कैसे करें शांति व् आध्यात्म की खोज

2
कैसे करें शांति व् आध्यात्म की खोज



परिवर्तन संसार का
नियम है। जैसे दिन के बाद रात
,
वैसे ही एक युग के बाद दूसरा युग आता
है। इसी परिवर्तन में परमात्मा के आगमन एवं नई दुनियाँ की स्थापना का कार्य भी
सम्मिलित है। वर्तमान समय में बदलता परिवेश
, गिरती मानवता, मूल्यों का पतन, प्राकृतिक आपदायें, पर्यावरण बदलाव, हिसंक होती मानवीय
चेतना
, आतंकवाद सभी घटनाऐं बदलाव का संकेत है। आज पूरा विश्व बदलाव के
मुहाने पर खड़ा है। ऐसे में परमात्मा की अनुभूति कर जीवन में मानवीय मूल्यों की
धारणा कर नई दुनियाँ
, नम परिवेश के निर्माण में भागीदारी निभाना चाहिए।

वर्तमान में हम
सुख-सुविधा सम्पन्न युग में रह रहे हैं। सब कुछ इंसान की मुट्ठी में है
, लेकिन मन की शान्ति
का अभाव है। हमारे अंदर का अमन चैन  कहीं खो गया है
, वो अंतर्मन का प्यार, विश्वास और शान्ति
हमें चाह कर भी नहीं मिल सकती है। चाह तो हर व्यक्ति की है हमें दो पल की शान्ति
की अनुभूति हो लेकिन अफसोस कि अन्दर खोखलापन ही है।


शान्ति एवं
आध्यात्म की खोज-

वह शान्ति जिसके
लिए हमने मंदिर
, मस्जि़द, गुरूद्वारें, गिरजाघर दौड़ लगाई है, फिर भी निराशा ही मिली। इसका कारण है
कि हम शान्ति के सागर परमपिता शिव के मूल चक्र हैं
, जिसके स्मरण से असीम शान्ति मिलती है।
यह शान्ति केवल परमात्मा के सच्चे ज्ञान से ही मिल सकती है। यदि हम उस परमात्मा को
नहीं जानेंगें तो कैसे शान्ति प्राप्त होगी
, कैसे हमारी जीवन नैया पार लगेगी। इस
संसार से हम आत्माओं का कौन ले जायेगा यह जान पाने के लिए परमात्मा को जानने के
लिए परमात्मा को जानना आवश्यक है।


परमात्मा कौन है-
हमारे यहाँ 33 करोड़ देवी-देवताओं
की पूजा होती है
, परन्तु सबका केन्द्र बिन्दु शिव को ही मानते हैं। परमात्मा शिव
देवों के भी देव सृष्टि रचियता तथा सृष्टि के सहारक हैं
, परमात्मा तीनों
लोकों का मालिक त्रिलोकीनाथ
, तीनों कालों को जानने वाला त्रिकालदर्शी है। परमात्मा अजन्मा, अभोक्ता, अकर्ता है। ज्ञान, आनन्द, प्रेम, सुख, पवित्रता का सागर
है। शान्ति दाता है
, जिनका स्वरूप ज्योतिस्वरूप है।


पढ़ें –मनसा वाचा कर्मणा – जाने रोजमर्रा के जीवन में क्या है कर्म और उसका फल

आत्मा व परमात्मा-

संसार में प्रत्येक
व्यक्ति का कहीं न कहीं कोई रिश्ता होता है। जो जिस प्रकार शरीर को धारण करता है
, वो उस शरीर का पिता
होता है। इसी तरह परमात्मा-आत्मा का सम्बन्ध पिता-पुत्र का है। जितनी भी संसार में
आत्माधारी अथवा शरीरधारी दिख रहे हैं
, वे सब परमात्मा निर्मित हैं। इसी कारण
हम सभी आत्माओं का परमात्माओं के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है। इसी सम्बन्ध के कारण जब
व्यक्ति भौतिक दुनियों में जब चारों तरफ से अशान्त एवं दुखी होता है
, तब वह सच्चे दिल से
परमात्मा को याद करता है
, क्योंकि वही उसका मार्ग प्रदर्शक होता है एवं निस्वार्थ
मनुष्यात्माओं को निस्वार्थ प्रेम कराता है।



कर्म-
इस दुनियाँ का
निर्माण ईश्वर करता है
, जब व्यक्ति अपने कर्र्मों में निरन्तर तक पहुँच जाता है, तब मनुष्य के रूप
में होते हुए भी उसके हाव-भाव
,
कर्म, सोच सब मनुष्यता के विपरीत हो जाते
हैं
, एवं दुनियाँ में सर्वश्रेष्ठ प्राणी होते हुए भी ऐसे कर्र्मों को
अंजाम देता है
, जिसे सिर्फ असुर ही करते हैं।
हमारे शास्त्रों में गलत कर्म कर
पाश्चात्य की भी बात की गई है
,
लेकिन हमारे कर्म उससे भी अधिक निम्न
स्तर के हो गये हैं। देश और दुनिया में जो भक्तिभाव का भाव बड़ा है
, उसमें तम की
प्रधानता है। मानव पाप करते-करते इतना बोझिल हो गया है कि मंदिर
, मस्जि़द में अपने
पाप धोने या स्वार्र्थों की पूर्ति के लिए ही जाता है। इन धार्मिक स्थलों पर मानव
अपने लिए जीवनमुक्ति या मुक्ति का आर्शीवाद नही मानता है
, बल्कि अनेक प्रकार
की मन्नतें मांगता है। सम्बन्धों की निम्नस्तरता इतनी गहरी एवं दूषित हो गयी है कि
बाप-बेटी
, पिता-पुत्र, भाई-बहन, माँ-बेटे के सम्बन्धों में निम्नतम स्तर की घटनाऐं प्राय: देखने को
सुनने को मिलती हैं।



सांसारिक प्रवृत्ति-

संसार में प्राय:
तीन प्रकार के लोग होते हैं
, पहले जो विज्ञान को मानते हैं, दूसरे वा जो शास्त्रों को मानते हैं, तीसरे वो जो
रूढि़वादी होते हैं। किसी को भी अभास नहीं कि हमारी मंजिल क्या है
, विज्ञान ने ही तो
विभिन्न अविष्कार कर एट्म बॉम्स बनाये क्या रखने के लिए
? ग्लोबल वार्र्मिंग
का खतरा बढ़ रहा है। ओजोन परत का क्षय होना। इनकी वजह से विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं
एवं रोगों को नियंत्रण मिल रहा है। यह अन्त का ही प्रतीक है
, जहाँ शास्त्रों को
मानते है उनके अनुसार रिश्तों की गिरती गरिमा
, बढ़ती अशान्ति, आपसी मतभेद, अन्याय और
भ्रष्टाचार आज स्पष्ट रूप से देखने में आ रहा है।

महाभारत में वार्णित गृहयुद्ध तो आज
स्पष्ट रूप से दिख रहा है। महाभारत के पात्र जैसे शकुनी आज हर गली के मोड़ पर मिल
जायेंगे। धन का दुरूपयोग करने वाले पुत्र मोह में अन्धें माँ-बाप
, शास्त्रों का उपदेश
मात्र देने वाले और अपने मन के वशीभूत पात्र आज सब मौजूद हैं। ये सब वहीं संकेत है
, जो परमात्मा ने
अपने आगमन के बताये हैं।

जो लोग रूढ़ीवादी हैं, उन्हें ये देखना
चाहिए कि हमारा कल्याण कि बात में है
, क्या पुरानी मान्यताओं पर चला जा सकता
है। जरूरत पडऩे पर उनमें स्वयं की मजबूरी को हवाला देते हुए हेर-फेर तक कर लेते
हैं।



निष्कर्ष-

अत: ये सब बातें
विचारणीय हैं
, अत: आज समय बदलाव के कगार पर खड़ा है। इन सबका परिवर्तन केवल
परमात्मा ही कर सकते हैं
, जब भौतिक दुनियाँ में इंसान चारों ओर से दुखी और अशांत हो जाता है।
तब वह सच्चे दिल से परमात्मा को याद करता है कि वह उसे सही दिल से मार्ग प्रशस्त
करें।



. डॉ मधु त्रिवेदी




लेखिका व् कवियत्री







परिचय – डॉ. मधु त्रिवेदी 


     
प्राचार्या,पोस्ट ग्रेडुएट कालेज
                   
आगरा
स्वर्गविभा आन लाइन पत्रिका
अटूट बन्धन आफ लाइन पत्रिका
होप्स आन लाइन पत्रिका
हिलव्यू (जयपुर )सान्ध्य दैनिक (भोपाल )
लोकजंग एवं ट्र टाइम्स दिल्ली आदि अखबारों
में रचनायें
विभिन्न साइट्स पर ( साहित्यपीडिया, लेखक डॉट काम , झकास डॉट काम , जय विजय आदि) परमानेन्ट लेखिका
इसके अतिरिक्त विभिन्न शोध पत्रिकाओं में लेख एवं शोध
पत्र

आगरा मंच से जुड़ी 




यह भी पढ़ें ………


मृत्यु सिखाती है कर्तव्य का पाठ


आस्थाएं -तर्क से तय नहीं होती


मृत्यु संसार से अपने असली वतन की वापसी यात्रा है


आपको लेख  “कैसे करें शांति व् आध्यात्म की खोज “कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें व्  “अटूट बंधन “का फ्री  इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

2 COMMENTS

  1. मधु जी बहुत ही प्रेरक लेख | अगर शांति पाने की चाह प्रबल है तो बाहर भटकना छोड़कर भीतर झांकना होगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here