कर नहीं तो डर नहीं

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कर नहीं तो डर नहीं

कितना आसन होता है किसे औरत के दामन पर दाग लगा देना | औरतें अक्सर ऐसे इल्जामों के बाद डर कर बैठ जाती हैं , पर राधा उन औरतों में से नहीं थी उसका कहना था ” कर नहीं तो डर नहीं ” | राधा के लिए ये हिम्मत दिखाना आसान नहीं था जबकि मायके और ससुराल में उसका साथ देने वाला कोई नहीं था |

कहानी -कर नहीं तो डर नहीं 

 करीब 25 -30 साल पहले की बात है |   जिला कानपुर के गाँव सह्जौरा के गिरिजा शंकर पांडे जी के चौथे लड़के के पोते का मुंडन था | काम काज का घर था |अफरा तफरी मची थी |जौ किन्ने रख दौ , वो कहाँ रख दौ की पुकार मची थी | घर के  सभी लड़के इधर -उधर दौड़ रहे थे पर घर में चार -चार बहुए होते हुए भी तीसरे नंबर की बहु ही काम करती नज़र आ रही थी | देवेन्द्र पांडे की पत्नी राधा तीसरे नंबर की बहु थी | दो -दो जेठानियाँ और एक देवरानी के होते हुए भी घर का सारा काम उसके ऊपर था | होता भी क्यों न , सब के सब मायके सम्पन्न  थे | एक  वही गरीब घर की थी , उस पर माँ सौतेली | कहते हैं जब माँ दूसरी हो तो बाप तीसरा हो जाता है | माँ -पिता का बस इतना कर्तव्य था की उसे ब्याह दे और उऋण हो जाए | ब्याहने के बाद उन्हें कोई मतलब ही नहीं था कि वो ससुराल में कैसे रहती है | पिताजी कभी तीज त्यौहार पर आते भी तो ससुर जेठ से मिलकर चले जाते | कोई कहता भी की बिटिया से मिल लो तो कहते , ” जब घर ऐहेये , तबही मिलिहें , अबैय तो आप लोगन की कुशल समाचार पूछही की खातिर आए हैं |न उसका मायके जाने  मौका आता न ही मुलाक़ात होती |

     इस बात से राधा के   पिताजी की तो इज्ज़त भले ही बढ़  जाती पर घरमें सबको समझते देर न लगती कि राधा की मायके में कोई इज्ज़त नहीं है |  सौतेली माँ के डर से  पिता भी बेटी से बात करने से कतराते हैं | बुढ़ापे में भाग्य से जवान बीबी मिली है उसे खुश रखे या बिटिया को | जाहिर है बीबी का पलड़ा भारी हो जाता |

राधा ने भी इसे अपनी किस्मत समझ लिया था |  कोई शिकायत नहीं थी | ससुराल में दौड़ -दौड़ सबका काम करती | भगवान् ने देह भी बहुत फुर्तीली दी थी | चिड़िया सी फुदकती रहती | कभी कोई काम में कमी भी निकलता तो हँस कर  टाल देती , ” अपने ही तो है , कह दिया तो कह दिया  “|

क्योंकि राधा सबका काम करती थी तो उसको थोडा बहुत प्यार मिल ही जाता था | कम से कम मायके से तो ज्यादा ही मिलता था |

 वो इसी में खुश थी |

      पाण्डेय कुनबा बहुत पैसे वाला नहीं था |  वैसे ही  घर में थोड़ी तंगी थी ऊपर से विधि की मार गिरिजा शंकर पाण्डेय जी को लकवा मार गया | सेवा तो राधा के हिस्से में आई पर इलाज का खर्चा बढ़ जाने से बजट बिगड़ने लगा | कटौती खाने -पीने में भी हुई | राधा अपने हिस्से की दाल-सब्जी  भी पति और जेठ को खिला देती | खुद सूखी रोटी से सब्र कर जाती | देह सूखने लगी | पर उसने उफ़ तक न की | वैसे ही हँस कर काम करती रहती | बड़े जेठ को जब बात पता चली तो उन्हें भय हुआ बीमार पड़ गयी तो पिताजी व घर का काम कौन करेगा | आफत आ जायेगी |

दिमाग दौड़ाया | पति देवेन्द्र पांडे हाज़िर किये गए |

  अतरिक्त आय के लिए ये फैसला हुआ कि रसोई  के पास वाला कमरा किराए पर उठा दिया जाए | हाँ  ये जरूर तय हुआ था कि दिया किसी ब्राह्मण को ही जाए | कहीं मीट  -माँस खाने वाला हुआ तो घर का धर्म भ्रष्ट होगा | लेकिन ब्राह्मण किरायेदार मिलना मुश्किल था | अव्वल तो ब्राह्मणों के पास किराया देने का पैसा होता नहीं , ऊपर से कंजूसी खून में मिली हुई होती है | गाँव से शहर नौकरी करने आने वाले अपने किसी रिश्तेदार के घर ही टिक जाते , किट -किट होती रहे तो क्या  शहर पैसा जोड़ने आये हैं , लुटाने नहीं | गिरिजाशंकर के बेटे भी तो जब गाँव से आये थे तब रिश्तेदारों के यहाँ ही टिके थे , मान -अपमान सब सहा पर हिले नहीं | जब चार पैसे जोड़ कर एक कच्चे -पक्के घर का इंतजाम कर लिया तभी रिश्तेदार का घर छोड़ा | खैर राम -राम कर के एक किरायेदार मिला |

नया किएराए दार जीवन चतुर्वेदी गाँव से आया था | अभी अकेला ही था , हालांकि ब्याह पक्का हो गया था | एक कारखाने में नौकरी करता था | सुबह ९ -१० का गया , देर रात लौटता | जवान उम्र थी नींद जल्दी खुलती नहीं थी | ऊपर से खुद का भोजन बनाना | पंडित जो ठहरा , बाहर का खाना खाता  नहीं था | आलम ये था कभी दाल जलती कभी चावल , कभी दोनों ऐसे बनते कि काग़ज़ की नाव तैरा  लो |

राधा रसोई से देखती  तो उसका दिल आद्र हो उठता | इतनी मेहनत करता है बनाने वाली कोई है नहीं | जल्दी ब्याह काहे नहीं कर लेता , बनी बनायी खाने को मिलेगी |

एक दिन राधा रसोई के बाहर बैठ  जूठे बर्तन मल  रही थी | तभी जीवन आ गया | उसके हाथ में जला हुआ पतीला था | राधा की ओर देख कर बोला , ” भाभी  थोड़ी राख  मिलेगी  , आज  पतीला ज्यादा ही जल गया है , कालिख छूट नहीं रही  | राधा ने उसके चेहरे पर बेचारगी देख कर  कहा , देवर जी , यहीं रख दीजिये , हम धो देंगे | उम्र में छोटे हैं आप हमसे | काहे परेशान  होंगे, ये आदमियों के काम नहीं  | जीवन ने पतीला वहीँ रख दिया |

जीवन शाम को लौटा तो पतीला हीरे सा चमक रहा था | ये तो नए से भी ज्यादा चमक रहा था |  झट से राधा को धन्यवाद देने पहुँच गया |

राधा हंस कर बोली , ” काहे  धन्यवाद देते हैं देवर जी , ये कोई बड़ा काम थोड़ी ही है |औरत का जन्म तो काम करने की खातिर ही हुआ है | एक पतीला और मांज दिया तो का फर्क पड़ता है |

अरे नहीं भाभी , “हम जानते  हैं आप  आप बहुत कमेरी हैं | किरायेदार हूँ तो क्या हुआ देखता तो रहता हूँ आप दिन भर अकेले सारा काम करतीं हैं उस पर मेरे बर्तन भी धोये | इस बात की परवाह किये बैगैर की आप के परिवार वाले छोटी सोच के हैं  , पता नहीं क्या -क्या बात बनाए |

राधा फिर हंसी , ” क्या देवर जी ,ई तो इंसानियत की खातिर | हमारी अम्माँ समझाया करती थीं | आदमी  के काम ही न आये तो जीना ही बेकार है |  फिर आप तो मेरे छोटे भाई जैसे हैं | कोई काहे कुछ कहेगा | फिर भी ऐसी बातों के लिए  हम तो इतना जानते हैं कि “कर  नहीं तो डर नहीं” |

जीवन की हिम्मत थोड़ी बढ़ गयी | एक दिन राधा से बोल उठा , ” भाभी सबका खाना बना कर अपनी ही बटलोई में थोड़ी दाल , चावल उबाल दिया करो , मुझसे ठीक से बनती नहीं | कच्चा -पक्का खा कर सेहत बिगड़ रही है | काम नहीं करूँगा तो  गृहस्थी कैसे चलेगी ? गृहस्थी तो छोड़ो , शादी कैसे होगी | बस इतनी मदद कर दो  फिर देखना जब ब्याह  के बाद हमारी घरवाली आएगी तो तुम्हारी कितनी सेवा करवाएंगे |

ठीक है , ठीक है देवर जी , हम भी देखेंगे कितनी सेवा करवाओगे ? कह राधा मुस्कुरा देती |

जीवन 10 किलो दाल -चावल खरीद कर राधा को दे गया | अब  अपने घर परिवार की  दाल -चावल बना कर रोज जीवन के लिए दाल -चावल बनाना राधा का कर्तव्य हो गया | राधा को इसमें संतोष मिलता | किसी मनुज की मदद करने का संतोष , वही जो  उसकी अम्माँ ने सिखाया था | कभी -कभी आसमान की तरफ देख कर राधा खुद से बडबडाती , ” अम्माँ , ” देखो तुम्हार बिटिया घर -परिवार , सास ससुराल सब का ठीक से संभल रही है और एक  मनुज की भी मदद कर रही है  ” | ऐसा कह कर राधा को बहुत संतोष हो जाता कि उसकी माँ उसके साथ है |

जीवन आता  , दाल -चावल ले के चला जाता | कभी राधा ही घर के किसी बच्चे के हाथ से भिजवा  देती | ज्यादा बातचीत उन दोनों के बीच नहीं होती थी |

शुरू में तो किसी ने कुछ  नहीं कहा,  किराया जो मिल रहा था | धीरे -धीरे जेठानियों के बीच कानाफूसी होने लगी … ” कुछ तो है , जो दाल के साथ पक रहा है | ” ताने उलाहने दिए जाने लगे |

रसोई से जीवन का कमरा दूर नहीं था | उसे भी भनक लग ही गयी | अगले दिन उसने राधा के पास जा कर दाल-चावल  बनाने से मना  कर दिया |

काहे देवर जी , जो कहा हमसे कहा , आप क्यों दिल पर लेते हैं | उनकी सोच नीच है तो हम का करें , हमने तो पहले ही कह दिया था ” कर नहीं तो डर नहीं “|  सर का पल्ला सँभालते हुए राधा ने कहा |

पर भाभी , जीवन कुछ कह पाता  उससे पहले राधा ने दाल- चावल  का पतीला आगे कर दिया |

देवरानी पास ही खड़ी थी | उसे लगा गज़ब औरत है , मायके में कोई खैरख्वाह नहीं तब भी समाज का डर नहीं , इसे तो सीधा करना ही पड़ेगा , कल को कोई ऊँच -नीच हो गयी तो ? उस ने सारी  बातें नमक मिर्च लगा कर जेठ-जेठानी  को बता दी | सुनते ही जेठ आग बबूला हो गए | शाम को जैसे ही राधा का पति  घर आया उन्होंने उसे बुला कर कहा , ” जरा ठोंक पीट कर अपनी पत्नी  को समझा दो , ये भले लोगों क घर है, यहाँ ये सब शोभा नहीं देता |   पराये मर्द से मुँह लगाए फिरती है , उसकी सेवा -टहल करती है |  अभी बात घर के अन्दर है , कल को बाहर जायेगी | ये इश्कबाजी यहाँ चलेगी नहीं |

जेठ का सारा गुस्सा पति की आँखों  में उतर आया | सीधा कमरे में जाकर  बेल्ट उतार  कर राधा की चमड़ी उधेड़ दी | राधा , “हमने कुछ नहीं किया , हमने कुछ नहीं किया ” की गुहार लगाती रही पर पति का गुस्सा उसे अधमरा कर के ही उतरा | दूसरे दिन कमरे में ही पड़ी रही | शरीर से ज्यादा चोट आत्मा पर थी | पहली बार उसने भाग्य को कोसा | मायके में कोई होता तो क्या ये लोग यूँ जानवर की तरह पीट पाते |  या औरत का शरीर ही ना मिला होता , भगवान् चिड़िया , कौव्वा कुछ भी बना देता तो इस तरह बिला वजह अपमानित तो न होना पड़ता |

अगले दिन हिम्मत कर के रसोई में पहुंची | घर का खाना  बना , दाल -चावल बना कर जीवन के कमरे में स्वयं गयी | आज पहली बार जीवन में कमरे में गयी थी  | उसे देख जीवन सकपका गया | जीवन ने उसकी पिटाई की खबर  सुनी थी पर उसके हाथों व् मुंह में नीले साये देखकर उसकी आँखे भर आयीं  | आँसू पोंछते  हुए बोला , ” भाभी हमने मना  किया था ना , पर आप ने ही ये कह कर बात काट दी  कि ” कर नहीं तो डर  नहीं ” देखिये कितना मारा आपको , कसाईं  की तरह | अब हम ये कमरा खाली कर देंगे | तब तक आप दाल-चावल  ना बनाना हमारे लिए |

ये मार उस मार से ज्यादा गहरी है देवर जी  , राधा धीरे से बोली |

क्या मतलब भाभी , जीवन ने आश्चर्य से पूंछा |

देवर जी मैं रोज ऐसे ही दाल-चावल  बनाउंगी आपके लिए | मैंने वादा किया था आपसे , आपका ब्याह होने तक छोटे भाई की तरह आप का भोजन का इंतजाम मेरा रहेगा ”  मैं अपने वचन से कैसे  फिर जाऊं  | मैंने पहले ही कहा था ना, ” कर नहीं तो डर नहीं “जब मेरी और आपकी आत्मा पवित्र है तो इलज़ाम लगाने वाले चाहे जो कहें जितना मारे … शरीर को ही तो चोट देंगे , आत्मा को नहीं | लेकिन अगर आप चले गए या मैंने दाल-चावल  बनाना छोड़ दिया तो ये सिद्ध हो जाएगा की कुछ तो गलत था जो मार कर ठीक कर दिया | ये घाव आत्मा पर होगा जो कभी नहीं भरेगा | माना की मेरा कोई नहीं है पर मैं इतनी कमजोर नहीं हूँ देवर जी कि मार के डर से उनके झूठ को सच  बना दूँ |

ये मेरा युद्ध है , देर सवेर मेरी सच्चाई साबित हो ही जायेगी | 

कह कर राधा चली गयी | जीवन उसके साहस के आगे नतमस्तक  हो गया | राधा दाल -चावल बनाती रही , पिटती रही, पति -पत्नी में बातचीत बंद थी | देवेन्द्र पाण्डेय जितनी देर उससे बोलते पीटने में ही बोलते | देवारी , जेठानी उससे काम तो करवाती पर पास बैठने न देतीं जैसे वो कोई अछूत हो | वो हर दर्द सहती  पर हर बार इल्जाम लगने पर उसका ये ही कहना होता ” कर नहीं तो डर नहीं” |

जीवन अपरोक्ष रूप से उसके इस युद्ध में साथ था | वो जानता था कि घर के लोग जानते हैं कि राधा ने कुछ किया नहीं है , फिर भी वो उसे अपनी अहमियत और उसकी औकात दिखाने के लिए सता रहे हैं | जब  राधा संघर्ष कर रही है तो वो कैसे घर छोड़ के जा सकता है | वैसे भी किराए की वजह से उससे सीधे कोई घर छोड़ने को कहेगा नहीं | हालांकि उसकी आत्मा चीत्कारती कि कब तक यह चलेगा | वो कारखाने से छुट्टी  लेकर महीने भर के लिए  गाँव चला गया |

महीने भर बाद जीवन का ब्याह हो गया | वो अपनी पत्नी ज्योति को लेकर घर आया | राधा ने आरती उतार  कर गृह प्रवेश कराया  ज्योति ने राधा के पाँव  छू  कर आशीर्वाद लिया |

अब राधा जीवन के लिए  दाल-चावल  नहीं बनाती थी | जीवन के लिए ज्योति ही पूरी रसोई बनाती थी |  ज्योति को जीवन ने सब बता दिया था  | ज्योति के मन में राधा के लिए बहुत इज्ज़त थी | वो हर दिन पूजा के बाद राधा के पाँव छूती | राधा मना करती तो कहती , छूने दो जीजी , ये सिर्फ जेठानी के आशीर्वाद के लिए नहीं करती हूँ | आप की हिम्मत के लिए झुकती हूँ जो आपने दिखाई है | राधा हँस कर उसे गले लगा कर कहती , हिम्मत ही तो दिखानी  हम औरतों को , मैने तो शुरुआत की है | ज्योति  और राधा में  अपनापन बढ़ते देख जेठानियों  के बीच खुसुर -पुसुर भी बंद हो गयी थी | सब कहने लगीं , हमीं   ने गलत समझा था, इसके और जीवन के बीच तो कुछ था ही  नहीं  |

देवेन्द्र पाण्डेय  को भी लगने लगा बेकार ही डांटा -मारा  ये तो निर्दोष है | उस रात कई दिन बाद वो राधा के लिए गजरा  ले कर आया , उसके आगे रख कर बोला , ” राधा हमी गलत समझे थे , तू तो हमारी ही है तन से भी और मन से भी |  राधा गजरे का मतलब खूब समझती थी | इसीलिए उसने भी रात को पति के दूध में बादाम पीस कर डाल  दी | एक बार फिर वो स्वीकार्य थी | वो पूनम की रात थी और जाने कितनी अमावसों का अँधेरा दूर करके उसके जीवन में चांदनी फिर से झिलमिला उठी थी |

 राधा निर्दोष साबित हो गयी थी |

निर्दोष साबित हो गया था वो वाक्य जिस पर स्त्री स्वाधीनता संघर्ष की अनाम योद्धा  राधा को अटूट विश्वास था जिसका हाथ थाम  कर उस अनाथ ने इतना साहस किया था …

   ” कर नहीं तो डर नहीं “


वंदना बाजपेयी 


फाउंडर ऑफ़ अटूट बंधन .कॉम 

लेखिका









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4 COMMENTS

  1. शुरू से अंत तक शब्दों और भावों ने जकड़कर रखा मन को, कौतूहल हर पंक्ति में बढ़ता ही जा रहा है। मन में कई बार आया कि प्रेमचंद जी की कहानी पढ़ रहा हूँ। सच कहें तो घटनाक्रम को इतने बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत किया है आपने कि कहानी मन-मस्तिष्क पर छा गयी।
    (आपके कथनानुसार यह सच्ची घटना लग रही है, लेकिन अंतर्मन कमजोर होने के कारण मैं इसे कहानी से परिभाषित कर रहा हूँ, अन्यथा मत लिजिएगा।)
    पुरूष प्रधान समाज में स्त्री को कपने अस्तित्व के लिए भी लड़ना पड़ता है, वह भी इस वक्त जबकि हम अपनेआप को सभ्य औल आधुनिक समझते हैं, शर्मनाक बात है।😕
    आपको इस अनुपम कृति के लिए ढेरों शुभेच्छाएँ आदरणीया।💐💐💐

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