मर्द के आँसू

1

मर्द के आँसू

मर्द के आंसुओं पर बहुत बात होती है | बचपन से सिखाया जाता है , “अरे लड़के होकर रोते हो | बड़े होते होते भावनाओं पर लगाम लगाना आ जाता है | पर आंसू तो स्वाभाविक हैं | वो किसी ना किसी तरह से अपने निकलने का रास्ता खोज ही लेते हैं | आइये जानते हैं कैसे …

मर्द के आँसू 

कौन कहता है की मर्द नहीं रोते हैं
उनके रोने के अंदाज जुदा होते हैं

सामाज ने कह -कह कर उन्हें ऐसा बनाया है
आंसुओं को खुद ह्रदय में पत्थर सा जमाया है
पिघलते भी हैं तो  ये आँसू रक्त में मिल जाते हैं
और सारे शरीर में बस घुमते रह जाते हैं |
बाहर निकलने का रास्ता कहाँ मिल पाता है |
इसलिए ये खून इनके अंतस को जलाता है
दर्द की किसी शय पर जब मन बुझ  जाता है
तो दुःख के पलों में इन्हें गुस्सा बहुत आता है
 कई बार जब ये गुस्से में चिल्ला रहे होते हैं
या खुदा ! दिल ही दिल में आँसू बहा रहे होते हैं |

लोग रोने पर औरत के ऊँगली उठाते हैं ,
उसको नाजुक और कमजोर बताते हैं |
पर औरत तो आंसू पोछ कर सामने आती है
पूरी हिम्मत से फिर मैदान में जुट जाती है
पर मर्द अपने आंसुओं को कहाँ पाच पाता है |
वो तो आँसुओं के साथ बस रोता ही रह जाता है |

एक औरत जब आँसुओं का साथ लेती है
बड़े ही प्रेम से दूजी का दुःख बाँट लेती है |
पर आदमी, खून में अपने आँसू छिपाता है
इसलिए दूसरा आदमी समझ नहीं पाता है |
ताज्जुब है कि इन्हें औरत ही समझ पाती है |
अपने आँसुओं से उस पर मलहम लगाती है |

हर मर्द की तकलीफ जो उसे दिल ही दिल में सताती है
उसकी माँ , बहन , बेटी पत्नी की आँखों से निकल जाती है |

वंदना बाजपेयी

यह भी पढ़ें …

अंतर्राष्ट्रीय  पुरुष दिवस -परिवार में अपनी भूमिका के प्रति  सम्मान की मांग 



आपको आपको  लेख “मर्द के आँसू कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | 

फाइल्ड अंडर – Iternational Man’s Day , aansoon , tear , man’s tear , poem 

1 COMMENT

  1. सही कहा।वे अंदर से टूटे हुए हैं, बाहर अपने को मजबूत दिखाते हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here