लघु कथा— ” बुढापा “-कुसुम पालीवाल

                  अरे...दीदी.....तंग करके रखा हुआ है न तो चैन से रहते हैं..... न तो चैन से रहने लायक...

चलो चले जड़ों की ओर : कविता – रश्मि प्रभा

माँ और पिता हमारी जड़ें हैं और उनसे निर्मित रिश्ते गहरी जड़ें जड़ों की मजबूती से हम हैं हमारा ख्याल उनका सिंचन …...

अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस पर विशेष : चलो चले जड़ों की...

जंगल में रहने वाले  मानव ने जिस दौर में आग जलाना सीखा , पत्थरों  को नुकीला कर हथियार बनाना  सीखा , तभी  शायद उसने...

नारी मन पर वंदना बाजपेयी की लघुकथाएं

                          नारी मन मनोभावों का अथाह सागर है |इनमें से कुछ को...

नाम में क्या रखा है : व्यंग -बीनू भटनागर

नाम की बड़ी महिमा है, नाम पहचान है, ज़िन्दगी भर साथ रहता है। लोग शर्त तक लगा लेते हैं कि ‘’भई, ऐसा न हुआ या...

डिम्पल गौड़ ‘अनन्या ‘ की लघुकथाएं

समझौता "आज फिर वही साड़ी ! कितनी बार कहा है तुम्हें..इस साड़ी को मत पहना करो ! तुम्हें समझ नहीं आता क्या !" "यही तो फर्क है एक...

क्षमा पर्व पर विशेष : “उत्तम क्षमा, सबको क्षमा, सबसे क्षमा”

क्या आपने कभी सोचा है की हँसते -बोलते ,खाते -पीते भी हमें महसूस होता है टनो बोझ अपने सर पर। एक विचित्र सी पीड़ा...