प्रेरणा

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रिपोर्ट लेते जाते समय मिताली का दिल तेजी से धडक रहा था | विपुल ने अपने आप को संभालते हुए उससे कहा ,” डरो मत मिताली , ईश्वर  की कृपा से सब सही होगा | जवाब में मिताली मुस्कुरा दी | पर भय उसकी आँखों में साफ़ दिखाई दे रहा था | सारे रास्ते वो भगवान् का नाम लेती रही | बिमारी के लक्षण   तो दिखाई नहीं  दे रहे थे | इसलिए  आशा थी की  की सब ठीक होगा | हॉस्पिटल के काउंटर पर लैब असिस्टैंट ने उसे रिपोर्ट पकड़ा दी और एक क्षण  में उसकी दुनिया बदल गयी | अब   शक की कोई गुंजाइश नहीं थी | रिपोर्ट पॉजिटिव थी | रिपोर्ट के साथ ही  कुछ और जरूरी टेस्ट करने की डॉक्टर की हिदायत भी थी |

                             मिताली की आँखों के सामने अँधेरा छा गया | विपुल की आँखें भी डबडबा रही थीं |३८ साल , ये भी कोई उम्र होती है दुनिया छोड़ने की |  दोनों बच्चे अभी छोटे थे | क्या होगा … कैसे होगा | कैंसर … ये आज उसके लिए महज एक शब्द नहीं था | उसे लग रहा था जैसे उसे “मौत का फरमान”  सुना दिया गया हो | उसे चारों  ओर मौत दिखाई दे रही थी और दिखाई दे रहे थे ममता के लिए तरसते बच्चे |माँ को खोने का दुःख क्या होता है , भला उससे बेहतर और कौन जान सकता था  | पांच साल की नन्ही उम्र में उसने भी अपनी माँ को खो दिया था | बचपन में ही जब उसकी सहेलियां खेल कूद में व्यस्त रहतीं ,  वो बड़ी हो गयी थी | एक जिम्मेदार माँ … जिसे अपने छोटे भाई का ध्यान रखना है | पिताजी के ऑफिस से आने पर चाय बना कर देनी है | फिर अपनी पढाई भी करनी है | क्या इतिहास अपनी विद्रूपता को फिर से दोहराएगा ? मिताली को लगा जैसे किसी ने उसके कलेजे में खंजर  गड़ा  दिया हो , और अन्दर ही अन्दर रक्त बह रहा हो |जिसका शोर उसके कानों को बहरा करे दे रहा है |

                           घर आने के बाद बच्चों से गले लग कर कितना रोई थी मिताली | एक हफ्ते तक वो दूसरे टेस्ट कराने के लिए राजी ही नहीं हुई | दुःख  का आलम ये था की उस हफ्ते न तो उसने ठीक से स्नान किया न खाना खाया न नींद ही ली | उसे शिकायत थी ईश्वर से जिसने उसे इस बिमारी को दिया था |आखिर उसका कसूर क्या था ? जीवन अपनी चाल से चलता है पर हम ऐसी आकस्मिक घटनाओं में ईश्वर को दोषी ठहराते हैं , या तो हम अपना कसूर समझ नहीं पाते या उसके सूत्र पिछले जन्म के रहस्य  में ढूंढते हैं |

                                          बड़ी मुश्किल से मिताली आगे के टेस्ट के लिए तैयार हुई | यूटेराइन कैंसर स्टेज 3 बी डिटेक्ट हो चुका  था | ट्यूमर साइज़ इतना बड़ा था की सीधे ऑप्रेशन  नहीं किया जा सकता था | डॉक्टर ने पहले कीमो थेरेपी कराने के लिए कहा | बुझे मन से मिताली विपुल के साथ जाने को राजी  हुई | वो मिताली जो अपने स्टायल के लिए जानी जाती थी | जो गेट से बाहर भी निकलती  थी तो अपने बाल संवार लेती थी |कपड़ों से मैचिंग चप्पल , इयरिंग्स और मैचिंग बैग उसकी पहचान थे | आज वो घर से ऐसे निकली की अगर देखती तो शायद   खुद को भी पहचान नहीं पाती | वही नाईट सूट , बेतरतीब बाल , हवाई चप्पल | जैसे उसने बिना लड़े  ही मौत को स्वीकार कर लिया था |

हॉस्पिटल में बहुत मरीज थे | सब अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे | ज्यादातर का हाल मिताली की तरह ही था |बुझे  चेहरे , निराश आँखे और मौत की प्रतीक्षा करता मन |

 तभी मिताली की नज़र रिसेप्शन पर गयी | वहां खड़ी एक लड़की सबका ध्यान खींच रही थी | उम्र होगी यही कोई २१ , २२ साल , सुर्ख लाल लॉग स्कर्ट व् टॉप , बिलकुल नए फैशन का , करीने से कढ़े बाल , उसमें ड्रेस के रंग से मैच करता खूबसूरत गुलाब जैसे अपने भाग्य पर इतरा  रहा हो | हाथ में खूबसूरत लाल कड़े | पर सबसे ज्यादा ध्यान खींच रही थी उसकी हंसी , खनकदार … जैसे किसी ने सितार के सातों तार इकट्ठे छेड़ दिए हों | 

शायद  कोई और समय होता तो वो भी खुश होती | उससे मित्रता करती | जिंदादिल लोग उसे कितने पसंद थे | पर आज मिताली ने अपना मुंह निराशा से दूसरी तरफ फेर लिया | उसकी नज़र अपनी हवाई चप्पलों पर पड़ी | उसने फिर उस लड़की की तरफ देख कर मन ही मन कहा ,” ओह ! ये भाग्यशाली लोग , इनके पास जीवन है , सपने हैं , खुशियाँ हैं फिर क्यों न चहके | अगर उसे भी कैंसर न हुआ होता तो वो भी चहकती | पर शायद इस लड़की की तरह इतने मरीजों के बीच ऐसे न खिलखिलाती | अरे थोडा तो लिहाज़ रखना चाहिए , मरते हुए मरीजों का | मौत शब्द मिताली के दिमाग से निकलने को तैयार ही नहीं था |

 तभी उसका नाम पुकारा ,’प्रेरणा “और वो डॉक्टर के केबिन में चली गयी | मिताली को तो जैसे सांप सूंघ गया ,” तो , तो क्या उसे भी कैंसर है | पर वो इतनी खुश कैसे रह सकती है | हो सकता है वो अपने किसी रिश्तेदार का हाल पूंछने आई हो | अपने अन्दर चल रहे प्रश्नों को शांत करने के लिए मिताली रिसेप्शन पर गयी और पूंछा ,” वो .. वो लड़की जो अभी आप के पास खड़ी थी , क्या वो किसी को दिखाने आई थी | रिशेपशिनिस्ट  गहरी सांस ले कर बोली ,” नहीं , प्रेरणा को खुद ही कैंसर है , टर्मिनल स्टेज …महीने दो महीने से ज्यादा नहीं जियेगी |

मिताली का दिल धक से रह गया | वो धीरे से बोली ,” क्या उसे पता है ? रिशेपशिनिस्ट ने हां में सर हिलाया | इससे पहले की मिताली कुछ और पूँछती | प्रेरणा बाहर आ गयी | मिताली ने प्रेरणा का हाथ पकड़ कर कहा ,” आपके बारे में जान कर बहुत दुःख हुआ | पर … पर आप इतना मेनेज कैसे कर लेती हैं | मेरा तो बाल संवारने का मन भी नहीं होता | मिताली की बात पर प्रेरणा फिर वैसी ही खिलखिलाई | फिर बोली ,” जानती हैं जब मुझे भी कैंसर के बारे में पता चला तो मेरा हाल भी आपके जैसा था |

 ” मौत का फरमान ” सुनते ही मेरा भी मन तैयार होने का नहीं कर रहा था | पर यहाँ आकर जब मैंने सारे बुझे हुए चेहरे देखे तो मुझे लगा भले ही मैं न रहूँ पर इन लोगों को जिंदगी की आखिरी सांस तक जीने की प्रेरणा तो दे ही सकती हूँ | शायद किसी का रोग टर्मिनल न हो , शायद किसी की जिजीविषा उसकी बिमारी पर भारी पड़ जाए | और अगर मरना भी हो तो जितने दिन मिले हैं उतने तो भरपूर जी कर मरा जाए |

                          प्रेरणा की बात सुन कर मिताली में साहस भर गया | उसने तय कर लिया की वो पूरे मनोबल के साथ इलाज़ करवाएगी | उसने भी खिलखिलाना शुरू किया | उसके चहकते ही बच्चे और विपुल् भी  चहकने लगे | पूरा घोंसला मीठे सुरों से गूंजने लगा | अबकी बार जब वो डॉक्टर के यहाँ गयी तो बेतरतीब , बदहवास सी नहीं | बल्कि करीने से तैयार हो कर … क्योंकि अब उसे जीवन की अंतिम सांस तक जीना जो था | और दूसरे मरीजों के लिए प्रेरणा  बनना था |

प्रेरणा अब नहीं है | पर उसकी दी हुई प्रेरणा एक मरीज से दूसरे मरीज में निरतंर जीजिविषा उत्पन्न  कर रही थी |

वंदना बाजपेयी 




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2 COMMENTS

  1. बहुत ही भावपूर्ण तथा प्रेरणास्पद कहानी… पढ़ते हुए तो ऐसा महसूस हो रहा था कि आपने मुझे ही कहानी का पात्र बना दिया हो!
    बधाई वंदना जी!

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