जन्म

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जन्म

अपने माता -पिता से किशोर होते बच्चों का स्वाभाविक प्रश्न होता है , ” मेरा जन्म कैसे हुआ ?” पहले माता -पिता , “परी ने दिया , भगवान् जी से माँगा था , आदि कह कर बात टाल देते थे | आज माता पिता उहापोह में रहते हैं कि बच्चे को ” जन्म के रहस्य ” के बारे में कितना और क्या बताएं ?

कहानी -जन्म 

                   
”मम्मी!“——-
”हूँ! क्या है?“
”सच-सच बताओ न!“——मिनी मेरे पास सरकती हुई बोली.
”क्या बताऊँ?“- मैंने पूछा.
”बोलो,सच-सच बताओगी न?“- जैसे उसे विश्वास  न हो.
”हाँ, भई हाँ! बताऊँगी. तुम पूछो तो सही!“—-मैंने उसे विश्वास  दिलाते हुए कहा.
”मम्मी…..क्या तुम?“……बोलते-बोलते रूक गई वह.

मम्मी क्या तुम पापा से चिपकी थीं?“……उसने मेरा पल्लू खींचते हुए कहा.

मैंने घूमकर देखा. क्या पूछ रही है वह और क्यों? आज उसे यह क्या सूझी? मुझे आष्चर्य हुआ.
”नहीं बताया न? मैं पहले ही जानती थी कि आप नहीं बताओगी.“ मुँह फुलाते हुए वह बोली.
”अरे नहीं बेटा! ऐसी बात नहीं है. जरूर बताऊँगी अगर बताने लायक हुआ तो!“ मैंने भयमिश्रित अंदाज में कहा. डर लगा कहीं वह भी वही सवाल न पूछे जो मैंने अपने पिताजी से पूछा था. वह जिस दौर से गुजर रही थी, मैं भी गुजरी थी किसी वक्त! मेरे अंदर भी बहुत-सी बातें थीं जो उमड़ती-घुमड़ती रहती थीं मेरे मन में. मैं साहस नहीं जुटा पाती थी कहने का!
”मम्मी, तुम ऐसे चिपकी थीं न पापा से“- वह मुझसे लिपटती हुई बोली.
कोई जवाब नहीं था मेरे पास! जो सच था, वह सामने था.
हाँ, ऐसे ही तो लिपटी थी मैं उनसे- मन में सोचा. अपना सिर हिलाकर स्वीकृति दी.
”और फिर मम्मी, मेरा जन्म हो गया.“…….वह तालियाँ बजाते हुए हँसकर बाहर भाग गई.

तो….यह…..आज…..अड़ी है कुछ जानने के लिए…..हृदय में एक डर पैदा हुआ. वह जानना चाहती है, बाल-सुलभ उत्सुकता है जो हर लड़की के मन में उठती है और जानना चाहती है वह! कैसे जन्मी वह? इस पृथ्वी पर कैसे आई?………यह सवाल मेरे जेहन को भी कुरेदता रहा था बरसों से! तब से, जब से मैंने थोड़ा- बहुत पढ़ना शुरू किया था.लोगों की बातें कानों में पड़ीं, चुपके-चुपके बातें होती थीं, पर खुलकर कोई नहीं बताता था. कैसे बताता?
क्या मैं बता पा रही हूँ?…..इतनी बड़ी हो गई हूँ मैं! दो बच्चों की माँ भी बन गई हूँ मैं…….मेरे सामने मेरी कितनी ही बहनें,सहेलियाँ,जेठानी,देवरानियाँ भी माँ बन चुकी हैं या बननेवाली हैं……मेरी बेटी भी किसी दिन……मैं सोच रही थी….आगे क्या होगा?….वही जो सबके साथ हुआ,सबने भुगता, चाहे-अनचाहे क्षणों की भीरूता ने जन्म दिया एक सवाल को या…….? मैं कुछ और सोचती कि वह फिर आ गई.

”मैं शादी  नहीं करूँगी आपकी तरह!“…………

क्या? यह कोई बम है जो फटनेवाला है. मेरे मन में हलचल मच गई.मेरी बेटी कह रही थी मुझसे……और इंकार कर रही थी शादी से….!शादी  तो अभी बहुत दूर है……पहले पढ़ाई करनी है, कैरियर बनाना है,सपने बुनने हैं…….
”हाँ, मम्मी! मैं बिल्कुल शादी  नहीं करूँगी, और आप मुझसे बात भी मत करना“……

यह अल्टीमेटम था या धौंस! षायद वह पहले अपना कैरियर बनाना चाहती है, पढ़ना चाहती है. ठीक है मैं उसे रोकूँगी नहीं.
”हाँ,सही है, तू बिल्कुल मत करना, जब तक“…… मैं कहना चाह रही थी कि  ”जब तक तेरी पढ़ाई पूरी न हो जाए तब तक!.“….
”मम्मी , आप गंदी हो! आपने पापा से शादी  क्यों की?“….मेरे गाल पर तमाचा-सा जड़ा हो जैसे उसने………
मैं गंदी हूँ! किस तरह?…..”ठहर अभी बताती हूँ तुझे!“ …मैं उसे मारने दौड़ी. ”तुम्हारी इतनी हिम्मत कैसे हुई कहने की!….तुमने मुझे गंदा कहा, अपनी मम्मी को?“

 मुझे कितना दुःख हुआ था यह सुनकर! मैं गंदी हूँ! किस तरह? साधारण-से लगनेवाले इस सवाल ने मुझे आहत कर दिया था. क्या मैं अपनी बेटी की नजरों में इतनी गिर गयी हूँ कि वह मुझे गंदा कह रही है ! आखिर क्यों? 

मेरी साँस जोर-जोर से चलने लगी. छाती में दर्द उठा.खाँसी होने लगी. पुरानी खाँसी उखड़ आई थी. दवा लेती थी तब तक ठीक रहती थी. जहाँ दवा छोड़ी नहीं कि फिर शुरू  हो जाती.
”क्या हुआ माँ?“- मेरा छोटा बेटा भी खेल छोड़कर दौड़ता हुआ वहीं आ गया.वह खेलता रहता था खिलौनों से! उसे अपनी दीदी की तरह उत्सुकता नहीं थी…..न वह कभी ऐसे सवाल करता था. छोटा था. पाँचवीं क्लास में पढ़ रहा था और बिटिया आठवीं में थी.
”कुछ नहीं हुआ बेटा,“ खाँसती-खाँसती बोली मैं. ”जा जाकर फ्रिज में से पानी की एक ठंडी बोतल निकाल ला. प्यास लग रही है….पानी पियूँगी.“…मैंने उसे आॅर्डर दिया.
”अभी लाता हूँ“…. वह बोला.
”नहीं, ठहरो. फ्रिज में से बिल्कुल मत लाना. डाॅक्टर ने मना किया है फ्रिज का ठंडा पानी पीने से…..मटके का लाना“…नादिरशाही  फरमान था मेरी बेटी का!….जैसे वह मेरी बेटी न हुई, माँ हो गई मेरी!…..
बहुत गुस्सा आया. आदत थी ठंडा पानी पीने की और अपना मर्ज बढ़ाने की!
बड़ी हो गई है वह अब! कोई छोटी बच्ची नहीं रही, जिसे मैं समझाती. वह मुझे समझा रही है. मैंने अपनी बेटी की ओर देखा.

हाँ, बड़ी तो हो गई है वह! जींस और टाइट टी शर्ट  में वह…..हाँ..बड़ी लग रही है. मुझे उसके लिए शमीज  लानी थी.लेकिन क्या वह अब शमीज पहनने लायक है? उसे तो मेरी तरह…….मैं सोचने लगी.
”बुरा मान गयीं क्या?…..अरे, ओ मेरी मम्मी?“- उसने मुझे झिंझोड़ा.

”नहीं. बुरा क्यों मानूँगी भला?…..तू मेरी बेटी है……. मैं तेरी बात का बुरा कैसे मान सकती हूँ? आखिर जन्म“…….मेरी बात अधूरी रह गई.

अजीब पागल लड़की है यह! फालतू दिमाग खराब करती है मेरा…..मैंने अपने सिर को झटका.

हाँ, मैं भी तो दिमाग खराब करती थी पिताजी का!…..मुझे याद आया. पूछ-पूछकर परेशान  कर देती थी मैं उन्हें!…हर बार एक ही सवाल पूछती….”पिताजी! बताओ न, कैसे जन्मी थी मैं? कैसे जन्म हुआ था मेरा?“ यह सवाल मैंने उनसे एक बार नहीं बल्कि कई बार किया था. पर उत्तर नहीं दिया था उन्होंने. हँसकर टाल जाते हर बार! कभी कहते- ”आसमान से टपकी थीं तुम.“ कभी मजाक में कहते-”घूरे से उठा लाया था मैं तुम्हें. तुम वहाँ पड़ी-पड़ी रो रही थीं.“….कभी कहते- ”बेटा, जब तुम बड़ी हो जाओगी,तुम्हारी शादी हो जाएगी, तब तुम अपने-आप समझ जाओगी.“ वे प्यार से मेरे गाल पर थपकी देते, सिर सहलाते और मुस्कुरा देते. ”तुम अभी छोटी हो न?.“….वे कहते और मैं मान लेती. हाँ, मैं छोटी हूँ, बच्ची हूँ, अभी नहीं समझूँगी…बड़ी होने पर अपने-आप समझ जाऊँगी. मैं अपने गाल सहलाती और सिर हिलाकर आज्ञाकारी बच्ची बन जाती.

पर….मेरी बेटी! वह छोटी कहाँ है? वह अपने-आप को छोटा नहीं मानती. मेरे कंधे से ऊँची आ रही है. हर सप्ताह वह मेरे पास खड़ी होकर अपनी हाइट नापती है और खुश  होकर पापा को बताती है-

”देखो, पापा देखो! मैं कितनी बड़ी हो गई हूँ? मम्मी से थोड़ी-सी ही तो छोटी हूँ मैं“…..”देखना अगले सप्ताह मैं अपनी मम्मी से भी ऊँची हो जाऊँगीं“…..वह खिलखिलाती.

पापा भी खुष होते- ”हाँ, बिटिया बड़ी हो रही है, सयानी हो रही है.“ माथे पर बल पड़ने लगते. ”चार-पाँच साल हैं, षादी करनी पड़ेगी“…….चिंता होने लगती. रात में कभी-कभी कहते.
”लेकिन वह! वह तो शादी  करना ही नहीं चाहती.“….मैं उन्हें धीरे-से बताती.
”कैसे नहीं करेगी वह शादी ? शादी  तो करनी पड़ेगी!“……वे जोर लगाकर अपनी बात करते.
”फालतू बातें मत करो…..वह चिढ़ती है शादी के नाम पर…. मुझे गंदी बताती है…..कहती है- आप गंदी हो. आपने पापा से शादी  क्यों की? आप पापा से क्यों चिपकीं?“….मैं धीरे-धीरे उन्हें बताती.

”हुँह! नासमझ है न अभी! इसलिए ऐसी बातें करती है. जब बड़ी हो जाएगी, तब अपने-आप समझ जाएगी. बल्कि बाद में स्वयं ही कहेगी कि मम्मी मेरी शादी  कर दो!“ वे आँखें बंद कर मुझे अपने आगोश  में ले लेते और चिपक जाते जोर से! चिपटकर सो जाते.

हाँ, छोटी है अभी. वे भी उसी भाषा में बोल रहे थे, जैसे मेरे पिताजी बोला करते थे! क्या सभी मर्द इसी तरह सोचते हैं मेरे पिताजी की तरह या मेरे पति की तरह? सब अपने-आप समझ जाते हैं…..और न समझते हों ,तो भी समझ जाएँगें!…..तब….जब वे बड़े हो जाएँगें! हमें समझाने की जरूरत कहाँ है?…..मैं भी सो जाती हूँ चुपचाप उनके साथ!
”मुझे क्या पड़ी है?“ मैं अपनी आँखें बंद कर लेती हूँ.”जन्म का रहस्य?.“…सब समझ जाएँगें…..सोचते-सोचते!
                    ………………….


लेखिका
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