ठुमरी को उदास छोड़े जा रही

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कविता - ठुमरी को उदास छोड़े जा रही
रंगनाथ दुबे जी की ये कविता प्रसिद्ध ठुमरी गायिका गिरिजा देवी को भावभीनी श्रद्धांजलि है | विगत २४ अक्टूबर को कोलकाता के बिडला अस्पताल में दिल का दौड़ा पड़ने से उनका निधन हो गया | भारतीय शास्त्रीय संगीत के ठुमरी गायन को विश्व प्रसिद्ध करने वाली गिरिजा देवी जी का जन्म ८ मई सन १९२९ में बनारस में हुआ था | वो बनारस घराने की ही गायिका थी | हालांकि संगीत की शुरूआती शिखा उन्होंने अपने पिता से ही ली थी | शुरुआत में गायन के लिए परिवार का कड़ा विरोध सहन करने वाली गिरिजा देवी गायन में डूबती ही चली गयीं | ठुमरी के अलावा उन्होंने होली चैती , कजरी व् ठप्पा भी गाये | उन्हें १९७२मे पदमश्री १९८९ में पदम् भूषण व् २०१६ में पदम् विभूषण से भी सम्मानित किया गया | 

ठुमरी समाज्ञ्री गिरजा देवी को मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि


मै तो बस अपनी ये साँस तोड़े जा रही———
एै बनारस मै फिर आऊँगी तेरी घाटो पे लौट रियाज़ करने,
मै इसलिये—————


एक आखिरी ठुमरी छोड़े जा रही।
अनगिनत साज़-आवाज़ की महफिले,
और दिवान मे गिरजा का जिक्र होगा——-


मै अपनी गायकी का एक रंग छोड़े जा रही।
ना रो मुझे जाने दे एै मेरी सदके मोहब्बत,
तु तो मेरे बचपन की सहेली है,
वे देख कब से खड़ी है ले जाने को आज़,
जाने दे ना रोक सहेली,


देख तेरे नाते वे फरिश्त़े औरत भी गमज़दा है,
उसे भी पता है कि वे गिरज़ा की साँस के साथ——
हमेशा के लिये ठुमरी को उदास छोड़े जा रही।

@@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी।
जज कालोनी,मियाँपुर
जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)।

रचनाकार

फोटो क्रेडिट –विकिमीडिया कॉमन्स

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