नाउम्मीद करती उम्मीदें – निराशा , अवसाद , चिंता के चक्रव्यूह से कैसे निकलें

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वरदान प्राप्त हैं
वो लोग जो उम्मीदों से परे जीते हैं , क्योंकि वो कभी निराश नहीं होंगे –
अलेक्जेंडर पोप
                   बहुत
पहले एक कहानी पढ़ी थी | कहानी का नाम तो याद नहीं पर उसका मुख्य पात्र राजू है | गरीब
राजू बारहवीं का छात्र है व् तीन बहनों के बीच अकेला लड़का | जाहिर है माता – पिता को
राजू से बहुत उम्मीदें  हैं की एक दिन इसकी
नौकरी लग जायेगी तो हम सब की गरीबी दूर हो जायेगी | लड़कियों की शादी हो जायेगी
व्  बुढापा भी आराम से कट जाएगा | सब
बच्चों में राजू का सबसे ज्यादा ख्याल रखा जाता है | खाने में घी दूध राजू को
मिलता है , उसके कमरे में कूलर लगा है पर वहां बैठने की इजाजत किसी को नहीं है |
राजू के मुँह से कुछ निकले तो उसकी फरमाइश तुरंत पूरी हो जाती है | तीनों बहनों को
इसमें अपनी उपेक्षा महसूस होती है | वह चिढाने के अंदाज में राजू को राजू साहब कह
कर पुकारने लगती हैं | राजू मन लगा कर पढता है , पर एग्जाम  से ठीक एक दिन पहले वो घर से भाग जाता है | अपनी
चिट्ठी में वो सपष्ट कर देता है की उसके घर छोड़ कर जाने की वजह माता – पिता की
उम्मीदें है | उसे भय है की कहीं उनकी उम्मीदें न टूट जाएँ | वो स्पष्ट करता है की
कितना अच्छा होता अगर उसके माँ – बाप उसकी साड़ी फरमाइशें  पूरी नहीं करते , उसकी बहनों को भी उतने ही दूध
में हिस्सा मिलता व् कूलर में लेटने का अधिकार मिलता बदलें में उसे प्रोत्साहित तो
किया जाता पर उस पर उम्मीदें पूरा करने का इतना दवाब न होता |

यहाँ यह बात ख़ास है
की राजू के माता – पिता ने उससे उम्मीदें की थी इसलिए वो घर से भाग गया | अगर यही
उम्मीदें उसने खुद से करी होती तो वह भाग कर कहाँ जाता | आज तमाम बच्चों के निराशा
, अवसाद व् चिंता में डूबने की वजहें ये उम्मीदें ही तो है | उम्मीदें करना जितना
आसन है उम्मीदें टूटने पर उसे सहने उतना ही मुश्किल |कई बच्चे तो उम्मीदें टूटने
पर आत्हत्या जैसा घातक कदम भी उठा लेते हैं |


                मुझे ये स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं की मैं
इस समय अवसाद और चिंता का शिकार हूँ | मेरी भूख मर चुकी है | आँखों से नींद गायब
है | मैं घंटों अपनी बालकनी  में बैठ कर
सामने पार्क की पौधों को निहारती हूँ | शयद मैं भी जीवन की विषैली कार्बन डाई
ऑक्साइड को निगलने के पश्चात् उसे कोई रचनात्मक रूप दे सकूँ | पर ये गहरी निराशा
का पर्दा मेरे सामने से हटता ही नहीं | यहाँ तक की मैं सांस तक नहीं ले  पा रही हूँ | जब भी मै सांस लेने की कोशिश करती
हूँ मेरी सारी उम्मीदें जो मैंने जिंदगी से करी थीं , मेरे सामने चलचित्र की तरह
चलने लगती हैं | मुझे घुटन होने लगती है | नहीं ये वो जिन्दगी नहीं है जो मैंने मांगी
थी | मुझे तो सफल होना था , मुझे तो कुछ बनना था , मुझे ढेर सारे पैसे कामने थे
ताकि मैं वर्ल्ड  टूर पर जा सकूँ | मुझे
भीड़ का हिस्सा नहीं होना था , मुझे तो अपवाद होना था | अपवाद जो अँगुलियों पर गिने
जा सकते हैं | इसके लिए मैंने मेहनत भी तो कितनी की थी | बचपन से ही पिताजी ने
बताया था जो बच्चे क्लास में अच्छा करते हैं वो जीवन में सफल होते है , नाम कमाते
हैं और मैंने अपनी गुडिया से खेलना छोड़ कर अंग्रेजी की किताब उठा ली थी | क्लास
में फर्स्ट आना मेरी आदत में  शुमार हो गया
| कितने सफल लोगों के इंटरव्यू पढ़े थे मैंने , सबमें यही तो लिखा था … “ कठोर
परिश्रम सफलता की कुंजी है |”
ये वाक्य मेरे लिए वेद  वाक्य बन गया | मैंने मेहनत में कोई कसर नहीं
छोड़ी | फिर मुझे लगा की अगर मैं कॉलेज में बहुत अच्छा करुँगी तो मुझे सफलता मिलेगी
| मैं  काम में दिल लगा दूंगी तो मुझे सफलता
मिलेगी | काम को अपना सोलमेट समझ लुंगी तो मुझे सफलता मिलेगी | पर अफ़सोस ऐसा कुछ
भी नहीं हुआ | सफलता और मेरे बीच में ३६ का आंकड़ा ही रहा | और मैं भीड़ का हिस्सा
बन गयी | जो मुझे कतई  स्वीकार नहीं था |
यहाँ सफलता से मेरा अभिप्राय अपवाद वाली सफलता थी | मेरे पास नौकरी थी पर वैसे
नहीं जैसी मैंने उम्मीद करी थी , मेरे पास उस तनख्वाह में अफोर्ड करने लायक घर था
पर वैसा नहीं जैसा मैंने उम्मीद करी थी | मैं अपने पैसों से विदेश घूम –  फिर सकती थी पर वर्ल्ड टूर नहीं जैसी मैंने
उम्मीद करी थी | मेरी खुद से की गयी उम्मीदें मुझे मार रही थी | कुछ खास बनने  व् ख़ास करने के लालच में मैं आम जीवन का या यों
कहिये जो मुझे मिला है उसका लुत्फ़ नहीं उठा पा रही थी |
मैं निराश थी बहुत
निराश |               
                 अपने मन की निराशा  का कम करने के लिए  मैंने टी . वी ऑन कर दिया | विज्ञापन आ रहे हैं
|पहला विज्ञापन जिस पर मेरी नज़र पड़ी  |
गोरेपन की क्रीम का है | गोरेपन की क्रीम से न सिर्फ रंग साफ़ उजला हो जाता है
बल्कि आत्मविश्वास बढता  है , अच्छा पति
मिलता है , नौकरी मिलती है , रास्ते रुक जाते हैं , सडक पर लोग दिल थाम कर खड़े
रहते हैं और बहुत कुछ जिसकी कल्पना एक लड़की कर सकती है | पर क्या ये संभव है ?
क्या पहले से ही गोरे  लोगों को ये सब कुछ
मिला हुआ है | शायद नहीं | पर मार्केटिंग उम्मीद बेचने की कला है | अगर यही  क्रीम का विज्ञापन ऐसा होता की ये क्रीम आप की
त्वचा को नमी प्रदान करेगी तो क्या लोग उसकी तरफ भागते ? क्या उस क्रीम की बिक्री
बढती ? उम्मीदें बढ़ाना और और उनके टूटने पर नाउम्मीद लोगों की संख्या बढ़ाना यही
मार्केटिंग है | बढता हुआ असंतोष नकारात्मक विचार और निराश लोगों की फ़ौज  इस मीडिया संस्कृति की देन हैं |पर अब ये मात्र
विज्ञापनों तक ही सीमित नहीं रहा है | ये हमारी निजी जिंदगी में भी पाँव पसार चुका
 है | जहाँ हम पहले बहुत उम्मीदें पाल लेते
हैं फिर उनके टूटने पर निराशा , अवसाद , व् चिंता के चक्रव्यूह में फंस जाते हैं |
जिसे तोडना आसन नहीं है |





यह सच है की
उम्मीदें  पूरी होने पर हम खुश होते हैं ,
पर अगर हम खुश होने के लिए उम्मीदें पूरी होने का इंतज़ार करेंगे तो हमें लम्बा
इंतज़ार करना पड़ सकता है
                    आज अवसाद के आंकड़े तेजी से
बढ़ते जारहे हैं | जिसकी वजह उम्मीदों का टूटना ही है | और उम्मीदें क्यों नहीं बढेंगी
जब हर समय हमें यह सन्देश दिया जाता है की हम जो कुछ बड़े से बड़ा सोंचते हैं वो हम
पा सकते हैं | यहाँ तक की अगर आप मेहनत भी नहीं करतें हैं और आप आँख बंद कर पूरे दिल
के साथ  , पूरी शिद्दत के साथ कुछ सोंचते
हैं तो भी वो आप को मिल जाता है | यानी जिस सफलता के बीज आपने सपने में बोये थे वो
हकीकत में आप को फल देने  लगती है | पर
क्या वास्तव में ऐसा होता है ? यहाँ मेरा यह कहने का मतलब नहीं है की  सपने पूरे नहीं होते | परन्तु कितने लोग हैं
जिनके सपने पूरे होते हैं ? कितने लोग हैं जो वही जॉब कर रहे हैं जिसकों करने का
उन्होंने सोंचा था ? कितने लोग वही जिंदगी जी रहे हैं जैसी उन्होंने उम्मीद की थी
? आंकड़े आप को खुद  ही असलियत बता देंगे |
तो क्या मेजोरिटी को निराश रहना चाहिए |फिर तो ९० % समाज को निराश रहना चाहिए |  फिर से स्पष्ट करना चाहूँगी की यहाँ मेरा ये
मतलब नहीं है की आप सपने पूरा करने के लिए मेहनत न करें बल्कि सपने पूरा होना आपकी
जिन्दगी में एक प्लेजेंट सरप्राइज़ की तरह आना चाहिए न की खुश रहने के कमिटमेंट की
तरह | नहीं तो अवसाद में जाने की सम्भावना बढ़ जाती है | अगर आप भी जिंदगी में वो
सब कुछ नहीं मिल पाया है तो निराशा की अँधेरी गुफा से निकलने के लिए कुछ प्रयोग कर
सकते हैं जो मैंने किये हैं ………..
सेल्फ हेल्प बुक्स
पढ़िए पर रियलिस्टिक रहिये
                                सपने देखने , उम्मीदें  पालने और उनके पूरे होने की किताबों से बाज़ार
भरा पड़ा है | पर जिनके सपने पूरे नहीं हुए उनके बारे में कोई किताब नहीं है | उनके
कोई कथन प्रसिद्द नहीं हैं | क्यों …. वो बिकती जो नहीं हैं | जिनके सपने पूरे
नहीं हुए उनमें से कई के पास काबिलियत थी , कई ने बहुत मेहनत करी | कई ने काम को
अपना सोल मेट समझा | कोइ बस एक कदम ही पीछे रह गया | पर उनके बारे में आपको कोई
जानकारी नहीं वो असफल लोंगों के समुद्र में डूब चुके हैं जहाँ गिनती नहीं होती |
बस भीड़ होती है | सफल लोगों की किताबें हैं बस एक कदम दूर रहे असफल लोगों की नहीं
…. ठीक वैसे ही जैसे गोर पन की क्रीम बिकती हैं काली रंगत की नहीं | जो बिकता है
वही बेंचा जाता है वो एक वातावरण तैयार करता है | एक उम्मीद पैदा करता है | उसे नाउम्मीद
लोगों की कोई फ़िक्र नहीं | क्योंकि ये बस एक मार्केटिंग स्ट्रेटजी है | मैं भी
यहाँ बैठ कर ये लिख सकती हूँ की जो आप चाहे कर सकते हैं पा सकते है पर मैं असफलता
पर लिख रहीं हूँ | क्योंकि मैं जानती हूँ की जिंदगी के क्रिकेट में कब गुगली पड़
जायेगी  कोई नहीं जानता | सब कुछ पूर्व निर्धारित
तरीके से नहीं होता | हमें हमेशा अनक्सपेक्टेड के लिए जगह छोडनी चाहिए | यानी हमें
अपने सपनों के लिए जी – जान से प्र्सयास करना चाहिए पर उसके बिना भी जीने की कला
सीखनी चाहिए |



उम्मीदें मत पालिए
                सपने देखिये , उनको पूरा करने का
प्रयास करिए , पर उम्मीदें मत पालिए | ठीक वैसे ही जैसे गीता कहती है कर्म करो पर
फल की चिंता मत करों | अगर हम फल से अटैच हो जायेंगे तो परिणाम मनोनुकूल न मिलने
पर मन को टूटना स्वाभाविक है | काम करिए क्योंकि आपको उस काम को करने में मज़ा आ
रहा है न की इसलिए की वो आपको वहां – वहां – वहां पहुंचा देगा | जब आप खुश होकर
काम करेंगे तो परिणाम जो भी होगा आप खुश रहेंगे | आज का समाज हमें “ बी कंटेंट विद
व्हाट यू हैव “ का उल्टा पाठ पढ़ा रहा है | जहाँ बड़े से बड़ी सफलता के बाद भी निराशा
है | क्योंकि उम्मीद उससे भी कुछ आगे की थी |
इज नॉट ब्यूटी एनफ
                  जगदीश चन्द्र  बोस ने ये कथन प्रकृति के लिए कहाँ था पर जिंदगी
में भी उतना ही खरा उतरता है | क्या जिंदगी अपने आप में खूबसूरत नहीं है | क्या
छोटी – छोटी खुशियाँ जुड़ कर  बहुत खूबसूरत
रंगीन तस्वीर नहीं बना देती | सपने देखना और पा लेना बहुत ख़ुशी की बात है पर हर
हाल में जिंदगी  की लय से लय मिला लेना और
एक कुशल संगीतकार होने की निशानी नहीं है |

                         सड़क से फ़कीर गुज़र रहा
है | जो दे उसका भी भला , जो न दे उसका भी भला | मैंने जिंदगी का कथन बदल दिया
, सपने दखने हैं , मेहनत करनी है
… पर ध्यान रखना है की ये उम्मीदें
नाउम्मीद न कर पाए | जो मिला है , हम जहाँ पर भी हैं ( हमने जहाँ से शुरू किया था
उससे बस एक कदम आगे ही सही ) वहीं पर खुश रहना है | निराशा के चक्रव्यूह को तोडना
है 


रियल स्टोरी – जया  निगम , दिल्ली 
कॉपी राइटर – वंदना बाजपेयी 
                      



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