मनसा वाचा कर्मणा – जाने रोजमर्रा के जीवन में क्या है कर्म और उसका फल

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दैनिक जीवन में कहे जाने वाले तीन शब्द मनसा वाचा कर्मणा कहने में जितने सरल ,पालन  में उतने कठिन | “कर्म सिधांत के अनुसार इन तीन शब्दों का महत्व केवल इस जन्म में नहीं जन्म जन्मान्तर में है | हम सब कर्म और उसके फल के बारे में अक्सर भ्रम में पड़  जाते हैं | क्या आपको पता है है  रोजमर्रा के जीवन में कर्म और उसका फल ?

अभी कुछ दिन पहले  नवरात्रि के दिन चल रहे थे  | कहीं रतजगे , कहीं , भंडारे , कहीं कन्या पूजन किये जा रहे थे | ये सब कुछ भावना के आधीन और कुछ पुन्य लाभ के लिए किये जाते हैं | पुन्य इहलोक व् परलोक में अच्छा जीवन जीने की गारंटी है | पर क्या ऐसा होता है की हर पुन्य करने वाले को अच्छे फल मिलते हों |  कई बार हम किसी के बारे में भ्रम में पड़ जाते हैं की कर्म तो अच्छा करते हैं फिर उनका  जीवन इतना नारकीय क्यों है ? अक्सर इसके उत्तर हम पिछले जन्म में किये गए कर्मों में खोजते हैं | ऐसा करते समय हमारे मन में प्रश्न भी उठता है की क्या ये सही तरीका है ? भगवद गीता का तीसरा अध्याय कर्मयोग कहलाता है | जिसमे कर्म की बहुत सूक्ष्म  व्याख्या है |

आइये जानते हैं की क्या है कर्म की सही व्याख्या 

what is “law of karma”





                          हम अक्सर  अपने द्वारा किये जाने वाले कामों को ही कर्म की श्रेणी में रखते हैं |हमारा ये कर्म अंग्रेजी के  “work” का पर्यायवाची सा है | जहाँ केवल किये जाने वाले काम को काम मानते हैं | हमारा वार्तालाप कुछ इस प्रकार होता है … वो बड़े  धर्मात्मा हैं नौ दिन व्रत रखतेहैं ,हर साल भंडारा कराते हैं | पूरे गाँव की कन्याओं को भोज कराते हैं |यहाँ हम कर्म को केवल किये जाने वाले काम की दृष्टि से देखते हैं | ऐसे लोगों के साथ जब दुखद घटना होतीहै है तो हम असमंजस में पड़ जाते हैं की वो तो इतने धर्मात्मा पुरुष या स्त्री थे |उनके साथ ऐसा क्यों हुआ | ऐसा इसलिए है क्योंकी किया जाने वाला काम कर्म की पूर्ण परिभाषा में नहीं आता |कर्म को सही तरीके से समझने के लिए हमें शारीरिक कर्म ,वैचारिक कर्म ,  मानसिक कर्म चेतन और अवचेतन मन की सूक्ष्म  व्याख्या को समझना पड़ेगा | चेतन मन से व् अवचेतन मन द्वारा किये गए कार्यों के अंतर को समझना पड़ेगा |

मनसा वाचा कर्मणा ?mansa,vacha, karmna



                       कर्म की सही परिभाषा मनसा  वाचा कर्मणा के सिद्धांत में छिपी है | मन  यानि  विचार , वचन यानि शब्द और कर्म यानि किया जाने वाला   काम (work) अर्थात जो हम करते हैं बोलते हैं और सोंचते  हैं वो तीनों मिल कर कर्म बनते हैं |अक्सर हमारे कर्म के इन तीनों में एका  नहीं होता | यानी हम करते कुछ दिखाई देते हैं बोलते कुछ हैं और मन में कुछ और ही सोंच रहे होते हैं | फिर पूर्ण कर्म एक कैसे हो सकता है | दरसल इसमें  ग्रेडेशन करना पड़े तो सबसे निचली पायदान पर है काम (work) , फिर शब्द  और   सबसे ऊपर हैं मन या विचार | या जिस भावना के तहत काम किया गया |

उदहारण के तौर पर एक आतंकवादी एक व्यक्ति की हत्या करता है ( पेट में छूरा भोंक कर ) | और एक डॉक्टर एक मरीज की जान बचाने के लिए उसका ऑपरेशन करता है | दोनों व्यक्तियों की ही मृत्यु हो जाती है | आतंक वादी की भावना आतंक फैलाने की थी व् डॉक्टर की मरीज की जान बचाने की |






छुरा भोंकने का वहीँ  कर्म पहले स्थान पर निकृष्ट है व् दूसरे स्थान पर श्रेष्ठ है | 




                    गीता के अनुसार हर कर्म तीन भागों में बंटता है तामसिक , राजसी और सात्विक | और उसी के अनुसार फल मिलते हैं | जैसे की आप व्रत कर रहे हैं | ये एक ही कर्म  है | पर इस व्रत के पीछे आपका उद्देश्य क्या है इस आधार पर इसके फल को तीन भागों  में विभक्त किया जा सकता हैं | 




तामसी – अगर आप किसी को हानि या नुक्सान पहुंचाने के उद्देश्य से व्रत कर रहे हैं | 




राजसी – अगर आप किसी मनोकामना पूर्ति के लिए व्रत कर रहे हैं या आप के मन में ये भाव है की चलो व्रत के साथ पुन्य तो मिलेगा ही डाईटिंग भी हो जायेगी | या मेरे सास ननद देवर तो व्रत करते हैं मैं उनसे बेहतर व्रत कर के दिखा सकती हूँ / सकता हूँ | 




सात्विक – अगर आप सिर्फ ईश्वर के प्रेम में आनंदित हो कर व्रत कर रहे हैं या आप की भावना सर्वजन हिताय , सर्व जन सुखाय है | 


                          व्रत करने का एक ही काम तीन अलग – अलग कर्म व् तीन अलग – अलग कर्म फलों में आपके विचार के आधार पर परिवर्तित होता है | मोटे तौर पर समझें तो हम जिस भावना या विचार से कोई काम कर रहे हैं उसी के आधार पर हमारे कर्म का मूल्याङ्कन होता है | 


सेवा और सेवा में भी फर्क है –
                                      किसी की सेवा करना एक बहुत बड़ा गुण है | परन्तु सेवा और सेवा में भी फर्क है | कबीर दास जी कहते हैं की। ….

वृक्ष कबहूँ नहीं फल भखें , नदी न संचै  नीर 
 परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर 


                                          सच्ची सेवा वो है जब व्यक्ति को पता ही नहीं है की वो सेवा कर रहा है | वो उसका स्वाभाव बन गयी है | वो उससे हो रही है | जैसी बादल से बारिश हो रही है | उससे धरती की प्यास बुझ  रही है | पूरा इको सिस्टम चल रहा है | पर बादल को पता नहीं | वो तो बस बरस रहे है | हमारे  घरों में हम इसे ऐसे समझ सकते हैं की एक बेटा अपने माता – पिता की सेवा कर रहा है परन्तु उसे अहंकार आ गया की मैं तो दुनिया का सबसे अच्छा बेटा हूँ | सब बुरे हैं बस मैं अच्छा हूँ | या कोई इस भावना से कर रहा है की माता – पिता शायद मुझे दूसरे भाई से ज्यादा धन दे दें | या कोई समाज के डर से कर रहा है की लोग क्या कहेंगे | तीनों स्थानों पर माता – पिता की सेवा हो रही है | तीनों  को अपने हिसाब से फल भी मिल रहा है | एक को प्रशंसा मिल रही है , दूसरे को शायद धन ज्यादा मिल जाए , तीसरे को सामाजिक स्वीकार्यता मिल रही है | सेवा तीनों कर रहे हैं | परन्तु इसमें से पुन्य कोई भी नहीं है | पुन्य तब है जब निज कामना से ऊपर उठ कर सेवा करें | 





कर्म सीधा और कर्मफल उल्टा क्यों मिलता है 



                                   आपने कई बार महसूस किया होगा की कोई व्यक्ति अच्छा कर्म करता है उसे बुरा फल मिलता है व् कोई बुरा कर्म करता है उसे अच्छा फल मिलता है | एक उदाहरण  के तौर पर एक छोटी सी कहानी शेयर करना चाहूंगी | ये कहानी है दो दोस्तों की | विशाल और तुषार दो दोस्त थे | एग्जाम खत्म हो गए थे | थोडा रिलैक्स टाइम था | एक दिन दोनों बाहर घूमने जाना चाहते थे  | पर कहाँ जाएँ इसमें थोडा विवाद था | तुषार फिल्म देखने जाना चाहता था | फिल्म थोड़ी बी ग्रेड थी | विशाल ने कहा ,” रिजल्ट निकला नहीं है ऐसे में फिल्म देखना ठीक नहीं है | फिर ऐसी फिल्म तो बिलकुल नहीं उसने सुझाव दिया की उसके घर के पास मंदिर में गीता का प्रवचन चल रहा है वहीँ चलते  हैं | पर तुषार राजी नहीं हुआ | लिहाजा दोनों ने अलग – अलग अपनी -अपनी मर्जी की जगह   जाने का निश्चय किया |

अब तुषार फिल्म देखने तो चला गया पर उसे लगता रहा की विशाल का फैसला सही था उसे भी घटिया फिल्म की जगह प्रवचन सुनना चाहिए था | विशाल कितना लकी है जो उसे इतना ज्ञान मिल रहा है | | उधर विशाल प्रवचन में बैठा सोंचता रहा की तुषार ही सही था | प्रवचन कितना बोरिंग है | तुषार तो फिल्म का लुत्फ़ उठा रहा होगा और मैं तो यहाँ फंस गया | अब तुषार मन से प्रवचन सुनने को मंदिर में था व् विशाल फिल्म देखने को थियेटर में | उनके कर्मफल उनके द्वारा किये गए काम के आधार पर नहीं | उस आधार पर मिले जिस आधार पर जो भावना , विचार या मन के साथ जहाँ पर थे | अक्सर हमें कर्म और कर्मफल का ऐसा उल्टा – पुल्टा नियम देखने को मिलता है जिसका आधार सिर्फ विचार हैं |

 

मनसा वाचा कर्मणा का दैनिक जीवन में उदाहरण 





                                                                  आइये अब अपने रोजमर्रा के जीवन में मनसा वाचा कर्मणा के सिद्धांत को जानते हैं | मान लीजिये आप के घर आपकी ऐसी  एक रिश्तेदार आयी है जिसे आप पसंद नहीं करते | परन्तु उन्हें देख कर आप शिष्टाचार के तहत मुस्कुरा कर कहते हैं की आइये , आइये , बड़े दिन बाद आना हुआ | हालांकि आप मन में सोंच रही हैं , हे भगवान ये कहाँ से आ गयीं , मुझे तो पिक्चर या शौपिंग पर जाना था | पूरा घंटा खराब करेगी | फिर आप  नाश्ता भी लाते हैं |कहते जाते हैं लीजिये , लीजिये ना |  पर  मन में सोंच रहे हैं , भुक्खड़ पूरी प्लेट खाली कर देगी | कहीं खाली प्लेट ही न  चबा   जाए | अपने घर में तो मुझे खाली चाय से ही   टरका देती है | अब क्या करूँ , मैं तो ऐसी हूँ नहीं | खा ले , मुफ्त का माल है | मुंह पर आप उसकी तारीफ़ करती रहेंगी |उस के जाने के बाद आपबी रिश्तेदारों को फोन कर – कर के बतायेंगी की उसने क्या – क्या गलतियाँ की |और आप ने क्या – क्या अच्छा किया | 


                                                अगर कोई किसी थप्पड़ मार दे या  अपशब्द कह दे तो हमें गलत कर्म लगता है | इसीलिये यहाँ आप को लग रहा है की आपने अच्छा कर्म किया | परन्तु कर्म के सिद्धांत के आधार पर आपके शब्द और काम आपके विचारों से अलग थे | अगर प्लस माइनस की भाषा में समझें तो दो पोसिटिव  व् एक नेगेटिव |   पर जैसा की मैंने पहले बताया की  “कर्म ” के तीनों अवयवों में सबसे महत्वपूर्ण विचार हैं | इसलिए रिजल्ट  पूरा नेगेटिव  आएगा   | इस कर्म का फल अगले जन्म में नहीं आज के आज ही मिलने वाला है | क्योंकि उनकी गलतियों को ध्यान रख कर आप सारा दिन खिन्न  रहेंगी , हो सकता है हर्ट फील करें | आपको अपने ऊपर भी गुस्सा आ सकता है की वो बुरी हैं तो मैंने क्यों अच्छा किया |मन की खिन्नता के कारन हो सकता है पति से झगडा हो जाए , बच्चों को पीट दें या सास ससुर से कुछ गलत कह जाएँ | कुल मिला कर घर का पूरा वातावरण नकारात्मक  बन जाएगा |  आपकी और आपके परिवार की जिंदगी का एक कीमती दिन बरबाद हो जाएगा | और ये सब अनजाने में आप के ही कर्म के कारण हुआ |



                                            ऐसी स्तिथि में सही ये हैं की आप ऐसे लोगों को साफ़ – साफ़ आने से मना  कर दें या अपने मन को उल्टा पुल्टा सोंचने से यह कह कर मन कर दें की हम समाज में रहते हैं हमें अच्छे  – बुरे हर तरह के रिश्ते निभाने ही हैं |

कई बार हम विचारों के कारण ही नकारात्मक कर्मजाल में फंस जाते हैं 



                                                इस बात को समझाने के लिए मैं एक उदाहरण देना चाहूंगी |
एक क्लास में एक बच्चे ने डिबेट करवाई | विषय था ” कौन कितना धनवान है ” | चर्चा चल रही थी | एक बच्चे के  तर्क सबसे ज्यादा पसंद किये गए | उन बच्चों का कहना था | उसका कहना था की ये सब अगर आप की कोई एक टांग ले और बदले में आप को एक करोंड़ रूपये दे तो क्या आप अपनी टांग दे देंगें | सभी बच्चों ने ना कहा | फिर बच्चा आगे बोला ,” यानी हम सब करोंड़पति   तो  पहले से हैं बस समझने की देर है | उसके तर्क पर सब बच्चे बहुत खुश हुए | खूब तालियाँ बजीं | उसी क्लास का एक बच्चा था जो लंगडा था | वो निराश हो गया | कुछ दिन तक स्कूल नहीं आया फिर उसने आत्महत्या कर ली |

अब जिस बच्चे ने डीबेट शुरू करवाई थी | उसके मन में बात आ गयी की उसकी वजह से उस बच्चे ने आत्महत्या की | वो अपने को दोषी मानने लगा | उसका पढाई से मन हट गया | वो अवसाद में चला गया | विद्यार्थी जीवन के इन बहुमूल्य वर्षों में अवसाद में जाने के कारण उसे हर मोड़ पर असफलताओं का सामना करना पड़ा | वहीँ दूसरा बच्चा जिसने तर्क रखा था | उसे लगा उसने किसी को तकलीफ देने के लिए ऐसा नहीं कहा था | ये मात्र एक संयोग था की उस बच्चे ने उसे अपने ऊपर ले लिया | यहाँ तक की उस बच्चे को लगने लगा की उसमें लोगों को प्रभावित करने की क्षमता है | उसने इस  क्षमता का विकास किया और बाद में पोजिटिव स्पीकर बना | यहाँ एक ही काम होने पर पहले बच्चे के नकारात्मक विचार उसकी असफलता फिर खराब भाग्य में बदले वहीँ दूसरे बच्चे के सकारात्मक   विचार  अच्छे कर्म फल के रूप    में सामने आये |

अर्थात हम रोज मर्रा के जीवन में अपने विचारों के आधार पर अच्छा और बुरा कर्मफल पाते हैं जिसे हम अक्सर पिछले जन्म से जोड़ कर देखते हैं |

 

 

सामाजिक नियम सामाजिक कर्म बंधन में बांधते हैं 



                                                   मनुष्य  एक सामाजिक प्राणी है | हम सब अपने अपने समाज के नियमों का पालन   करते हैं | या यूँ कहे की समाज हमसे पालन करवाता है | एक उदाहरण याद आ रहा है | एक बार घर के सामने बनते हुए घर में कुछ आदिवासी स्त्रियाँ मजदूर के रूप में काम करने आयीं | वो ऊपर कोई   वस्त्र  नहीं पहनती थीं | उनके लिए ये सामान्य बात थी |परन्तु छोटे शहरों में  लड़कियों के पूरे कपड़ों पर भी  इतने कमेंट्स   होते हैं की वो अपराधबोध का शिकार हो जाती  हैं ये नकारात्मकता उनके जीवन में बुरे कर्मफल के रूप में सामने आती है |  ये क्या है ? सामाजिक नियम ही तो हैं। .. जहाँ हैं वहां    कर्म बंधन के
रूप में प्रगट हुए |

मित्रों , अक्सर हम कर्म के सिद्धांत को सही तरीके से समझ नहीं पाते हैं | ” मनसा वाचा कर्मणा ” का सिद्धांत बिलकुल स्पष्ट है | कर्म में विचारों या भावना का सबसे अधिक महत्व है | इसीलिए आजकल सकारात्मक विचार या पॉजिटिव थिंकिंग पर बहुत जोर दिया जाता है | इसलिए मैं कहती हूँ की अच्छा सोंचो तभी अच्छे शब्द स्वत : ही निकलेंगे और जब विचार नेक होंगे तो काम भी अच्छे ही होंगे  कर्म और कर्मफल के सिद्धांत के अनुसार तब अच्छा भाग्य होने में कोई बाधा ही नहीं है |

वंदना बाजपेयी

 




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5 COMMENTS

  1. बहुत ही उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक आलेख है आदरणीय वंदना दीदी। अटूट बंधन की सारी रचनाएँ पढ़ती हूँ। सामाजिक जागृति का जगन्नाथरथ खींचने में अपना अमूल्य योगदान दे रहा है अटूट बंधन । साधुवाद एवं अभिवादन । सादर।

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