गीत-वेग से बह रहा समय

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गीत-वेग से बह रहा समय

वेग से बह रहा समय,
उम्र कटती जा रही है ।
विरह की बह रही नदी,
सब्र घटता जा रहा है ।
अब नहीं अंतर्मन से ,
लोगों की मिलती दुआ ।
हृदय का रस सूख कर,
स्नेह  मुरझाया  हुआ ।
क्या कहें  शूल से हीं ,
राह  पटता  जा रहा है ।
वेग से बढ ……..
हैं जागें हम कि सोए 
हमको पता चलता नहीं ।
मौन उर भावों को भी, 
कोई अब पढता नहीं ।
इस मोहिनी संसार से , 
मन हटता जा रहा है ।
वेग से बढ ……..
कोष खाली सपनों के, 
नींद कोषों दूरी पर ।
स्वर निकलते रूदन के ,
बहुत ही मजबूरी पर ।
कृष्ण पक्षी  चाँद तरह
तन सिमटा जा रहा है ।
वेग से बढ ……

प्रमिला श्री तिवारी
कवियत्री एवं गीतकार

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