मोहसिन की बेवा

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मोहसिन सेना की वर्दी पहने लद्दाख के ग्लेशियर में कहीं दब गया ।
सरकार उसे मरा हुआ नहीं मानती । वो ड्यूटी पर नहीं आता उसकी सैलरी नहीं जाती खाते में । मोहसिन की बेबा रोज एटीएम लेकर जाती है टेलर की दुकान पर । अफजल दोस्त था मोहसिन का , पिन मालूम है उसे । रोज चेक करता है और कुछ रूपये जेब से निकालकर उसके हाथ में रख देता है अभी इतना ही आया है कहकर ।
आज अफजल की बीबी ने पैसे को लेकर हंगामा कर दिया तो अफजल ने कह दिया पैसे नहीं हैं एटीएम में ।
चक्की पर आटा लिए सर झुकाए खड़ी है मोहसिन की बेबा । चक्कीवाला पिसाई मांग रहा है छह किलो का पंद्रह रूपया ।

जमीन को अंगूठे से कुरेदते हुए उसने धीरे से कहा ” पैसे तो नहीं हैं आटा रख लो । ”
उसने एक किलो आटा निकाल लिया ।
बाहर निकलते ही मौलाना साहब मिले । दुआ सलाम से निबटते ही पूछा ” मोहसिन की कोई खबर । ”
उसने सर झुका लिया ” अब तो पैसे आने भी बंद हो गये । ”
मौलवी साहब ने सलाह दी एकदिन सेना मुख्यालय जाकर पता करो ।
वो बेटी को लेकर अफजल के साथ दिल्ली हो आई लेकिन कुछ पता न चला । दोनों अनपढ़ वहां कुछ बता न पाये बस फोटो दिखाकर कहते सेना में था लद्दाख में ड्यूटी पर । सेना वालों ने हम पताकर खबर करते हैं कहकर वापस भेज दिया ।
तीन दिन बाद जब वापस आये तो अफजल की बीबी ने अपने भाईयों के साथ मिलकर मोहसिन की बेबा और अफजल के रिश्ते पर कीचड़ उछालते हुए तलाक मांगा । मेहर के रूप में अफजल को घर देना पड़ा ।
अब अफजल दुकान पर ही सोता है और उसी की कमाई से मोहसिन का घर चलता है । करीब तीन साल बीत गये । न मोहसिन लौटा न उसकी कोई खबर ।
अब तो गांववाले भी उनके रिश्ते पर ऊंगली उठाने लगे हैं ।
एक दिन मौलाना साहब ने दोनों को समझाया कि निकाह पढ़ लो तुम दोनों । अफजल सुनकर चुपचाप उठ गया । उसके मन में भी बेबा से बेगम बनने का ख्याल जोर मारने लगा । अचानक से उसका रंगों के प्रति मोह बढ़ गया ।
आज जब अफजल खाने बैठा तो उसने बात छेड़ी ” तो क्या सोचा आपने । ”
” किस बारे में । ”
” वही जो मौलाना साहब कह रहे थे ?”
अचानक से कौर मुंह में डालते रूक गया ” मोहसिन देश के लिए लड़ रहा था । मेरा भी सपना था ,भारतीय फौज में जाने का , लेकिन नहीं जा पाया । मैं तो ये सोचकर मदद कर रहा था कि जंग नहीं लड़ सका तो क्या हुआ सिपाही के घर रसद पहुंचाकर ही देश का कर्ज तो चुका रहा हूं । ”
सर उठा नहीं पाई वो धीरे से दुपट्टे को उंगली में लपेटते हुए वो बोली ” हमारी तुम्हारी शहादत का कोई मोल नहीं है जब तक सरकार मोहसिन को शहीद घोषित नहीं कर देती । मुझे तो ये भी नहीं मालूम कि मोहसिन की बेबा हूं भी या नहीं ”
” आप चिंता न करो , मैं कल से खाने का इंतजाम दुकान पर ही कर लूंगा और आपकी रसद समय से पहुंच जाया करेगी । ” हाथ धोकर बाहर निकलते हुए अफजल ने कहा ।
अल सुबह लोगों का हूजूम देखकर वो पहुंचा तो देखा जमीन नापी जा रही है और मोहसिन की पत्नी और बेटी एक तरफ सहमे से खड़े हैं ।
दारोगा ने बताया ये जमीन जाकिर मियां की है खाली करनी पड़ेगी , कोर्ट का आर्डर है ।
उसने चिरौरी की ” साहब ये मोहसिन की बेबा है ,इसका पति मोहसिन फौज में था । एक घर ही तो है बेचारी के पास । ”
दारोगा ने सहानूभूति से पूछा ” था मतलब शहीद हो गये क्या ? ”
बमुश्किल बोल पाया अफजल ” पता नहीं । ”
” तो कैसी बेबा है ? ”
” पता नहीं साहब । ” फिर मुंह से वही निकला ।
कुमार गौरव 

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