अंतर्मन के द्वीप- विविध विषयों का समन्वय करती कहानियाँ

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अंतर्मन के द्वीप- विविध विषयों का समन्वय करती कहानियाँ


अभी  पिछले दिनों मैंने “हंस
अकेला रोया” में ग्रामीण पृष्ठभूमि पर लिखी हुई कहानियों का वर्णन किया था | आज
इससे बिलकुल विपरीत कहानी संग्रह पर बात रखूँगी
 जहाँ ज्यादातर कहानियों के केंद्र में शहरी और
विशेष रूप से उच्च मध्यम वर्ग है | जहाँ मेमसाहब हैं | लिव इन रिश्ते हैं | टाइमपास
के लिए पुरुषों से फ़्लर्ट करने वाली युवा लडकियाँ हैं | नौकरीपेशा महिलाएं हैं |
माता –पिता दोनों के नौकरी करने के कारण
 
अकेलेपन से जूझते बच्चे हैं | स्त्रियों को अपने से कमतर समझने वाले परन्तु
स्त्री अधिकारों पर लेख, कवितायें  लिखने वाले
 
फेमिनिस्ट लेखक हैं | और उन सब के बीच में है अना …जो आज के युग की नहीं
है | पाषाणयुगीन महिला है | इन तमाम महिलाओं के बीच अना का होना अजीब लगता है |
परन्तु उसका अलग होना ही उसकी खासियत है जो पाषाण युग से आधुनिक युग को जोडती है |
कैसे …? 


आज मैं बात कर रही हूँ वीणा वत्सल सिंह के कहानी संग्रह ‘अंतर्मन के
द्वीप’ की | द्वीप यानि भूमि का ऐसा टुकडा जो चारों
 तरफ से पानी से घिरा हो | जिसका भूमि के किसी
दूसरे टुकड़े से कोई सम्बन्ध ना हो | जब ये द्वीप मन के अंदर बन रहे हों तो हर
द्वीप एक कहानी बन जाता है | क्योंकि ऐसे ही तो उच्च-मध्यम वर्ग के लोग रहते हैं |
एक साथ रहते हुए भी एक दूसरे से पूरी तरह कटे हुए, अपने –अपने अंदर बंद | फिर भी
चारों तरफ भावनाओं के समुद्र में बहते हुए ये द्वीप पृथक –पृथक होते हुए भी उसी
भाव समुद्र का हिस्सा हैं | एक दूसरे से पूर्णतया पृथक और अलग होना ही इन द्वीपों
की विशेषता है और कहानियों की भी | शायद इसी कारण आजकल के चलन के विपरीत
  “अंतर्मन के द्वीप” नामक कोई भी कहानी संग्रह
में नहीं है |

अंतर्मन के द्वीप- विविध विषयों का समन्वय   

लेखिका -वीणा वत्सल सिंह


सबसे पहले मैं बात करना चाहूँगी कहानी “अना” की | ये कहानी हमें समय
के रथ पर बिठाकर पीछे ले जाती है …बल्कि बहुत पीछे, ये कहना ज्यादा
  सही होगा | ये कहानी है पाषाण युग की, जब
मनुष्य गुफाओं में रहना व् आग पर भोजन पकाना सीख लिया था | उस युग में महिला व्
पुरुष एक टोली बनाकर एक गुफा में रहते थे | पुरुष शिकार को जाते थे व् महिलाओं का
काम संतान उत्पन्न करना था | जब महिला संतान उत्पन्न करने लायक नहीं रह जाती थी तो
गुफा के पुरुष उस महिला को शिकार पर साथ ले जाकर उसे खाई में धक्का दे देते या
जानवर के आगे डाल कर उसकी हत्या कर देते थे | इस तरह से महिलाएं अपना पूरा जीवन जी
ही नहीं पाती थी | उन्हीं महिलाओं में से एक महिला थी अना और उसकी बेटी चानी |
हालांकि उस युग में नाम रखने का चलन नहीं था पर लेखिका ने पाठकों की सुविधा के लिए
ये नाम रखे
  हैं | अना ने पुरुषों के
अत्याचार के खिलाफ उनकी सेवा करके उनके लिए अधिक समय तक उपयोगी सिद्ध होकर ज्यादा
जीवन जी लेने का पहला प्रयोग किया | अपने प्रयोग को सफल होते देख उसने ये
गुरुमंत्र अपनी बेटी चानी को भी दिया | चानी ने यहाँ से मन्त्र को और आगे बढ़ाते
हुए पुरुषों के लिए देवताओं से लम्बी आयु का वरदान माँगना भी शुरू किया | इस कहानी
को स्त्री की आज की कहानी
 के शुरूआती पाठ
की तरह देखा जा सकता है | आज भी स्त्री अपने परिवार के
  पुरुषों की लंबी आयु के लिए व्रत उपवास करती है
| भोजन से लेकर शयन तक उनकी हर सुविधा का ध्यान रखती है …क्यों ?
  क्यों अपने को पुरुष के जीवन में उपयोगी सिद्ध
करने की ये सारी जद्दोजहद स्त्री के हिस्से में आती है ? क्यों ऐसी आवश्यकता
पुरुष
  को नहीं पड़ती ? तमाम स्त्री विमर्श
के केंद्र में जो शाश्वत प्रश्न हैं ये कहानी उन्हीं के उत्तर ढूँढते –ढूँढते पाषण
युग में गयी है | कहानी में एक नयापन होने के साथ ये स्त्री के जीवन के बेनाम
संघर्षों की अकथ बयानी भी है |
 





अना का जिक्र करते हुए मेरे जेहन में एक अन्य कहानी आ रही है |
हालांकि इस कहानी से उसका कोई लिंक नहीं है फिर भी
  जिसके बारे में लिखने में मैं खुद को रोक नहीं
पा रही हूँ | “The Handmaid’s tale” जो Margret Atwood का उपन्यास है | ये
उपन्यास
  Dystopian Fiction  का एक नमूना है | जो यूटोपिया यानि आदर्श लोक
का बिलकुल उल्टा है | इस कहानी में लेखिका ने स्त्री जीवन की आगे की यात्रा की है
| आज जिस तरह से लिंग अनुपात बिगड़ रहा है और बढ़ते प्रदूष्ण , रेडीऐशन व् जीवन शैली
में बदलाव के कारण स्त्री की संतान उत्पत्ति की क्षमता प्रभावित हो रही है | तो हजारों
साल
  बाद एक ऐसा समय आएगा जब स्त्रियाँ
खासकर वो स्त्रियाँ जिनमें संतान उत्पत्ति की क्षमता है, बहुत कम रह जायेगी | तब
पुरुषों द्वारा स्त्री प्रजाति को दो भागों में स्पष्ट रूप से विभाजित कर दिया
जाएगा | एक वो जिनमें संतान उत्पन्न करने की क्षमता है और दूसरी वो जो उनकी सेवा
करेंगी | जिनमें क्षमता है तो क्या उनका जीवन सुखद होगा ? नहीं | उनके ऊपर कैसे
भी, किसी भी तरह से ह्युमन रेस को बचाने का दारोमदार होगा | ये कैसे भी और किसी भी
तरह से इतना वीभत्स है कि पढ़ते हुए रूह काँप जाती है |



दोनों कहानियों का जिक्र मैंने एक साथ इसलिए किया क्योंकि एक ओर अना
है जो स्त्री के द्वारा पुरुष की दासता स्वीकार करने से आज के दौर में पहुँचती है
जहाँ स्त्री ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष शुरू कर दिया है | 
The Handmaid’s tale  स्त्री अधिकारों के लिए संघर्ष की
शुरुआत से लेकर स्त्री के अधिकारों को पुन: छीन लिए जाने तक जाती है | ये बात महिलाओं
को समझनी होगी कि इतिहास से हम सीख सकते हैं … अपने सघर्ष को और तेज कर सकते हैं
| लेकिन इसके साथ यह भी याद रखना होगा कि हमें  
The Handmaid’s tale जैसे अंजाम तक
भी नहीं पहुँचना है | ऐसे सभी भावी-संभावी भविष्य से खुद को बचाना है |


‘मेमसाहब” मेराइटल रेप के मुद्दे को उठाती है | ये  तथाकथित सुखी औरतों के दर्द को बयाँ करती है |
किसी को खायी-पी –अघाई औरत कह देने से हम बाज नहीं आते पर क्या कभी हमने उसका दर्द
समझने की कोशिश की है | ‘मेमसाहब भी एक ऐसी ही स्त्री हैं जो अपनी सुन्दरता सलीके
और ब्रांडेड परिधानों की वजह से जानी जाती हैं | पार्टी में हँसती –मुस्कुराती
मेमसाहब के बेडरूम के स्याह पन्ने उनके सामाजिक जीवन के उजले पन्नों से बिलकुल उलट
हैं | जहाँ वो शराब पिए हुए अपने साहब पति की मार भी खाती हैं, गालियाँ भी सुनती
हैं और अपनी इच्छा के विरुद्ध, पति की इच्छा के आगे मात्र देह में तब्दील होने को
विवश भी होती हैं | एक अंश देखिये …


“मेमसाहब गुस्से, विरोध और नफ़रत से अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लेतीं
तो साहब जबरन उनका चेहरा पकड़ कर अपनी आँखों के सामने ले आते और कहते – “क्या मेरा
चेहरा देखना नहीं चाहती तुम ? तुम्हारी तरह खूबसूरत 
न सही पर तुम्हारी तरह दागदार भी नहीं है और फिर चूमने का अभिनय करते
हुए मन भर थूक चेहरे और गले पर उगल देते | मेमसाहब को उन शराब की बदबू वाले थूकों
से उबकाई आती लेकिन साहब को संतुष्ट किये बगैर वो बिस्तर पर से उठ भी नहीं सकती
थीं |”
ये सब लिखते  हुए मुझे आभा
दुबे की एक कविता याद आ रही है, 
तालीम का सच”  याद आ रही है ….

पढ़ी-लिखी सर्वगुणसंपन्न ,जहीन, घरेलू औरतें ,
रोतीं नहीं, आँसू नहीं बहातीं 
बंद खिड़की दरवाजों के पीछे ,
अन्दर ही अन्दर घुटती हैं,
सिसकती
हैं कि आवाज बाहर ना चली जाये कहीं
,हाँ, सच तो है ,
ऐसी
औरतें भी भला रोती हैं कहीं
?
‘ मेमसाहब’ उच्च मध्यम वर्गीय
महिलाओं के चेहरे से नकाब खींच कर सच का विद्रूप चेहरा दिखाती है | जो अच्छा दिखता
है वो हमेशा अच्छा नहीं होता | कितनी फ़िल्मी नायिकाओं, सशक्त महिलाओं की शादी के बाद  उनके घरेलु शोषण के किस्से  आम हुए हैं | वो भी तब जब उन्होंने तलाक लेने की
हिम्मत करी | अब मेमसाहब अपने शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठा पाती हैं या नहीं ये तो आप
कहानी पढ़कर ही जान पायेंगे परन्तु इस कहानी को पढ़ कर आप अपने घर के आस –पास रहने
वाली ‘मेमसाहब’ के प्रति कुछ अधिक संवेदनशील हो जायेंगे |
कहानी ‘देवांश’ अपने
शिल्प और बुनावट की वजह से खास है | देवांश पितृसत्ता का चेहरा है | जो स्त्रीवादी
कवितायें लिखता है | वाहवाही पाता है परन्तु उसे किसी महिला का लेखन पसंद नहीं आता
| क्यों ? यही तो है पितृसत्ता, पुरुषों द्वारा  महिलाओं को अपने से कमतर समझना और उन्हें कम
होने का अहसास दिला कर उन पर शासन करना | लेकिन महिलाएं इसका विरोध नहीं करती वो
खुश होती हैं | एक दृश्य देखिये …

” स्त्रियाँ
जो उसके इर्द-गिर्द थी, उसके आस –पास ही रह्ना चाहती थीं | वो उन्हें दुतकारता
अनाप शनाप कहता लेकिन उसकी बातों को लगभग अनसुना कर स्त्रियाँ उसके साए से ही
लिपटी रहतीं | देवांश ने अपने जीवन में ऐसी स्त्रियों को कोई महत्व ना दे रखा था
|”
आखिर स्त्रियाँ उसी के
पास क्यों जाना चाहती हैं जो उन्हें दुत्कारे | इसके पीछे स्त्रियों के अंदर खुद
को कमतर समझने की भावना होती है | मुझे अपने कॉलेज के दिन याद आ रहे हैं | जब एक
अभिनेत्री ने इंटरव्यू दिया कि वो ऐसा पति चाहती है जो सिर्फ उसे प्यार ही ना करे,
डांटे भी |  उसने इच्छा जाहिर की,  “वो कहे कि धूप में खड़ी हो जाओ तो मैं धूप  में खड़ी हो जाऊं | आज्ञा का पालन करूँ |” हम
सहेलियों के बीच ये बहुत बड़ी चर्चा का विषय था कि एक ऐसे स्त्री जिसे हम सशक्त
कहते हैं, जो फिल्मों में काम करती हैं, अपने फैसले खुद लेती है, देश –विदेश आउट
डोर शूटिंग पर जाती है वो ऐसा कैसे कह सकती हैं ? औरतों की इस सोच के पीछे पीढ़ी दर
पीढ़ी की गयी कंडिशनिंग है कि पुरुष श्रेष्ठ होता है | वो डांट सकता है, बुरा भला
कह सकता है और स्त्री को महज आज्ञा का पालन करना है | पढ़ी –लिखी स्वतंत्र
स्त्रियाँ भी जीवनसाथी में सखा नहीं स्वामी ढूंढती हैं तो आम स्त्रियों की बात ही
क्या है ? हालांकि ये कहानी उन स्त्रियों के बारे में नहीं है, ये कहानी देवांश के
बारे में है , जो हर उस स्त्री से दूर भागता है जिसे वो टूट कर प्रेम करता है |
चाहें वो उसकी माँ हो, बहन हो या प्रेमिका | इसके पीछे उसका एक मनोविज्ञान है |
दरअसल प्रेम के नाम पर किसी प्रकार का बंधन उसे पसंद नहीं | इसलिए जहाँ –जहाँ जब
जब प्रेम उसे बाँधने की कोशिश करता है वो उसे मुक्त करता जाता है | क्या उसकी सोच
बदलती है या वो अपनी सोच में ही फँस जाता है ? अगर शिल्प की बात करूँ तो वीणा
वत्सल जी की सबसे बेहतरीन कहानियों में से एक है |
‘अर्णव’और ‘अनिमेष’ दोनों
कहानियाँ किशोर बच्चों की समस्याओं पर आधारित हैं | एक तरफ अर्णव है जिसके
माता-पिता दोनों नौकरी करते हैं | वो अपनी एकलौती संतान को समय नहीं दे पाते हैं |
अकेलेपन को भरने के लिए अर्णव को वीडियो गेम्स का सहारा मिलता है जो बाद में लत बन
जाता है | इससे उसकी शिक्षा उसका व्यवहार और जीवन प्रभावित होने लगता है | बच्चे
की इस लत को छुड़ाने के लिए उसकी माँ तूलिका के नौकरी छोड़ने के स्थान पर कोई अन्य
हल होता तो शायद मेरा स्त्री मन ज्यादा संतुष्ट होता परन्तु यथार्थ जीवन की सच्चाई
यही है कि जब ऐसी परिस्थिति आती है तो त्याग माँ ही करती है | ‘’अनिमेष’ तो
आत्महत्या तक का प्रयास कर लेता है | यहाँ कारण है माता –पिता और  बच्चे के बीच
संवादहीनता | समस्या आने पर बच्चे के साथ संवाद कर उसे सुलझाने की जगह वो दोनों
अपनी परवरिश के फेल होने पर ज्यदा व्यथित रहे | यही तो हो रहा है आजकल …परफेक्ट
के जिस कांसेप्ट को लेकर हम सब चल रहे हैं वो एक तिलिस्म ही तो है | पर इस तिलिस्म
की माया में फँसकर एक दवाब बच्चों पर और माता –पिता दोनो पर बन रहा है | और दोनों
ही निराश कुंठित हो रहे हैं |
“सरोज की डायरी के कुछ
पन्ने “ डायरी शैली में लिखी हुई कहानी है | ये कहानी लिव इन को आधार बना कर लिखी
गयी है | हालाँकि ये कहानी लिव इन के पक्ष और विपक्ष में खड़े होने के स्थान पर
रिश्तों में आपसी समझ और विश्वास की बात करती है | रिश्ते वही सही हैं जिनमें
विश्वास हो चाहे वो लिव इन हो या विवाह के बंधन  में बंधे हुए | कहानी में नायिका का एक कभी एक
ना हो पाने वाले टूटे हुए रिश्तों को किरचों को समेट कर जीने की अपेक्षा उससे पूरी
तरह किनारा कर एक नयी जिन्दगी की शुरुआत करने का फैसला अच्छा लगता है | आज हमें
ऐसी ही नायिकाओं की जरूरत है जो स्वतंत्र जीवन ही नहीं जीती ….टूटे हुए रिश्तों
के इमोशनल बर्डन  से आज़ाद होना भी जानती
हैं | ये जिन्दगी भर प्रियतम की याद में आँसू बहाती रीतिकालीन छवि से इतर एक सशक्त
महिला की छवि है | ये आज की महिला की छवि है | “ टाइम पास” एक ह्ल्की –फुलकी कहानी
है जो आज की युवा लड़कियों के उस व्यव्हार के बारे में बात करती है जो अभी तक
पुरुषों के पास ही सीमित था | वो व्यवहार है फ़्लर्ट करने का और टाइम पास रिश्ते
बनाने का | पहले सिर्फ टाइम पास के नाम पर छली जाती स्त्रियाँ आज स्वयं ऐसे रिश्ते
बनाने लगी हैं , जिनमें गहरे अहसास नहीं होती | ये कहानी आधुनिक स्त्री के  नकारात्मक एंगल पर भी प्रकाश डालती है |
सिकंदर पशु प्रेम पर आधारित
कहानी है | कहानी के अंत में वीणा वत्सल जी ने मेंशन किया है कि इस कहानी का सूत्र
बनी एक खबर जिसमें एक बाघ की मृत्यु के बाद पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट में पता चला
कि वो कई दिन से भूखा था | उसकी भूख की वजह से उसकी आँतें  सूख गयीं थी | बाघ ‘इन ड़ेंजेरड’ प्रजाति में आता
है | उसके शिकार पर प्रतिबंध है | बाघ माँसाहारी जीव है | दूसरे जीव ही उसका भोजन
हैं पर क्या एक मांसाहारी पशु भी अपने पालनहार के प्रति इतना प्रेम अपने ह्रदय में
महसूस कर सकता है की वो कई दिन तक खाना ही ना खाए ? उत्तर ‘हाँ’ में है | प्रेम एक
बड़ी शक्ति है वो जीवन देता भी है और लेता भी है | इसी प्रेम ने अपनी माँ की मृत्यु
हो जाने पर सिकंदर को जीवन दिया था और इसी ने हर लिया | इंसान और जानवर के बीच की
ये कहानी भावुक कर देने वाली है |
सोहनी महिवाल और  चिनाब एक प्रेम कथा है | प्रेम जो कोई बंधन नहीं
मानता | जो न जाति देखता है न धर्म वो बस देखता है तो सिर्फ और सिर्फ अपने प्रियतम
को …न सिर्फ तन की आँखों से बल्कि मन की आँखों से भी | परन्तु दुनिया ये नहीं
समझती वो तो  दो प्रेमियों को जाति धर्म और
देश के चश्मे से ही देखती है | ये कहानी है प्रिया  और अरमान की जो मिलकर भी न मिल पाए और ना मिल कर
भी   हमेशा के लिए मिल गए | इस कहानी के अंदर एक और कहानी
है,  सोहनी महिवाल की …जो एक उपन्यास के
रूप में आई है जिसे प्रिया पढ़ रही है इस बात से बेखबर की उसकी जिन्दगी का भी वही
हश्र हो सकता है | कहानी लव जिहाद के मुद्दे को भी उठाती है और ये सिद्ध करती है
कि दोध्र्म के लोगों के बीच प्रेम तो  हमेशा से होता आया है | हाँ इसका नामकरण जरूर नया है | प्रेम कहानियों का
एक अपना ही टेस्ट होता है | जो लोग प्रेम कहानियाँ पसंद करते हैं उन्हें यह कहानी
पसंद भी आएगी और विह्वल भी करेगी |
अर्धनारीश्वर’ में
मंदबुद्धि बच्चे और उसके परिवार के सामने आने वाली दिक्कतों का को पन्नों पर
उकेरती है | पाठक कहीं दीपक की समस्या के साथ जूझ रहा होता है,  कहीं उसे दर्द होता है, तो कहीं सहानुभूति | कहानी अंत तक बाँधे रखती है | कहानी
का सकारात्मक अंत अच्छा लगता  है | कहानी
सुखद  अंजाम तक पहुँचती है  फिर भी ये प्रश्न बुद्धि में अपना फन फैला ही
देता है कि मंद बुद्धि बच्चों के विवाह सफल हो सकते हैं या नहीं ? वैसे  भी
जिंदगियों की कहानियाँ एक जैसी कहाँ होती हैं |” मालविका मनु” संग्रह की पहली
कहानी है | ये करीब 33 पेज की कहानी है | इस कहानी की खासियत इसका मानसिक द्वन्द
है | इस कहानी का बड़ा हिस्सा मन के स्तर पर घटित होता है | कहानी का मुख्य स्त्री
पात्र देवांश के चारों ओर घिरी लड़कियों की तरह पुरुष की उपेक्षा पर न्योछावर नहीं
होता बल्कि सम्मान अर्जित करने के लिए संघर्ष करता है | या यूँ कहें कि उसे उपेक्षा का दंड देना चाहता है |  यहाँ नायिका के
सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्ष कहानी में रखे हैं | जो अन्तत: विजय और पराजय
के मिश्रित रूप में सामने आता है | इसमें एक तथ्य उभरकर सामने आता है कि सत्ता, सत्ता ही होती है…सत्ता का मद, अहंकार, 
क्रूरता स्त्री पुरुष देखकर नहीं आता | मुख्य पात्र से इतर फुलवा का चरित्र और उसका प्रेम प्रभावित करता है | उसके चरित्र के साथ आगे बढ़ते हुए एक सुकून महसूस होता है | एक पाठक के तौर पर कहूँ तो मनोवैज्ञानिक स्तर पर उतर कर  कहानी कुछ दृश्य बहुत प्रभावित करते हैं तो कुछ मालविका और जूली के उलझे हुए चरित्र की वजह से उलझते हैं | कहानी में घटनाएं बहुत तेजी से घटती हैं | जिन्हें कहानियों में ठहराव पसंद है उन्हें इस कहानी को पढ़ते हुए अपने मष्तिष्क की गति तेज रखनी पड़ेगी |  दरअसल
कहानी लम्बी जरूर है पर इसमें लघु उपन्यास बन जाने की पूरी क्षमता है |
अंत में मैं इतना कहना
चाहूंगी कि वीणा वत्सल जी ने “अंतर्मन के द्वीप’ के 128 पेजों में सम्मलित 11
कहानियों में विविधता बनाए रखने का प्रयास किया है | कुछ कहानियाँ जैसे अना,
मेमसाहब और टाईमपास अपने नए विषयों के कारण प्रभावित करती हैं तो कुछ  देवांश, मालविका मनु  अपने
शिल्प की वजह से, अर्णव और अनिमेष का कथ्य बहुत स्ट्रांग है जो किशोर वय के बच्चों के विमर्श का द्वार खोलता है | कवर पेज के बारे में हर किसी की अपनी राय हो सकती है | मुझे कवर
पेज थोड़ा ज्यादा भरा–भरा व् रंगीन लगा | जिसके कारण संग्रह का नाम थोडा दब रहा है
| पाण्डुलिपि प्रकाशन के यह शुरूआती कहानी संग्रहों में से एक है पर उस का सम्पादन त्रुटिहीन है | ये एक अच्छी बात है | इसके लिए उन्हें बधाई | 





अंतर्मन के द्वीप –कहानी
संग्रह
लेखिका –वीणा वत्सल सिंह
प्रकाशक –पाण्डुलिपि
प्रकाशन
मूल्य -१५० रुपये (हार्ड
बाउंड )
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….अंतर्मन के द्वीप

समीक्षा -वंदना बाजपेयी 


                                

लेखिका -वंदना बाजपेयी


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3 COMMENTS

  1. पुस्तक पढ़ने की उत्कंठा जगाती हुई हमेशा की ही तरह बेहतरीन समीक्षा ।
    आपको तथा वीणा जी को हार्दिक बधाई एवम् अनंत शुभकामनाएँ 💐💐

  2. लाजवाब समीक्षा।इतनी गहराई से विश्लेषण किया कि पाठक पुस्तक पढ़ने को ललचा,जाते।आपको और वीणा जी का शुभकामनाएं।

  3. बहुत लाजवाब समीक्षा। पाठकों को पढ़ने के लिए मजबूर किया। लेखिका और समीक्षक को बधाई।

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