जीवन के विकास के लिए काम और आराम दोनों ही जरूरी हैं!

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जीवन के विकास के लिए काम और आराम दोनों ही जरूरी हैं!

काम और आराम में संतुलन बनाने से जीवन सफल बनता है:-

कुछ लोग काम को अधिक महत्त्व देते हैं और आराम करना पसंद नहीं करते और कुछ लोग आराम को इतना महत्त्व देते हैं कि कुछ काम ही नहीं करना चाहते; जबकि काम और आराम में संतुलन बिठाने से ही जीवन स्वस्थ व संतुलित गति से प्रवाहित होता है। मनोवैज्ञानिक डाॅ0 विलियम एस. एडलर का कहना है कि ‘यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन में ठीक से विश्रांत नहीं हो पाता है तो इसका एकमात्र कारण है कि वह तनाव में है और तनाव चिंता का बाई प्रोडक्ट है।’ उनका यह भी कहना है कि ‘काम की अधिकता से संकट नहीं है, संकट है, उसका बोझ महसूस करना।’

मेरे पास इतना समय कहाँ है कि मैं चिंता करूँ:-

ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल रोजाना नियमित रूप से 18 घंटे काम करते थे। उनसे किसी ने एक बार पूछा- ‘‘आपके पास इतनी समस्याएँ हैं, आपको चिंता नहीं होती?’’ चर्चिल का जवाब था- ‘‘मेरे पास इतना समय कहाँ है कि मैं चिंता करूँ।’’ ठीक इसी तरह की बात महान वैज्ञानिक ब्लेसी पास्कल भी कहते थे- ‘‘पुुस्तकालयों और प्रयोगशालाओं में शांति इसलिए रहती है; क्योंकि वहाँ सब अपने काम में इतना मग्न रहते हैं कि उन्हें अपने बारे में चिंता करने का समय ही नहीं मिलता।’’ यह बात शाब्दिक तौर से ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक रूप से भी सच है कि चिंता नहीं होगी यदि चिंता करने का समय ही नहीं मिलेगा।

तनावों और दबावों से जूझने के लिए सोना और खेलना बहुत जरूरी है:-

आराम का मतलब है- मस्तिष्क को तरह-तरह के विचारों, विभिन्न प्रकार के कार्यों से थोड़ी देर के लिए खाली कर देना। उसे इतना रिक्त कर देना कि उसमें से सब कुछ बाहर आ जाए यहाँ तक कि द्वेष, निराशा, कंुठा, क्रोध आदि विकार भी मस्तिष्क में न रहने पाएँ। ‘इवोल्युशनरी साइकियेट्री’ पुस्तक को लिखने वाली हाॅर्वर्ड मेडिकल स्कूल के साइकियेट्री विभाग की सदस्या डाॅ0 एमिली डीन्स का कहना है कि ‘अपने तनावों और दबावों से जूझने के लिए सोना और खेलना बहुत जरूरी है। एक भरपूर नींद और थोड़ी-सी खेलने की प्रवृत्ति हमारी जिंदगी को बेहतर बना सकती है।’ जीवन जीने के लिए एक तरह के संतुलन की जरूरत पड़ती है और यह संतुलन कार्य और आराम के बीच तालमेल बैठाने से आता है।

मनुष्य का जन्म सहज होता है लेकिन मनुष्यता कठिन परिश्रम से प्राप्त की जाती है:-

हमारे मन की प्रवृत्तियाँ ही शरीर के अंग-प्रत्यंगों एवं सूक्ष्मचेष्टाओं पर सबसे अधिक असर डालती हैं। कोई भी काम कितना मुश्किल है यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम उसके बारे में क्या सोचते हैं? महान दार्शनिक जर्मी बेंथम इस बारे में कहते थे कि ‘मैं कभी ंिचंता नहीं करता; क्योंकि मैं जिन बातों की चिंता करूँगा, वे शायद ही कभी पूरी होंगी। पर जिन कामों में मैं व्यस्त हूँ, वे आज नहीं तो कल अवश्य पूरे होंगे।’ इसलिए यह जरूरी है कि कार्य की मुश्किलों को दूर करने के लिए कार्य किया जाए न कि चिंता। मनुष्य कार्य की अधिकता से नहीं वरन् कार्य को बोझ समझकर तथा अनियमित ढंग से करने से थकता है। मनुष्य का जन्म तो सहज होता है लेकिन मनुष्यता उसे कठिन परिश्रम से प्राप्त करनी पड़ती है।

काम के साथ थोड़ा सा खेल अत्यधिक लाभदायक है:-

यदि हम ठीक प्रकार से नींद ले पाते हैं तो काम करने के लिए भली प्रकार तैयार हो पाते हैं और फिर स्वस्थ, प्रसन्न, शांत व तरोताजा मन से कार्य कर पाते हैं। इसी तरह मन को उत्साहित करने का कार्य छोटे-छोटे खेल करते हैं। काम की भागमभाग में थोड़ा-सा खेल हमारे तन व मन पर गजब का असर डालता है।

– प्रदीप कुमार सिंह ‘पाल’,
 लेखक, युग शिल्पी एवं समाजसेवी,
 लखनऊ

लेखक

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