सूर्योपासना का महापर्व छठ – धार्मिक वैज्ञानिक व् सामाजिक महत्व

2
सूर्योपासना का महापर्व छठ - धार्मिक , विज्ञानिक व् सामाजिक महत्व

 

सूर्योपासना का महापर्व छठ कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाने वाला हिन्दुओं का एक प्रमुख पर्व है |षष्ठी को मनाये जाने के कारण इसे छठ कहते हैं | हालांकि ये पर्व  चार दिन चतुर्थी से ले कर सप्तमी तक चलता है | परन्तु इसका मुख्य दिन षष्ठी ही होता है | छठ पर्व साल में दो बार मनाया जाता है | पहली बार चैत्र व् दूसरी बार कार्तिक में | कार्तिक में मनाये जाने वाले छठ को कार्तिकी  छठ  भी कहते हैं | वैसे मूलत : यह बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है | परन्तु धीरे – धीरे अपनी सरहदों से निकलकर यह पूरे भारत व् विश्व के कई देशों में मनाया जाने लगा हैं |



 
 लोक आस्था के महापर्व छठ को स्त्री पुरुष सामान रूप से करते हैं | व्रत करते हैं और ढलते व्  उगते सूर्य को पानी में खड़े होकर अर्घ्य देते हैं | इस पर्व में बिहार उत्तर प्रदेश व् देश के अन्य शहरों में नदी तालाब पोखरों के घाटों की विशेष सफाई की जाती है | ताकि छठ पूजा के व्रती सुविधापूर्वक उपासना कर सके व् सूर्य को अर्घ्य दे सके | हर घाट पर व्रती हाथ में सूप व् सूर्यदेव को अर्पित किये जाने वाले सामान लेकर उत्साह के साथ दिखाई पड़ते हैं | छठ मैया के मनभावन भक्ति पूर्ण गीतों से सारा वातावरण गुंजायमान हो जाता है | मान्यता है आज के दिन छठ मैया से जो भी मांगों वो मिल जाता है |घाट  में उपस्थित  हर व्यक्ति अपने ह्रदय में आस्था लेकर छठ मैया से अपनी मनोकामना को पूर्ण करने की प्रार्थना करता है |

 

सूर्योपासना का महापर्व छठ 

 
छठ मुख्यत : सूर्य उपासना का पर्व है | सूर्य हिन्दुओं के प्रमुख देवता है | सूर्य ही वो देवता हैं जिनका हम साक्षात दर्शन कर सकते हैं | सूर्य की उपासना सभ्यता के विकास के साथ ही शुरू हो गयी थी | सूर्य पूजा का उल्लेख पहली बार ऋग्वेद में मिलता है | उपनिषद व् हिन्दुओं के अन्य धर्म ग्रंथों में भी सूर्य को आदि देव मान कर उनकी उपासना का वर्णन हैं | धीरे – धीरे सूर्य की कल्पना मानवाकार के रूपमें होने लगी | पुराणों  के समय में सूर्य की मूर्ति की पूजा होने लगी | व् देश के अनेकों भागों में सूर्य मंदिर बने | 

पौराणिक काल में सूर्य की किरणों के आरोग्यकारी गुणों की खोज हुई | पाया गया की कुछ खास दिनों में सूर्य की ये आरोग्यकारी किरणे  प्रचुर मात्र में निकलती हैं | संभवत : वो षष्ठी रही हो और तभी से  छठ एक पर्व के रूप में मनाया जाने लगा हो |




छठ के साथ एक ख़ास बात और है इसमें सूर्य के साथ – साथ उसकी शक्ति की भी अराधना होती है | कहा जाता है सूर्य की शक्ति उसकी पत्नियों उषा व् प्रत्युषा में निहित है | छठ में सूर्य के साथ – साथ उसकी दोनों शक्तियों की भी संयुक्त रूपसे उपासना होती है | प्रात: काल में सूर्य की पहली पत्नी ऊषा व् सांय काल में सूर्य की दूसरी पत्नी प्रत्युषा  को अर्घ्य दे कर नमन किया जाता है |

किस प्रकार मनाया जाता है छठ



             छठ चार दिन का पर्व है | यह कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू हो कर कार्तिक शुक्ल सप्तमी तक चलता है | इस दौरान व्रती ३६ घंटे का व्रत रखते हैं |



चतुर्थी (नहाय खाय )



                  ये छठ पूजा का पहला दिन है | इस दिन घर की साफ़ सफाई कर के उसे पवित्र बनाया जाता है | फिर व्रती स्नान करके शुद्ध शाकाहारी ढंग से बनाया हुआ भोजन ग्रहण करते हैं | इसमें सेंधा  नमक से बनी हुई कद्दू की सब्जी व् अरवा चावल होते हैं | घर के अन्य लोग व्रती के बाद ही भोजन करते हैं |

पंचमी ( लोखंडा और खरना )

 इस दिन पूरे दिन का उपवास होता है | शाम को  प्रसाद लगाया जाता है | जिसमें घी चुपड़ी रोटी , गन्ने के रस में बनी हुई चावल की खीर का भोग लगाया जाता हैं | प्रसाद  लेने के लिए आस – पास के लोगों को भी बुलाया जाता है |  व्रती एक बार भोजन ग्रहण करते हैं |



षष्ठी (संध्या अर्घ्य )

               कार्तिक शुक्ल षष्ठी को संध्या अर्घ्य देने का विधान है | इस दिन प्रसाद बनाया जाता है | प्रसाद में ठेकुये व् चावल के आते के लड्डू बनाए जाते हैं | इसके आलावा छठ मैया को अर्पित करने के लिए मौसमी फल व् सांचा भी लिया जाता है |
सभी सामन को बांस की बनी एक टोकरी में सूप में रखा जाता है | व्रती के साथ – साथ उसके परिवार के लोग भी जाते हैं | सूर्य देव को दूध  व् जल का अर्घ्य दिया जाता है | अर्घ्य सामूहिक रूप से दिया जाता है | जो अप्रतिम दृश्य उत्पन्न करता है | सूप की सामग्री  छठ मैया को समर्पित की जाती है |

सप्तमी (परना , ऊषा अर्घ्य )

              सप्तमी को ऊषा अर्घ्य या उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है | यह सुबह के समय बिलकुल संध्या अर्घ्य की तरह होता है | व्रती वहीँ अर्घ्य देते हैं जहाँ उन्होंने एक दिन पहले अर्घ्य दिया होता है |वहीँ प्रसाद वितरण होता है | व्रती व्रत  खोलते हैं जिसे परना या पारण भी कहा जाता है |

क्यों विशेष है सूर्योपासना का महापर्व छठ 




छठ व्रत की कुछ विशेषताएं निम्नलिखित है …



  • यह एक कठिन व्रत है | जिसे पुरुष व् महिलाएं दोनों  कर सकते  हैं | पर मुख्यत : महिलाएं हीं इस व्रत को करती हैं |
  • व्रत में साफ़ – सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है |
  • जिस घर में कोई व्रती है वहां मांस , लहसुन , प्याज़ नहीं पक  सकता |
  • व्रत के दौरान सात्विक आचरण ही करना पड़ता है |
  • व्रती को बिस्तर का त्याग करना पड़ता है | फर्श पर कम्बल या चादर के सहारे ही रात बितानी पड़ती है |
  • अर्घ्य देते समय नए कपडे पहनने होते हैं | कपडे सिले नहीं होने चाहिए | इसलिए महिलाएं  साड़ी व् पुरुष धोती पहनते हैं |
  • एक बार संकल्प लेने के बाद यह व्रत तब तक करना होता है जब तक अगली पीढ़ी की कोई विवाहित महिला इस व्रत को करने को तैयार न हो जाए |
  • घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जा सकता है |



छठ पूजा का इतिहास

भगवान् राम-सीता  ने किया था पहली बार छठ ?
          मान्यता है की भगवान् राम व् माता सीता ने पहली बार इस व्रत को किया था | कहते हैं की जब रावण का वध कर प्रभु राम माता सीता के साथ अयोध्या वापस आये तो अपने कुल देव सूर्य का आशीर्वाद पाने के लिए उन्होंने माता – सीता के साथ छठ व्रत किया था | जैसा की विदित है की प्रभु श्री राम सूर्यवंशी थे व् सूर्य उनके कुल देवता थे | पहले डूबते फिर उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद प्रभु श्री राम ने राज काज संभाला था |उनके बाद से सभी लोग इस व्रत को करने लगे | 
कर्ण ने शुरू किया था छठ पर्व ?

           महाभारत में वर्णन है की दुर्योधन ने अपने मित्र कर्ण को अंग देश ( आज का भागलपुर , बिहार) का राजा बना कर भेज  दिया था | जैसा की ज्ञात है कर्ण कुंती व् सूर्यदेव का पुत्र था | कर्ण सूर्योपासक भी था | वो रोज जल में खड़े हो कर सूर्य को अर्घ्य देता था | उसके बाद उससे जो भी कुछ माँगता वो अवश्य दान करता | कार्तिक शुक्ल षष्ठी व् सप्तमी को वो विशेष पूजा करता | कहते हैं अपने राजा से प्रभावित हो कर प्रजा ने भी छठ व्रत करना शुरू कर दिया |



कुंती व् द्रौपदी का छठ व्रत ?



   महाभारत के अनुसार महाराजा पंडू ने जब एक ऋषि का धोखे से वध कर दिया तो वह प्रायश्चित के तौर पर अपनी पत्नियों कुंती व्  मांडवी के साथ जंगल में रहने लगे | ऋषि के श्राप के कारण वो पिता नहीं बन सकते थे | तब कुंती ने सूर्योपासना की जिससे उसे संतान की प्राप्ति हुई | तब से संतान प्राप्ति के लिए छठ का महत्व बढ़ गया |



इसके अतिरिक्त एक कथा और है | कुंती की पुत्रवधू द्रौपदी जब अपने पतियों के साथ जंगल में अज्ञातवास  में भटक रही थी तो उसने राजपाट वापस पाने व् अपने पतियों के उत्तम स्वास्थ्य के लिए सूर्योपासना की | कुछ लोग मानते हैं की सुख व् सौभाग्य के लिए छठ पर्व तभी से शुरू हुआ |



 छठ  का धर्मिक महत्व -व्रत कथा

 

पुराणों  की कथा के अनुसार प्रथम मनु प्रियव्रत के कोई संतान नहीं थी | महर्षि कश्यप के कहने पर उन्होंने अपनी पत्नी मालिनी के साथ पुत्रेष्ठी  यज्ञ  किया | जिससे उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति तो हुई | पर दुर्भाग्यवश पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ | वह रोते – बिलखते पुत्र का अंतिम संस्कार करने गए | तभी एक आश्चयर्य जनक घटना घटी | एक चमकता हुआ विमान वहां आया | उस विमान में उन्होंने देखा की एक दिव्य नारी बैठी हुई है | उसने देवव्रत से कहा



मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री हूँ | मेरा नाम देवसेना है | सृष्टि की मूल प्रवत्ति के छठे अंश से पैदा होने के कारण मैं षष्ठी कह्लाती  हूँ | मैं संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वालों को संतान प्रदान करतीहूं  |





 तुम मेरा पूजन करो व् अन्य लोगों से भी कहो , मैं सबको संतान का सुख दूँगी | राजा ने देवी की पूजा की और उसका पुत्र जीवित हो गया | तब से सभी लोग छठ मैया की पूजा करने लगे | कुछ स्थानों पर छठ मैया को सूर्य की बहन भिकः गया है |

छठ का वैज्ञानिक महत्व

 

छठ का वैज्ञानिक महत्व भी  है | कहते हैं की छठ के समय कुछ खगोलीय परिवर्तन होते हैं जिस कारण पृथ्वी पर सूर्य की पराबैगनी किरने ज्यादा मात्र में पहुँच जाती हैं | जैसा की हम सभी जानते हैं की सूर्य की पराबैगनी किरणे जीवों के लिए हानिकारक हैं | परन्तु जब यह वायुमंडल में प्रवेश करती हैं तो ऑक्सिजन के साथ रीअक्ट करके ओजोन में बदल जाती हैं | यह पृथ्वी के वायुमंडल के ऊपर एक छत बना देती है जिसे ओजोन लेयर कहते हैं | जिससे अधिक मात्र में पराबैगनी किरणे पृथ्वी तक नहीं आ पाती और जीवों को कोई नुक्सान नहीं पहुंचा पातीं | 




परन्तु छठ के समय खगोलीय स्थिति ऐसी रहती है की ये परा बैगनी किरणे चंदमा से परावर्तित होकर व् पृथ्वी के गोलीय अपवर्तन के कारण अधिक मात्रा  में पृथ्वी पर आ जाती हैं | ऐसे समय में व्रत व् लम्बे  समय तक जल में खड़े रहना उनके  हानिकारक प्रभाव से बचाता है |

छठ पर्व का सामाजिक महत्व 

            छठ पर्व का सामजिक महत्व हैं | इसका आयोजन सामूहिक रूप से होता है | आस – पास व् घाटों की सफाई लोग स्वयं समूह में करते हैं | व्रत पूजा आयोजन स्वयं ही किया जाता है | किसी पंडे की आवश्यकता नहीं होती | प्रसाद में चढ़ाई  जाने वाली  वस्तुएं सर्व सुलभ हैं व् कृषक वर्ग से जुडी हैं | इसलिए इसे लोक पर्व भी कहा जाता है | साथ – साथ पूजा करने अर्घ्य देने से समूह की भावना का विकास  होता है |

                 सूर्योपासना  व् लोक आस्था का पर्व छठ अपने धर्मिक सामजिक व् वैज्ञानिक महत्व के साथ – साथ  समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है |

स्मिता शुक्ला
पटना (बिहार ) 

 

हमारा लेख सूर्योपासना का महापर्व छठ – धर्मिक वैज्ञानिक व् सामजिक महत्व आपको कैसा कैसा लगा | पसंद आने  पर शेयर करे व् हमारा फेसबुक पेज लाइक  करें | अगर आपको “अटूट बंधन ” की रचनाएँ पसंद आती हैं तो हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब करें | ताकि लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके ईमेल पर भेज सकूँ |यह भी पढ़ें ………..

शरद पूर्णिमा – १६ कलाओं से युक्त चाँद जो बरसाता है प्रेम व् आरोग्यता

क्यों ख़ास है ईद का चाँद

दीपोत्सव – स्वास्थ्य सामाजिकता व् पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण

धनतेरस – दीपोत्सव का प्रथम दिन

 

2 COMMENTS

  1. स्मिता जी , भारत के त्योहारों में छठ पूजा का बहुत ही बड़ा महत्व है। पुराने समय में राजा महाराज, पुरोहितों हो खासकर इस पूजा को राज्य में करने के लिए आमंत्रित करते थे | इस पर्व में लोक मंगल के तत्त्व समाहित है | छठ पूजा पर विस्तार से जानकारी देने के लिए धन्यवाद |

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here