सफलता का बाग़

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सफलता का बाग़



दोस्तों हम सब सफल होना चाहते हैं | इसके लिए शुरुआत भी बड़े जोर – शोर से करते हैं | पर सिर्फ शुरुआत की मेहनत  ही काफी नहीं है | सफलता के लिए लगातार परिश्रम के साथ धैर्य भी जरूरी है | नहीं  तो इन बंदरों की तरह हमें भी पछताना पड़ेगा | कैसे ……

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एक आम के बाग़ के पास में बहुत सारे बन्दर रहा करते थे | वो जब तब झुण्ड बना कर बाग़ में पहुँच जाते थे और आम तोड़ कर खाने का प्रयास करते थे | पर बाग़ का  रखवाला उन्हें पत्थर मार – मार कर खदेड़ देता | नतीजे में आम तो उन्हें बहुत कम मिलते पत्थर ज्यादा मिलते | वो बेचारे ललचाते ही रह जाते | 
बंदरों का मुखिया इस बात से बहुत परेशान था उसे रोज – रोज का अपमान अच्छा नहीं लगता | लिहाजा उसने सभी बंदरों की एक सभा बुलाई और कहा ,” हमारे बन्दर आम की जगह रोज पत्थर खा रहे हैं | ये तो बहुत शर्म की बात है | अब हम रोज – रोज यह अपमान नहीं सहेंगे | हम अपना एक अलग बाग़ लागयेंगे | | देखो तो नदी के किनारे की जमीन खाली भी पड़ी है | जब हमारा बाग़ होगा | तो हम जब चाहें , जितने चाहें आम खा सकते हैं | कोई हमें न रोक पायेगा न अपमानित कर पायेगा | 
सब को मुखिया की बात बहुत अच्छी लगी | वाह अपना बाग़ | इस कल्पना से ही वो खुश हो गए | उन्होंने मुखिया से पूँछा ,” हम अपना बाग़ लगायेंगे कैसे ?”मुखिया ने कहा ,”अरे ये तो बहुत आसान है | ये जो आम् खाकर  उस गुठली को हम फेंक देते हैं | उसे जमीन में बो देना है | पानी देना है | फिर देखना कैसे आम की फसल लहलहाएगी | मैंने सब देखा है पर उससे पहले हमें जमीन को समतल करना होगा | 

सारे बन्दर पूरा तरीका जान कर खुश हो गए | उन्होंने  बाग़ के लिए खाली पड़ी जमीन को समतल कर दिया | फिर उसमें गुठलियाँ बो दी | वो बहुत खुश थे की अब उनका अपना बाग़ होगा |

पर ये क्या अभी १५ मिनट भी नहीं बीते होंगे की उन्होंने सारी  गुठलियाँ ये कहते हुए निकाली की देखे हमारे पेड़ कितने बड़े हुए | फिर उसके बाद पुन: बो दी | पूरे दिन भर में ये काम उन्होंने दसियों बार किया | और हर बार निराश हो कर कहते कि लो अभी तो कुछ  हुआ ही नहीं | 
आम के बाग़ का रखवाला जो अपने बेटे के साथ  सुबह से उनके क्रिया कालाप देख रहा था | वो भी शुरू – शुरू में बंदरों के सुधर जाने का आनंद ले रहा था | पर जब उसने उन्हें बार – बार गुठली निकालते देखा तो उससे रहा न गया और अपने बेटे से बोला ,” बेटा देखा तुमने सफलता केवल परिश्रम से ही नहीं मिलती | उसके लिए धैर्य  की भी जरूरत होती है | बंदरों ने परिश्रम किया पर उनमें धैर्य  नहीं था | इसलिए उनका बाग़ कभी नहीं बनेगा | 
ये बात सिर्फ बंदरों पर नहीं हम सब पर लागू होती है | सफलता के लिए धैर्य की बहुत जरूरत होती है | कई लोग बहुत जोर – शोर से काम शुरू तो करते हैं पर बाद मे थोड़े ही दिन में उकता जाते हैं और बीच में छोड़ देते हैं | जिससे सफलता मिलना संदिग्ध हो जाता है | सफलता का मूल मन्त्र केवल मेहनत नहीं लगातार  मेहनत के साथ धैर्य भी है | तभी सफलता का बाग़ तैयार होता है | 
सरिता जैन 
लेखिका
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