सब का एक ही धर्म सिर्फ प्रेम होता है पर बड़े होते ही इन्सां अपने बनाए धर्मों में इंसानियत को बाँट देता है |पढ़िए मार्मिक कविता बातुनी लड़की
मुस्लिम हो गई-----------
मुझ ब्राह्मण के गोद की वे बातूनी लड़की।
एक वालिद सा मेरा ख़याल रखती थी,
आज आई तो----------
पर दहलीज़ पे कुछ पल रुक,
फिर अपनी आँख में आँसू लिये लौट गई,
शायद वे समझ गई---------
कि अब वे पहले की तरह गले से नही लग सकती,
क्योंकि मुस्लिम हो गई समय के साथ--------
मुझ ब्राह्मण वालिद की वे बातुनी लड़की।
सर से पाँव तलक--------
बुरके से ढकी मुझे न जाने क्यू ,
आज एक मज़हब की कैद मे लगी एै "रंग"---
इस वालिदे ब्राह्मण की वे बातुनी लड़की।
@@@रचयिता-----रंगनाथ द्विवेदी।
जज कालोनी,मियाँपुर
जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)।
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