जब सुकुमार छोटे बच्चों को बस्ते के बोझ से झुका स्कूल जाते देखतीं हूँ तो सोचती हूँ कि देश मेरांआजाद हो गया पर भारतीय मानस अभी तक परतन्त्र है क्योंकि अंग्रेज भारत छोड़ गये लेकिन अभिभावकों में अपने बालक को सीबीएसई स्कूल में पढ़ा अव्वल कहलाने की चाह स्वतंत्र भारत में भी पूर्णरूपेण जिंदा है । नौनिहालों को देख बरबस ये पंक्तियां फूट पड़ती है -------
आज शिक्षा निगल रही बचपन
बोझ बस्ते का कमर तोड़ रहा
क्यों करते हो इनसे अत्याचार
भरने दो अब हिरनों सी कूदाल
बोझ बस्ते का कमर तोड़ रहा
क्यों करते हो इनसे अत्याचार
भरने दो अब हिरनों सी कूदाल