“पूत भये और पूत बियाहे ” किसी भी व्यक्ति की जिन्दगी के दो सबसे सुखद पल माने जाते हैं | तभी तो बच्चों के ब्याह की तमाम तामझाम के बाद नव दम्पत्ति से मिलने वाला का पहला सवाल होता है ,”भाई खुशखबरी कब सुना रहे हो ?” और इसका उत्तर हां में पा कर ” बधाई हो ” कहने वालों का ताँता लग जाता है , हम प्रेगनेंसी का स्वागत करते हैं परन्तु जब यह प्रेगनेंसी अधेड़ावस्था में बिन बुलाये मेहमान की तरह आ जाए तो क्या तब भी हमारा उनको “बधाई हो ” कहने का सुर वही रहता है ?
फिल्म बधाई हो के बहाने लेट प्रेगनेंसी पर एक चर्चा
अभी हाल में आयुष्मान की एक फिल्म रिलीज हुई है “बधाई हो”… फिल्म में एक माध्यम वर्गीय परिवार में तब भूचाल आ जाता है जब एक अधेड़ दम्पत्ति ( नीना गुप्ता व् गजराज राव ) को पता चलता है कि उनके तीसरा बच्चा होने वाला है | उन्हें ये बात अपने युवा पुत्रों व् माँ पड़ोसियों को बताने में किस शर्मिंदगी से गुज़रना पड़ता है … इसका सटीक चित्रण है | बच्चों को भी अपने स्कूल , ऑफिस में व्यंग बानों को झेलना पड़ता है | बड़े बेटे आयुष्मान खुराना की लव लाइफ भी डांवाडोल होती है | बच्चे और सासू माँ एक तरह से दम्पत्ति का बायकॉट कर देते हैं | अंतत: पूरा परिवार एक जुट होता है और सब खुले दिल से बच्चे का स्वागत करते हैं |
लेट प्रेगनेंसी -ये दोहरी मानसिकता किस लिए
यूँ तो
यह एक हास्य फिल्म है पर इसमें लेट प्रेगनेंसी जैसे गंभीर मुद्दे को उठाया गया है
| गंभीर इस लिए कि हमारे देश में अभी भी महिलाओं को मीनोपॉज़ के बारे में ज्यादा
जानकारी नहीं है | उनको जानकारी नहीं है कि मनोपॉज़ का एक लम्बा साइकिल होता है
जिसमें पर्याप्त इंतजाम ना करने से कभी भी प्रेगनेंसी ठहर सकती है |
यह एक हास्य फिल्म है पर इसमें लेट प्रेगनेंसी जैसे गंभीर मुद्दे को उठाया गया है
| गंभीर इस लिए कि हमारे देश में अभी भी महिलाओं को मीनोपॉज़ के बारे में ज्यादा
जानकारी नहीं है | उनको जानकारी नहीं है कि मनोपॉज़ का एक लम्बा साइकिल होता है
जिसमें पर्याप्त इंतजाम ना करने से कभी भी प्रेगनेंसी ठहर सकती है |
प्रेगनेंसी ठहरना तो एक बात है पर लेट प्रेगनेंसी को लोग अभी भी मजाक के
तौर पर लेते हैं |क्योंकि हमारे देश में अभी भी आने वाले बच्चे का तो स्वागत किया
जाता है पर वो बच्चा पति –पत्नी के जिस प्रेम के कारण दुनिया में आता है इस बात पर लोग
अपनी अनभिज्ञता दिखाते हैं या यूँ कहिये कि वो इस विषय पर बात करना ही नहीं चाहते
और अभी भी बच्चे तो भगवान् की देंन हैं जैसा
सामाजिक मुखौटा ओढ़े रहते हैं |
तौर पर लेते हैं |क्योंकि हमारे देश में अभी भी आने वाले बच्चे का तो स्वागत किया
जाता है पर वो बच्चा पति –पत्नी के जिस प्रेम के कारण दुनिया में आता है इस बात पर लोग
अपनी अनभिज्ञता दिखाते हैं या यूँ कहिये कि वो इस विषय पर बात करना ही नहीं चाहते
और अभी भी बच्चे तो भगवान् की देंन हैं जैसा
सामाजिक मुखौटा ओढ़े रहते हैं |
लेट प्रेगनेंसी में अजीब सी हास्यास्पद स्थिति इस लिए आती है क्योंकि
लोग ये दिखाते हैं कि ४० की उम्र के बाद पति –पत्नी एक दूसरे के साथ किसी प्रकार
का कोई शारीरिक रिश्ता नहीं रखते , बल्कि वो एक दूसरे के साथ रहते हुएभी
ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हैं | जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है ये बात हर कपल
जानता है | परन्तु दूसरे की प्रेगनेंसी की बात सामने आने पर ” छुपा रुस्तम ” का खिताब देने से नहीं चूकता |
लोग ये दिखाते हैं कि ४० की उम्र के बाद पति –पत्नी एक दूसरे के साथ किसी प्रकार
का कोई शारीरिक रिश्ता नहीं रखते , बल्कि वो एक दूसरे के साथ रहते हुएभी
ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हैं | जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है ये बात हर कपल
जानता है | परन्तु दूसरे की प्रेगनेंसी की बात सामने आने पर ” छुपा रुस्तम ” का खिताब देने से नहीं चूकता |
यह दोहरी मानसिकता जहाँ हास्य पैदा करती हैं वहीँ इस सत्य को भी उजागर
करतीहै कि ऐसे स्थिति में किसी परिवार के लोगों को किस मानसिक उलझन से गुजरना पड़ता
है | इस दोहरी मानसिकता का एक अच्छा कटाक्ष फिल्म में नायिका की माँ व् नायिका के बीच
का संवाद है | नायिका की माँ प्रेगनेंसी के बारे में पूछती हैं कि ऐसे कैसे? और
नायिका मासूमियत के साथ उत्तर देती है , “ आई थिंक जैसे होता है वैसे”
करतीहै कि ऐसे स्थिति में किसी परिवार के लोगों को किस मानसिक उलझन से गुजरना पड़ता
है | इस दोहरी मानसिकता का एक अच्छा कटाक्ष फिल्म में नायिका की माँ व् नायिका के बीच
का संवाद है | नायिका की माँ प्रेगनेंसी के बारे में पूछती हैं कि ऐसे कैसे? और
नायिका मासूमियत के साथ उत्तर देती है , “ आई थिंक जैसे होता है वैसे”
क्या है लेट प्रेगनेंसी के खतरे
फिल्म देखते समय मुझे भी ऐसे कई चेहरे याद आये जिनके दो बच्चे थे और
४० -५० की उम्र में बिना प्लानिंग के तीसरा बच्चा आ गया | जहाँ पहले के दो बच्चों
में दो या तीन साल का अंतर था वहीँ तीसरे बच्चे में १७ -१८ साल का अंतर | कितने ताने सुनने पड़ते थे उन्हें …टी वी नहीं देखते हो क्या , कोई नियंतरण ही नहीं है , अरे बच्चों को अपने बीच में सुलाया करो | मजाक के बीच कभी इस समस्या को समझने की कोशिश ही नहीं की , कि महिलाओं को मीनोपॉज़ के बारे में ठीक से जानकारी नहीं होती , या इसमें कितने हेल्थ कंप्लीकेशन हो सकते हैं या माता –पिता
को बच्चे के लालन –पालन के बारे में कितनी चिंता
होगी |
४० -५० की उम्र में बिना प्लानिंग के तीसरा बच्चा आ गया | जहाँ पहले के दो बच्चों
में दो या तीन साल का अंतर था वहीँ तीसरे बच्चे में १७ -१८ साल का अंतर | कितने ताने सुनने पड़ते थे उन्हें …टी वी नहीं देखते हो क्या , कोई नियंतरण ही नहीं है , अरे बच्चों को अपने बीच में सुलाया करो | मजाक के बीच कभी इस समस्या को समझने की कोशिश ही नहीं की , कि महिलाओं को मीनोपॉज़ के बारे में ठीक से जानकारी नहीं होती , या इसमें कितने हेल्थ कंप्लीकेशन हो सकते हैं या माता –पिता
को बच्चे के लालन –पालन के बारे में कितनी चिंता
होगी |
मीनोपॉज़ का साइकिल ४ या ५ साल चलता है जिसमें मासिक धर्म अनियमित हो जाता है कई बार एक -दो पीरियड्स मिस करने केव बाद महिला समझ लेती है कि उसे मीनोपॉज़ हो गया है परन्तु हुआ नहीं होता है | इस समय में प्रेगनेंसी ठहरने का खतरा होता है | डॉक्टरों के मुताबिक एक साल तक जब पीरियड ना आयें तब मीनोपॉज़ माना जाए उससे पहले को प्रीमीनोपॉज़ में में रखा जाता है | दूसरी तरफ लेट प्रेगनेंसी में महिला के शरीर में कैल्सियम कम होने के कारण शिशु का ठीक से विकास मुश्किल होता है वहीँ मानसिक बाधित शिशु होने क सम्भावना अधिक होती है | लेट प्रेगनेंसी में महिला को हार्ट अटैक की सम्भावना भी ज्यादा होती है |
वैसे आज के ज़माने में लेट प्रेगनेंसी में डॉक्टर की निगरानी में कोम्प्लिकेशन से बचा जा सकता है | बस जरूरत है सही देखभाल की | उम्मीद है ये सब कारण जानने के बाद आप किसी की लेट प्रेगनेंसी पर “बधाई हो ” कहने के बाद मजाक उड़ाने केस्थान पर आप उस दम्पत्ति के साथ पूरी संवेदनाओं के साथ खड़े होंगे | वैसे भी किसी बच्चे को दुनिया में लाने का निर्णय एक महिला का और उसके परिवार का मिउल कर लिया हुआ निरनय होता है …. ऐसे में उन दोनों के इस निर्णय का स्वागत करना चाहिए , और कहना चाहिए …”बधाई हो “
नीलम गुप्ता
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