लौटी तो सब
पड़ोसन और जान पहचान वाले उनके घर आ पहुँचे । और वह के हाल चाल जानने लगे। मंजू
,हिल स्टेशन  कैसा लगा और हमारे लिए वहां से
क्या लाई
 । मंजू  ने झूठ में ही कहा कि हमारे पैसे
घूम हो गए थे ।

 इस की चिता में हम कुछ भी खरीददारी नहीं की । वो तो भला हो एटीएम
कार्ड जो इनके जेब में रखा था
,बस उसके आधार पर ही सब कुछ हो
पाया ।
 स्कूल से बच्चे आए तो आंटी के बच्चों ने आखिर
पूछ ही लिया – क्यों चीकू बड़ा मजा आता है ना हिल स्टेशन पर । चीकू ने कहा- आता
होगा मुझे क्या मालूम । चीकू के दोस्तों ने कहा की -काहे की हमसे मजाक कर रहा है
और हमे बुध्दू बना रहा है ।
 


चीकू बोला- यार ,मेरी नानी बीमार थी|
उन्हें देखने के लिए पापा मम्मी के साथ गया था । मंजू का चेहरा सबके
सामने उतर सा गया । बात को संभल कर मंजू बोली – हमारा प्लान थोड़ा आगे बड़ गया है ।
माँ के बीमार होने ।भला
, ऐसे में क्या घूमा  जा सकता है । नहीं ना । आप लोग ही बाद में बोलोगी  की -देखो माँ को  बीमार  को छोड़कर घूमने ने गई । सब ने
 अपनी गर्दन हिलाकर सहमति व्यक्त की ।कुछ दिनों बाद चीकू की नानी का
स्वर्गवास हो गया । वापस ससुराल जाना हुआ और कार्यक्रम पश्च्यात वापस आना । इस तरह
एक वर्ष बीत गया । 


चीकू की नानी की प्रथम पुण्यतिथि पर दामाद -लड़की घर के और भी
सदस्यों के संग अखबार में फोटो  श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु प्रकाशित हुई ।
सब जान पहचान वाले संवेदना प्रदर्शित करने और ढांढस बधाने
  हेतु आए ।वापस गर्मी के दिन आगए । मंजू ने फिर खिड़की में झांक कर बाहर का
नजारा देखा -तो मुहँ से हिल स्टेशन पर घूमने वाले बात आ ही गई । उधर चीकू की
परीक्षा और उसे हल्का सा बुखार । डॉक्टर की लिखी दवाई देने के बाद उसे परीक्षा
हेतु स्कूल ले जाना और वापस घर लाना एक जिम्मेवारी  का काम भागदौड़ की जिंदगी
में अलग से शामिल हो गया । सब पैसे नदारद । पैसे मानो सांप -सीढ़ी का खेल खेल रहे
हो जिंदगी के साथ । घर के चक्रव्यूय और ऑफिस के कामों ने चीकू के पापा
 
को उलझा  सा दिया । सुलझाने का प्रयास
करते तो और उलझ जाते । जैसे इंसान कीचड़ में फंस जाता तो निकलने मे और अंदर धंसता
जाता । 


खैर ,जिंदगी शायद इसी को कहते है जिसमे उतार -चढाव न
होतो भला
,क्या काम की जिंदगी ।चीकू के पापा को एक दिन ख्याल
आया की रोज झूट बोलने से भी क्या फायदा ।ये मृगतृष्णा सी स्थिति बनती जा रही
 
है । चीकू के पापा घर आकर मंजू से बोले -देख मैं तेरे लिए क्या लाया
हूँ । जब चीकू के पापा ने हिल स्टेशन वाला वीडियो मंजू को दिखाया और कहा -ये फलाना
हिल स्टेशन है कितना अच्छा लग रहा है ना ।
 मंजू घर की
घुटन भरे माहौल से निकलकर खुली ताजा हवा में साँस लेना चाहती थी । वो ऐसे से थोड़ी
मानती । उसने कहा – श्रीमानजी मैं कोई दूध पीती बच्ची नहीं हूँ जो आप मुझे इस तरह
समझा
  सको । मै तो इस हप्ते जा कर ही रहूंगी । चीकू पापा ने तो जिद्द के आगे आत्म समर्पण कर ही दिया । सारी तैयारियां कर
ली गई । सुबह जाना है । मंजू अडोस -पड़ोस में   बता रही थी – हम कल सुबह घूमने
जायेंगे ।

रात को टीवी पर न्यूज देखी । जिस स्थान पर जाने वाले थे
।वहां
  के क्षेत्र में भूकंप के झटके आ रहे
थे ।
  असमझ की स्थिति निर्मित हो गई । वे नजदीक के
स्थान में घूमने जाने के लिए निकल गए ।
 घूम के आने के
बाद जान पहचान वाले हाल चाल जानने के उत्सुक थे । वे चीकू के घर गए । मंजू से पूछा
-वहां तो बर्फ की पहाड़िया देखने में बहुत मजा आया होगा ना । भाई हिल स्टेशन की बात
ही कुछ और होती है । फोटो देखी तो उसमे बर्फ और हिल स्टेशन का दूर दूर तक पता न था
। फिर महिलाओं ने पूछा की ये जगह कौन सी है । तब झूठ बोल कर बताया ये हिल स्टेशन
के निचे की जगह है और हमारा कैमरा ख़राब हो गया था 


तो वहां की तस्वीर ले नहीं पाए । झूठ की बौछारें हो रही थी । इतने में चीकू के पापा ने बीच में बात काटते
हुए बोल दिया – हम अगली बार हवाईजहाज से विदेश घूमने जायेंगे । तभी मंजू के दिमाग
में एक लहर सी उठी । उसने धीमे से अपने पति के कानों में फुसफुसाया -“सुनो
,
तुम मुझसे झूठ तो नहीं बोल रहे “ 

 पूरी जिंदगी जीवन के भागदौड़ में ऐसी उलझी की वो महज सपने ही देखते रहे और पूरी
उम्र ही निकल गई
,दिलासा देते- देते । चीकू के पापा और मंजू
बुजुर्ग हो गए थे । उनसे अब हिल स्टेशन पर चढ़ा जा नहीं सकता ।चीकू के पापा
सेवानिवृत हो चुके और सेवानिवृत होने पर शासन की और से तीर्थ घूमने का लाभ भी
मिलने का योग भी आया । मगर स्वास्थ्य ठीक नहीं होने से वे जाने में असमर्थ थे ।
  
वे जवानी के दिनों में ही हिल स्टेशन का
वीडियों बरसों पहले बाजार से बना  लाए थे
  
आज उसी को देखकर खुश हो रहे थे ।
 
संजय वर्मा “दृष्टी “
१२५शहीद भगत सिंग मार्ग 
मनावर जिला -धार (म प्र )



सक्षिप्त परिचय 
पूरा नाम:- संजय वर्मा “दॄष्टि “
प्रकाशन विवरण .प्रकाशन
 देश -विदेश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ व् समाचार पत्रों में निरंतर
रचनाओं और पत्र का
 प्रकाशन ,प्रकाशित
काव्य कृति “दरवाजे पर दस्तक “
खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास  कनाडा
 -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के
  65 रचनाकारों
में लेखनीयता में सहभागिता  भारत की और से सम्मान-
2015 /अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित 
 
              –संस्थाओं से
सम्बद्धता ):-शब्दप्रवाह उज्जैन
,यशधारा – धारलघूकथा संस्था जबलपुर में उप संपादक
                –काव्य
मंच/आकाशवाणी/ पर  काव्य पाठ  :-शगुन काव्य मंच मनावर /आकाशवाणी से
काव्य पाठ
 

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