मेकअप

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मेकअप

हमारा व्यक्तित्व बाह्य और आंतरिक रूप दोनों से मिलकर बना होता है | परंतु लोगों की दृष्टि पहले बाह्य रूप पर ही पड़ती है | आंतरिक गुण दिखने के लिए भी कई बार बाह्य मेक अप की जरूरत होती है |

लघु कथा -मेकअप 

विद्यापति जी की  शुरू से धर्म आध्यात्म में गहरी रूचि थी |  अक्सर मंदिर चले जाते और पंडितों के बीच बैठ कर धर्मिक चर्चा शुरू कर देते | धर्म धीरे -धीरे अध्यात्म की ओर बढ़ गया | मानुष मरने के बाद जाता कहाँ हैं , कर्म का सिद्धांत क्या है ? क्या ईश्वर में सबको संहित होना है आदि प्रश्न सर उठाने लगे | अब ये प्रश्न तो मंदिर  की चौखट के अन्दर सुलझने वाले नहीं थे | सो देशी -विदेशी सैंकड़ों किताबें पढ़ डाली | घूम -घूम कर प्रवचनों का आनंद लेते | कई लोगों की शागिर्दगी करी |ज्ञान बढ़ने लगा |

                           और जैसा की होता आया है जब कुछ बढ़ जाता है तो बांटने का मन होता है | विद्यापति जी का भी मन हुआ कि चलो अब ये ज्ञान बांटा जाए | लोगों को समझाया जाये की जीवन क्या है | आखिर उन्होंने जो इतनी मेहनत से हासिल किया है उसे आस -पास के लोगों को यूँ हीं दे दें , जिससे उनका भी उद्धार हो |

वैसे भी वो चेला ही क्या जिसकी गुरु बनने की इच्छा ही न हो | 

उन्होंने ये शुभ काम मुहल्ले के पार्क से शुरू किया | जब भी वो कुछ बोलते चार लोग उनकी बात काट देते | कोई पूरी बात सुनने को तैयार ही नहीं था | यहाँ तक की अम्माँ भी घर में उनकी बात सुनती नहीं थीं |

विद्यापति जी बड़े परेशान  हो गए | बरसों के ज्ञान को घर में अम्माँ चुनौती देती तो बाहर  पड़ोस के घनश्याम जी | बस तर्क में उलझ कर रह जाते | अहंकार नाजुक शीशे की तरह टूट जाता और वो टुकड़े मन में चुभते रहते |

मन में ‘मैं ‘ जागृत हुआ | मैंने इतना पढ़ा फिर भी मुझे कोई नहीं सुनता |किसी को कद्र ही नहीं है | वही बात टी वी पर कोई कहे तो घंटों समाधी लगाए सुनते रहेंगें |

वो तो मन से भी आध्यात्मिक हैं फिर कोईक्यों नहीं सुनता | 

पत्नी समझदार थी | पति की परेशानी भाँप गयी , बोली ,  ” सारा दोष आपके मेकअप का है , ये जो आप ब्रांडेड कपडे पहन कर टाई लगा कर और पोलिश किये जूते चटकाकर ज्ञान बांटते हो तो कौन सुनेगा आपको | लोगों को लगता है हमारे जैसे ही तो हैं फिर क्या बात है ख़ास जो हम इन्हें सुने | थोडा मेकअप करना पड़ेगा … हुलिया बदलना पड़ेगा |

बात विद्यापति जी को जाँच गयी | अगले दिन सफ़ेद धोती -कुरता ले आये | एक झक सफ़ेद दुशाला और चार -पांच रुद्राक्ष की माला भी खरीद  ली |दाढ़ी -बाल बढाने  शुरू हो गये  |

कुछ दिन बाद पूरा मेकअप करके माथे पर बड़ा तिलक लगा कर निकले तो पहले तो माँ ही सहम गयीं , ” अरे ई तो सच्ची में साधू सन्यासी हो गया | उस दिन माँ ने बड़ी श्रद्धा से उनके मुंह से रामायण सुनी |

विद्यापति जी का आत्मविश्वास बढ़ गया | 

घर के बाहर निकलते ही चर्चा आम हो गयी | विद्यापति जी बड़े ज्ञानी हो गए हैं | साधारण वस्त्र त्याग दिए | हुलिया ही बदल लिया , अब ज्ञान बांटते हैं |

आज पार्क में भी सबने उन्हें ध्यान  सुना |

धीरे -धीरे पार्क में उन्हें सुनने वालों की भीड़ बढ़ने लगी |

आज विद्यापति जी के हाथों में भी रुद्राक्ष  की मालाएं  लिपटी होती हैं , पैरों में खडाऊं  आ गए हैं …. अब उन्हें सुनने दूसरे शहरों  से भी लोग आते हैं |

नीलम गुप्ता

* मित्रों हम जो भी काम करें उसके अनुरूप परिधान होने चाहिए | उसके बिना बिना हमारी बात का उतना प्रभाव नहीं पड़ता | फिल्मों में भी किसी चरित्र को निभाने से पहले उसके गेट अप में आना पड़ता है |असली जिंदगी में भी यही होता है | आप जो भी करे आप के वेशभूषा उसी के अनुरूप हो |

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3 COMMENTS

  1. हाँ प्रथम दृष्टि मेंं वेशभूषा पर ही ध्यान जाता है।
    जो दिखता है वो बिकता है…यही कहावत चरितार्थ हो रही।
    सुंदर कहानी..👌

  2. बहुत सुंदर तरिके से आपने इस लेख मे समझाने का प्रयास किया जो वाकई बहुत ही सराहनिये है ।। इस लेख की जितनी प्रशंसा की जाये उतनी ही कम है ।।

  3. बिल्कुल सही कहा। इंसान के व्यक्तित्व पर वेशभूषा का बहुत प्रभाव पड़ता हैं। सुंदर प्रस्तूति।

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