डॉ .भारती वर्मा बौड़ाई Archives - अटूट बंधन https://www.atootbandhann.com/category/डॉ-भारती-वर्मा-बौड़ाई हिंदी साहित्य की बेहतरीन रचनाएँ एक ही जगह पर Sat, 04 Jan 2020 13:48:12 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.1.6 पगडंडियों पर चलते हुए -समाज को दिशा देती लघुकथाएं https://www.atootbandhann.com/2019/07/pagdandiyon-par-chalte-hue-book-review-in-hindi.html https://www.atootbandhann.com/2019/07/pagdandiyon-par-chalte-hue-book-review-in-hindi.html#respond Sat, 06 Jul 2019 13:33:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2019/07/06/pagdandiyon-par-chalte-hue-book-review-in-hindi/ साहित्य जगत में डॉ .भारती वर्मा बौड़ाई एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में उभर रही हैं | अटूट बंधन के साहित्य सुधि पाठक उन्हें यहाँ अक्सर पढ़ते रहे हैं | कभी हिंदी अध्यापिका रही भारती जी साहित्य की  पगडंडियों पर चल कर तेजी से आगे बढती जा रहीं है | क्योंकि वो स्वयं अध्यापिका रहीं […]

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पगडंडियों पर चलते हुए -समाज को दिशा देती लघुकथाएं

साहित्य जगत में डॉ .भारती वर्मा बौड़ाई एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में उभर रही हैं | अटूट बंधन के साहित्य सुधि पाठक उन्हें यहाँ अक्सर पढ़ते रहे हैं | कभी हिंदी अध्यापिका रही भारती जी साहित्य की  पगडंडियों पर चल कर तेजी से आगे बढती जा रहीं है | क्योंकि वो स्वयं अध्यापिका रहीं हैं इसलिए उनके सहित्य में मैंने एक खास बात देखी  हैं कि संवेदनाओं को जागते हुए भी उनके  साहित्य में समाज के लिए कोई सीख कोई दिशा छिपी रहती है | मुझे लगता है कि साहित्य का मूल उद्देश्य भी यही होना चाहिए कि समाज का केवल सच ही सामने ना लाये अपितु उसे हौले से बदलने का प्रयास भी करें | कदाचित इसी लिए जन सरोकारों से जुड़े साहित्य को हमेशा श्रेष्ठ साहित्य की श्रेणी में रखा जाता है |

2019 में उनकी 6 लघु पुस्तिकाएं आई हैं | जिनमें चार काव्य की एक लघु कथाओं की और एक लेखों की हैं | सभी लघु पुस्तिकाएं अपने आप में विशेष है पर आज मैं  यहाँ पर उनके लघुकथा संग्रह “पगडंडियों पर चलते हुए” की बात करना चाहती हूँ |  भारती जी के इस लघु कथा संग्रह में करीब ३० लघुकथाए है | समाज को दिशा देती ये सारी  लघुकथाएं प्रशंसनीय हैं |

पगडंडियों पर चलते हुए -समाज को दिशा देती लघुकथाएं 

पहली लघुकथा “इस बार की बारिश” एक ऐसी स्त्री के बारे में है जिसका पति कोई काम नहीं करता | घर में बैठे -बैठे खाना और सोना उसका प्रिय शगल है | उसकी पत्नी दिविका उसे बहुत समझाती है परन्तु उस पर कोई असर नहीं होता | दिविका बाहर जा कर नौकरी कर सकती है | परन्तु वो सोचती है कि अगर वो ऐसा करेगी तो उसके पति व् ससुराल वाले और निश्चिन्त हो जायेगे  तथा वो दोहरी जिम्मेदारियाँ निभाते -निभाते परेशान  हो जायेगी | अन्तत : वो अपने पति से संबंध संपत कर  अपने जीवन की डोर अपने हाथ में लेने का संकल्प लेती है |

दुर्भाग्य से आज जब मैं इस कहानी पर लिख रही हूँ तो  अखबार में दिल्ली की एक खबर है | एक व्यक्ति जो पिछले दो सालों से बेरोजगार था और पत्नी नर्स का काम कर  अपने परिवार को पाल रही थी , उसने नशे व् क्रोध में अपनी पत्नी बच्चों की हत्या कर आत्महत्या कर ली |

क्या ऐसे समय में जरूरत नहीं है दिविक जैसी महिलाओं की जो सही समय में सही फैसले ले और अपनी व् बच्चों की जिन्दगी को इस तरह जाया ना होने दें |

रक्षा बंधन ” से सम्बंधित दो लघुकथाएं मुझे बहुत अच्छी लगी | इनमें से एक में “रक्षा बंधन ऐसा भी ” एक माँ जो बिमारी जूझ रही है और उसके बच्चे उसकी सेवा तन मन से करते हैं वो रक्षा बंधन के दिन अपने भाई के बाद अपने बच्चों के राखी बांधती है | वहीँ दूसरी कहानी ‘अनोखा रक्षा बंधन ” में पुत्र दोनों मामाओं की मृत्यु के बाद उदास रहती माँ  से राखी बंधवाता है | रक्षा बंधन की मूल भावना ही किसी की दर्द तकलीफ में उसका सहारा बन जाने में है | वो हर रिश्ता जो इस बात में खरा उतरता है इस बंधन का हकदार है | ये एक नयी सोच है जो बहुत उचित भी है |

नया सवेरा ” कहानी एक ऐसी बच्ची की कहानी है जो माता -पिता के दवाब में  दसवीं में विज्ञान लेती है और फेल हो जाती है | अन्तत : माता -पिता समझते हैं कि हर बच्चा कुछ कर सकता है ,कुछ बन सकता है बशर्ते उस पर अपनी इच्छाओं का बोझ ना डाला जाए |

उड़ान “में बच्ची मीना अपने  जन्मदिन केक काट कर दोस्तों व् रिश्तेदारों के साथ डिनर करके नहीं बल्कि  वृद्ध आश्रम में मनाना चाहती है | वो अपने मित्रों के साथ वहां जा कर वृद्ध लोगों में आशा का संचार करती है | तो वहीँ “नयी सोच ‘के प्रधानाध्यापक बच्चो को सफाई के सिर्फ उपदेश ना पिला कर , न सिर्फ स्वयं सफाई करते हैं वरन बचे हुए खाने से खाद बनाने व् पौधे लगाने का भी काम करते हैं | उनको इस तरह करता देख बच्चे स्वयं प्रेरित हो जाते हैं | एक अंग्रेजी कहावत है कि …

“Action speaks louder than words”


                 ये कहानी इस लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ये  सिर्फ  कोरी शिक्षा पर जोर नहीं देती , वरन बच्चों को सिखाने के   लिए स्वयं में परिवर्तन के महत्व को रेखांकित करती है |

विस्फोट ‘ एक ऐसी कहानी है जिस दशा से आमतौर पर महिलाएं गुजरती हैं | पुरुषों के लिए कोई बंधन नहीं हैं पर घर की बहु , कहाँ जारही है ? , कब जा रही है ? और कब तक लौटेगी ? के सवालों से झूझती ही रहती है | खासकर जब वो अपने मायके जा रही हो | ऐसे ही एक लड़की गौरी अपने माता -पिता के पास मिलने जाती है ,बारिश होने लगती है तो वो फोन कर के ससुराल में बता देती है , उधर बारिश ना रुकते देख माँ कहती हैं कि खानाबन ही गया है खा के जा ” माँ का दिल ना टूटे इसलिए वो खाना खा कर ससुराल जाती है |

वहां सब नाराज बैठे हैं | आते ही ताने -उलाह्नेशुरु हो जाते हैं , ” आ गयीं मायके से पार्टी जीम कर , भले ही ससुराल में सब भूखे बैठे हो ?”

आहत गौरी पहली बार अपनी जुबान खोलती है कि, ” क्या वो मायके भी नहीं जा सकती ? अगर इस पर भी ऐतराज़ है तो अब वो जब चाहे , जहाँ चाहे जायेगी |

गौरी का प्रश्न हर आम महिला का प्रश्न है | बहुधा ससुराल वाले विवाह के बाद  महिला के उसके माता -पिता के प्रति प्रेम पर ऐतराज़ करने लगते हैं …….तब उनके यहाँ भी गौरी की तरह ही विस्फोट होता है |

“बहु कभी बेटी के बराबर नहीं हो सकती ये कहने से पहले खुद का व्यवहार भी देखना होता है |”

इसके अतिरिक्त शोर , अचानक , नयी पहचान व् अपने हिस्से का काम भी,  उल्लेखनीय लघु कथाएँ हैं | भारती जी की भाषा हमेशा की तरह सधी हुई है , उनकी हर लघुकथा के अंत का पंच उसे लघुकथों के मानकों पर खरा उतारता है | संग्रह में ३०लघुकथाये हैं जो ३२ पेजों में समाई हुई हैं | कवर पेज आकर्षक है | संग्रह का मूल्य 55 रुपये है |

आज की भागदौड़ वाली जीवन शैली में समय कम होने के कारण वैसे भी आजकल लोग लघु पुस्तिकाएं ज्यादा पसंद कर रहे हैं | उपन्यास भी १०० -१२५ पृष्ठों के लिखे जा रहे हैं | क्योंकि आम पाठक पढना तो चाहता है परन्तु महगी और मोटी  पुस्तकें देख कर अपने हाथ पीछे खींच लेता है | ऐसे में अन्तरा शब्द शक्ति प्रकाशन का छोटी व् कम कीमत की लघु पुस्तिकाएं निकालने का प्रयास सराहनीय है |

भारती जी को उनके लघु कथा संग्रह ” पगडंडियों पर चलते हुए ” के लिए बधाई व् शुभकामनाएं

वंदना बाजपेयी

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मातृ दिवस पर डॉ . भारती वर्मा ‘बौड़ाई जी की चार कविताएँ https://www.atootbandhann.com/2019/05/four-emotional-poems-on-mothers-day-in-hindi.html https://www.atootbandhann.com/2019/05/four-emotional-poems-on-mothers-day-in-hindi.html#respond Sun, 12 May 2019 00:16:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2019/05/12/four-emotional-poems-on-mothers-day-in-hindi/ माँ का उसकी संतान से रिश्ता अद्भुत है |माँ हमेशा स्नेह प्रेम और दया की मूर्ति होती है | अगर ये कहें कि माँ धरती पर साक्षात ईश्वर है तो अतिश्योक्ति ना होगी | यूँ तो हर दिन माँ का दिन होता है … पर मदर्स डे विशेष रूप से इसलिए बनाया गया कि कम […]

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मातृ दिवस पर डॉ . भारती वर्मा 'बौड़ाई जी की चार कविताएँ
माँ का उसकी संतान से रिश्ता अद्भुत है |माँ हमेशा स्नेह प्रेम और दया की मूर्ति होती है | अगर ये कहें कि माँ धरती पर साक्षात ईश्वर है तो अतिश्योक्ति ना होगी | यूँ तो हर दिन माँ का दिन होता है … पर मदर्स डे विशेष रूप से इसलिए बनाया गया कि कम से कम वर्ष में एक दिन तो माँ के प्रति अपनी सद्भावनाएं व्यक्त की जा सकें | भले ही ये आयातित त्यौहार हो , पर हमें अवसर देता है की हम कह सकें ,” माँ तुम मेरी जिन्दगी में आज भी उतनी ही  अहमियत रखती  हो | “
कुछ ऐसा ही प्रयास है इन कविताओं में ….

मातृ दिवस पर डॉ . भारती वर्मा ‘बौड़ाई जी की चार कविताएँ 

——————————-
१– अम्मा जी 
—————
जब से 
गई हो तुम 
रुका नहीं कुछ भी 
सब कुछ 
चल रहा है वैसे ही 
आज भी 
बस तुम ही 
नहीं हो देखने के लिए 
हमारे साथ…!
वो पुराना कमरा 
जहाँ रखी रहती थी 
दो कुर्सियाँ 
जिन पर 
सदा बैठी मिलती थी 
बाबा जी के साथ 
और बाद में 
नए कमरे में
लगे डबल बेड पर 
बैठी मिलती थी तुम….
वो दोनों चित्र 
आज भी बसे हैं 
मेरी आँखो में 
बिलकुल वैसे ही
जब कभी 
जाती हूँ वहाँ 
तो मिलती हो तब भी 
पर बैठी हुई नहीं,
दीवार पर लगे 
चित्र से देखती हुई….
मानो अभी कह उठोगी 
बड़े दिन में आए,
पता है तुम्हें 
इस बीच 
बहुत कुछ 
बदल गया है 
अब आने पर भी 
मन नहीं लगता 
तुम्हारे बिना,
बातें भी नहीं सूझती
करने को कुछ…!
तुम्हारे होते 
कहनेसुनने को 
होता था इतना
पर अब 
देखो
जैसे कुछ है ही नहीं 
तुम्हें पता है 
तुम्हारे सामने 
खेलने– कूदने वाले 
नातीपोते 
अब कितने बड़े 
हो गए है 
दो पोतोंएक पोती 
और एक नातिन..इनका 
विवाह भी हो गया है 
तुम्हारा बड़ा परिवार 
अब और बड़ा हो गया 
जिसमें दो बहुएँ
दो दामाद जुड़ गए हैं 
और जल्दी ही 
एक दामाद और आएगा…!
हुई  खुशी 
यह सब सुन कर
इसीलिए तो बताया मैंने….!
और हाँ!
एक दिन  
तुमसे पूछपूछ कर 
अचार डालने के तुम्हारे 
तरीके और मसालों के अनुपात 
मैंने जिस कॉपी में 
लिखे थे 
जाने कहाँ 
इधरउधर हो गई 
तभी से मन 
बड़ा बेचैन है 
ढूँढने वाला भी तो 
मेरे सिवा कोई नहीं….
आज 
जन्मदिन है तुम्हारा 
और आज ही घर की 
गृहप्रवेश पूजा हुई थी 
इसलिए यह तारीख 
कभी भूलती नहीं मैं….!
तुम होती 
तो आज 
तुम्हारे पास आती 
पर नहीं हो 
तभी याद करते हुए 
कल्पनाओं में ही 
तुमसे बात करके 
तुम्हें पाने का सुख 
जी रही हूँ 
हो जहाँ 
कहीं भी तुम 
मैं तो सदा 
अपने पास 
अपने साथ लिए 
तुम्हें चल रही हूँ 
अम्मा जी……!!!!!!
————————————


२– मैं तुझे फिर मिलूँगी
————————
मैं तुझे फिर मिलूँगी 
एक नये मोड़ पर,
तब तक तुम भी 
एक नये रूप में 
अवतरित हो चुकोगी 
और मैं भी इसकी 
तैयारी कर रही होऊँगी…..!
एक यात्रा 
पूर्ण हो चुकी तुम्हारी माँ 
और मैं अभी यात्रा के मध्य हूँ,
अगला जन्म 
जब ही होगा हमारा 
तुम प्रतीक्षा करना,
जिंदगी हमारी 
पानी के रंग सी 
इस तरह घुलीमिली है 
कि जिस मोड़ पर भी मिलोगी 
मैं तुम्हें पहचान लूँगी माँ….!!
कुछ वादे 
इस जन्म में 
किए थे हमने 
अगले जन्म के लिए 
और कुछ हर जन्म के लिए…..!!!
उन्हें पूरा करने 
हमें तो बारबार मिलना है 
तुम्हें मेरी माँ 
और मुझे तुम्हारी बेटी बनना है….!!!!
तभी तो कहती हूँ 
जहाँ भी 
जिस मोड़ पर खड़ी 
तुम मेरी प्रतीक्षा करोगी 
वहीं मैं तुझे मिलूँगी मेरी माँ!
जिस भी जन्म में 
जो भी रह जायेगा बाकी 
उसे पूरा करने 
मैं हर एक जन्म में 
मैं तुझे मिलूँगी माँ!
और पूछती रहूँगी 
अपने अंतिम समय में 
तुम मुझे क्या कहना चाहती थी माँ…..!!!!!
—————————————

मातृ दिवस पर डॉ . भारती वर्मा 'बौड़ाई जी की चार कविताएँ




३– हर दिवस मातृ दिवस 
—————————————
माँ का 
हर दिवस 
तभी है सार्थक 
जब हर बच्चा उसका 
बने एक सच्चा 
इंसान….!
हो भरपूर 
मानवता से 
माँ और मातृभूमि 
दोनों के वास्ते 
रखे प्राणों पर भी 
खेल सकने का 
जीवट
करे रक्षा 
सम्मान के साथ…..!
जो प्रकृति को
दे प्यार 
जो करे काम
हृदय में बसने को 
भले ही 
 आए नाम 
अखबारों में 
कहीं भी 
कभी भी…!
तब है माँ का 
हर दिन सार्थक 
हर दिन मातृ दिवस…!!!
——————————


मातृ दिवस पर डॉ . भारती वर्मा 'बौड़ाई जी की चार कविताएँ

४– धागा 
———
आँधियों में 
दरकने लगी है 
पैरों तले की जमीन,
डूबने को है जहाज
और कप्तान भयभीत,
जिस आशीष और 
बरकत के 
पवित्र धागे से 
बुना करती थी 
सुरक्षा कवच 
अपने संसार के 
चारों ओर 
वो तुम्हारा 
दिया धागा 
टूटने को है,
आओ 
फिर से माँ!
मैं खड़ी हूँ 
तुमसे वो धागा 
लेने के लिए 
आँधियों का सामना 
करने के लिए,
आओगी  माँ…..!!!!!
——————————
डा० भारती वर्मा बौड़ाई

लेखिका -डा० भारती वर्मा बौड़ाई


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करवा चौथ पर चार काव्य अर्घ्य https://www.atootbandhann.com/2018/10/karvachuth-4-poems-in-hindi.html https://www.atootbandhann.com/2018/10/karvachuth-4-poems-in-hindi.html#respond Fri, 26 Oct 2018 09:59:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2018/10/26/karvachuth-4-poems-in-hindi/ पति -पत्नी के प्रेम का प्रतीक  करवाचौथ का व्रत सुहागिनें निर्जल रहा करती हैं और चंद्रमा पर जल का अर्घ्य चढ़ा कर ही जल ग्रहण करती हैं | समय के साथ करवाचौथ मानाने की प्रक्रिया में कुछ बदलाव भी आये पर मूल में प्रेम ही रहा | आज उसी प्रेम को चार काव्य अर्घ्य के […]

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करवाचौथ
पति -पत्नी के प्रेम का प्रतीक  करवाचौथ का व्रत सुहागिनें निर्जल रहा करती हैं और चंद्रमा पर जल का अर्घ्य चढ़ा कर ही जल ग्रहण करती हैं | समय के साथ करवाचौथ मानाने की प्रक्रिया में कुछ बदलाव भी आये पर मूल में प्रेम ही रहा | आज उसी प्रेम को चार काव्य अर्घ्य के रूप में समर्पित कर रहे हैं | 

करवा चौथ पर चार काव्य अर्घ्य 

१—
जोड़ियाँ 
कहते हैं 
बनती हैं जोड़ियाँ
ईश्वर के यहाँ 
आती तभी 
धरती पर 
पति-पत्नी के रूप में..!
ईश्वर के 
वरदान सदृश 
बंधे हैं जब
इस रिश्ते में 
तो आओ आज 
कुछ अनुबंध कर लें…!!
जैसे हैं 
बस वैसे ही 
अपना कर 
एक-दूजे को 
साथ चलते रहने का 
मन से प्रबंध कर लें….!!!
अपने “ मैं” को 
हम में मिला कर 
पूरक बनने का 
दृढ़ संबंध कर लें…..!!!!
पति-पत्नी के साथ ही 
आओ 
कुछ रंग
बचपन के 
कुछ दोस्ती के 
कुछ जाने से 
कुछ अनजाने से 
आँचल में भर कर
इस प्यारे से रिश्ते को 
और प्यारा कर लें…..!!!!!
———————————
२– 
करवाचौथ पर 
——————
मीत!
सुना तुमने..?
बन रहा 
इस बार 
विशेष संयोग 
सत्ताइस वर्षों बाद 
इस करवाचौथ पर….!
मिलेंगी जब 
अमृत सिद्धि 
और स्वार्थ सिद्धि 
देंगी विशेष फल
हर सुहागिन को….!!
लगता 
हर दिन ही 
मुझे करवाचौथ सा 
जब से 
मिले तुम 
मुझे मीत मेरे!
ये मेरा 
सजना-सँवरना
है सब कुछ तुम्हीं से 
राग-रंग 
जीवन के 
हैं सब तुम्हीं में….!!!
पूजा कर 
जब चाँद देखेंगे 
छत पर 
हम दोनों मिलकर 
माँगेंगे आशीष 
हम चंद्रमा से 
सदा यूँ ही 
पूजा कर 
निहारे उसे 
हर करवाचौथ पर…..!!!
———————————
३– 
सुनो चाँद!
—————
सुनो चाँद!
आज कुछ 
कहना चाहती हूँ तुमसे 
ये पर्व 
मेरे लिए 
उस निष्ठा 
और प्रेम का है 
जिसे 
जाना-समझा 
अपने माता-पिता को 
देख कर मैंने 
कि प्रेम और संबंध में 
कभी दिखावा नहीं होता 
होता है तो बस 
अनकहा प्रेम 
और विश्वास 
जो नहीं माँगता 
कभी कोई प्रमाण 
चाहत का……!
मैं 
तुम्हारे सम्मुख 
अपने चाँद के साथ 
कहती हूँ तुमसे..,
मुझे 
प्यारा है 
अपने मीत का 
अनकहे प्रेम-विश्वास का
शाश्वत उपहार 
अपने हर 
करवाचौथ पर….!!
तुम 
सुन रहे हो न 
चाँद……..!!!
————————
४—
अटका है..!
—————
मेरी 
प्रियतमा!
कहना चाहता हूँ 
आज तुम्हें 
अपने हृदय की बात…,
सुनो!
आज भी 
मुझे याद है 
पहला करवाचौथ 
जब हम 
यात्रा के मध्य थे,
स्टेशन पर 
रेल से उतर कर 
चाँद को 
अर्ध्य दिया था तुमने…!
वो 
सादगी भरा 
मोहक रूप 
पहले करवाचौथ का 
आज भी 
मेरी आँखों में 
वैसा ही बसा है…!!
मेरा हृदय 
सच कहूँ तो 
आज भी वहीं 
करवाचौथ के 
चाँद के साथ 
तुम्हारी 
उसी भोली सी 
सादगी पर अटका 
स्टेशन पर 
अब भी वहीं खड़ा है….!!!
सुन 
रही हो न 
तुम मेरी प्रियतमा….!!!!
———————————
डा० भारती वर्मा बौड़ाई

लेखिका -डॉ. भारती वर्मा 'बौड़ाई'

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हिंदी मेरा अभिमान https://www.atootbandhann.com/2018/09/hindi-mera-abhiman.html https://www.atootbandhann.com/2018/09/hindi-mera-abhiman.html#respond Fri, 14 Sep 2018 05:18:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2018/09/14/hindi-mera-abhiman/ आज जब पीछे मुड़ कर देखती हूँ और सोचती हूँ  कि हिंदी कब और कैसे मेरे जीवन में इतनी घुलमिल गई  तो इसका पूरा-पूरा शत-प्रतिशत श्रेय माँ और पापा को जाता है और किस तरह जाता है इसके लिए  मुझे अपने बचपन में लौटना होगा। संस्मरण -हिंदी मेरा अभिमान            मेरे […]

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हिंदी मेरा अभिमान
आज जब पीछे मुड़ कर देखती हूँ और सोचती हूँ  कि हिंदी कब और कैसे मेरे जीवन में इतनी घुलमिल गई  तो इसका पूरा-पूरा शत-प्रतिशत श्रेय माँ और पापा को जाता है और किस तरह जाता है इसके लिए 
मुझे अपने बचपन में लौटना होगा।

संस्मरण -हिंदी मेरा अभिमान 

          मेरे पापा बाबूराम वर्मा हिंदी के कट्टर प्रेमी थे। एक माँ के रूप में वे हिंदी से प्यार करते थे। काम करते-करते वे बच्चन जी के लिखे गीत गुनगुनाते रहते थे। आज मुझसे बोल बादल, आज मुझसे दूर दुनिया, मधुशाला, मधुबाला गाते। सुनते-सुनते मुझे भी कई गीत, रुबाइयाँ याद हो गई थीं। बाद में शायद यही मेरी पी एच डी करने के समय बच्चन साहित्य पर शोध करने का कारण भी बनी होगी।
         तो हिंदी से मन के तार ऐसे जुड़े कि पराग, चंदामामा, बालभारती, चंपक मिलने की प्रतीक्षा रहने लगी। साप्ताहिक हिंदुस्तान, धर्मयुग और उसमें भी डब्बू जी वाला कोना सबसे पहले देखना… बड़ा आनंद आता। लेखकों, कवियों के प्रति सम्मान की भावना भी उत्पन्न होने लगी। आठवीं कक्षा में थी, तब विद्यालय पत्रिका में मेरी पहली छोटी सी कहानी छपी थी। उस समय जिस आनंद की अनुभूति हुई थी, आज भी जब उसके बारे में सोचती हूँ तो उस आनंद की सिहरन आज भी जैसे अनुभव होती है वैसी ही।
        पापा की अलमारी से ढूँढ-ढूँढ कर पुस्तकें , सरस्वती, कहानी, विशाल भारत निकाल कर पढ़ना एक आदत बन गई थी । शिवानी, मालती जोशी. उषा प्रियंवदा, मन्नू भंडारी, शशिप्रभा शास्त्री, रांगेय राघव आदि को पढ़ने का अवसर मिला। माँ से विवाहों, पर्व-त्योहारों के अवसर पर लोकगीत सुने तो यह विधा भी मन के निकट रही।
            हिंदी की पुस्तकें, पत्रिकाएँ पढ़ने का जुनून कुछ इस तरह घर में सबको था कि जब घर में सब होते तो कोई न कोई पुस्तक-पत्रिका हाथ में लिए पढ़ने में लगे होते। यह दृश्य भी देखने लायक हुआ करता था। पापा तो नौकरी के बाद बचे अपने समय का भरपूर उपयोग पढ़ने-लिखने में किया करते थे।
          घर में पूरा वातावरण हिंदीमय था। माँ पर अवश्य कभी अपनी आस-पड़ोस की सखियों की देखा-देखी कभी अँग्रेजी दिखावे की दबी सी भावना आ जाती, पर टिक नहीं पाती थी।
           जब मेरे छोटे भाई का मुंडन समारोह होना था और उसके निमंत्रण पत्र छपवाने की बात आई तो माँ ने कहा यहाँ सभी अँग्रेजी में छपवाते हैं तो हम भी छपवा लें, हिंदी में छपे निमंत्रण पत्र बाँटेंगे तो देखना कोई आयेगा भी नहीं। पर पापा कहाँ मानने वाले ? बोले.. कोई आये ना आये, निमंत्रण पत्र तो हिंदी में ही छपेंगे और बटेंगे। ऐसा ही हुआ। मैं पापा के साथ निमंत्रण पत्र बाँटने भी गई थी और सब लोग आये थे। उस समय कई दिनों तक इसकी चर्चा होती रही रही थी और कई लोगों ने इसका अनुकरण भी किया था। इस बात ने मेरे मन पर बहुत प्रभाव डाला था।
           मेरे पापा देहरादून के वन अनुसंधान संस्थान (एफ. आर. आई ) में हिंदी अनुवादक के पद पर कार्यरत थे। वानिकी से संबंधित अँग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया करते थे। उनकी अँग्रेजी भी बहुत अच्छी थी। पर वे बातचीत हिंदी में ही करते थे। आस-पड़ोस के बच्चों के माता-पिता अँग्रेजी झाड़ते रहते थे। तो मैं कभी सोचती कि मेरे पापा क्यों ऐसा नहीं करते और एक दिन मैंने उनसे पूछ ही लिया  कि आप कभी लोगों से अँग्रेजी में क्यों बातचीत नहीं करते ? उसका जो उत्तर मुझे मिला था उससे मेरे मन में पापा के प्रति सम्मान और भी अधिक हो गया था। उन्होंने मुझे कहा था… जो हिंदी बोल-समझ सकते हैं उनसे हिंदी में ही बात करनी चाहिए, पर जो हिंदी नहीं बोल-समझ सकते वहाँ अँग्रेजी बोलनी मजबूरी है तो बोलनी चाहिए। मैं ऐसा ही करता हूँ।आज ऐसा सोचने वाले कितने हैं?
           उनसे हिंदी में अनुवाद करवाने के लिए बहुत लोग आते थे और उसके लिए वह बहुत ही कम पैसे लिया करते थे। कोई-कोई स्वयं पैसे पूछ कर काम करवाता और पैसे देने का नाम न लेता। मैं कहती… आपने अपना समय लगा कर काम किया और उसने पैसे भी नहीं नहीं दिए तो हमारा क्या लाभ हुआ? उलटा नुकसान ही हुआ। तो वह कहते… नुकसान तो हो ही नहीं सकता।मैं पूछती कैसे… तो वह बताते… मेरा किया अनुवाद जब वह व्यक्ति छपवायेगा तो उसे बहुत सारे लोग पढ़ेंगे, तो यह मेरी हिंदी का प्रचार-प्रसार ही हुआ, तो इसमें नुकसान कहाँ? लाभ ही लाभ है। पैसा तो केवल मुझ तक पहुँचता है, पर मेरे किये अनुवाद से हिंदी बहुत लोगों तक पहुँचती है। ऐसी थी अपनी हिंदी माँ के प्रति उनकी सोच…. जिसने मेरे अंदर भी हिंदी प्रेम इतना विकसित किया कि बी.ए. करते समय मैं संस्कृत में एम.ए. करना चाहती थी, पर बी.ए. करने के बाद मैंने एम.ए. हिंदी में प्रवेश लिया था।
             मेरे पिता ने कभी भी उपहार में मुझे पैसे-कपड़े नहीं दिये। वे हमेशा यहीं कहा करते थे कि मेरी पुस्तकों का संग्रह ही तुम्हारे लिए मेरा उपहार है, जिसका उपयोग केवल तुम ही मेरे साथ भी और मेरे चले जाने के बाद भी, करोगी। आज वे ही मेरी अमूल्य निधि हैं।
           ऐसे ही हिंदीमय वातावरण में पलते-बढ़ते-पढ़ते मेरी कल्पनाओं ने भी अपने पंख पसारने आरंभ कर दिये थे और मेरी कॉपी छोटी-छोटी कविता, कहानी और लेखों से भरने लगी थी।
           अपने पापा से मिली हिंदी प्रेम और साहित्य की विरासत से मुझमें भी छोटे-छोटे विचारों को मूर्त करने के लिए निर्णय लेने -कहने की क्षमता आने लगी।
           मैंने अरुणाचल प्रदेश के शिक्षा विभाग में हिंदी अध्यापिका ( टी.जी. टी.) के रूप में चौबीस वर्ष तक कार्य किया। वहाँ सिल्ले उच्च माध्यमिक विद्यालय में विद्यालय पत्रिका निकलती थी जिसमें अँग्रेजी और स्थानीय बोली की रोमन में लिखी रचनायें ही ली जाती थीं। मैंने उसमें हिंदी विभाग भी रखवाया और विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करके छोटी छोटी कवितायें, कहानियाँ लिखवाई, उन्हें ठीक करके, हिंदी विभाग की संपादिका बन, उन्हें प्रकाशित भी करवाया। इसी तरह सिमोंग माध्यमिक विद्यालय में रहते हुए विद्यालय पत्रिका निकालने का निर्णय किया। बहुतों ने हतोत्साहित भी किया, पर उसको निकालने का पूरा दायित्व अपने ऊपर लेकर बच्चों से और उत्साहित करने के लिए शिक्षकों से भी हिंदी, अँग्रेजी और स्थानीय बोली… तीनों की रचनाएँ लिखवा कर एकत्रित की। मेरे पति भी अपने हिंदी प्रेम के कारण ऐसे कार्यों में आगे रहते और पूरा सहयोग करते ।अपने पापा की सहायता से देहरादून में विद्यालय पत्रिका को छपवाया और उस समय के मुख्यमंत्री श्री गेगोंग अपांग से उसका विमोचन भी करवाया था। मेरे पति तब उस विद्यालय में प्रधानाध्यापक थे।तब इसकी वहाँ बहुत चर्चा होती रही थी कई दिनों तक। 
              मेरी बेटी का विवाह हुआ  तो उसका निमंत्रण पत्र भी हिंदी में छपा। मैंने उसमें भी अपने मन के कई प्रयोग किये। अपनी लिखी कविता भी उसमें रखी।
           तो जिस तरह मेरे पापा ने अपने हिंदी प्रेम से अपनी हिंदी माँ के लिए जीवन की अंतिम साँस तक कार्य करते हुए मेरी जड़ों को सींचा और एक फलदार वृक्ष बनाया उसी तरह मैं भी अपने बच्चों  को उसी हिंदी प्रेम में बढ़ते हुए देखने के लिए संस्कारित करने में लगी हूँ। बेटे के पच्चीसवें वर्ष में प्रवेश करने पर उसके लिए लिखी कविताओं का संग्रह “ उपहार “ उसे भेंट किया, जो अंतरा शब्दशक्ति प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है और जन्मदिन पर मैं उसे पुस्तक दे सकूँ… इसके लिए प्रीति सुराना ने अपने और कामों की व्यस्तता के बीच से समय निकाल कर मुझे पुस्तक एक दिन पहले उपलब्ध करवा दी थी। बेटी के जन्मदिन पर भी अब आगे मेरा यही उपहार  होने वाला है।
         मेरे पापा का हिंदी प्रेम का मुझमें अंकुरित हुआ बीज अब धीरे-धीरे मेरे बच्चों में भी पनप रहा है। नाना की इस विरासत पर उन्हें भी उतना ही गर्व है जितना मुझे है।
         हिंदी..पापा का, मेरा और मेरे बच्चों का ही अभिमान नहीं, हम सबका, देश का, राष्ट्र का अभिमान है।
———————————
डा० भारती वर्मा बौड़ाई
लेखिका
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अनुभूतियों के दंश- लघुकथा संग्रह (इ बुक )

लघुकथा वो विधा है जिसमें थोड़े शब्दों में पूरी कथा कहनी होती है | आज
के समय में जब समयाभाव के कारण लम्बी कहानी पढने से आम  पाठक कतराता है वहीँ लघुकथा
अपने लघुआकार के कारण आम व् खास सभी पाठकों के बीच लोकप्रिय है | उम्मीद है आने
वाले समय में ये और लोकप्रिय होगी | लोगों को लगता है कि लघुकथा लिखना आसान है पर एक
अच्छी लघुकथा लिखना इतना आसान भी नहीं है | यहाँ लेखक को बहुत सूक्ष्म  दृष्टि की
आवश्यकता होती है | उसमें उसे किसी छोटी सी घटना के अंदर छिपी बात समझना या उसकी
सूक्ष्मतम विवेचना करनी होती है | और अपने कथ्य में उसे इस तरह से उभारना होता है
कि एक छोटी सी बात जिसे हम आम तौर पर नज़रअंदाज कर देते हैं , कई गुना बड़ी लगने लगे
| जिस तरह से नोट्स में हम हाईलाइटर का इस्तेमाल करते हैं ताकि छोटी सी बात को पकड़
सकें वहीँ काम साहित्य में लघुकथा करती है | विसंगतियां इसके मूल में होती हैं |
लघुकथा में शब्दों का चयन बहुत जरूरी है | जहाँ कुछ शब्दों की कमी अर्थ स्पष्ट होने
में बाधा उत्पन्न करती है वहीँ अधिकता सारे रोमच को खत्म कर देती है | यहाँ जरूरी
 है कि लघुकथा का अंत पाठक को चौकाने वाला हो |

 अनुभूतियों के दंश- लघुकथा संग्रह (इ बुक )

आज में ऐसे ही
लघुकथा संग्रह “अनुभूतियों के दंश “ की बात कर रही हूँ | डॉ . भारती वर्मा ‘बौड़ाई ‘
का यह संग्रह ई –बुक के रूप में है | कहने की जरूरत नहीं कि आने वाला जमाना ई बुक
का होगा | इस दिशा में भारती जी का ये अच्छा कदम है , क्योंकि छोटे होते घरों ,
पर्यावरण के खतरे , बढ़ते कागज़ के मूल्य व् हर समय उपलब्द्धता के चलते एक बड़ा पाठक
वर्ग ऑन लाइन पढने में ज्यादा रूचि ले रहा है |
अंतरा शब्द शक्ति .कॉम  पर प्रकाशित इस संग्रह में १८ पृष्ठ हैं व् १२
लघुकथाएं हैं | सभी लघुकथाएं प्रभावशाली हैं | कहीं वो समाज की किसी विसंगति पर
कटाक्ष करती हैं ….संतुष्टि , समझ , समाधान , मुखौटा आदि तो कहीं वो संस्कारों
की जड़ों से गहरे जुड़े रहने की हिमायत करती हैं …टूटता मौन ,संस्कार , कहीं वो
समस्या का समाधान करती हैं ….विजय और जूनून ,पहचान ,वहीँ कुछ भावुक सी कर देने
वाली लघुकथाएं भी हैं जैसे … मायका प्रेरणा और पीली पीली फ्रॉक | पीली फ्रॉक को आप
अटूट बंधन.कॉम में पढ़ चुके हैं |

यूँ  तो सभी लघुकथाएं बहुत
अच्छी हैं पर एक महिला होने के नाते लघु कथा
 मायका और जूनून ने मेरा विशेष रूप से ध्यान
खींचा |जहाँ मायका बहुत ही भावनात्मक तरीके से
 बताती है कि जिस प्रकार एक लड़की का मायका उसके
माता –पिता का घर होता है उसी प्रकार लड़की के वृद्ध माता –पिता का मायका लड़की का
घर हो सकता है | एक समय था जब लड़की के माता –पिता अपनी बेटी से कुछ लेना तो दूर
उसके घर का पानी पीना भी नहीं
  पीते थे |
अपनी ही बेटी को दान में दी गयी वस्तु समझने का ये समाज का कितना कठोर नियम था | ये
छोटी सी कहानी उस रूढी पर भी प्रहार करती है जो विवाह होते ही लड़की को पराया घोषित
कर देती है |

वहीँ ‘विजय’ कहानी एक महिला के अपने भय पर विजय है | एक ओर जहाँ हम
लड़कियों को बेह तर शिक्षा दे कर आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दे रहे हैं वहीँ हम बहुओं
को अभी भी घरों में कैद कर केवल परिवार तक सीमित रखना चाहते हैं | उसे कहीं भी
अकेले जाने की इजाज़त नहीं होती | हर जगह पति व् बच्चे उसके संरक्षक के तौर पर जाते
हैं | इससे एक तरफ जहाँ स्त्री घुटन की शिकार होती है वहीँ दूसरी तरफ एक लम्बे समय
तक घर तक सीमित रहने के कारण वो भय की शिकार हो जाती है उसे नहीं लगता कि वो अकेले
जा कर कुछ काम भी कर सकती है | ज्यादातर महिलाओं ने कभी न कभी ऐसे भय को झेला है| ये
कहानी उस भय पर विजय की कहानी है |एक स्त्री को अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए
इस भय पर विजय पानी ही होगी |
 

भारती जी एक समर्थ लेखिका हैं | आप सभी ने atootbandhann.com पर उनकी
कई रचनाएँ पढ़ी हैं | उनकी अनेकों रचनाओं को पाठकों ने बहुत सराहा है | उनके लेख
त्योहारों का बदलता स्वरुप को अब तक 4408 पाठक पढ़ चुके हैं, और ये संख्या निरंतर
बढ़ रही है | आज साहित्य जगत में भारती जी अपनी एक पहचान बना चुकी हैं व् कई पुरुस्कारों से नवाजी जा चुकी हैं  | निश्चित
रूप से आप को उनका ये लघुकथा संग्रह पसंद आएगा | लिंक दे रही हूँ , जहाँ पर आप इसे
पढ़ सकते हैं |

अपने लघुकथा संग्रह व् लेखकीय भविष्य के लिए भारती जी को हार्दिक
शुभकामनाएं |  


वंदना बाजपेयी

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जन्माष्टमी पर 7 काव्य पुष्प https://www.atootbandhann.com/2018/09/janmashtami-par-7-kavy-pushp-in-hindi.html https://www.atootbandhann.com/2018/09/janmashtami-par-7-kavy-pushp-in-hindi.html#comments Sun, 02 Sep 2018 14:22:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2018/09/02/janmashtami-par-7-kavy-pushp-in-hindi/ माखन चोर , नटखट बाल गोपाल , मथुरा का ग्वाला , धेनु चराने वाला , चितचोर , योगेश्वर , प्रभु श्री कृष्ण के नामों की तरह उनका व्यक्तित्व भी अनेकों खूबियाँ समेटे हुए हैं | तभी तो उनका जानना सहज नहीं है | सहज है तो प्रेम रस में निमग्न भक्ति … जो कह उठती […]

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जन्माष्टमी पर 7 काव्य पुष्प


माखन चोर , नटखट बाल गोपाल , मथुरा का ग्वाला , धेनु चराने वाला , चितचोर , योगेश्वर , प्रभु श्री कृष्ण के नामों की तरह उनका व्यक्तित्व भी अनेकों खूबियाँ समेटे हुए हैं | तभी तो उनका जानना सहज नहीं है | सहज है तो प्रेम रस में निमग्न भक्ति … जो कह उठती है ” मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों ना कोई ” और महा ज्ञानी कृष्ण भक्त के बस में आ जाते हैं | तो आइये जन्माष्टमी के पावन अवसर पर इन ७ कविताओं को पढ़ें जो कृष्ण की भक्ति के रंग में रंगी हुई हैं और खो जाएँ …. बांसुरी की मोहक धुनों में

जन्माष्टमी पर 7 काव्य पुष्प 

१—कृष्ण
चक्र, बाँसुरी, शंख का 
है अदभुत संगम,
प्रेम-मधुरिमा फैले सर्वत्र 
बजाते बाँसुरी कृष्ण!
रण का करना घोष जब 
फूँकते शंख कृष्ण!
आततायी को क्षमा नहीं 
चक्र घुमायें कृष्ण!
——————————

२—पाहन शैया पर कृष्ण
—————————-
थोड़ा 
करने तो दो 
आराम मुझे..
अभी अभी तो 
लेटा हूँ आकर 
अपनी पाहन शैया पर 
चिंतन भी 
तुम सबके हित ही 
एकाकी हो रहा हूँ कर,
मिला न माखन 
व्यर्थ हुए सब 
अपने लटके-झटके 
सोचा कुछ करने को तो 
जा खजूर में अटके 
अब तो पूरी तैयारी कर 
मुझे लगानी घात 
जसुमति माँ को सब देखना 
माखन लाऊँगा साथ।
———————————

३—कान्हा 
—————
नटखट कान्हा से तंग आकर 
जसुमति ने घर में ताला डाला 
दाऊ संग निकले झरोखे से 
झट गऊओं संग डेरा डाला 
पूँछ पकड़ कर बैठे कान्हा 
और दाऊ देख रहे खड़े खड़े 
दूर खड़ी माँ जसुमति निहारे 
अपने नैना करके बड़े बड़े।
——————————

४—माधव 
——————
जब से प्रेम हुआ माधव से 
सब कुछ भूल गई 
किया समर्पण नहीं रहा कुछ 
सब अपना वार गई 
उठे दृष्टि अब ओर किसी भी 
दिखाई देते हैं माधव 
हुई माधवमय मैं अब सुन लो 
यमुना के तीर गई।
—————————

५—माधव 
—————-
नृत्य कर रहा मोहित होकर 
सबको मोहने वाला 
देख इसे सुधबुध बिसराई
ये कैसा जादू डाला 
कौन न जाए वारी इस पर 
पीकर भक्ति हाला
माधव छवि ही रहे ध्यान में 
गले मोतियन माला
देकर गीता ज्ञान सभी के 
भरम मिटाने वाला 
अपनी लीला दिखला कर 
हर संकट इसने टाला।
———————————-

६—उत्तर दो मोहन!
—————————

पूछे मीरा कृष्ण से 
उत्तर दो मोहन! 
हो रहा विश्वास का 
क्यों इतना दोहन?
कैसे कोई आज कहीं 
सच्ची प्रीत करेगा?
वासना का दंश प्रतिपल 
मन को जब मथेगा 
तुम्हें सोचना होगा हित 
अब आगे बढ़ कर 
पाठ पढ़ाना कुकर्मियों को 
उदंड शीश काट कर।
———————————- 

७—बंसी बजैया
बंसी बजैया!
सकल जग के हो 
तुम खेवैया।
••••••••••

कहो माधव 
ग्वाल संग करते 
कैसा कौतुक?
•••••••••••

आओ मोहना 
निरखें सब मग 
रूप सोहना।
•••••••••••


हमारे मन 
बसो सर्वदा तुम 
जीवन धन।
•••••••••••

मुरली तान 
हुई अधीर राधा 
कहाँ है भान?
••••••••••••

कदम्ब तले 
रास गोपियों संग 
देवता जलें।
•••••••••••••

मटकी फोड़ी
जसुमति देखती 
लीला निगोड़ी।
———————
डा० भारती वर्मा बौड़ाई


लेखिका


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प्रेम कभी नहीं मरेगा https://www.atootbandhann.com/2018/08/prem-kabhi-nahin-marega-in-hindi.html https://www.atootbandhann.com/2018/08/prem-kabhi-nahin-marega-in-hindi.html#comments Wed, 22 Aug 2018 02:55:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2018/08/22/prem-kabhi-nahin-marega-in-hindi/ आज टूटते हुए रिश्तों को देखकर ऐसा लगता है कि प्रेम बचा ही नहीं है , परन्तु ऐसा नहीं है , प्रेम अहंकार की इस सतह के नीचे आज भी साँसे ले रहा है …. वो सदा था है और रहेगा | प्रेम कभी नहीं मरेगा  अहं ने  उठा लिया है  अपना सिर इतना  कि […]

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प्रेम कभी नहीं मरेगा
आज टूटते हुए रिश्तों को देखकर ऐसा लगता है कि प्रेम बचा ही नहीं है , परन्तु ऐसा नहीं है , प्रेम अहंकार की इस सतह के नीचे आज भी साँसे ले रहा है …. वो सदा था है और रहेगा |

प्रेम कभी नहीं मरेगा 

अहं ने 
उठा लिया है 
अपना सिर इतना 
कि बैठ ही गया 
मनुष्य के सिर चढ़ कर 
हर ली है उसके 
सोचने-समझने की शक्ति 
तभी तो 
अपने- अपने 
कमरों के दरवाजे बंद कर 
छिपा रहता है मोबाइल में 
ऊबता है तो 
बीच-बीच में 
दूरदर्शन खोल लेता है 
इनसे जब थकता है 
तो कमरे से निकल 
दरवाजे पर ताला लगा 
घूमने बतियाने 
निकल जाता है 
रास्ते से भटका अहं
हत्या कर रहा है 
उस प्रेम की 
जो सदानीरा बन 
बहता था 
अट्टालिकाओं के मध्य से 
पर 
स्मरण रख 
मानव!
तेरा अहं
कितना भी चाहे 
प्रेम कभी नहीं मरेगा 
गिरना और मरना 
तो अहं को ही पड़ेगा।
—————————
डा० भारती वर्मा बौड़ाई
lekhika
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गीत सम्राट कवि नीरज जी के प्रति श्रद्धांजलि https://www.atootbandhann.com/2018/07/gopal-das-neeraj-ko-samarpit-in-hindi.html https://www.atootbandhann.com/2018/07/gopal-das-neeraj-ko-samarpit-in-hindi.html#comments Sat, 21 Jul 2018 07:13:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2018/07/21/gopal-das-neeraj-ko-samarpit-in-hindi/ ४ जनवरी १९२५ को इटावा में जन्मे   हर दिल अजीज गीत सम्राट गोपाल दास सक्सेना “नीरज ” …. जिन्हें हम सब कवि  नीरज के नाम से जानते हैं १९ जुलाई २०१८ को हमें  अपने शब्दों की दौलत थमा कर अपना कारवाँ ले कर उस लोक की महफ़िल सजाने चले गए | उनके जाने से  साहित्य […]

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गीत सम्राट कवि नीरज जी के प्रति श्रद्धांजलि

४ जनवरी १९२५ को इटावा में जन्मे   हर दिल अजीज गीत सम्राट गोपाल दास सक्सेना “नीरज ” …. जिन्हें हम सब कवि  नीरज के नाम से जानते हैं १९ जुलाई २०१८ को हमें  अपने शब्दों की दौलत थमा कर अपना कारवाँ ले कर उस लोक की महफ़िल सजाने चले गए | उनके जाने से  साहित्य जगत शोकाकुल है | हर लब  पर इस समय कविवर “नीरज “के गीत हैं | भले ही आज ‘नीरज ‘जी हमारे बीच नहीं हैं पर अपने शब्दों के माध्यम से वो अमर हैं |

गीत सम्राट कवि नीरज जी के प्रति श्रद्धांजलि 

हायकू 
गीत सम्राट 
अनंत ओर चले 
विवश मन।
गीत रहेंगे 
सबके हृदय में 
मीत बनेंगे।
मृत्यु सत्य है 
मत अश्रु बहाना 
करना याद।
तुम्हारे गीत 
साहित्य प्रेमियों को 
भेंट अमूल्य।
जीवित सदा 
साहित्य से अपने 
रहोगे तुम।
..सादर नमन।
..डा० भारती वर्मा बौड़ाई
—————————-
०२—छोड़ सभी कुछ जाना होगा
———
नियत समय जब भी आयेगा 
छोड़ सभी कुछ जाना होगा,
पृथ्वी-कर्म सब पूरे कर अपने 
स्वर्ग प्रयाण कर जाना होगा 
अब यह तो अपने ही वश है 
कैसे क्या-क्या कर्म करें हम 
सूखे पात से गिर कर बिखरें 
या हृदय से बन प्रीत झरें हम!
……….स्मृति शेष नीरज जी की स्मृति को शत-शत नमन।
————————————
डा०भारती वर्मा बौड़ाई
कवियत्री

चित्र विकिपीडिया से साभार

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योग दिवस पर 7 हायकू https://www.atootbandhann.com/2018/06/yoga-divas-par-in-hindi.html https://www.atootbandhann.com/2018/06/yoga-divas-par-in-hindi.html#respond Thu, 21 Jun 2018 15:45:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2018/06/21/yoga-divas-par-in-hindi/ योग के आसन शरीर मन और आत्मा को स्वस्थ रखते हैं  और सुंदर शब्दों का योग मन को आनंदित कर देते हैं | ऐसे ही प्रस्तुत हैं शब्दों के सुन्दर  योग से बने कुछ हायकू  योग दिवस पर १–  जोड़ता योग जन मन समाज  करे निरोग। २– है प्राणायाम कुंजी उत्तम स्वास्थ्य  ये चारों धाम। […]

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योग दिवस पर
योग के आसन शरीर मन और आत्मा को स्वस्थ रखते हैं  और सुंदर शब्दों का योग मन को आनंदित कर देते हैं | ऐसे ही प्रस्तुत हैं शब्दों के सुन्दर  योग से बने कुछ हायकू 

योग दिवस पर

१– 
जोड़ता योग
जन मन समाज 
करे निरोग।

२–
है प्राणायाम
कुंजी उत्तम स्वास्थ्य 
ये चारों धाम।

३–
करिए रोज 
भरपूर आनंद
देता योग।

४–
प्राचीन ज्ञान
जीवन शांतिमय 
बनाए योग।

५–
हो संतुलन 
तन मन आत्मा का 
योग सहाय।

६–
योग दिवस 
नव संकल्प लेवें
स्वस्थ बनें।

७–
सहज मार्ग
स्वस्थ जीवन जियो 
करके योग।
————————
डा० भारती वर्मा बौड़ाई


लेखिका




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योग दिवस
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (21 जून ) का उद्देश्य है की लोगों को स्वस्थ जीवन शैली के लिए योग अपनाने की प्रेरणा दी जाए | हम सभी  प्राचीन भारतीय ‘योग ‘को अपना कर स्वस्थ जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहिए | 

कविता -योग दिवस

स्वस्थ
यदि रहना है तो
जीवन में
योग अपनाओ
इसको जीवन अंग बना कर
रोगों को दूर भगाओ
स्वस्थ शरीर में
स्वस्थ मन का
जब निवास होगा
स्वस्थ विचारों
सद्कर्मों का
अजस्र प्रवाह बहेगा
स्वयं करना
औरों को भी प्रेरित करना
जब सबका
लक्ष्य बनेगा
तभी देश का हर जन
स्वस्थ सुखी बन
नव उपमान गढ़ेगा
ब्रह्म मुहूर्त में 
उठ,  स्नान-ध्यान कर
सूर्य नमस्कार करने का
पक्का नियम बनाएँ
योग करें और 
रोज़ करें
अपना यह
धर्म बनाएँ
स्वस्थ निरोगी 
काया लेकर
कर्म करें कुछ ऐसे
घर, समाज और देश
सभी गर्वित हों जैसे
योग
स्वास्थ्य-प्रसन्नता 
की कुंजी है
सबको यह समझना है
स्वस्थ नागरिक
बन हम सबको
राष्ट्र-निर्माण में
जुट जाना है।
————————

डॉ . भारती वर्मा ‘बौड़ाई ‘

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