आकांक्षा

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आकांक्षा

फेसबुक पर स्क्रोल करते हुए किसी पोस्ट के कमेन्ट पर उसकी प्रोफ़ाइल पिक  दिखी | प्रोफाइल पिक देखते ही प्रतीक  का मन खुश हो गया | कितनी सुन्दर है बिलकुल परी की तरह | झट से उसकी वाल पर पहुँच गया | वहाँ  सिर्फ तसवीरें ही तसवीरें थी | एक से बढ़कर एक |  उसके मुँह से बस एक ही शब्द निकला … माशा अल्लाह और झट से फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दी | उसके आश्चर्य  का ठिकाना न रहा जब वो  रिक्वेस्ट स्वीकार भी हो गयी | केवल  दो म्यूच्यूअल फ्रेंड्स | एक पल को मन संशय में पड़ा ,आखिर उसमें ऐसा खास क्या है जो  उसने उसे मित्र सूची में शामिल किया ? फिर अगले ही पल अपनी प्रोफाइल पिक पर नज़र डाल कर मन ही मन बोला , ” माना हो तुम बेहद हँसी , ऐसे बुरे हम भी नहीं , जरूर उसे भी 21 साल के गबरू जवान में कुछ  तो खास दिखा होगा   और ऊपर से उसने जो इधर ऊधर से कॉपी किये  मानवता भरे  शेर लिख रखे  हैं अपनी वाल पर  उन्होंने ही शायद उसे ” हार्मलेस ” की श्रेणी में रखा होगा | खैर जो भी हो उसे ख़ुशी थी कि तीर निशाने पर लग चुका था |

                             मन तो उसका पहले ही दिन से उससे बात करने का था पर कुछ दिन अच्छे बने रहने का नाटक करने के बाद उसने अपनी योजना पर काम करते हुए good morning का एक खूबसूरत मेसेज भेज दिया | आकांक्षा का भी रिप्लाई आ गया | अब तो प्रतीक की ख़ुशी का ठिकाना न रहा | उसे बात करने का सूत्र मिल गया | पहले राजनीति से शुरू हुई बातें आगे बढ़ते हुए घर -गृहस्थी से होती हुई वहां तक पहुँचने लगी जो उनके लिए वर्जित क्षेत्र था |

फेसबुक की दोस्ती 

प्रतीक जो अभी तक  मानवता  भरे शेर पोस्ट करता था अब उसमें हुस्न के चर्चे होने लगे | ये शेर वो खुद ही लिखता था | इश्क  सबको शायर बना देता है | कुछ खास शेर वो आकांक्षा को इनबॉक्स कर देता | आकांक्षा की स्माइली उसका पूरा दिन बना  देती | धीरे से फोन नंबर एक्सचेंज हुए और आपस में घंटों बातें होने लगीं |  अब उसे आकांक्षा के बारे में सब पता था | उसे लगता था था जैसे वो दोनों एक दूसरे को जन्मों से जानते हैं | आकांक्षा ,एक उच्च शिक्षित   अच्छे परिवार की लड़की थी , जिसके पिता की मृत्यु हो चुकी थी , अब वो  सौतेली माँ के द्वारा सताई जा रही थी | प्रतीक का मन आकांक्षा के दुःख सुन कर भर जाता | उसे लगता कि वो कैसे आकांक्षा को अपनी सौतेली माँ की कैद से मुक्त कराये |

इसके लिए वो अपनी दोस्ती को अगले लेवल पर ले जाना चाहता था | उसने आकांक्षा से मिलने का आग्रह किया |आकांक्षा ने उसे अपने शहर   आने का न्यौता दे दिया |

प्रतीक की ख़ुशी का कोई ठिकाना न था | वो सोच रहा था कि अगर आकांक्षा ने हाँ  कर दी तो वो माँ को  शादी के लिए मना लेगा | बहुत सारे रंगीन सपने देखते हुए वो आकांक्षा के शहर पहुँचा |

आकांक्षा को फोन कर मिलने का स्थान पूंछा | आकांक्षा ने कहा कि वो होटल में मिलेंगे क्योंकि वो अभी घर और मुहल्ले में सीन क्रीयेट  नहीं करना चाहती हैं | प्रतीक ने उसकी बात मान ली | वो दीवानों की तरह अपना सामन ले होटल पहुँचा | होटल किसी छोटी बस्ती में था | बजबजाती नालियों और कूड़े के ढेर से आती दुर्गन्ध  ने उसे रोकने की कोशिश तो की पर वह  आकांक्षा से मिलने की आस में आगे बढता गया | होटल मेनेजर से बात करने पर उन्होंने उसे  रूम नंबर 118 में भेज दिया | वहां आकांक्षा उसका इंतज़ार कर रही थी |  अपने दिल की धडकनों पर काबू करते हुए प्रतीक  कमरे में पहुँचा | आकांक्षा दरवाजे के पीछे खड़ी  थी | उसके अन्दर आते ही उसने दरवाजा बंद कर दिया | मद्धिम रोशिनी में वो आकांक्षा को ठीक  से देख भी न पाया कि आकांक्षा उसका हाथ पकड़ कर बिस्तर की और ले गयी और बोली , ” पहले बातें  करोगे या .. | प्रतीक को इस या का अर्थ समझ नहीं आया उसने आकांक्षा से कहा ,  ” लाइट जलाओ आकांक्षा मैं तुम्हें जी भर के देखना चाहता हूँ |

घरेलु पति

आकांक्षा ने लाईट जला दी | कमरा सतरंगी रोशिनी से नहा गया | आकांक्षा पीठ  करे खड़ी थी | पीले रंग का लिबास में वो उसे बेडौल लगी | तभी आकांक्षा ने मुँह उसकी तरफ किया | प्रतीक को ऐसा लगा जैसे सारी  रोशिनी बुझ गयी हो | नहीं … ये वो आकांक्षा नहीं हो सकती | फोटो में तो परी सी लगती थी | एक नहीं हजारों फोटो देखी  हैं उसने | हालांकि चेहरा तो वही है … पर, ये दाग , धब्बे ये झाइयां ये निस्तेज आँखें  ? उस की  पेशानी पर तनाव देख कर आकांक्षा जोर से हँसते हुए बोली ,क्यों बदली हुई लग रही हूँ ?  अरे ये तो   आधुनिक सेल्फी कैमरे का कमाल है | किसी को भी सुन्दर दिखाया  जा सकता है | पर तुम परेशान क्यों होते हो , तुम्हे जो चाहिए वो मिलेगा कहते हुए वो अपने गाउन के फ्रंट बटन खोलने लगी |

प्रतीक पसीने -पसीने हुआ जा रहा था | उसे रोकते हुए बोला , ” नहीं -नहीं मुझे ये सब नहीं चाहिए | मैं तो … मैं तो … मेरे साथ धोखा हो गया है | धोखा -वोखा हम नहीं जानते , हम तो अपना धंधा जानते हैं | क्या आदमी है रे तू |  देवांश  को देखो , वो भी तो अक्सर मेरी फोटो पर कमेन्ट करता था , दोस्ती की , परसों बुलाया …. मेहताना के साथ बख्शीश भी दे कर गया | फिर आने का वादा भी किया | अपुन काम ही ऐसा करते हैं , पूरी जान डाल देते हैं |

प्रतीक रुमाल से पसीना पोंछते हुए बोला ,  ” नहीं , नहीं , मैं इतनी दूर इसलिए नहीं आया था | तो किसलिए आया था … आकांक्षा बीच में ही बात काटते हुए बोली , देखो मुझे कोई टनटा  नहीं चाहिए तुम जिस लिए भी आये हो, न आये हो | मुझे पूरा पैसा चाहिए , आकांक्षा ने हथेली फैलाते हुए इशारा किया और बिस्तर पर जा कर लेट गयी | थोड़ी ही देर में उसके खर्राटों से कमरा गूंजने लगा |

प्रतीक कमरे के एक कोने में  कुर्सी पर बैठा अपनी बदहाली पर मन ही मन आँसू बहता रहा | वो क्या सोच कर आया था और क्या हो गया | उसने सुना था कि फेसबुक पर कॉल गर्ल्स का रैकेट भी है पर वो इसकी गिरफ्त में आ जाएगा | माँ कितना कहती थी पढाई में ध्यान लगा , इन लड़कियों के चक्कर में कुछ नहीं होने वाला है | वो ही अपना कैरियर दाँव पर लगा कर दिन रात फेसबुक पर लड़कियों के पीछे अपना समय बर्बाद कर रहा था |तभी आकांक्षा की प्रोफाइल दिखी और वो उसे एक अच्छी लड़की समझ कर प्यार कर बैठा |


सोल मेट

 माँ से कह कर कि वो पढ़ रहा उसे डिस्टर्ब न करना , वो घंटों आकांक्षा से प्यार की बातें करता | फेसबुक पर पल -पल उसके आने का इंतज़ार करता | उसे बाबूजी का चेहरा दिखाई देने लगा जो लोन ले कर उसकी फीस भर रहे हैं , माँ उसकी अच्छी नौकरी के लिए कितने व्रत कर रहीं हैं और वो … वो सब से बगावत करने को तैयार था , आकांक्षा को पाने के लिए … पर इस तरह से तो नहीं पाना चाह था उसने उसे |   उसने फैसला कर लिया अब वो लड़कियों के पीछे नहीं भागेगा , मन लगा कर पढाई करेगा , माँ के दिखाए रास्ते पर चलेगा , जिस प्रेम की तलाश में वो भटक रहा है वो तो सच्चे रिश्तों में है ….इस भटकाव में नहीं |

 सुबह  हो चुकी थी | आकांक्षा  उठी तब तक  प्रतीक  टेबल पर पैसे रख कर जा चुका था | अब उसे जिसको पाने की आकांक्षा थी वो  कोई लड़की नहीं ,  सफलता थी |

वंदना बाजपेयी

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उसके बाद


ममता


वक्त की रफ़्तार




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