99 क्लब का सदस्य

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कहानी -99 क्लब का सदस्य





बहुत समय पहले की
बात है एक राजा अपने मंत्रियों के साथ देश का भ्रमण कर रहा था | ज्यादातर लोग अपनी
किसी ना किसी समस्या से परेशान
  थे और उसी
में उलझे हुए थे | वही उसे एक ऐसा व्यक्ति मिला जो बहुत खुश था | वो दिन भर खेत
में कड़ी मेहनत  कर घर लौटता था | उसके कमाई तो ज्यादा नहीं थीं पर आवश्यकताएं सब
पूरी हो रहीं थी | घर में प्रेम और विश्वास था | उसके घर के बाहर तक उनके हंसने की
आवाजें आती थीं |

राजा के मंत्रियों
ने राजा से कहा ,” राजन समझ में नहीं आ रहा कि ये व्यक्ति इतना खुश क्यों है ?
प्रजा में ज्यादातर लोग धनाभाव का रोना रो रहे हैं पर यह अल्प आय में ही संतुष्ट
है | परिवार में भी खुशहाली व् सामंजस्य है | हमारे पास इतना धन है फिर भी हम इसकी
तरह से खुश नहीं है | आखिर इसका कारण क्या है ?

राजा ने उत्तर देते
हुए कहा , “ ये व्यक्ति इसलिए खुश है क्योंकि ये 99 क्लब का सदस्य नहीं है |
“क्या मतलब ?” मंत्रियों
ने समवेत स्वर में पूछा |
राजा ने कहा कि ऐसा
करो एक थैले में 99 सोने के सिक्के लाकर इसके दरवाजे के बाहर एक थैले में रख दो
…. फिर देखना खेल |
मंत्रियों  ने वैसा ही किया |

सुबह जब उस व्यक्ति
ने उठ कसर दरवाजा खोला तो एक थैला रखा हुआ दिखाई दिया |
व्यक्ति ने थैला खोल
कर देखा तो चौंक गया … उसमें ढेर सारी स्वर्ण मुद्राएं थीं |

उसने मुद्राओं को गिनना
शुरू किया | 50 तक पहुंचा था कि बीच में पत्नी आ गयी | संख्या भूल गया | पत्नी को
मौन रहने का इशारा कर फिर से गिनना शुरू किया |
तभी बच्चे आ कर इतनी
मुद्राएं देखकर चहकने लगे | गिनने में फिर व्यवधान आया |
व्यक्ति ने सबको
डांट कर चुप कराया | फिर से गिनना शुरू किया | बड़ी मुश्किल से एक घंटे में वो गिन
पाया कि 99 स्वर्ण मुद्राएं हैं |
उसे लगा उससे गिनने
में कुछ भूल हुई है कोई 99 क्यों देगा सौ क्यों नहीं | फिर से गिना … फिर गिना
… 99 ही  थीं |

उसे लगा आस –पास ही
कहीं गिर गयीं होंगी | उसने ढूँढने की कोशिश की | सहायता के लिए पत्नी व् बच्चों
को भी बुलाया | पर मुद्रा नहीं मिलनी थी तो नहीं मिलनी थी | दोपहर हो गयी | खेत
में भी पानी देने नहीं जा सका था | बहुत ही निराश मन से उसने वो 99 स्वर्ण
मुद्राएं अपनी अलमारी में रख लीं और मन ही मन सोचने लगा कि अब और मेहनत करूंगा और
इन्हें पूरी 100 कर लूंगा |
अगले दिन से वो बहुत
अधिक मेहनत करने लगा | दोपहर का खाना भी नहीं खाता , काम में ही लगा रहता |
अलबत्ता शाम को आकर अपनी मुद्राएं गिनना नहीं भूलता |

एक दिन उसे दो
मुद्राएं कम मिलीं | वो आगबबूला हो गया | फ़ौरन पत्नी को बुलाया |

पत्नी ने कहा कि घर  में कुछ जरूरी खर्च आ गया था | मैंने सोचा इतनी मुद्राय्वें तो रखी हैं
इन्हीं में से दो ले लेते हैं | मैंने दो मुद्राओं में से ये परदे , खाने का सामान
व् एक अंगूठी खरीदी है |
व्यक्ति का क्रोध बढ़
गया वो पत्नी पर पहली बार हाथ उठा कर बोला , “ नालायक औरत तेरे पास तो खर्च करने के आलावा
कोई काम नहीं है | मैं कितनी मेहनत से इन्हें जमा कर रहा था और तूने बिना सोचे
समझे दो उड़ा दी |


पत्नी रोने लगी |

व्यक्ति को अब तीन
स्वर्ण मुद्राएं जमा करनी थीं | उसने मेहनत दुगनी कर दी |
इसी बीच उसने देखा
कि दो मुद्राएं और कम हो गयीं हैं | इस बार वो मुद्राएं लेने वाले बच्चे थे |
बच्चों ने मासूमियत
से कहा , “ पिताजी स्कूल की तरफ से आयोजन था | हमने अच्छे कपड़े लिए व् चंदे के लिए
भी रूपये दिए | उसी में वो दो मुद्राएं
मुद्राएं  खर्च हो गयीं |

अब तो उस व्यक्ति के
गुस्से का परवार ही न रहा | अब उसे पूरी पांच मुद्राएं जमा करनी थी | सोच कर उसके
दिमाग की नसे फटने लगीं |
  गुस्से में
चिल्लाते हुए उसने अपने बच्चों की पिटाई शुरू कर दी | बच्चे मम्मी बचाओ , मम्मी
बचाओ , चिल्लाने लगे | बच्चों को बचाने के चक्कर में दो हाथ माँ को भी लग गए , वो
गिर गयी , उसका सर फट गया | माँ का खून देखकर बच्चे पिता पर चिलाने लगे | पूरे घर
में कोहराम मच गया |

ठीक उसी समय राजा
अपने मंत्रियों के साथ उस घर में पहुंचा |

मंत्री हैरान थे |
जो आदमी अपने परिवार के साथ इतना खुश रहता था | आज उसके घर में इतनी अशांति बिखरी
हुई है | आखिर उन स्वर्ण मुद्राओं ने ऐसा क्या कर दिया ?
राजा मुस्कुरा कर बोला , “ कुछ नहीं , बस अब ये 99 क्लब का सदस्य बन
गया |

मित्रों ये एक
प्रेरक कथा है , जो हम सब को जीवन का आइना दिखाती है | हम सब भी कुछ जोड़ने के
चक्कर में आज की खुशियाँ छोड़ते रहते हैं … मसलन

कार आ जाए … ख़ुशी
तो उसमें है … इसलिए उसके बाद खुश होऊंगा |
बच्चे का अच्छे
स्कूल में सिलेक्शन हो जाए
  उसके बाद खुश
होऊँगा
 |
IIT में सिलेक्शन के
बाद खुश होऊंगा |
दादी बन जाऊं असली
ख़ुशी तो तब आएगी |
खुशियाँ तो रिटायर
मेंट के बाद की चीज है |


 ये सब यानि  कि हम सब 99
क्लब के सदस्य हैं जो अपनी खुशियाँ कल पर टालते रहते हैं …. इसलिए हमेशा ख़ुशी की
कमी पड़ी रहती है | परिवार में झगडे होते हैं , मानसिक अशांति होती है , कई बार काम
की अधिकता में शरीर के प्रति लापरवाही इतनी हो जाती है कि अनेक रोग घेर लेते हैं |
जब तक वो बहु
प्रतीक्षित ख़ुशी मिलती है तब तक हम उसे भोगने लायक ही नहीं बचते या हमारे रिश्ते
टूट चुके होते हैं | ऐसी ख़ुशी का क्या फायदा कह कर हम तब भी दुखी ही होते हैं |
तो जरूरत है आज और
अभी छोटी –छोटी ख़ुशी पकड़ने की , उसको सँभालने की उसका मजा लेने की | आज का उगता
सूरज , आज का डूबता सूरज , आज के बादल , ठंडी हवा या जाड़े की नर्म धुप सब विशेष है
| उनका मजा आज ही लिया जा सकता है … कल नहीं | याद रखिये ९९ का 100 कभी नहीं
होगा … पर हम 100 बनाने के चक्कर में कभी 99 का आनन्द भी नहीं ले पायेंगे|

अब ये कहानी पढ़कर
आपको ख़ुशी हुई हो तो कमेंट कर हमारी भी ख़ुशी
 बढाइये |

अटूट बंधन टीम 

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