नींव

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नींव

             दुनिया के सारे घरों की नींव में दफ़न औरतें भी देखती हैं कंगूरे बनने के ख्वाब , कभी -कभी भयभीत भी होती हैं यूँ अँधेरे में अकेले छूट जाने से …फिर भी , फिर भी न जाने क्यों वो पसंद करती हैं नींव बनना

कविता -नींव 

जब भी मैं बनाती हूँ
अपनी प्राथमिकताओं की सूची
एक से दस तक
तो हर बार मेरी निजी प्राथमिकताएं पाती हैं दसवाँ  स्थान
या कभी -कभी हो जाती हैं सूची से ही बाहर
और फिर
कितनी रातों में
नींद को लाने के क्रम में
आधे -खुले , आधे बंद नेत्रों के सामने मंडराते
किसी भूतिया साये की तरह डराती हैं मुझे
बदलो अपनी प्राथमिकताओं की सूची को
तुम्हें आधार बना ,सब निकल जायेंगे आगे
और वक्त निकल जाने के के बाद
छोड़ देंगे तुम्हे वक्त के रहमोकरम पर
या फिर
कितनी ही रातों की
खुशनुमा नींदों में
स्वप्न में आ फुसलाती हैं मुझे
वो देखो तुम्हारा आसमान
वो क्षितिज पर उगता तारा
वो तालियाँ , वो वाहवाही वो शोर … सिर्फ तुम्हारे लिए
बदलो प्राथमिकताओं की सूची को ,
काट कर दूसरों के नाम
करो अपने को पहले नंबर पर
कि वक्त बदलते वक्त नहीं लगता
हर बार फिर -फिर पलटती हूँ सूची
लाख कोशिशों के बाद भी नहीं बदल पाती उसे
जानती हूँ
कंगूरे बनने के लिए
किसी को बनना पड़ेगा नींव
किसी स्त्री विमर्श से परे ,
किसी माय लाइफ माय रूल्स के नारों के परे
जाने क्यों
बार -बार
हर बार
मैं खुद स्वीकारती हूँ
नींव बनना

नीलम गुप्ता

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