हसीनाबाद -कथा गोलमी की , जो सपने देखती नहीं बुनती है

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अभी कुछ दिन पहले  गीताश्री जी का उपन्यास ” हसीनाबाद”  पढ़ा है  | पुस्तक भले ही हाथ में नहीं है पर गोलमी मेरे मन -मष्तिष्क  में नृत्य कर  रही है | सावन की फुहार में भीगते हुए गोलमी  नृत्य कर  रही है | महिलाओं के स्वाभिमान की अलख जगाती गोलमी नृत्य कर रही है , लोकगीतों को फिर से स्थापित करती गोलमी नृत्य कर  रही है | आखिर कुछ तो ख़ास है इस गोलमी में जो एक अनजान बस्ती में जन्म लेने के बाद भी हर पाठक के दिल में नृत्य कर  रही है | ख़ास बात ये  है कि गोलमी ” सपने देखती नहीं बुनती है”| गोलमी की इसी खासियत के कारण गीता श्री जी का ” हसीनाबाद”  खास हो जाता है |

हसीनाबाद -कथा गोलमी  की जो सपने देखती नहीं बुनती है 

लेखक  के दिल में कौन सी पीर उठती है कि वो चरित्रों का गठन करता है , ये तो लेखक ही जाने पर जब पाठक रचना में डूबता है तो लेखक के मन की कई परते भी खुलती हैं | जैसा की गीताश्री जी इस उपन्यास को राजनैतिक उपन्यास कहतीं है परन्तु एक पाठक के तौर पर मैं उनकी इस बात से सहमत नहीं हो पाती | ये सही है कि उपन्यास की पृष्ठभूमी राजनैतिक है परन्तु  गोलमी के माध्यम से उन्होंने एक ऐसा चरित्र रचा है जिसके रग -रग में कला बसी है | उसका नृत्य केवल नृत्य नहीं है उसकी साँसे हैं , उसका जीवन है …. जिसके आगे कुछ नहीं है , कुछ भी नहीं | हम सबने बचपन में एक कहानी जरूर पढ़ी होगी ,” एक राजकुमारी जिसकी जान तोते में रहती है ” | भले ही वो कहानी तिलिस्म और फंतासी की दुनिया की हो ,पर  कला भी तो एक तिलस्म ही है , जिसमें मूर्त से अमूर्त खजाने का सफ़र है | एक सच्चे कलाकार की जान उसकी कला में ही बसती है | उपन्यास के साथ आगे बढ़ते हुए मैं गोलमी  में हर उस कलाकार को देखने लगती हूँ जो कला के प्रति समर्पित है … हर कला और कलाकार के अपने सुर , लय , ताल पर नृत्य करते हुए भी एक एकात्म स्थापित हो जाता है | एक नृत्य शुरू हो जाता है , जहाँ सब कुछ गौढ़ है बस कुछ है तो साँस लेती हुई कला |

“हसीनाबाद “एक ऐसे बस्ती है जो गुमनाम है | यहाँ ठाकुर लोग अपनी रक्षिताओं को लाकर बसाते है ….ये पत्नियाँ नहीं  हैं,न ही वेश्याएं हैं | धीरे-धीरे  एक बस्ती  बस जाती है दुनिया के नक़्शे में गायब ,छुपी जिन्दा बस्ती , जहाँ रक्स की महफिलें सजती है | दिन में उदास वीरान रहने वाली बस्ती रात के अँधेरे में जगमगा उठती है और जगमगा उठती है इन औरतों की किस्मत | इस बस्ती के माध्यम से गीता जी देह व्यापार में  जबरन फंसाई गयी औरतों की घुटन ,  दर्द तकलीफ को उजागर करतीं   हैं | अपने -अपने ठाकुरों की हैसियत के अनुसार ही इन औरतों की हैसियत है परन्तु बच्चों के लिए शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है ये भले ही अपने ठाकुरों के प्रति एकनिष्ठ हो पर इनकी संतानें इसी बस्ती की धुंध में खो जाने को विवश हैं | उनका भविष्य  तय है …लड़कियों को इसी व्यापर में उतरना है और लड़कों को ठाकुरों का लठैत  बनना है | यूँ तो हसीनाबाद साँसे ले रहा है पर उसमें खलबली तब मचती है जब इस बस्ती पर दुनिया  की निगाह पड़ जाती है नेताओं की दिलचस्पी इसमें जगती है क्योंकि ये एक वोट बैंक है |  ठाकुरों की कारिस्तानी को छुपाने के लिए ठाकुरों के बच्चों के बाप के नाम के स्थान पर ठाकुरों के नौकरों का नाम लिखवाया जाने लगता है |

नायिका गोलमी की माँ सुंदरी जो कि ठाकुर सजावल सिंह  की रक्षिता है | ठाकुर से ही उसके दो बच्चे हैं एक बेटी गोलमी और बेटा रमेश | यूँ तो सुन्दरी को ऐश आराम के सारे साधन प्राप्त हैं पर उसके अंदर एक घुटन है …. एक स्त्री जो अपने पति के नाम के लिए तरसती है , एक माँ जो अपनी बेटी के इस देह व्यापार की दुनिया में  जिन्दा दफ़न हो जाने के आगत भविष्य से भयभीत है दोनों का बहुत अच्छा चित्रण गीता श्री जी ने किया है | इसी बीच जब नन्हीं गोलमी  मन में नृत्य का शौक जागता है तो वो सुंदरी के मनोवैज्ञानिक स्तर पर गयीं हैं और उन्होंने यहाँ शब्दों के माध्यम से  एक माँ का मनोविज्ञान को जिया है जो अपनी बेटी को किसी भी हालत में एक रक्षिता नहीं बनाना चाहती है | इसके लिए वो हर ऐश आराम की कुर्बानी देने को तैयार है | यहाँ तक की अपने कलेजे के टुकड़े अपने बेटे को भी छोड़ने को तैयार है | वो मन कड़ा कर लेती है कि उसका बेटा कम से कम लठैत  बन जाएगा | उसकी गोलमी जैसी  दुर्दशा नहीं होगी |

मौके की तलाश करती सुंदरी को भजन मंडली के साथ आये सगुन महतो में अपनी मुक्ति का द्वार दिखता है | वो गोलमी को ले कर सगुन महतो के साथ हसीना बाद  छोड़ कर भाग जाती है | सगुन महतो की पहले से ही शादी हो चुकी है उसके बच्चे भी हैं | थोड़े विरोध के बाद मामला सुलझ जाता है | सगुन महतो सुंदरी के साथ अपना घर बसाता है | यहीं अपने दोस्तों रज्जो , खेचरु और अढाई सौ  के साथ गोलमी  बड़ी होती है | बढ़ते कद के साथ बढ़ता है गोलमी  का नृत्य के प्रति दीवानापन | सुन्दरी की लाख कोशिशों के बावजूद गोलमी छुप-छुप  कर नृत्य करती है | जिसमें उसका साथ देती है उसकी बचपन की सखी रज्जो , उसका निश्छल मौन प्रेमी अढाई  सौ और आशिक मिजाज खेचरू | इन सब के साथ गाँव की पृष्ठ भूमि , आपसी प्रेम , संग -साथ के त्यौहार ,छोटी -छोटी कुटिलताओं को गीता श्री जी ने बखूबी प्रस्तुत किया है |क्योंकि गोलमी यहीं बड़ी होती है , इसलिए उसके व् उसके दोस्तों के मनोवैज्ञानिक स्तर पर क्या -क्या परिवर्तन होते हैं इसे भावनाओं के विस्तृत कैनवास पर बहुत खूबसूरती से उकेरा गया है |लोक जीवन की मिठास से पाठक तृप्त होता है |

गोलमी का उद्देश्य  केवल माँ से छुप कर स्कूल  के कार्यक्रमों में नृत्य करना नहीं  है | वो लोकगीतों को अपनी आन -बान  शान के साथ फिर से स्थापित करना चाहती है | भले ही लोग उसे नचनिया कहें पर वो अपने उद्देश्य के लिए समर्पित है | उसे अपने सपने स्पष्ट रूप से पता हैं और वो उनके लिए निरंतर मेहनत करती है | गोलमी का तकिया कलाम है “ गोलमी  सपने देखती नहीं बुनती है ” | गोलमी के साथ -साथ एक और स्त्री सपने बुन रही है … वो है रज्जो | रज्जो के सपने भी बड़े हैं पर वो जानती है कि उन्हें अकेले अपने दम पर नहीं पा सकती इसलिए वो गोलमी  साथ देती | गोलमी आगे बढती जाती है और मशहूर होती जाती है |

यहीं पर ठाकुर राम बालक सिंह के माध्यम से गोलमी के जीवन में राजनीति का दखल होता है | गोलमी राम बालक को चुनाव जितवाती है | गोलमी स्वयं राजनीति में नहीं जाना चाहती है पर सत्ता के पुरोधाओं  की नज़र उस पर पड़ जाती | वो उसकी क्षमता और प्रतिभा को पहचान लेते हैं | विरोधी पार्टी रज्जो को तोड़ लेती है | गोलमी सफल होती जाती है और अकेली होती जाती है | वो मंत्री बन जाती है | उसके पास नाम है यश है सत्ता है … नहीं है तो बस कला के लिए समय |

एक कलाकार का राजनीति में जाने पर जो अंतर्द्वंद उभरता है उसे गीता जी ने बहुत खूबसूरती से व्यक्त किया है |   जिन्होंने गीता श्री की कहानियाँ पढ़ी है वो सभी पाठक  अनुमान लगा रहे होंगे कि गोलमी  राजनीती में भी  विरोधियों के छक्के छुड़ा   कर दिखायेगी  पर  अंत में गोलमी सत्ता को त्याग कर अपने पहले प्यार नृत्य को चुनती है | यहीं पर गीता श्री जी मेरा मन जीत लेती हैं | हम क्यों माने कि सफलता के मायने सबके लिए एक एक होंगे |  हमें सफलता की परिभाषा पर गौर करना होगा | क्या वही सफल है जिसके पास सत्ता है , शक्ति है , पद है , पैसा है ? या जिसके पास अपने मन का करने की स्वतंत्रता है | जो दिल की राह पर चलते हैं उनके लिए सत्ता और सफलता की परिभाषा ही कुछ और है | गीता जी इसके लिए ओशो के कुछ वक्तव्यों को भी रखा है | सफलता का ये सबसे महत्वपूर्ण सूत्र है जिसको हम अक्सर नज़रअंदाज  करते हैं | हम दुनिया को केवल एक खाँचे में क्यों देखें | गोलमी  सफल है , उस तरह से नहीं जिस तरह से हमने सफलता के मानक बना दिए हैं बल्कि उस तरह से जिस तरह वो सफल होना चाहती है | उपन्यास का अंत उसकी जान है किसी और अंत से वो शायद प्राणविहीन  हो जाता |

उपन्यास का कथानक ऐसा है जिसमें कई सारे संघर्ष हैं | गोलमी  के संघर्ष के साथ -साथ जो दबे -दबे छुपे -छुपे चलता है वो है सुंदरी देवी का संघर्ष | एक संघर्ष  जो हसीनाबाद में उसके मन में चल रहा था जिसको जीत कर वो सगुन के साथ आई थी | एक संघर्ष जो उसके मन के भीतर ही भीतर चल रहा था जिसे वो सब से छुपा कर एक घुटन के साथ जी रही थी वो था,  पैदाइश का सच सामने आने पर गोलमी  की नज़रों से गिर जाने का भय का | जिससे वो अन्दर ही अन्दर लड़ रही थी | बरसों बाद वह उस संघर्ष में विजयी होती है जब मंत्री बनी गोलमी अपनी पैदाइश का सच जानने के बाद अपनी माँ के पक्ष में खड़े होकर पिता से साफ़ -साफ़ कहती है ,” बेवफा मेरी माँ नहीं , बेवफा तो वह पितृ सत्ता है सामंत और जमींदार हैं जिसने अपनी बेवफाई के लिए शहर और मुहल्ले बसाए ….पुरुषों के लिए बेवफाई पराक्रम और मर्दानगी का परिचायक रही है | हमारे लिए देश निकाला , मन निकाला और बेदखली |

एक संघर्ष है खेचरु  का जो अपनी कामनाओ की आग में भटकता है , रज्जो जो महत्वकांक्षाओं  राह में दोस्ती के पवित्र बंधन को कलंकित करने पर उतारू है | ये दोनों नकारात्मक संघर्षों का हारना एक सुखद अनुभव देता है |  एक संघर्ष अढाई सौ के निश्छल समर्पित प्रेम का जिसके लिए गोलमी की ख़ुशी से बढ़ कर कुछ भी नहीं है | एक बार अवश्य वो गोलमी के प्रेम में दीवाना होकर स्थानीय ‘लव गुरु ‘ के पास जाता है | लव गुरु कहता है तुम उसका सपना पूरा करो तब अढाई सौ कहता है , “गोलमी  सपने देखती नहीं बुनती है ”  ‘लव गुरु फिर उससे कहता है , ” तो फिर उसके सपने का धागा बन जाओ मेरे भाई ” | इसी पर चलता हुआ अढाई सौ एक दिन गोलमी का ह्रदय जीतने में कामयाब होता है | इन सब से ऊपर सत्ता का संघर्ष जो राजनैतिक उठा पटक , जोड़ तोड़ , उठाने गिराने के साथ चलता है |

उपन्यास की जो सबसे खास बात है वो है उसकी भाषा ,सवांद अदायगी और लोकगीतों का समावेश |
समुन्दर -समुन्दर आग बुझाऊं
आग न लाठी जारे
लाठी न सरप मारे
सर्प न रानी डँसे
रानी न राजा बुझावे
राजा न बरही दारे
बरही न खूँटा चीरे …
खूँटे में दाल ह्य
का खाओं . का पीयूँ , का ले परदेस जाऊँ ….

उपन्यास की भाषा सादगी भरी लोक की भाषा है | जो चरित्रों में प्रभाव उत्पन्न करती है | बीच -बीच में कुछ संवादों के पंच इतने  सुंदर हैं कि देर तक दिमाग पर छाए रहते हैं | जैसे , इसे देखिये …

समय कभी रुका है किसी के लिए ? समय के पाँव में नृत्य का आवेग है | 


कला का मुकाबला कोई ताकत नहीं कर सकती |वह हमें मनुष्य बनाये रखती है | देवत्व से जोड़ने का यह भी एक मार्ग है |”

उपन्यास की एक विशेषता यह भी है कि ये राम बालक के साथ गोलमी  की बातचीत से शुरू होता है और फ़्लैश बैक में चलता है | पाठक को गोलमी और रामबालक के  प्रेम  के आगे बढ़ने की उम्मीद होती है , सस्पेंस बना रहता है , पर गोलमी जहाँ रामबालक के प्रति आसक्त है वहीँ रामबालक राजनीति और प्रेम में राजनीति को चुनता है | प्रेम की एक चिंगारियाँ  शुरू होते ही खत्म हो जाती है | उपन्यास का कैनवास इतना विस्तृत है की लेखिका उसे कई दृश्यों के माध्यम से  जोड़ती हैं  | निश्चित तौर पर इससे कलात्मकता व् विद्वता का संयोजन होता है | कई बार दृश्यों के इस जुड़ाव में कहानी पानी कीतरह बहती है और कई बार कुछ पन्ने पीछे पलट कर पढ़ना पड़ता  है | साहित्यिक अभिरुचि के पाठक के लिए ये नया प्रयोग है जो आकर्षक लगता है , पर आम पाठक थोडा भटक सकता है | हालांकि  जिस तरह से फिल्मों में नए प्रयोग हो रहे हैं और पसंद किये जा रहे हैं उससे यह सिद्ध होता है कि   आम पाठक  की रुचियाँ बदलीं है और वो कुछ अलग हट कर लिखी जाने वाली कहानियों को ज्यादा पसंद करता है | ये बात हसीनाबाद के पक्ष में जाती है |   रमेश और सुंदरी के  आमना -सामना न होने के दृश्य की कमी खटकती है | एक पुत्र जिसे उसकी माँ छोड़ कर चली गयी उसके प्रति पाठक के मन में संवेदना उमड़ती है जिसकी तृप्ति उपन्यास के माध्यम से नहीं हो पाती |

कुल मिलकर हसीनाबाद गीता श्री जी का एक बेहतरीन उपन्यास है जो एक स्त्री के संघर्षों उसके सपनों की उड़ान , अदम्य इच्छाशक्ति , कला के प्रति समर्पण , शिल्प , अनोखे ताने बाने  के लिए लंबे  समय तक याद किया जाएगा | याद किया जाएगा गोलमी का वो  वाक्य कि , ” गोलमी  सपने देखती नहीं बुनती है ” | उपन्यास पढने के बाद पाठक गोलमी के प्रभाव से मुक्त नहीं हो पायेगा और एक नृत्य मन -मष्तिष्क में शुरू हो जाएगा ….जिसकी हर लय , धुन , ताल कला को समर्पित हर सच्चे कलाकार को नमन करेगी |

उपन्यास -हसीनाबाद
लेखिका –गीता श्री 
प्रकाशक  -वाणी प्रकाशन , दरीयागंज , नयी दिल्ली

मूल्य 250 रुपये

अमेज़न पर आप इस लिंक पर किताब  को आर्डर कर सकते हैं –हसीनाबाद 


वंदना बाजपेयी 
founder of atootbandhann.com
कार्यकारी संपादक अटूट बंधन 




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6 COMMENTS

  1. समीक्षा पढ़कर तो पूरा उपन्यास पढ़ने की इच्छा जागृत हो गई! वैसे इस खूबसूरत समीक्षा से उपन्यास की खूबसूरती का अनुमान लगाया जा सकता है बल्कि आपने तो एक तरह से हसीनाबाद का सारांश ही लिख दिया है ! बेहतरीन समीक्षा आपने की है वंदना जी हमेशा की ही तरह! आपको तथा लेखिका को हार्दिक बधाई एवं अनंत शुभकामनाएँ!

  2. बेहतरीन समीक्षा ,उपन्यास पढ़ने की इच्छा होने लगी,आपने लिंक दिया है मंगवाता हूँ

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