कुम्हार और बदलते व्यापार का समीकरण

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कुम्हारों को समझना होगा बदलते व्यापार का समीकरण

दीपावली की बात करते ही मेरे जेहन में बचपन की दीवाली आ जाती है | वो माँ के हाथ के बनाये पकवान , वो रिश्तेदारों का आना -जाना , वो प्रसाद की प्लेटों का एक घर से दूसरे घर में जाना और साथ ही घर आँगन बालकनी में टिम-टिम करते सितारों की तरह अपनी जगमगाहट से  अमावस की काली रात से लोहा लेते मिटटी के दिए | मिटटी के दिए याद आते ही एक हूक  सी उठती है क्योंकि वो अब हमारा घर आँगन रोशन नहीं करते | वो जगह बिजली की झालरों ने ले ली है | 

कुम्हारों को समझना होगा बदलते व्यापार का समीकरण 

मिटटी के दिए का स्थान बिजली की झालरों द्वारा ले लेने के कारण अक्सर कुम्हारों की बदहाली का वास्ता देते हुए इन्हीं को ज्यादा से ज्यादा खरीदने से सम्बंधित लेख आते रहे हैं ताकि कुम्हारों के जीवन में भी कुछ रोशिनी हो सके | मैं स्वयं भी ऐसी ही एक भावनात्मक परिस्थिति से गुजरी जब मैंने “मंगतलाल की दिवाली “कविता लिखी | कविता को साइट पर पोस्ट करने के बाद आदरणीय नागेश्वरी राव जी का फोन आया | उन्होंने कविता के लिए बहुत बधाई दी साथ ही यह भी कहा आप कि कविता संवेदना के उच्च स्तर पर तो जाती है पर क्या इस संवेदना से वो जमाना वापस आ सकता है बेहतर हो कि हम कुम्हारों के लिए नए रोजगार की बात करें | साहित्य का काम नयी दिशा देना भी है | जब मैंने उनकी बात पर गौर किया तो ये बात मुझे भी सही लगी |

मिटटी के दिए हमारी परंपरा का हिस्सा हैं इसलिए पूजन में वह हमेशा रहेंगे | मंदिर में व् लक्ष्मी जी के आगे वही जलाये जायेंगे | शगुन के तौर पर बालकनी में व् कमरों में थोड़े दीपक जलेंगे परन्तु बालकनी में या घर के बाहर जो बिजली की सजावट होने लगी है वो आगे भी जारी ही रहेगी , क्योंकि पहले सभी मिटटी के दिए जलाते थे  इसलिए हर घर में उजास उतना ही रहता था | दूसरे तब घरके बाहर इतना प्रदूषण नहीं रहता था , इस कारण बार -बार बाहर जा कर हम दीयों में तेल भरते रहते थे , और दिए जलते रहते थे | अब थोड़ी शाम गहराते ही इतना प्रदूषण हो जाता है कि बार -बार घर के बाहर निकलने का मन नहीं करता | ऐसे में बिजलीकी झालरें सही लगती हैं | तो मुख्य मुद्दा ये हैं कि हमें कुम्हारों को दिए के स्थान पर कुछ ऐसा बनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए जो साल भर बिके  | दीवाली में दिए बनाये अवश्य पर उनकी संख्या कम करें ताकि भारी नुक्सान ना उठाना पड़े |

हमेशा से रहा है नए और पुराने के मध्य संघर्ष 

अगर आप ध्यान देंगे तो ये समस्या केवल कुम्हारों के साथ नहीं है जब भी कोई नयी उन्नत टेक्नोलोजी की चीज आती है तो पुरानी व् नयी में संघर्ष होता ही है | ऐसी ही एक फिल्म थी नया दौर जिसमें टैक्सी और तांगे  के बीच में संघर्ष हुआ था | फिल्म में दिलीप कुमार तांगे वाला बना था और उसकी जीत दिखाई गयी थी | जो उस समय के लोंगों को वाकई बहुत अच्छी लगी थी , परन्तु हम सब जानते हैं कि तांगे बंद हुए और ऑटो , टैक्सी आदि चलीं | 
यही हाल मेट्रो  आने पर ऑटो के कम इस्तेमाल से होने लगा | जहाँ मेट्रो जाती है लोग ऑटो के स्थान पर उसे वरीयता देते हैं , क्योंकि किराया कम है व् सुविधा ज्यादा है | फोन आने पर तार बंद हुआ | मोबाइल आने पर पी .सी .ओ बंद हुए | मुझे याद है राँची  में जब हमारे यहाँ लैंडलाइन फोन नहीं था तब हम घर केवल ये बताने के लिए हम ठीक हैं १५ मिनट पैदल चल कर पी सी ओ जाते थे , फिर लम्बी -लम्बी लाइन में अपनी बारी का इंतज़ार करते थे | जिन लोगों ने पीसी ओ बूथ लगाए उन सब की दुकाने बंद हुई | मेरा पहला नोकिया फोन जो उस समय मुझे अपनी जरूरत से कहीं ज्यादा लगता था कि तुलना में आज के महंगे स्मार्ट फोन में भी मैं कुछ कमियाँ ढूंढ लेती हूँ |

सीखने होंगे  व्यापर के नियम 

कहने का तात्पर्य ये है कि जब भी कोई व्यक्ति कुछ बेंच रहा है …. तो उसे व्यापर में होने वाले बदलाव पर ध्यान रखना होगा  और उसी के अनुसार निर्णय लेना होगा | ये नियम हर व्यापारी पर लागू होता है चाहें वो सब्जी बेचनें वाला हो , दिए बेंचने वाला हो या अम्बानी जैसा बड़ा व्यापारी हो | व्यापर बदलते समय की नब्ज को पकड़ने का काम है , अन्यथा नुक्सान तय है | जैसा कि कई लोग उस व्यापर में पैसा लगते हैं जो कुछ समय बाद  खत्म होने वाला होता है , ऐसे में लाभ की उम्मीद कैसे कर सकते हैं | समय को समझना हम सब का काम है , क्योंकि वो हमारे लिए इंतज़ार नहीं करेगा | अगर आप नौकरी में भी हैं तो आने वाले समय में कुछ नौकरियां भी खतरे में है ….

1) ड्राइवर — टेस्ला इलेक्ट्रिक से चलने वाली कारें बाज़ार में उतार चुका है | जैसे -जैसे ये टेक्नोलोजी सस्ती होगी प्रचुर मात्र में अपनाई जायेगी | ऑटो , टैक्सी ड्राइवर की नौकरीयाँ तेजी से घटेंगी |

2)बैक जॉब्स – जैसे -जैसे ऑनलाइन बैंकिंग ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल होने लगी है जिस कारण लोगों का बैंक जाना कम हो रहा है | अत : भविष्य में बैंक क्लर्क के जॉब घटेंगे |

3)प्रिंटिंग प्रेस – आज भले ही हम अपनी किताब छपवाने की चाहते रखते हो पर भविष्य में बुक की जगह इ बुक लेंगीं क्योंकि छोटे होते घरों में इतनी किताबें रखने की जगह नहीं होगी | अभी ही मुझ जैसे पुस्तक प्रेमियों को ये सोचना पड़ता है कि जितनी किताबें मैं खरीदती हूँ उन्हें किसी पुस्तकालय को दे दूँ | दूसरी बात ये भी है जब पुस्तकें फोन पर होंगीं तो आप यात्रा में बिना भार बढाए ले जा सकते हैं | तीसरे किताबें कम छपने से पेपर की बचत होगी … हालांकि एक प्लास्टिक पेपर पर किताबें छपना शुरू हो चुकी हैं जो कम जगह भी घेरती है | अगर यहाँ भी प्रेस ऐसे किताबें छपने लगे तो उसे कुछ ज्यादा लम्बे समय तक जीवित रखा जा सकता है |

वर्कर्स  – आने वाले ज़माने में में वर्कर्स की संख्या घटेगी , क्योंकि ज्यादातर काम मशीने करेंगी जो स्वचालित होंगी |

5)ट्यूशन  टीचर्स – आज इतने अच्छे एप आ गए हैं जो आप के द्वारा भेजे गए सवाल को वीडियो बना कर समझाते हैं ऐसे में आने वाले भविष्य में महंगे होम ट्यूशन का भविष्य खतरे में  है |
                                            ऐसे बहुत सारे जॉब और व्यापर हैं जिनपर फिर कभी विस्तार से लिखूंगी |

                 

टेराकोटा है बेहतर विकल्प 

खाने का मतलब ये है कि किसानों की दुर्दशा पर रोने के स्थान पर साहित्य के सार्थक उद्देश्य के साथ चलते हुए हमें कुम्हारों के लिए ऐसे लेख व् निर्देश प्रस्तुत करने होंगे कि वो लाचारी की स्थिति में ना आयें | टेराकोटा एक बेहतर विकल्प के रूप में सामने आया है | जिस का बाज़ार बढ़ने की पूरी सम्भावना है |दरसल टेराकोटा एक लैटिन भाषा का शब्द है जिस का अर्थ है पकी हुई मिटटी | सामान्य रूप में  इसका अर्थ अपरिष्कृत मिटटी से लगाया जाता है , जिससे गमले , मूर्तियाँ , दिए आदि अन्य संरचनाएं बनायीं जाती है |  इसका इस्तेमाल आर्किटेक्चर में भी होता है | खूबसूरत टिकाऊ और सस्ते होने के कान ये बहुत लोकप्रिय भी हैं |

रही बात परम्परा की , तो वो इतनी आसानी से खत्म नहीं होने वाली , हमारी परम्परा की नींव बहुत द्रण है | मिटटी के दिए हमेशा दीपावली के पूजन में रहेंगे भले ही उनकी संख्या कम हो जाए | 

वंदना बाजपेयी

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