वो व्हाट्स एप मेसेज

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कहानी -वो व्हाट्स एप मेसेज

                     जिसने दो साल तक कोई खोज खबर न ली हो …. अचानक से उसका व्हाट्स एप मेसेज दिल में ना जाने कितने सवालों को भर देता है | क्या एक बार  रिश्तों को छोड़ कर भाग जाने वाला पुन : समर्पित हो सकता है |

वो व्हाट्स एप मेसेज 

३१ दिसम्बर रात के ठीक बारह बजे सुमी के मोबाइल पर व्हाट्स एप मेसेजेस की टिंग -टिंग बजनी शुरू हो गयी | मित्रों और परिवार के लोगों को हैप्पी न्यू  इयर का आदान -प्रदान करते हुए अचानक सौरभ के मेसेज को देख वो चौंक गयी | पूरे दो साल में यह पहला मौका था जब  सौरभ ने उससे कांटेक्ट करने की कोशिश की थी |

सुमी ने धडकते दिल से मेसेज खोला और मेसेज पढना शुरू किया , ” हैप्पी न्यू इयर सुमी , मैं वापस आ रहा हूँ , तुम्हारे पास , फिर कभी ना जाने के लिए ” उसके नीचे ढेर सारे दिल बने थे | ना चाहते हुए भी सुमी की आँखें भर आयीं | मन दो साल पीछे चला गया |

वो दिसंबर की ही कोई सुबह थी , जब वो गुनगुनी धूप में पूजा के लिए फूल तोड़ रही थी , तभी सौरभ ने आकर उसके जीवन में कोहरा भर दिया | सौरभ उसके पास आकर बोला , ” सुमी , मैं कल अपनी सेक्रेटरी मीनल के साथ अमेरिका जा रहा हूँ | अब मैं वहां उसी के साथ रहूँगा ,तुम्हारे लिए बैंक में रुपये छोड़े जा रहा हूँ , अब मेरी जिन्दगी में तुम्हारी कोई जगह नहीं है | वहीँ की वहीँ खड़ी  रह गयी थी सुमी , सँभलने का मौका भी नहीं दिया उसने | सारे फोन कनेक्शन काट लिए , ना कोई प्रश्न पूछा और ना ही किसी बात का उत्तर देने का कोई मौका ही दिया |

दो साल … हाँ पूरे दो साल इसी प्रश्न से जूझती रही कि तीन साल की सेजल और डेढ़ साल के गोलू  ,  -घर -परिवार और सौरभ की हर फरमाइश के लिए दिन भर चक्करघिन्नी की तरह नाचने के बावजूद आखिर क्या कमी रह गयी उसके प्रेम व् समर्पण में कि सौरभ उसके हाथ से फिसल कर अपनी सेक्रेटरी के हाथ में चला गया | महीनों बिस्तर पर औंधी पड़ी जल बिन मछली की तरह तडपती थी , उस वजह को जानने के लिए , ये सिर्फ प्रेम में धोखा ही नहीं था उसके आत्मसम्मान को धक्का भी लगा था  | सहेलियों ने ही संभाला था , उस समय  सेजल व् गोलू को | उसे भी समझातीं थीं ,” वो तेरे लायक नहीं था , कायर था , आवारा बादल …. क्या कोई वजह होती तब तो बताता, तू भी सोचना छोड़, भूल जा उस बेवफा को  |

 धीरे -धीरे उसने खुद को संभाला , एक स्कूल में पढ़ाना  शुरू किया | जिन्दगी की गाडी पटरी पर आई ही थी कि ये मेसेज | थोड़ी देर मंथन के बाद अपने को संयत कर  उसने मेसेज टाइप  करना शुरू किया , ” सौरभ , वक्त के साथ बहुत कुछ बदल जाता है , कल तुम आगे बढ़ गए थे पर आज मैं भी वहीँ खड़ी हुई नहीं  हूँ कि तुम लौटो और मैं मिल जाऊं , अब  मैंने  आत्मसम्मान से जीना सीख लिया है अब मेरी जिंदगी में तुम्हारी कोई जगह नहीं है |

मेसेज सेंड करने के बाद उसके मन में अजीब सी शांति मिली | खिड़की से हल्की -हलकी  रोशिनी कमरे में आने लगी नए साल का नया सवेरा हो चुका था |

वंदना बाजपेयी

सुरभि में प्रकाशित

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1 COMMENT

  1. अच्छी कहानी और उसका अच्छा अंत …
    आख़िर नारी ही क्यों पिसे पुरुष के निर्णय के साथ … ऐसे लोगों को न कहना ही अच्छा है …

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