जाने -अनजाने मत बनिए टॉक्सिक पेरेंट

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                        मुझे पता है आप
इस लेख के शीर्षक को पढ़ते ही नकार देंगे | पेरेंट्स वो भी टॉक्सिक ? ये तो असंभव
है | जो माता –पिता अपने बच्चों से इतना प्यार करते हैं | उनके लिए पैसे कमातें
हैं , घर में  सारा समय देखभाल करते हुए
बिताते हैं वो भला  टॉक्सिक कैसे हो सकते
हैं | आप का सोचना भी गलत नहीं है | पर दुखद सत्य यह है की कई बार माता –पिता न
चाहते हुए अपने बच्चों  के टॉक्सिक
पेरेंट्स बन जाते हैं | जो न सिर्फ अपने ही हाथों से अपने बच्चों का बचपन छीन लेते
हैं अपितु व्यस्क  के रूप में भी उन्हें एक
अन्धकार से भरे मार्ग पर धकेल देते हैं | अगर आप भी जाने अनजाने टॉक्सिक पेरेंट्स
बन गए हैं तो अभी भी समय है अपने आप को बदल लें ताकि आप की बगिया के फूल आप के
बच्चे जीवन भर मुस्कुराते रहे | आप टॉक्सिक पेरेंट हो या न हों पर अपने व्यवहार पर
गौर करिए | यहाँ कुछ लक्षण दिए जा रहे हैं | अगर उनमें से कुछ लक्षण आप से मिलते
हैं तो निश्चित जानिये की आप  के बच्चे
आपके साथ अच्छा महसूस नहीं कर रहे हैं | इतना ही नहीं वो बड़े होकर एक संतुलित
व्यस्क भी नहीं बन पायेंगे |


 बहुत द्रढ  या टफ पेरेंट


               आज्ञाकारी बच्चे
किसे अच्छे नहीं लगते | पर उन्हें आज्ञाकारी बनाने की जगह रोबोट मत बनाइये | मेरी
ना का मतलब ना है के जुमले को बार –बार इस्तेमाल मत करिए | जीवन एक नदी की तरह है
| कई बार यहाँ रास्तों को काटना होता है , कई बार धारा  को मोड़ लेना होता है|  अपने ही नियम चलाने वाले माता –पिता को लगता है
उन्हें बच्चों से ज्यादा पता है तो बच्चों को उनकी बात माननी ही चाहिए | पर कई बार
इसका उल्टा असर पड़ता है | बच्चों में निर्णय लेने की क्षमता का विकास नहीं होता |
वो बात –बात पर दूसरों का मुँह देखते हैं | और जीवन के संग्राम में अनिर्णय की
स्तिथि में रह कर असफल होते हैं |


जरूरत से ज्यादा आलोचक पेरेंट्स 


               ऐसे कोई माता –पिता
नहीं होते जो कभी न कभी अपने बच्चे की आलोचना न करते हो | कबीर के दोहे “ भीतर हाथ
संभार  दे बाहर  बाहे चोट “ की तर्ज़ पर बच्चों को दुनियादारी
सिखाने के लिए यह जरूरी भी है | परन्तु यहाँ बात हो रही है जरूरत से ज्यादा आलोचक
.. जैसे तुमसे तो ये काम हो ही नहीं सकता | ये बेड शीट बिछाई है , कवर ऐसे चढाते
हैं आदि बात -बात पर कहने वाले माता –पिता यह सोचते हैं की वो बच्चों को ऐसा इसलिए
कहते हैं ताकि बड़े होने पर वो कोई गलती न करें |पर उनका यह व्यवहार बच्चे के अन्दर
अपने कामों के प्रति एक आंतरिक आलोचक उत्पन्न कर देता है जो बड़ा होने पर उन्हें
अशक्त व्यस्क में  बदल देता है | 


बच्चों का जरूरत से ज्यादा ध्यान चाहने वाले पेरेंट्स 


                कौन माता –पिता नहीं
चाहते की बच्चे उनका ध्यान रखे | पर बच्चा हर समय आप में ही लगा रहे ये उसके साथ
ज्यादती है |ऐसे पेरेंट्स अक्सर ,”अरे कहाँ अकेले खेल रहे हो , हमारी याद नहीं आ
रही , हमारी आँखों के सामने रहते हो तभी तसल्ली मिलती है आदि वाक्यों का प्रयोग
करते हैं |  ऐसा अक्सर वो माता –पिता करते
हैं जिनके अपने जीवन में कोई कमी होती है | अब वो अपने को बच्चे की नज़रों में
सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए उसे बिलकुल भी स्पेस नहीं देना चाहते | जिन्होंने
फागुन फिल्म देखी  होगी उन्हें उसमें वहीदा
रहमान द्वारा  अभिनीत पात्र अवश्य याद आ
गया होगा | याद रखिये बच्चा एक स्वतंत्र जीव है उसे अपना पेरासाइट न बनाइये | अगर
वो हर समय आप में उलझा रहेगा तो बाहर निकल कर सीखने के अनेकों अवसरों को खो देगा |


बच्चों को ताने देने वाले पेरेंट्स  

             हर बच्चा एक अपने आप में
अनमोल है | वो एक विशेष प्रतिभा ले कर आता है | हो सकता है आप ने उसके लिए जो
सोचा  है उसमें उसका मन न लगता हो | जैसे
नेहा का मन नृत्य में लगता था | टी वी में जैसे ही कोई डांस का प्रोग्राम आता नेहा
दौड़ कर आ जाती | स्टेप्स देख-देख कर नाचने का अभ्यास करती | पर उसके माता –पिता की
नज़र में यह एक गंदी चीज थी | वो उसे घर में और बाहर वालों के सामने ताना देते ,”
पढ़ती लिखती तो है नहीं,  नचनिया बनेगी |
नेहा अपमानित महसूस करती | राहुल अच्छी पेंटिंग करता पर माता –पिता ताने देते ,
‘पेंटिंग से क्या होता है , रोटी  थोड़ी न
मिलेगी , बड़े हो कर रिक्शा चलायोगे |या अपने ही बच्चों  के हाईट वेट को ले कर उपहास उड़ाते है … आओ
मोटू आओ , मेरी कल्लो को कौन बयाहेगा , दुनिया के सब बच्चे बढ़ गए पर तुम्हारी तो
गाडी आगे खिसक ही नहीं रही है | यह व्यवहार बच्चे 
का अपने प्रति  दृष्टिकोण बहुत खराब
कर देता है | उसका आत्म विश्वास खो जाता है | अगर कुछ कर सकते हैं तो करें अन्यथा
जैसा उसे ईश्वर ने बनाया है उसे पूरे दिल से स्वीकारें |

 

बड़े हो चुके बच्चों को डराने – धमकाने वाले पेरेंट्स 


          पुरानी कहावत है जब
पिता का जूता बेटे के पैर में आने लगे तो उसे बेटा नहीं दोस्त समझना चाहिए | पर जो
पेरेंट्स बच्चों को अपनी संपत्ति समझते हैं वो बड़े पर भी बच्चों को डराना धमकाना
जारी रखते है | वो समझतें हैं की बच्चे चुपचाप उनका यह व्यवहार सह लें  तभी यह सिद्ध होगा की वो उनसे प्यार करते हैं |
कई बार इस तरह की शारीरिक व् भावनात्मक शोषण के भय से बच्चे उनकी बात मानते भी हैं
| पर यह व्यवहार बड़े होने के बाद भी बच्चों का मनोविज्ञान पूरी तरह से नकारात्मक
कर देता है |


बच्चों को काबू में रखने के लिए उनमें गिल्ट भरने वाले पेरेंट्स 


                       दुनिया का हर
चौथा बच्चा कोई न कोई गिल्ट पाले हुए है | अक्सर यह गिल्ट उनके माता –पिता द्वारा
अनजाने में ही उन्हें दिए जाते हैं | बच्चे का कल टेस्ट है , बीमार पिता आरोप लगता
है ,” मेरी बीमारी में तो मुझे पूंछते ही नहीं “| या थोड़े उम्र दराज माता पिता अक्सर यह कहते हैं कि  हमारा क्या है हमारी तो उम्र हो
गयी , रहो खुश रहो अपने बीबी बच्चों के साथ | “ इतना खर्चा किया था तुम्हारी पढाई
पर ये रिजल्ट आया है | सब पैसे डूब गए | बच्चे इस गिल्ट के दवाब में आपका कहना
मानतें है पर यह एक स्वस्थ रिश्ता नहीं होता | अपराध बोध में जीता बच्चा कभी
मानसिक रूप से स्वस्थ व्यस्क नहीं बन सकता |


अपने गलत व्यवहार को तार्किक ढंग  सही
सिद्ध करे वाले पेरेंट्स 


           माता –पिता भी
मनुष्य हैं काम के दवाब की वजह से उन्हें भी कभी गुस्सा आ सकता है | ऐसे में वो
बच्चों को कई बार बिना  वजह डांट सकते हैं
| पर सामान्यत : माता –पिता गुस्सा उतर जाने के बाद बच्चों को प्यार कर लेते हैं
और अपनी गलती मान कर सॉरी भी बोल देते हैं | पर टॉक्सिक  पेरेंट्स गुस्सा उतरने के बाद भी बच्चे की
नज़रों में महान बनने   की लालसा से अपने
व्यवहार को तार्किक ढंग से सही सिद्ध करते हैं | वो बताते हैं तुम्हारे अन्दर ये
ये गलतियां हैं इस कारण तुम्हे डांट या मार पड़ती है | धीरे –धीरे बच्चा यह महसूस
करने लगता है उसी में कोई कमी है इस कारण उससे कुछ गलत हो जाता हैं |वह जीवन भर
अनेकों परिस्तिथियों में अपने को गलत मानता रहता है | 


बच्चों को साइलेंट ट्रीटमेंट देने वाले पेरेंट्स 

                   बच्चों के ऊपर हाथ
उठाना उनको अपशब्द कहना जितना नुकसानदायक है उससे कहीं ज्यादा नुकसानदायक है उनको
साइलेंट ट्रीटमेंट देना या उनकी उपस्तिथि को नज़रंदाज़ करना |  मौन रह कर जो पैसिव तरीके से गुस्सा निकाला जाता
है उसका बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है | और एक बार बात –चीत
बंद करने के बाद दोनों का दिमाग उस समस्या पर सकारात्मक तरीके से  सोचना बंद कर देता है |


अपनी सीमाओं को न मानने वाले पेरेंट्स 

                  रिश्ता कोई भी हो हर
रिश्ते को चलाने के लिए सीमाओं का निर्धारण बहुत जरूरी है |  बड़े होने पर बच्चों को उनकरे हिस्से की आज़ादी
देना बहुत जरूरी है | पर कई बार माता –पिता किसी सीमा को नहीं मानते हैं | किशोर
होते बच्चों की बातें फोन पर सुनना , वजह बेवजह उन पर शक करना कहीं न कहीं
अपनी सीमाओं का उलंघन है | आगे बड़े होने पर यह बच्चे भी सीमाओ को नहीं मानते जो
रिश्तों में खटास का कारण बनता है|


बच्चो को अपनी ख़ुशी का उत्तरदायित्व सौपने वाले पेरेंट्स   


             रिश्ते जरूरत से ज्यादा
अपेक्षाओं से कमजोर होते हैं | कई माता –पिता यह सोचते हैं की उन्हें हर समय खुश
महसूस कराना बच्चों का कर्तव्य है | अगर माता –पिता बच्चों को बार –बार अहसास
कराएं की उन्होंने बच्चों को खुश रखने के लिए कितने दुःख उठाये हैं तो वह कहीं न
कहीं यह अपेक्षा पाले हुए हैं की बच्चे उन्हें हर समय खुश रखें | ऐसे में बच्चे एक
ओढ़ी हुई जिंदगी जीने को  को विवश हो जाते
हैं | वो समझ ही नहीं पाते की अपने तरीके से खुश रहना उनका भी अधिकार है | बेहतर
हो बच्चों को अपनी तरह से खुश रहने दीजिये | जब वो खुश रहेंगे तो वो ख़ुशी छलक –छलक
कर स्वत:  आपके पास आएगी |


                 नेगेटिव लोगों को
अपने से दूर हटाना स्वस्थ जीवन जीने के लिए आवश्यक है | परन्तु अगर कोई एक पेरेंट
ही टॉक्सिक  हो तो बच्चों को उन्हें अपने
से दूर करना संभव नहीं |  जिससे बाल  पर मनोवैज्ञानिक व् भावनात्मक दवाब पड़ता है |
अगर आप भी उन पेरेंट्स में हैं जो जाने अनजाने इनमें से कोई लक्षण पाले हुए हैं तो
उसे दूर करिए | अपने बच्चों को स्वस्थ बचपन दीजिये और एक खुशहाल परिवार का आनद
उठाइये |



वंदना बाजपेयी 


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