वो पहला क्रश

1
संस्मरण -वो पहला क्रश
फोटो –WIKIHOW.COM से साभार

यूँ तो सोशल मीडिया हर समय सनसनीखेज रहता है | कब युद्ध करवा दे और कब  वार्ता के लिए हथियार डलवा दे | कोई ठीक ठीक कह नहीं सकता | यहाँ बिना आग लगाए राकेट छूटते हैं  | इस समय एक पुराने  राकेट में फिर से आग लगायी जा रही है | हालांकि ये पुराना राकेट बेदम हो चुका है और सुर्सुरिया की तरह छूट रहा है | पर हास्य विनोद ने कश्मीर की समस्या , पकिस्तान की युद्ध की धमकी , और पाँव पसारती आर्थिक मंदी के दौर में सबके चेहरे पर मुस्कुराहटों को आने को विवश कर दिया है |

                      आपको बता दें कि राकेट है  सोशल मीडिया पर महिलाओं द्वारा अपने पहले क्रश के खुलासे का | एक के बाद एक वाल इस खुलासे से रंगीन होती जा रही है | जहाँ पुरुष इन पोस्टों पर मौन धारण करें बैठे हैं | वहीँ महिलाएं छेड़छाड़ करती खिलखिला रही हैं | क्योंकि पहला प्यार भले ही कभी भुलाए ना भूलता हो पर पहला क्रश बहुटी नॉन सीरियस चीज होती है |

वो पहला क्रश 

सबको देखकर हमने भी अपने यादों के संदूक  को खोला और पहुँच गए वहाँ जहाँ बचपन की अंतिम पायदान पर किशोरावस्था दस्तक दे रही थी | सहेलियाँ उस समय अकसर फिल्मों के हीरो की बातें करतीं और हम बच कर निकल जाते | क्योंकि उन दिनों दो ही लोग थे जिन से मिलने का बहुत मन करता था | पर वो किसी की रूचि से मेल नहीं खाते थे इसलिए हम उनकी बातों में मौन धारण कर लेते | उनमें से एक थे जय शंकर प्रसाद और दूसरे आइंस्टीन | एक साहित्य के रवि और दूसरे विज्ञान के | दुःख की बात ये कि दोनों ही हमारे जन्म से पहले दुनिया से कूच कर गए थे | जयशंकर प्रसाद की कवितायें कहानियाँ दीदी और भैया की किताबों से चुपके -चुपके पढ़ते और आइन्स्टीन के किस्से अखबार या पत्र -पत्रिकाओं से | कितनी पत्रिकाओं की कटिंग हमारे पास मौजूद रहती जिसमें आइन्स्टीन के बारे में कुछ छपा होता |

वो पहला क्रश

जब भी आइन्स्टीन के बारे में ये किस्सा पढ़ते कि वो अपने पड़ोस की एक बच्ची से चॉकलेट ले कर उसके मैथ्स के सवाल हल कर दिया करते तो लगता कि काश वो बच्ची हम होते | रोज आइन्स्टीन के घर जाते कितना जानने समझने को मिलता |  ड्राइवर की हाज़िर जवाबी वाला किस्सा तो आइन्स्टीन की बुद्धिमता पर सलाम ठोंकने लगता |  हाँ , एक किस्सा  बहुत दुखी कर देता कि आइन्स्टीन को एक रूसी जासूस महिला ने अपने प्रेम में फंसा कर उनसे वैज्ञानिक समीकरण चुराए थे | जी में आता अगर मुझे मिल जाती तो उसकी पिटाई कर दूँ  |

खैर ! जब ये बात सहेलियों को पता चली तो उन्होंने जयशंकर प्रसाद की कुछ कवितायें तो सुन लीं  पर कुमार गौरव के आगे आइन्स्टीन को कोई तवज्जो नहीं दी | और बात आई -गयी हो गयी |  मुश्किल तब शुरू हुई जब हम लोग साइंस लैब में पहली बार गए , वहाँ  अन्य  वैज्ञानिकों के साथ आइन्स्टीन की भी एक बड़ी से फोटो लगी हुई थी | वही फोटो जिसमें आइन्स्टीन काफी वृद्ध थे और उन के बाल कुछ अजीब से दिखते थे | ज्यादातर पत्र -पत्रिकाओं में भी यही फोटो छपती थी | परन्तु ये फोटो बड़ी होने के कारण विशेष रूप से नज़र आ रही थी | बस फिर क्या था , सहेलियों ने फोटो दिखा -दिखा कर हमें चिढ़ाना शुरू कर दिया , ” लो वंदना , तुम्हारे आइन्स्टीन , बाप रे इतने बूढ़े .. ” “अब क्या करें वंदना को तो यही पसंद है”,  “तुम लव मैरिज कभी मत करना , वर्ना तुम आइन्स्टीन जैसा कोई ढूंढ लोगी”   खी , खी खी की आवाजों से सारी  लैब गूँज गयी | उन दिनों गूगल का ज़माना था नहीं , जो अगले दिन हम कोई और फोटो निकाल कर दे देते | खुदा कसम हम उस दिन बहुत फजीहत महसूस हुई |  हम लाख दलीले देते रहे कि वो इतने इंटेलिजेंट तो हैं … ब्यूटीफुल ब्रेन है, पर  सच्चाई तो ये है कि उनके कुमार गौरव के आगे हम अपने आइन्स्टीन का बचाव ना कर सके | 

धीरे -धीरे लड़कियों का चिढाना कम  हुआ | पर आइन्स्टीन से हमारा लगाव  कम नहीं हुआ | हमारे आइन्स्टीन ने हमारा बहुत साथ निभाया | जब न्यूटन की ग्रेविटी के न्यूमेरिकल्स की बॉल कभी ऊपर से गिर कर , कभी नीछे  उछल कर , कभी आगे -पीछे  या किसी एंगल पर रुक कर हमें खूब छकाती तब आइन्स्टीन की मॉडर्न  फिजिक्स हमारी कलम पर मक्खन मलाई की तरह फिसल जाती | 
समय आगे बढा | गुड़िया छूटी, सखियाँ छूटी और साथ साथ आइन्स्टीन भी छूट गए | हम भी अपनी घर गृहस्थी में मगन थे पर आइन्स्टीन का हमारी जिन्दगी में प्रवेश  बड़े भतीजे  के माध्यम से दुबारा हुआ | उन दिनों वह आई .आई . टी कानपुर में पढने लगा था |   विज्ञान और वैज्ञानिकों के प्रति उसका लगाव बढा  हुआ था | हम मायके गए तो उसने विशेष आग्रह किया कि बुआ जी  मेरे कमरे में आइये | कमरे में उसने कई सारे वैज्ञानिकों  की बड़ी बड़ी फोटो फ्रेम करके लगवा रखी थीं | हम दूर से देकहकर  उनके नाम बता रहे थे … ये जगदीश चंद्र बोस , ये गैलिलियो , ये न्यूटन , ये … , फिर अचानक एक फोटो को देखकर हम अटक गए …और भतीजे की तरफ देखकर प्रश्न किया , “ये …ये कौन हैं  ? “
“ये आइन्सटाइन  है बुआ जी” (अंतर सिर्फ इतना नहीं था कि हमारे समय के आइन्स्टीन अब आइन्स्टाइन हो गए थे , दरअसल ये फोटो उनकी युवावस्था की थी |)
” अरे ये तो बहुत गुड लुकिंग थे |” नाम जानने के बाद हमारे मुँह से पहला व्याक्य यही निकला | 
” तो क्या बुआ जी ” भतीजे ने खिसयाते  हुए कहा 
तब हमें ध्यान आया कि हमारे संस्कार घर में हमें ऐसे वाक्य बोलने की इजाज़त नहीं देते | झेपते हुए हमने भी उत्तर दिया ,  “दरअसल हमने कभी उनकी यंग एज की फोटो देखी  नहीं थी न … इसलिए | 
” तो क्या इंसान हमेशा बूढ़ा ही रहा होगा , कभी यंग भी तो रहा होगा , चलो , चाय लग गयी है ” भैया के वाक्य से महफ़िल डाईनिंग टेबल की ओर खिसकने लगी | 
उफ़ ! इत्ती सी बात …इत्ती सी बात हमें उस समय अपनी सहेलियों से तर्क  करते समय याद नहीं आई | जी में आ रहा था कि अभी समय घडी पर सवार होकर नाइन्थ क्लास की उसी साइंस लैब में पहुँच कर सहेलियों को आइन्स्टीन की वो फोटो दिखा दिखा कर कहें ….

” देखो , हमारे आइन्स्टीन कितने अच्छे थे ….तुम्हारे कुमार गौरव से भी ज्यादा “

वंदना बाजपेयी

यह भी पढ़ें …

ओ री गौरैया

गुड़िया का ब्याह

आपको  लेख   वो पहला क्रश   — ..  कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको अटूट बंधन  की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम अटूट बंधनकी लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | 

filed under-crush, first crush, einstein, jai shankar prasad

फोटो –WIKIHOW.COM से साभार 

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here