सपना मांगलिक Archives - अटूट बंधन https://www.atootbandhann.com/category/सपना-मांगलिक हिंदी साहित्य की बेहतरीन रचनाएँ एक ही जगह पर Sat, 04 Jan 2020 11:35:58 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.1.6 जय बाबा पाखंडी https://www.atootbandhann.com/2017/03/blog-post_29-6.html https://www.atootbandhann.com/2017/03/blog-post_29-6.html#respond Fri, 10 Mar 2017 12:26:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2017/03/10/blog-post_29-6/ ऐशो आराम बाबा बड़े बड़े दावे किया करते थे कि वह ईश्वर से साक्षात्कार करते है.भक्तों को भगवान् की कृपा मुहैया करते हैं .लेकिन वह भक्त का किस भगवान् से साक्षात्कार करवाते हैं इसका भंडाफोड़ उन्ही के जब एक भक्त ने किया तो वह सारे इलेक्ट्रोनिक एवं प्रिंट मीडिया वाले जो कभी उनके प्रोग्राम पीक […]

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जय पाखंडी बाबा

ऐशो आराम बाबा बड़े बड़े दावे किया करते थे कि वह ईश्वर से साक्षात्कार करते है.भक्तों को भगवान् की कृपा मुहैया करते हैं .लेकिन वह भक्त का किस भगवान् से साक्षात्कार करवाते हैं इसका भंडाफोड़ उन्ही के जब एक भक्त ने किया तो वह सारे इलेक्ट्रोनिक एवं प्रिंट मीडिया वाले जो कभी उनके प्रोग्राम पीक टाइम में टेलीकास्ट करते थे और वर्गीकृत पेज पर उनके विज्ञापन छाप मोटी कमाई करते थे .उनके पीछे पूरी तरह नहा धोकर पड गए .पुलिस ने भी फ़िल्मी पुलिस के ढील का पेंच वाला आवरण उतार पूरी मुस्तैदी से उन्हें व् उनके रंगरसिया पुत्र उर्फ़ लगभग पूरे देश का इल्लीगल जमाई माफ़ करें छेडछाड साईं को तुरंत गिरफ्तार कर लिया छेड़छाड़ साईं तो अपनी घटिया बुद्धि से छेड़छाड़ कर भाग निकलने में कामयाब हो गया मगर भागते चोर की लंगोटी की तरह ऐशो आराम लपेटे में आ गया .बाबा गिडगिडाते हुए अपनी मिमियाती आबाज में अपने भक्तों को भरोसा बनाये रखने की अपील करते हुए यह तर्क दे रहा था “भक्तो बाबा ने तुम्हे परम साक्षात्कार (बलात्कार)करवाया ,निस्संतानो की गोद हरी (या भरी)आपके नीरस जीवन में आत्मिक आनंद का रस प्रदान किया (कौनसा रस?)आप अपने बाबा पर भरोसा रखिये इश्वर जानता है सब देख रहा है (इश्वर से देखा नहीं गया तभी तो तुम्हे जेल पहुँचाया बाबा )”


बाबा की इन दलीलों और गौरव गाथाओं को सुन वो भक्त भी सकते में आ गए जो बाबा की शरण में आने से पूर्व निस्संतान हुआ करते थे .और अब उन पड़ोसियों और मसखरे मित्रों ने उनका जीना हराम किया हुआ था .ऐसे ही हमारे एक रिश्तेदार थे जिनके पुत्र का नाम आनंद था और पूरा परिवार बाबा को भगवान् की तरह पूजता था .लोग विनम्रता से उनसे पूछते “क्यों भाई हमें तो पता ही नहीं चला वैसे कब प्राप्त कर आये आत्मिक आनंद ?पहले जो भक्त ऐशो आराम बाबा की तस्वीर अपने घर और कार्यालय में शान से लगाते थे अब अपमान से डरकर धडाधड फाड़ने और उतारने लग गए .
इधर जेल का सूनापन बाबा को काटने को दौड़ रहा था वजह थी की अराध्य की सेवा के लिए सेविकाएँ उपलब्ध नहीं थी .उन्हें यह भी डर था कि परम साक्षात्कार की प्रेक्टिस कमजोर ना पड जाए वर्ना बाहर निकलकर क्या करेंगे ?.बाबा के साक्षात्कार का किस्सा जब बाबा आमदेव ने सुना तो भोचक्के रह गए क्योंकि उनका आन्तजली दवाखाना यूँ तो हर प्रकार की दवाई बनाने का दावा करता था. मगर आज तक ऐसी कोई दवाई नहीं बना सका जिसे खाकर अस्सी वर्ष के बुढ्ढे परम साक्षात्कार
कर सके .उसने अपने सहयोगी बाबा लालकिशन को बुलाकर फटकारा कि “लालकिशन दिनभर पेड़ों पर कोयला बियर की तरह टंगे दीखते हो इस सक्रियता की कोई जड़ी बूटी क्यों नहीं खोजी तुमने.यहाँ हम स्विस खतों से धन निकलवाने की युक्ति फ्री में बाँट रहे हैं नेताओं की बेलेंस शीत बनाबनाकर दिमाग का दही कर रहे है .तुमने ऐसी दवा खोजी होती तो हमारा भी स्विस बेंक में अकाउंट होता ?”बाबा लालकिशन “आमदेव के बच्चे जड़ी बूटियों को प्रयोग करके परखा जाता है .मगर तुम तो एक आँख से पूरे देश विदेश पर नजर रखे हो कोई प्रयोग करे तो कहाँ ससुरे कपालभांति कराकराकर कुछ और करने लायक छोड़ा ही नहीं “इधर एक और बाबा कामपाल जो कि एशो आराम बाबा पर वर्षों से नजर रखे हुए थे उन्हें तरक्की यानि तरी बिद दरी का फार्मूला मिल चूका था .एशोआराम के जेल पहुँचते ही उनका धंधा और जोरों से चल निकला .उन्होंने जान लिया था कि (प्रेक्टिस मेक्स ऐ मैन परफेक्ट)अत: वह भी पूरी मेहनत कर रहे थे ऐशो आराम का रिकॉर्ड तोड़ने की .लेकिन अभी तो भक्ति की धारा प्रवाहित ही हुई थी गाड़ियों का काफिला मात्र 190 तक ही पहुँच पाया था कि बाबा काम्पल भी अपनी ससुराल पहुँच गए .हैरान परेशान बाबा आमदेव और लालकिशन ने इस समाचार को देख राहत की साँस ली .और आपस में बतियाने लगे –
बाबा आमदेव –लालकिशन कामपाल के जेल जाने पर राहत तो मिली पर मैन में एक फांस रह गयी .भाई हम इस स्टार तक नहीं जा सके .लालकिशन-“ कैसे जाते ?स्टेमिना चाहिए इस सबके लिए तुम्हारी आंख तो माँ बहनों को योग सिखाते ही छोटी हो गयी परम साक्षात्कार क्या ख़ाक करवाते “.
बाबा आमदेव-लालकिशन तू मेरा शिष्य होकर मेरी ही उतार रहा है .मत भूल आयुर्वेदाचार्य की तमाम झूठी डिग्रियां मैंने ही तुझे दिलवायीं हैं .”
लालकिशन-“आमदेव जयादा अहसान मत जाता मैं भी तेरे हर प्रोग्राम में बन्दर की तरह पेड़ पर लटका हुईं में अगर जड़ी बूटियों के फायदे ना गिनाऊं तो तेरा आन्तजली दवाखाना तेरी ही आंत जलने पर उतारू हो जायगा समझा ?
आमदेव-“तो मैं भी कौन चैन की बैठकर खा रहा हूँ भीषण ठण्ड में लुगाइयों का सा दुपट्टा ओड़कर कपालभांति करवाता हूँ और अंतड़ियों की चक्की घुमाता हूँ “बहुत दुखती हैं रे मेरी अंतड़ियाँ .
लालकिशन –“यही तो आमदेव हम कपालभांति करते रह गए और हमारी कपाल पर जूते मारकर यह ऐशोआराम,कामपाल,निरमा बाबा जैसे लोग सात पुश्तों के लिए इकठ्ठा कर ले गए .वो तो भाल हो कुछ जागरूक युवाओं का और मिडिया कर्मियों का जो इनका भंडाफोड़ एक एक करके करते जा रहे हैं .वर्ना तो समाज में बदनामी का डर ही भक्तों को उनके प्रिय बाबा का भंडाफोड़ नहीं करने देता .”:

साहित्यकार सपना मांगलिक

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शब्द सारांश का भव्य वार्षिकोत्सव एवं पुस्तक लोकार्पण समारोह https://www.atootbandhann.com/2016/04/blog-post_17-6.html https://www.atootbandhann.com/2016/04/blog-post_17-6.html#respond Sun, 17 Apr 2016 16:00:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2016/04/17/blog-post_17-6/ शब्द सारांश का भव्य वार्षिकोत्सव एवं पुस्तक लोकार्पण समारोह दस अप्रैल रविवार को नगर की प्रसिद्ध साहित्य एवं सामाजिक संस्था शब्द सारांश का द्वितीय वार्षिकोत्सव संपन्न हुआ .कार्यक्रम का शुभारम्भ देह्दानी डॉ रामावतार शर्मा ,तहसीलदार एवं साहित्यकार राकेश त्यागी ,डॉ राजेन्द्र मिलन ,एवं डॉ अमी आधार ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया .उसके बाद पुष्प माला ,सम्मान वस्त्र एवं श्री फल […]

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शब्द सारांश का भव्य वार्षिकोत्सव एवं पुस्तक लोकार्पण समारोह दस अप्रैल रविवार को नगर की प्रसिद्ध साहित्य एवं सामाजिक संस्था शब्द सारांश का द्वितीय वार्षिकोत्सव संपन्न हुआ .कार्यक्रम का शुभारम्भ देह्दानी डॉ रामावतार शर्मा ,तहसीलदार एवं साहित्यकार राकेश त्यागी ,डॉ राजेन्द्र मिलन ,एवं डॉ अमी आधार ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया .उसके बाद पुष्प माला ,सम्मान वस्त्र एवं श्री फल से अतिथियों का स्वागत किया गया कार्यक्रम के संचालन की डोर मेरठ की गायिका और संचालक डॉ शुभम त्यागी ने थामी .कार्यक्रम के प्रथम सत्र में संस्था अध्यक्ष सपना मांगलिक द्वारा संपादित कहानी संग्रह बातें अनकही एवं उनके ही द्वरा रचित हाइकु संग्रह “बोन्साई “का विमोचन किया गया .पुस्तकों की समीक्षा के क्रम में डॉ अमी आधार ने पुस्तक बोन्साई के हाइकु की भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए


कहा कि ” हाइकु का यूँ तो प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है मगर बेहतरीन शिल्प और
बेजोड़ बिम्ब सपना मांगलिक के लेखन की विशेषता है .वह  न केवल आलेख ,कथा
,ग़ज़ल और माहिया के क्षेत्र में अपनी जादूगरी दिखा चुकी है अपितु बोन्साई
हाइकु संग्रह से उन्होंने साबित किया है कि उनकी पकड़ और महारत साहित्य की
हर विधा में है .कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ राजेन्द्र मिलन ने
सपना मांगलिक के कथा संग्रह “बातें अनकही ” के सम्पादकीय की तारीफ़ करते
हुए कहा कि एक संकलन को पठनीय बनाने  में उसके संपादक की अहम् भूमिका
होती है पुस्तक की संपादक सपना ने नए लेखकों की एक से बढ़कर एक कहानियाँ
इस संकलन के लिए चुनी हैं जो उनके अंदर की सम्पादकीय प्रतिभा को उजागर
करती हैं .प्रकाशक पवन जैन और संभली से आये dm राकेश त्यागी ने भी
पुस्तकों के सन्दर्भ में अपने विचार रखे .साथ ही कहा कि शब्द सारांश
साहित्य संस्था नए लेखकों को लेखन के क्षेत्र में प्रोत्साहित करने के
लिए प्रतिवर्ष साझा संकलनों का प्रकाशन कर अपने नाम और काम को सार्थक कर
रही है ,जो कि सराहनीय है .द्वीतीय सत्र में शब्द सारांश द्वारा मेरठ से
आयीं गायिका और संचालक डॉ शुभम त्यागी एवं राकेश त्यागी का सम्मान किया
गया और सन्मति पब्लिशिंग हाउस और आगमन साहित्य परिषद् प्रमुख पवन जैन ने
आगरा के प्रसिद्ध समाज सेवी एवं देह्दानी डॉ रामावतार शर्मा को लाइफ टाइम
अचीवमेंट सम्मान से नवाजा .कार्यक्रम के तृतीय सत्र में रंगारंग काव्य
गोष्ठी प्रारंभ हुई काव्य क्षेत्र के बड़े बड़े सूरमाओं यथा जबलपुर से आये
व्यंग्य के महारथी नरेंद्र शर्मा ,मेरठ की गायिका शुभम त्यागी ,अशोक रावत
,हरिमोहन कोठिया  , त्रिमोहन तरल ,सुनीत शर्मा  ,  ने अपनी ग़ज़लों ,गीतों
,कविता और पैरोडी से समां बाँध दिया डॉ भावना महरा ,जी पी मोर्य ,राकेश
निर्मल ,सलीम साहब ,रति शर्मा  श्रुति सिन्हा , कबीर ,सुनीता सिंह
,निवेदिता धनगर  ,कांची सिंघल , डॉ शेषपाल सिंह शेष ,राजबहादुर राज
इत्यादि ने भी काव्य के ऐसे रंग बिखराए की हर तरफ से वाह – वाह की आवाजें
और तालियों की गडगडाहट से हॉल गूँज उठा .और तपती गर्मी में बारिश की
रुनझुन ठंडक का आभास होने लगा .संस्था की उपाध्यक्ष श्रुति सिन्हा ने
कार्यक्रम के समापन पर धन्यवाद ज्ञापित किया .
सपना मांगलिक
संस्थापक /अध्यक्ष
शब्द सारांश संस्था
मोबाइल -९५४८५०९५०८

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अहम् : कहानी -सपना मांगलिक https://www.atootbandhann.com/2015/09/blog-post_50-5.html https://www.atootbandhann.com/2015/09/blog-post_50-5.html#comments Wed, 23 Sep 2015 10:49:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2015/09/23/blog-post_50-5/ अहम् आज फिर वही मियां बीवी की तू तडाक और तेरी मेरी से घर गूँज उठा था .विनय बाबू बैचैनी से लॉन में टहल रहे थे ,उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इस समस्या का क्या हल निकालें .आस पडो स के घरों की खिड़कियाँ भी खुली हुईं थीं शायद पडोसी भी विनय बाबू […]

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अहम्

आज फिर वही मियां बीवी की
तू तडाक और तेरी मेरी से घर गूँज उठा था .विनय बाबू बैचैनी से लॉन में टहल रहे थे
,उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इस समस्या का क्या हल निकालें .आस पडो स के घरों की
खिड़कियाँ भी खुली हुईं थीं शायद पडोसी भी विनय बाबू की तरह ही या तो वाकई मामले की
तह में जाना चाहते थे या फिर यूँ ही फ्री  की फिल्म देखकर वाद विवाद और हास परिहास की
सामग्री जुटाना चाहते थे .खैर जो भी हो मगर जबसे यह नए किरायेदार आये हैं इन्होने
जीना हरम करके रक्खा हुआ है कभी पति गुस्से में पत्नी को लताडता तो कभी पत्नी अपनी
कर्कशता दिखाती .मानो आंधी और सुनामी एक साथ इस घर पर कहर बरसाने के लिए उपरवाले
ने भेज दीये  हों .कल ही की बात है पत्नी
चाय मेज पर पटकते हुए चिल्लाई –“लो सुडको चाय आते ही आदेश देने शुरू कर दिए ,मैं
तो दिन भर पलंग तोडती हूँ मेरा काम किसी को नहीं दीखता सुबह पांच बजे से बच्चे को
स्कूल के लिए तैयार करो ,खाना बनाओ सफाई करो यह करो वो करो (अपने दिन भर के कामों
को गिनाते हुए)“ पति –“(झुंझलाकर )बकर बकर बंद करो ,दिनभर की कें कें कें ,आने की
देर नहीं हुई और दिमाग ख़राब करना शुरू “पत्नी –“मुझे तुम्हारी यह पसीने में नहाई
हुई काली शक्ल देखने का शौक नहीं तुम्हे चाय देने आई थी “पति-“रखो चाय और दफा हो
यहाँ से “पत्नी पैर पटकते हुए –“क्यूँ दफा हो जाऊं याद रखो जिस दिन इस घर से गयी
सब कुछ आधा आधा लेकर जाउंगी समझे ?”इतने में बच्चा खेलते खेलते आया और उसकी बौल  से चाय का कप हिल गया .पहले पति और फिर पत्नी ने
उसकी कसकर धुनाई कर डाली ,अरे जनाब बच्चे की धुनाई क्या अपनी भड़ास दोनों मिलकर उस
मासूम पर उतार रहे थे .और फिर उसके बाद पति पत्नी का शोर बच्चे के ब्रह्माण्ड हिला
देने वाले रुदन में कहीं गुम हो गया. इन सभी झगड़ों का मूल इन पति पत्नी का अहम् था
इनके अन्दर इतना अहम् भरा हुआ था कि कोई भी झुकने को तैयार नहीं कोई भी चुप होने
को तैयार नहीं ,ऐसा नहीं है कि किसी ने भी इन्हें समझाया ना हो .खुद विनय बाबू की
पत्नी मालती को और विनय बाबू मुकेश को आदर्श विवाह की अवधारणा ,पति पत्नी का
समर्पण और प्रेम इत्यादि नैतिक मूल्यों से भरे कई उपदेश दे चुके थे .मगर यह कर्कश
पति पत्नी का जोड़ा तो उन्हें “पर उपदेश कुशल बहुतेरे”समझ मानने को तैयार ही नहीं
.जब भी इन्हें समझाने जाओ यह अपने ही जीवन साथी के जीवन की ऐसी बखिया उघाड़ते कि
शर्म भी इनसे शरमा के भाग जाए .इनदोनो से ही इनकी पिछली जिन्दगी का सच विनय बाबू
को ज्ञात हुआ .दरअसल मुकेश और मालती की यह दूसरी दूसरी शादी थी ,मुकेश की पहली
पत्नी उसके गाली गलौंच और हाथापाई की आदत से तंग आकर घर छोड़कर चली गयी थी और मालती
को उसके कर्कश स्वाभाव की वजह से उसके पूर्व पति ने तलाक दे दिया था ,यह दोनों की
दूसरी शादी थी .अपनी पहली शादी की असफलता के कारणों को ना इन दोनों ने जानने का
प्रयास किया ना ही अपनी पिछली गलतियों से सबक लेकर अपने वर्तमान को सुधारने की
कोशिश की .यह दोनों धोबी घाट  पर कपडे फटकते धोबी की तरह अपने विवाह को फटक रहे हैं
,बिना इस डर के की ज्यादा फटकने से कपडा फट जाएगा ,तार तार हो जाएगा .हर समय यही
होता है की एक ने अगर कुछ तुर्रा छेड़ दिया तो दूसरा उसका दुगना कडवा नहीं बोल देगा
जब तक चैन से नहीं बैठेगा .कभी कभी तो विनय बाबू उस वैज्ञानिक को कोसते जिसने यह
सिद्धांत बनाया कि –“हर क्रिया की कोई ना कोई प्रतिक्रिया होती है “ यह मूर्ख
शादीशुदा जोड़ा कैसे इस सिद्धांत की धज्जियाँ उड़ा रहा है कोई विनय बाबू के घर जाकर
देखे . कहते हैं कि विवाह में पति पत्नी के गुण आपस में मिलने चाहियें मगर देखो
गुण मिलने का दुष्परिणाम .अब इस मोहल्ले का तो कोई व्यक्ति विवाह के समय गुण नहीं
मिलवायेगा 

.यह सोचते ही तनाव में भी विनय बाबू के चेहरे पर हँसी की रेखा खिल उठी .पति
पत्नी अगर एक दूसरे के साथ एकत्व बनाकर रहे तो यह जोडी अर्धनारीश्वर की जोड़ी
कहलाती है और यदि मुकेश और मालती की तरह अपने अहम् और अकड में लड़ाई भिड़ाई
,काट्मकाट करें तो शनी और राहू बन जाते हैं जो कि जिस स्थान पर बस जाएँ उसका तो
बेडा गरक ही समझो .सबसे ज्यादा नुक्सान इनके बच्चे का है जिससे अगर यह पूछा जाए कि
बेटा विश्व युद्ध किसके मध्य हुआ ? तो उसका जवाब हमेशा उसके माता पिता ही होंगे
.अपने माँ बाप के झगडे से बचने के लिए नन्हा बालक अक्सर पडौसियों के घर चक्कर
लगाता है और पडौसी भी इस नन्हे नारद का फायदा उठाने से नहीं चूकते .आखिर हम
इंसानों में इतना अहम् होता ही क्यूँ है ?क्यूँ हम इसे अपनी खुशियों ,सुख और शांति
से ज्यादा तबज्जो देते हैं ,हमारा अहम् वो हिटलर है जो हमारी जिन्दगी पर एक बार
हावी हो जाए फिर तब तक शासन करता है जबतक कि वह हमारी जिन्दगी को क्रूरता पूर्वक
तहस नहस ना कर दे .विवाह दिल का रिश्ता है तो इस पर पर जहन के जाये अहम को शासन
क्यों करने देता है मनुष्य .मुकेश को गुमसुम देखकर लगता है कि वह अपनी पूर्व पत्नी
और वर्तमान पत्नी में तुलना करके अपने आपको मन ही मन कोसता है कि क्यूँ उस बेचारी
गाय जैसी महिला को इतना तंग किया कि वो घर छोड़कर विवश हो गयी .और मालती जो कि
देखने में गौर वर्ण और बढ़िया नाक नक्श वाली है अपने अहम् के चलते किसी पुरुष की
प्रिया ना बन सकी और इस अहम् ने भी उसके चहरे पर हमेशा खूंखार भाव लाकर उसकी
सारी  सुन्दरता को लील लिया है .कैसा
जिद्दी है इंसान अपना सब कुछ  खोकर,अपनों
को खोकर  भी अपने दुश्मन अपने अहम् को पाल
रहा है .और बेवक़ूफ़ इतना कि इसे  छोड़ने को
तैयार नहीं .ठीक उस कंजूस महाजन की तरह जिसके जीवन का फलसफा “चमड़ी जाए मगर दमड़ी ना
जाए “है
.ऐसे पति पत्नी प्रेम भी बड़े ही अहंकार के साथ करते हैं
,मानो प्रेम ना करके अपने साथी पर कोई अहसान कर रहे हों या फिर प्रेम को भी एक दूसरे
 को प्रभुत्व और अपनी सत्ता का प्रदर्शन
करने का जरिया मानते हैं .तभी तो वर्तमान में बच्चे संस्कारी ना होकर
बलात्कारी,प्रदर्शनकारी,और आतंकवादी बन रहे हैं आखिर माली जैसा बीज बोया है फसल भी
तो वैसी ही काटेगा .  विनय बाबू यही सब
बडबडाते बुदबुदाते हुए यहाँ से वहां चक्कर काटते और उनकी पत्नी उन्हें दूसरों के
मामले में ना पड़ने की सलाह देते देते खुद परेशान हो जाती .खैर मुकेश और मालती के
झगडे जंगल की आग की तरह बढ़ते ही जा रहे थे .और समस्या का कोई हल उन्हें सूझता नजर
नहीं आ रहा था .विनय बाबू की पत्नी ने उन्हें तनाव से राहत दिलाने के लिए हरिद्वार
का प्रोग्राम  बना लिया ,यह सोचते हुए कि
कुछ दिन तो विनय बाबू प्रकृति और गंगा मैया के सानिध्य में इन किरायेदारों के झगडे
भूलेंगे .उनका फैसला सही सावित हुआ विनय बाबू हरिद्वार में खुद को तरोताज़ा महसूस
कर रहे थे .कुछ दिन बाद दोनों वृद्ध पति पत्नी घर वापस लौट आये .सफ़र की थकन में भी
दोनों का चेहरा एक दूसरे  के साथ बिताये
अनमोल आध्यात्मिक क्षणों की वजह से चमक रहा था .विनय बाबू के कान आदतानुसार मुकेश
एवं मालती के कमरे की तरफ लगे थे .मगर घर में आज बहुत शांति थी किसी की आवाज भी
सुनाई नहीं दे रही थी .विनय बाबू ने दिल की बात पत्नी से साझा की जिसे सुनकर पत्नी
झुंझला गयी “लो कर लो बात ,कल तक आप घर में शांति के लिए परेशान होते थे और आज
शांति है तो आपको उसमे भी परेशानी है “ विनय बाबू-“ यही तो सोच रहा हूँ आज सुबह से
शाम होने को आई कोई आवाज ही नहीं आ रही और मुकेश का लड़का भी दिखाई नहीं दिया ?रोज
तो यहाँ वहां भटकता फिरे था .ऐसी क्या बात हो गयी ” ?मुकेश के दफ्तर से लौटने का
वक्त हो रहा था .विनय बाबू उसके इंतज़ार में बाहर टहलने लगे आखिर वह इस शान्ति का
राज जो जानना चाहते थे .मुकेश रोज के मुकाबले आज देर से लौटा ,उसका चेहरा उतरा हुआ
था जैसे की बहुत परेशान हो .विनय बाबू को देख फीकी मुस्कराहट के साथ पुछा “अरे
अंकल कब लौटे आप हरिद्वार से?सफ़र कैसा रहा ?विनय बाबू ने चहकते हुए उसे हरिद्वार
की यात्रा के विषय में बताया .फिर उससे पूछा –“मालती और मुन्ना दिखाई नहीं दे रहे
,कहीं गए हैं क्या ?मुकेश ने नजरें झुका लीं .बहुत कुरेदने पर उसने बताया कि मालती
और उसके बीच में वाद विवाद इतना बढ़ गया था कि उसने तलाक लेने का मन बना लिया है और
मुन्ने को साथ  लेकर अपनी मित्र के घर चली
गयी है .विनय बाबू –“फिर तुमने क्या सोचा है मुकेश ?मुकेश –मैं भी तंग आ गया हूँ
अंकल और एक पुरुष होकर मैं भी कब तक झुकूं .मालती ने घर का माहोल खराब कर रखा था
यहाँ तक कि दफ्तर से घर वापस लौटने का मन भी नहीं करता था .विनय बाबू –“और अब जब
मालती और मुन्ना नहीं हैं ,तो तुम्हारा घर लौटने का मन होता है मुकेश ?मुकेश इस
प्रश्न पर सकपका गया और बिना जवाब दिए तेजी से सीढियां चढकर अपने कमरे में पहुँच
गया 


.विनय बाबू को मुन्ने के भविष्य की 
चिंता सताने लगी क्योंकि वह अच्छी तरह से जानते थे कि इस वक्त मालती के
गुस्से और उत्तेजना का शिकार वही मासूम बन रहा होगा.दूसरे  दिन भी उन्होंने मुन्ने के भविष्य और बचपन की
दुहाई देकर मुकेश को मालती को वापस लाने के लिए समझाना चाहा .मुन्ने के जिक्र से
मुकेश पिघला मगर इस शर्त पर कि विनय बाबू उसके साथ चलकर मालती को समझायेंगे
.मुन्ने की खातिर विनय बाबू उसके साथ मालती की मित्र के घर जाने को राजी हो गए
.उम्मीद के मुताबिक़ घर के बाहर से ही मालती के मुन्ने पर चीखने पुकारने की आवाजें
सुनाई दे रही थीं .दरवाजा उसकी मित्र ने खोला और आदर के साथ दोनों को अन्दर ले गयी
.मुकेश को देखते ही मालती ने अप्रत्यक्ष रूप से कटाक्ष करने शुरू कर दिए .कुछ देर
मुकेश चुप रहा फिर वह भी उनका प्रत्युतर देने को उतारू हो गया मगर विनय बाबू ने
उसे चुप रहने का इशारा किया और मालती को समझाने बुझाने लगे .मुन्ने की पढ़ाई लिखाई
और उसके भविष्य का वास्ता देकर  और उनके
पूर्व विवाह में हुई गलतियों से सबक लेकर उन्हें ना दोहराने की सलाह दी .मगर मालती
अपनी अपनी ही कहे जा रही थी उसे लग रहा था कि केवल वही सही है और दूसरे गलत ,विनय
बाबू ने बड़ी मुश्किल से उसे घर लौटने को मनाया . दोनों ने अंत में अपनी गलती मान
ली और कुछ शिकवे शिकायतो  के साथ वापस साथ रहने को तैयार हो गए .विनय बाबू
प्रफ्फुलित थे कि उन्होंने अहम् जैसे तेज़ाब से एक रिश्ते को विकृत होने से बचा
लिया . उस रात उन्हें सुकून की नींद आई . मगर सुबह उनकी सुकून भरी नींद एक शोर
शराबे के साथ टूटी .मालती और मुकेश आपस में वही छोटी छोटी बातों पर नोंक झोंक कर
रहे थे .और मुन्ना जिसको अभी अभी शायद माँ बाप के अहम् का शिकार होना पड़ा था,  अपने रोबोट का हाथ अलग कर ,हाथी की सूंड तोड़ने
में व्यस्त था .

सपना मांगलिक 

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साहित्य के आकाश का ध्रुवतारा (विष्णु प्रभाकर )…….. सपना मांगलिक https://www.atootbandhann.com/2015/07/blog-post_5-15.html https://www.atootbandhann.com/2015/07/blog-post_5-15.html#respond Sun, 05 Jul 2015 02:52:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2015/07/05/blog-post_5-15/ साहित्य के आकाश का ध्रुवतारा (विष्णु प्रभाकर ) विष्णु प्रभाकर को साहित्य का गांधी कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि उनपर महात्मा गांधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा प्रभाव था . प्रभाकर जी में आप वे सारे गुण–अच्छाईयाँ देख सकते हैं, जो गांधी आन्दोलन के समय गाँधी जी के मूल्य थे. उनके लेखन […]

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साहित्य के
आकाश का ध्रुवतारा (विष्णु प्रभाकर )
विष्णु प्रभाकर को साहित्य का गांधी कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि उनपर महात्मा गांधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा प्रभाव था . प्रभाकर जी में आप वे सारे गुणअच्छाईयाँ देख सकते हैं, जो गांधी आन्दोलन के समय गाँधी जी के मूल्य थे. उनके लेखन में गांधी वादी धार्मिकता, अहिंसकता, उदारता आदि सभी कुछ देखने को मिलता है .यहाँ तक कि उनकी वेशभूषा जिसमें उनका झोला, उनकी टोपी साक्षात उन्हें गांधीवादी सिद्ध करता है.और इसके चलते ही उनका रुझान कांग्रेस की तरफ हुआ और स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने अपनी लेखनी का भी एक उद्देश्य बना लिया, जो आजादी के लिए सतत संघर्षरत रही. मैं जूझूगा अकेला हीजैसी उनकी कविताएं जीवन में कठिन संघर्षों से जूझने की प्रेरणाएं देती हैं. अपनी मृत्यु से पहले ही उन्होंने अपने शरीर को दान कर दिया था. इसका सीधा अर्थ था कि वे पुनर्जन्म को नहीं मानते थे, उनके परिवार में जाति वाद नहीं था. उन्होंने नई परम्पराओं, नए मूल्यों को समाज में स्थापित किया. हमेशा पूँजी वाद , साम्राज्यवाद का विरोध किया.  अपने दौर के लेखकों में वे प्रेमचंद, यशपाल, जैनेंद्र और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री रहे, लेकिन रचना के क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान रही.चौदह वर्षों तक किसी और साहित्यकार की जीवनी के लिए जगह जगह की ख़ाक छानना यह सिर्फ प्रभाकर जैसे विरले व्यक्ति ही कर सकते हैं .प्रभाकर जी का रुझान शरत की तरफ ही क्यूँ हुआ ? .इस सन्दर्भ में उनका ही यह कथन कि “”समानेसमाने होय प्रणेयेर विनिमय के अनुसार शायद इसलिये हुआ कि उनके साहित्य में उस प्रेम और करूणा का स्पर्श मैंने पाया, जिसका मेरा किशोर मन उपासक था। अनेक कारणों से मुझे उन परिस्थितियों से गुजरना पड़ा, जहां दोनो तत्वों का प्रायः अभाव था। उस अभाव की पूर्ति जिस साधन के द्वारा हुई उसके प्रति मन का रूझाान होना सहज ही है। इसलिये शीघ्र ही शरतचंद्र मेरे प्रिय लेखक हो गये.”आवारा मसीहा के सृजन के लिए उनकी छटपटाहट और प्रतिबद्धता को स्पष्ट करता हैप्रभाकर जी हमेशा महिलाओं के भी पक्षधर रहे. वे अपने उपन्यासों में नारी वाद का समर्थन करते हैं. जब उनसे पूछा जाता कि स्त्री की संवेदनाओं के बारे में आप कैसे जानते हैं ?तो वह कहते कि मेरी पत्नी भी तो एक स्त्री ही है”  


 २९ जनवरी १९१२ को उ॰प्र॰ के मुज़फ़्फरनगर जिले के एक छोटे से गाँव मीरापुर में जन्मे विष्णु प्रभाकर के पिता दुर्गा प्रसाद एक धार्मिक व्यक्ति थे . इनकी माँ महादेवी इनके परिवार की पहली साक्षर महिला थी जिन्होंने हिन्दुओं में पर्दा प्रथा का विरोध किया. १२ वर्ष के बाद, अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद, प्रभाकर आगे की पढ़ाई करने के लिए अपने मामा के पास हिसार (उस समय पंजाब का हिस्सा, अब हरियाणा का) चले गये, जहाँ इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की. यह १९२९ की बात है. वे आगे भी पढ़ना चाहते थे, लेकिन आर्थिक हालत इसकी इजाजत नहीं देते थे, अतः इन्होंने एक दफ़्तर में चतुर्थ श्रेणी की एक नौकरी की और हिन्दी में प्रभाकर, विभूषण की डिग्री, संस्कृत में प्रज्ञा और अंग्रेजी में       
बी की डिग्री भी प्राप्त की .चूँकि पढ़ाई के साथसाथ इनकी साहित्य में भी रुचि थी, अतः इन्होंने हिसार की ही एक नाटक कम्पनी ज्वाइन कर ली और १९३९ में अपना पहला नाटक लिखा हत्या के बाद. कुछ समय के लिए इन्होंने लेखन को अपना फुलटाइम पेशा भी बनाया. २७ वर्ष की अवस्था तक ये अपने मामा के ही परिवार के साथ रहते रहे, वहीं इनका विवाह १९३८ में सुशीला प्रभाकर से हुआ.


आज़ादी के बाद १९५५५७ के बीच इन्होंने आकाशवाणी, नई दिल्ली में नाट्यनिर्देशक के तौर पर काम किया. उनकी पहली कहानी 1931 में लाहौर की पत्रिका में छपी थी .और काफी पसंद भी की गयी थी .बस फिर क्या इस कहानी से उनकी लेखनी के पंखों में हरकत हुई जो बाद में जाकर इस पंक्षी को साहित्य के दूर विस्तृत असीम अनंत आसमान की सैर करा लायी .
विष्णु के नाम में प्रभाकर कैसे जुड़ा, उसकी एक बेहद रुचिपूर्ण कहानी है.,!तब वह विष्णु नाम से लिखा करते थे एक बार जब एक संपादक ने पूछा कि आप कहाँ तक शिक्षित हैं तो उन्होंने बताया कि उन्होंने प्रभाकर किया है और बस तब ही से उन संपादक महोदय द्वारा उनका नामकरण विष्णु प्रभाकर के रूप में हो गया . इस प्रकार विष्णु दयाल के रूप मे शुरू हुई  उनकी प्रारंभिक यात्रा विष्णु गुप्ता पर तनिक ठहर विष्णु धर्मदत्त को लाँघते हुये, विष्णु प्रभाकर बन कर पूरी हुई .शुरू शुरू में उन्होंने एक थर्ड ग्रेड नाटक कम्पनी के लिए हत्या के बाद जैसा नाटक लिखा ! यह और बात है कि यह नाटक भी चर्चित हो उठा . प्रभाकर ने अपने दीर्घ साहित्यिक सेवाकाल में हिन्दी की अक्षय निधि को अनेकानेक विधाओं से सम्मुनत किया है. खासकर नाटक, एकांकी तथा जीवनी साहित्य के क्षेत्र में वे तो मूर्धन्य साहित्यकार हैं ही , पर साहित्य की अन्य ढेर सारी विधाएं उनसे कृतकाय हुई हैं प्रभाकर का नाटक डाक्टरजहां आज भी अपनी ख्याति की कसौटी पर खरा उपस्थित हैं वहीं एकांकियों में प्रकाश और परछाइ, बारह एकांकी, क्या वह दोषी था, दस बजे रात आदि इस विधा में मील के पत्थर के रूप में आज भी मौजूद हैं. उनकी रचनाओं में ‘अधूरी कहानी’ भी है. समय है बंटवारे से थोड़े पहले का यानी बंटवारे के बन रहे हालात का. यह वह समय था जब नफरत दोनों तरफ के जिलों में ठूंसठूंस कर भरी जा रही थी. इस कहानी में दो धर्मां के दो युवक बंटवारे को सही गलत ठहराने में उलझ रहे हैं. अंत में एक प्रश्न उठता है कि ‘-सच कहना, मुहब्बत की लकीर क्या आज बिल्कुल ही मिट गयी है? यह कहानी का चरम नहीं है, उसका मर्म है. बंटवारे के समय और उसके बाद मुहब्बत को जिलाये रखने की सबसे ज्यादा जरूरत थी. विष्णु जी जितने अच्छे लेखक थे उतने ही सहज. उन्होंने बाल साहित्य का भी खूब सृजन किया .उनका मानना था कि बचपन जीवन का ऐसा आईना होता है जो आगे की दिशा निर्धारित करता है. प्रभाकर जी ने जिस लगन से बाल साहित्य लिखा, तन्मयता से लिखा, वह बेजोड़ है. उनका मानना था कि बच्चों को रोचकता के साथ ज्ञान सामग्री उपलब्ध कराने की जरूरत है. उनकी महत्वपूर्ण बाल एंकाकी और बाल कहानियाँ है. जादू की गायसंग्रह में उनकी बाल एंकांकियाँ संकलित हैं.उनका बालनाटक जो कक्षा चार, पाँच के पाठ्यक्रम में लिया गया वह बच्चों की चतुराई से जुड़ा हुआ है  बच्चों के सूक्ष्म मनोविज्ञान को उन्होंने सहजता, सरलता से अंकित किया है.

  उनकी रचनाओं में विषय की काफी विविधता देखी जाती है. घटनाओं का उन्होंने भरपूर इस्तेमाल किया है. उनकी रचनाओं में विवरण के बजाय मार्मिक तत्व ज्यादा है धरती अब भी घूम रही हैभ्रष्टाचार को अनावृत नहीं करती है.क्योंकि वह तो खुद ही नंगा है. कहानी उससे बाहर निकलने के प्रयासों में उसके चक्रव्यूह में फंस जाने की विवशता को उठाती हैं दो बच्चे यहां भावी पीढ़ी का प्रतीक भी है और निरीह तथा तंत्र की चालाकियों से अनभिज्ञ सबको अपने जैसा सच्चा मानने के भोलापन का द्योतक भी .कथा जगत का वांग्मय उनकी सेवा से जितना समृद्ध हुआ है उससे कहीं ज्यादा विभिन्न साहित्यिक आंदोलनों में अथक योगदान दिया. शरतचंद्र के जीवन को समेटकर उनका लिखा आवारा मसीहा आज भी अपने गहरे भावबोध और गुणवान का लोहा मनवा रहा हैदेश समाज के लिये उनका स्पष्ट विज़न था . गांधीवाद का पुरजोर समर्थन ,उनके ही शब्दों मेंअन्याय और हिंसा का प्रतिकार हर हाल में होना चाहिए .झुकना बहुत बड़ी कमजोरी है .मैं झुकने में यकीन नहीं करता .गांधी ने दूसरों के लिए जीवन जीने की सीख दी .मेरे अंतरतम का विश्वास है कि लोग इस पर चल सकें तो समस्याएं सुलझ जायेंगी .मनुष्य बेहतर नागरिक बन सकेंगे .फिर भी गांधीवाद को सामाजिक संगठन या शासन विधि के रूप में नहीं लिया गया.सफलता या असफलता का पता तभी चलेगा जब लोग इसे प्रयोग में लायेंगे .विकासशील देशों में ग्राम स्वराज्य का तरीका अपनाया गया .और जापान ने नयी तालीम को अपनाया .”
पदम् भूषण सम्मान लौटाते वक्त उनका यह कथन कि  वैसे भी इस तमगे की बाजार में कोई कीमत तो है नहीं. मुझे क्या मिलने वाला है इससे ? जो मिलना था, बहुत मिल चुका. अब मुझे किसी भी चीज की स्पृहा नहीं है. ऐसे अलंकरण से कहीं ज्यादा संतोषदायी बात मेरे लिए यह है कि मेरा लेखन चलता रहे . जो अपने नाम के पीछे पद्मश्रीपद्मविभूषण लगाने में गौरव समझते हैं , वे लोग शायद नहीं जानते कि ऐसा करना जुर्म है . यह तो महज अलंकरण है, नाम और उपाधि का हिस्सा नहीं है . ” 
  
उनका मानना था कि स्वंय के लिए नहीं वरन ,समाज के लिए चलो, राष्ट्र के लिए चलो. प्रभाकर जी आन्दोलनों से कभी नहीं जुड़े. वे ऐसे रचनकार थे जो किसी आलोचक से प्रभावित हुए. उन्होंने वही किया जो उनकी भीतरी विचारधारा कहती थी. रचनकार अपने ही कारणों से बड़ा होता हैआलोचना से बड़ा नहीं होता. प्रभाकर जी ने कहा भी है कि मैं सीध साधा आदमी हूँ और वैसा ही लिखता भी हूँ. जब हम उनकी कहानीउपन्यास किसी भी विधा पर बात करें तो यह बात ध्यान रखनी चाहिए जनता से जुड़ने, सादगी आदि बातों में वे प्रेमचन्द की परम्परा के लेखक थे. सादगीसरलता का अपना सौन्दर्य शास्त्र है. जिस तरह भगीरथ गंगा को धरती पर लाए उसी तरह विष्णु जी ने भी इस धरती पर भी साहित्य को रोपा. वे हिन्दी जगत के पहले ऐसे रचनाकार हैं, जिन्होंने हिन्दी की सभी विधाओं में काम किया. जिस तरह मुंशी प्रेमचन्द को उपन्यास सम्राट कहा जाता है, उसी तरह वे संस्मरण सम्राट हैं. पत्रों का जखीरा विष्णु जी के अलावा कहीं नहीं मिलता.“
 साहित् के इस मजबूत स्तम्  ने २००९ के अप्रैल महीने की ११ तारीख को इस लोक से विदा ले ली. विष्णु जी का जाना हिंदी साहित्य जगत को सूना कर गया…. हिन्दी साहित्य ने एक महान व्यक्तित्त्व खो दिया.  . नि:संदेह वे अप्रतिम व्यक्तित्व के धनी थे एवं महान साहित्यकार थे. हिंदी साहित्य जगत ने एक महान विभूति खो दी है
आज विष्णु प्रभाकर जीवित नही हैं ,लेकिन उनका साहित्य अमर है.  
                                                 
साहित्यकार सपना मांगलिक

                                                   
कमला नगर आगरा

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