भूत-खेला –रहस्य –रोमांच से भरी भयभीत करने वाली कहानियाँ

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 मेरे पास नहीं है कोई सुरक्षा कवच | मैं फिर भी प्रेतों को आमंत्रित
करती हूँ | आओ, मुझे और भी तुम्हारी कथाएँ कहनी है …अब तुम दे जाओ कथाएँ | कह
जाओ अपने दमन की कथाएँ, शोषण की दास्तानें और अतृप्त इच्छाओं की अर्जियाँ दे जाओ |
उन्हें कथा में पूरी करुँगी |
आखिर कहानी में एक मनोवांछित संसार रचने का साहस तो है न मेरे पास |
मेरा बचपन गाँवों में अधिक गुजरातो मेरे पास
 
वहीँ की कहानियाँ बहुत हैं | शहरों में जिन्दा भूत मिले थे | उनकी कथाएँ तो
लिखती ही रहती हूँ | पहली बार ऐसे भूतों की कहानियाँ लिखी हैं |
                            
…गीता श्री

क्या आपको डरने में मजा आता है ? डरना भी एक तरह का आनंद देता है |
तभी तो लोग ऐसे पहाड़ों पर चढ़ते हैं कि नीचे गिरे तो …, उफनती लहरों में नदी पार
करते हैं , एम्युजमेंट पार्क में सबसे खतरनाक झूले पर चढ़ते हैं …उस डर को जीतने
में जो आनंद आता है , जो डोपामीन रिलीज होता है उसका मजा ही कुछ और है | इसी
श्रृंखला में आते हैं डरावनी
 फिल्में ,
किस्से और कहानियाँ | ऐसे ही एक डर का आनंद देने वाले किस्सों –कहानियों का संग्रह
है …
भूत-खेला –रहस्य –रोमांच
से भरी भयभीत करने वाली कहानियाँ





कहते हैं की जीवन अनंत है |जन्म और मृत्यु इसके बस दो सिरे हैं | फिर
भी मृत्यु एक बहुत बड़ी सच्चाई है , जो हमें भयभीत करती है | हमें नहीं पता आगे
क्या होगा ?
 जीवन और मृत्यु के बीच में एक
पर्दा है, जिससे न तो इस पार का व्यक्ति उस पार देख सकता है ना उस पार का व्यक्ति
इस पार , और ये प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाता है कि मरने के बाद इंसान जाता कहाँ है
? उस अदृश्य संसार के बारे में तो हम नहीं जानते लेकिन इतना जरूर माना जाता रहा है
कि अकाल मृत्यु या अतृप्त इच्छा के साथ जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसकी
आत्मा उस पार ना जा कर यहीं हमारे बीच बिना देह के तड़पती हुई,
 भटकती रहती है | जिसे हम भूत का नाम देते हैं
|
  देह नहीं होने के कारण उनकी शक्तियाँ
हमसे अधिक होती हैं |
 ज्यादातर लोगों को
वो दिखते नहीं, लेकिन कुछ लोग ऐसे दावे करते आये हैं कि वो उन्हें देख चुके हैं या
महसूस कर चुके हैं | शायद वो उनकी फ्रीकुएन्सी को पकड़ लेते हैं, और उन्हें वो
दिखते हैं साक्षात चलते , बोलते, उड़ते हुए, कुछ रहस्यमय कामों को अंजाम देते हुए |
भूत होते हैं कि नहीं यह पक्के तौर पर कहा नहीं जा सकता क्योंकि विज्ञान जिस तरह
से आगे बढ़ रहा है और जिस तरह से हम उन चीजों को देख सुन पा रहे हैं जिन्हें नकारते
रहे हैं, तो क्या पता एक दिन अपनी ही पृथ्वी पर भटकती इन बेचैन आत्माओं से रूबरू
हो सकें | पर फिलहाल अभी तक जो रहस्य और रोमांच इन भूतों के बारे में बना हुआ है,
वहीँ
  से जन्म होता है भूतिया किस्सों का |

हममें से कौन है जिसने अपने बचपन में अपने भाई –बहनों के साथ रात में
छत पर
 चारपाई पर बैठ कर किसी चाचा , मामा,
ताऊ या जान –पहचान के व्यक्ति के भूत से मुलाक़ात के किस्से न सुने हों | “और जब वो
चलता था …” से थमी हुई साँसों, और बढती हुई धडकनों के बाद कितनी बार रात में
टॉयलेट जाने के लिए माँ या बड़ी बहन को जगाया होगा, और प्लीज बाहर खड़ी हो जाना की
गुहार लगाई होगी | कितनी बार अँधेरे में किसी की परछाई नज़र आई होगी और भय से
चीख
  निकल गयी होगी | खैर वो बचपन के दिन
थे
  पंख लगा के उड़ गए | अब अगर आप एक बार
फिर से बचपन के उस रोमांचक अहसास को जगाना चाहते हैं तो गीता श्री जी आपके लिए
लेकर आयीं है , डरावने भूतिया
 किस्सों से
भरा “भूत खेला “ | और अगर अभी भी आप भूतों पर यकीन करते हैं तो भी
  उत्तर वही ही है |

हम सब जो हॉरर फिल्में देखते हैं वो जानते हैं कि लाइट और साउंड
इफ़ेक्ट से डर आसानी से पैदा किया जा सकता है | जब किस्सों के रूप में किसी से सुनते
हैं तो भी रात होती है और कहने का तरीका कुछ ऐसा होता है कि डर का माहौल बनता है |
ऐसे में लोगों को लगता है कि क्या किताब में शब्दों के माध्यम से
  वो डर उत्पन्न किया जा सकता है ? जी हाँ !
बिलकुल किया जा सकता है और ये लेखक के लिए बहुत चुनौती का काम है | जिन्होंने भी W.W.Jacobs
की “monkey’s paw“
कहानी पढ़ी होगी | उन्होंने केवल शब्दों के माध्यम से दरवाजे के
बाहर सीढियां चढ़ने की आवाजों में डर महसूस किया होगा |पढ़ते –पढ़ते किसको नहीं लगा
होगा कि उसकी माँ से कह दे कि दरवाजा ना खोलना, बाहर भूत है | इस कहानी का उदहारण
मैं इसलिए दे रही हूँ क्योंकि ये कई राज्यों में
 सिलेबस में पढाई जाती है |  और अगर आज की बात करें तो  स्टीफन किंग के हॉरर से भला कौन ना डरा होगा

अगर मैं ‘भूत खेला’ की बात करूँ तो गीता श्री जी भी वो माहौल तैयार
करने और डर पैदा करने में पूरी तरह सफल रहीं हैं
 | आप लाख कहिये कि ‘डरना मना है पर अन्तत: डर ही
जायेंगे | डरावनी कहानियाँ लिखते समय लेखक के हाथ में केवल एक ही अस्त्र होता है वो है भाषा का …उसी से खौफ पैदा करना है, ऐसे दृश्य क्रिएट करने हैं जो पाठक की दिल की धडकने बढ़ा दें | गीता श्री जी ने कथा भाषा ऐसी रखी है जो डरावना माहौल क्रिएट करती है | यूँ  तो संग्रह की सभी कहानियाँ इसमें सफल हैं पर इस मामले में मैं
खासतौर पर मैं इस संग्रह की
  कुछ  कहानियों के नाम “कहीं ये वो तो नहीं” और “वे
वहाँ लाइव थीं “ “उसका सपनों में आना जाना है” का नाम लेना चाहूँगी | इन तीनों  कहानियों में शब्दों और दृश्य का ऐसा मंजर प्रस्तुत किया है जो भयभीत करता है,
रोंगटे खड़े करता है |
 इन
तीनों कहानियों को तो लगा ही नहीं कि पढ़ रहे हैं , बल्कि हॉरर शो देखने का अहसास
हुआ | काश कि कोई हॉरर शो बने | एक अन्य  कहानी जिसमें एक स्त्री मृत्यु के उपरान्त 

अपने पति के जीवन में आने वाली हर स्त्री से बदला भी ऐसा कि …विशेष रूप से
उल्लेखनीय है |
 

“और फिर भयंकर अट्टहास करने लगा | अमित का खून एक बार फिर से जम गया
और वो डरकर भागने लगा | उसे लगा जैसे उस चाय वाले के आधे कटे हाथ उसका पीछा कर रहे
हैं और …”

“ लाइव में रतन के कई दोस्त जुड़ गए थे | दनादन लाइक और सवाल आने लगे |
वाह , वाह के उकसाने वाले मेसेज खूब आने लगे | रहस्य रोमांच में लोगों की दिलचस्पी
खूब होती है | रतन इस बात को समझ रहा था |”

“उस लड़के ने उसे नहीं देखा | वह नीचे सर किये हुए बैठा रहा !उसके फूले
हुए सर से बाल नीचे लटक रहे थे | उन बालों से कुछ टपक रहा था …”





इस संग्रह के ऊपर लिखते हुए रहस्य और रोमांच को बनाए रखने की
जिम्मेदारी मेरी भी है इसलिए कहानियों के बारे में ज्यादा चर्चा नहीं करुँगी |
ताकि जब आप उसे पढ़ें तो उसका आनंद स्वयं ले सकें | फिर भी एक छोटी सी हिंट पाठकों
के लिए दे रही हूँ कि इस डरावने संग्रह में कुछ भूत तो कवक खून के प्यासे, खौफनाक
हैं लेकिन कुछ भूत ऐसे भी हैं जो मदद भी करते हैं | पर क्यों ? क्या अच्छे बुरे
इंसानों की तरह अच्छे –बुरे भूत भी होते हैं या …| खैर ! बेतरह डराने
 के बाद इन अच्छे भूतों के लिए शुक्रिया तो बनता
ही है | बाकी एक बात और विशेष है कि काहानियाँ डरावनी होते भी इंसानी रिश्तों के
आस –पास बुनी गयी हैं, जिसके कारण कुछ संवेदनाएं भी जगाती हैं और पाठक इंसानी
रिश्तों की मीठी सुगंध  से भी गुज़रता है जो उसे डर के माहौल में भी थामे रखती है |
 वाणी प्रकाशन प्रकाशित 96 पेज
के इस संग्रह में नौ डरावनी कहानियाँ है जो एक खौफनाक कवर पृष्ठ के अंदर समाहित है
|  
 गीता श्री जी एक सशक्त लेखिका
हैं | हमेशा से उनकी कहानियाँ व् लेख पढ़ती रही हूँ और पसंद करती रही हूँ |
हसीनाबादऔर लेडीज सर्किलसे
उन्होंने साहित्य की ऊँचाइयों को छुआ है और अब ये भूत खेला |
 

 हिंदी में भूतों पर कहानियाँ कम लिखी गयीं हैं | और किसी प्रसिद्द साहित्यकार
ने इन पर लिखा हो ऐसा कम ही देखने को मिला है | एक पाठक के तौर पर मेरे मन में
कौतुहल भी था कि इस नए, अदृश्य को दृश्य बनाने वाली विधा में उन्होंने
  क्या और किस तरह लिखा होगा | और जैसा कि
उन्होंने पुस्तक की भूमिका में लिखा है कि , “इन्हें लिखना मेरे लिए चुनौती थी |
मैं खुद को जाँचना भी चाहती थी | मैं अपना रेंज जाँच  रही थी कि लिख पाऊँगी
  या नहीं |” वाकई गीता श्री जी ने इस संग्रह को
लिख कर अपनी रेंज का विस्तार किया है | एक लेखक के रूप में उनका ये प्रयास
प्रभावित करता है | अभी हाल में वो जानकीपुल .कॉम में वो वैशाली के किस्से लिख
रहीं हैं | जो खासे लोकप्रिय हो रहे हैं | इसमें वो पाठकों से एक अलग प्रकार की भाषा के साथ रूबरू हो रही हैं | 
उम्मीद है वो ऐसे ही अपनी रेंज बढ़ाती रहे और पाठकों को कुछ नया अनोखा पढ़ने का अवसर उपलब्द्ध कराती रहे |

अगर आप भी भूत  –प्रेतों
के डरावने किस्से पढने के शौक़ीन हैं तो ये संग्रह जरूर पढ़िए, लेकिन जरा संभल के
…मामला भूतों का है !!

भूत खेला –कहानी संग्रह
प्रकाशक –वाणी प्रकाशन
पृष्ठ -96
मूल्य – 199

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विशेष   – जो लोग भूतिया  कहानियाँ पढ़ते हैं, उन्हें पता है कि इसमें
माहौल का कितना बड़ा हाथ होता है | रात का समय हो , बाहर चमगादड़ों की आवाजें आ रही
हों | हवा से दरवाजा बार –बार खुल –बंद हो रहा हो और बीच –बीच में सड़क के उस पार
कोई कुत्ता रो रहा हो तो शब्द –दृश्य सीधे एक खौफनाक मंजर
 तैयार करते हैं | अगर आप वास्तव में भूतों से मुलाकात
का आनंद लेना चाहते हैं तो ऐसा समय सुनिश्चित करिए जब भूत फ्री हों |
   अब अगर आप नए हैं और दिन में चलती बस में
कन्डक्टर की “टिकट-टिकट-टिकट-टिकट की आवाज़, पीछे की सवारी
 की सास –बहु गाथा पुराण और आगे अपने बच्चे को
बेसुरी लोरी गा कर सुलाती माँ की आवाज़ के बीच में पढ़ कर कहते हैं कि हमें तो डर
नहीं लगा , तो ये भूतों का अपमान होगा …सरासर अपमान |
ऐसे में कोई भूत आपके पीछे पड़ गया तो ? ? ?

वंदना बाजपेयी 


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3 COMMENTS

  1. आपकी समीक्षा से लग रहा है कि डरावनी कहानियों को पढ़ने का आनंद आएगा,मैं भी मंगवाती हूँ…सरबानी सेनगुप्ता

  2. सोच रही हूं कि डर के आगे जीत है।मानव मन हमेशा अदृश्य को ढूंढता रहता है। इसीलिए भूत की कल्पना की गई। समीक्षा पढ़ कर पुस्तक पढ़ने की इच्छा जाग्रत हो गई।मंगाई है।

  3. पुस्तक पढ़ने की उत्कंठा जगाती हुई बेहतरीन समीक्षा। लेखिका तथा समीक्षिका दोनों को ही बधाई और शुभकामनाएँ 💐💐

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