अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस Archives - अटूट बंधन https://www.atootbandhann.com/category/अंतर्राष्ट्रीय-महिला-दिव हिंदी साहित्य की बेहतरीन रचनाएँ एक ही जगह पर Sat, 04 Jan 2020 13:37:27 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.1.6 असली महिला दिवस https://www.atootbandhann.com/2019/03/asali-mahila-divas-in-hindi.html https://www.atootbandhann.com/2019/03/asali-mahila-divas-in-hindi.html#comments Fri, 08 Mar 2019 05:16:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2019/03/08/asali-mahila-divas-in-hindi/ —————– दादी ने आँगन की धुप नहीं देखी और पोती को आँगन की धप्प देखने का अवसर ही नहीं मिलता | दोनों के कारण अलग -अलग हैं | एक पर पितृसत्ता के पहरे हैं जो उसे रोकते हैं दूजी को  मुट्ठी भर आसमान के लिए दोगुना, तीन गुना काम करन पड़ रहा है | ये […]

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असली महिला दिवस
—————–
दादी ने आँगन की धुप नहीं देखी और पोती को आँगन की धप्प देखने का अवसर ही नहीं मिलता | दोनों के कारण अलग -अलग हैं | एक पर पितृसत्ता के पहरे हैं जो उसे रोकते हैं दूजी को  मुट्ठी भर आसमान के लिए दोगुना, तीन गुना काम करन पड़ रहा है | ये जो सुपर वीमेन की परिभाषा समाज गढ़ रहा है उसके पीछे मंशा यही है है कि बाहर निकली हो तो दो तीन गुना काम करो …बराबरी की आशा में स्त्री करती जा रही है कहीं टूटती कहीं दरकती | महिला दिवस मनना शुरू हो गया है पर असली महिला दिवस अभी कोसों दूर है ………

 असली महिला दिवस


वो जल्दी ही उठेगी
रोज से थोड़ा और जल्दी
जल्दी ही करेगी , बच्चों का टिफिन
तैयार ,
नीतू के लिए आलू के पराठे
और बंटू के लिए सैंडविच
पतिदेव के लिए पोहा , लो
कैलोरी वाला
ससुरजी के लिए पूड़ी
तर माल जो पसंद है उन्हें अभी भी
सासू माँ का है  पेट खराब
उनके लिए बानाएगी खिचड़ी
वो देर से ही बनेगी
उनके पूजा -पाठ के निपट जाने के बाद
गर्म –गर्म जो परोसनी है
उतनी देर में वो निबटा लेगी
कपडे -बर्तन और घर की सफाई
फिर अलमारी से कलफ लगी साडी निकाल कर
लपेटते हुए
हर बार की तरह
नज़रअंदाज करेगी ताने
जल्दी क्यों जाना है ?
किसलिए जाना हैं ?
उफ़ !ये आजकल की औरतों ?
और दफ्तर जाने से पहले
निकल जायेगी
‘महिला दिवस ‘पर
महिला सशक्तिकरण के लिए
आयोजित सभा को
संबोधित करने के लिए
जहाँ इकट्ठी होंगी वो सशक्त महिलाएं
जिन्होंने ओढ़ रखे हैं
अपनी क्षमता से दो गुने , तीन गुने काम
महिला सशक्तिकरण की बात करते हुए
वो नहीं बातायेंगी कि  
 मारा है रोज
नींद का कितना हिस्सा
रोज याद आती है फिर  भी
 माँ से बात करे
भी हो जाते कितने दिन
बीमार बच्चे को छोड़ कर काम पर जाने में कसमसाता है दिल
पूरी तनख्वाह ले कर भी पीना पड़ता है विष
अपनों से मिले
ये काम, वो काम, ना
जाने कितने काम ना कर पाने के
तानों के दंश का
कभी पूछा है कि अपनी
माँ , बहन पत्नी से

कि सपनों को पूरा
करने की
कितनी कीमत अदा कर
रही हैं ये औरतें ?
चुपचाप
इस आशा में

कि कभी तो बदलेगा
समा
जब मरे हुए सपनों और
दोहरे काम के बोझ से
दबी मशीनी जिन्दगी में से
नहीं करना पड़ेगा
किसी एक का चयन
वो दिन … हाँ वो
दिन ही होगा
असली महिला दिवस
वंदना बाजपेयी




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महिला सशक्तिकरण : नव संदर्भ एवं चुनौतियां https://www.atootbandhann.com/2019/03/mahila-sashaktikaran-naye-sandarbh-nayi-chunautiyan-in-hindi.html https://www.atootbandhann.com/2019/03/mahila-sashaktikaran-naye-sandarbh-nayi-chunautiyan-in-hindi.html#comments Fri, 08 Mar 2019 04:21:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2019/03/08/mahila-sashaktikaran-naye-sandarbh-nayi-chunautiyan-in-hindi/ आठ मार्च यानि महिला दिवस , एक दिन महिलाओं के नाम ….क्यों? शायद इसलिए कि बरसों से उन्हें हाशिये पर धकेला गया, घर के अंदर खाने -पीने के, पहनने-ओढने और  शिक्षा के मामले में उनके साथ भेदभाव होता रहा | ब्याह दी गयी लड़कियों की समस्याओं से उन्हें अकेले जूझना होता था, और ससुराल में […]

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महिला सशक्तिकरण : नव संदर्भ एवं चुनौतियां



आठ मार्च यानि महिला दिवस , एक दिन महिलाओं के नाम ….क्यों? शायद इसलिए कि बरसों से उन्हें हाशिये पर धकेला गया, घर के अंदर खाने -पीने के, पहनने-ओढने और  शिक्षा के मामले में उनके साथ भेदभाव होता रहा | ब्याह दी गयी लड़कियों की समस्याओं से उन्हें अकेले जूझना होता था, और ससुराल में वो पाराया खून ही बनी रहती | शायद इसलिए महिला दिवस की जरूरत पड़ी | आज महिलाएं जाग चुकी हैं …पर अभी ये शुरुआत है अभी बहुत लम्बा सफ़र तय करना है | इसके लिए जरूरत है एक महिला दूसरी महिला की शक्ति बने | आज महिला दिवस पर प्रस्तुत है शिवानी जयपुर जी का एक विचारणीय लेख …….. 



महिला सशक्तिकरण : नव संदर्भ एवं चुनौतियां


सशक्तिकरण, इस
शब्द में ये अर्थ निहित है कि महिलाएं अशक्त हैं और उन्हें अब शक्तिशाली बनाना है
। ऐसे में एक सवाल हमारे सामने पैदा होता है कि महिलाएं अशक्त क्यों है
? क्या हम शारीरिक रूप से अशक्त होने की बात कर रहे
हैं
? या
हम बौद्धिक स्तर की बात कर रहे हैं
? या
फिर हम जीवन के हर क्षेत्र में उनके अशक्त होने की बात कर रहे हैं फिर चाहे वो
शिक्षा
, स्वास्थ्य, स्वावलंबन और सामाजिक स्थिति का मुद्दा ही क्यो न
हो!

मेरा जहां तक मत है ,मुझे
लगता है कि हमारी सामाजिक व्यवस्था महिलाओं के अधिकतर क्षेत्रों कमतर या पिछड़ी
होने के लिए जिम्मेदार है। उनका पालन पोषण एक दोयम दर्जे के इंसान के रूप में किया
जाता है। जिसके सिर पर जिम्मेदारियों का बोझ है। घर चलाने की जिम्मेदारी
, घर की व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी, बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी, घर में रहने वाले बड़े बुजुर्गों की देखभाल की
जिम्मेदारी
, और
कहीं कहीं तो आर्थिक तंगी होने की स्थिति में पति का हाथ उस क्षेत्र में भी बंटाने
की अनकही जिम्मेदारी उनके कंधों पर होती है।

हालांकि आज इस स्थिति में थोड़ा सा
परिवर्तन आया है। बेटियों के पालन पोषण पर भी ध्यान दिया जा रहा है और जो हमारी
वयस्क  महिलाएं हैं उनके अंदर एक बड़ा परिवर्तन आया है। ये जो बदलाव का समय था
पिछले
20-25 सालों
में वह हमारी उम्र की जो मांएं हैं
, जिनके
बच्चे इस समय
18-20 या
25 साल
के लगभग हैं मैंने जो खास परिवर्तन देखा है उनके पालन पोषण में देखा है और महसूस
किया है।

और मजे की बात यह है कि इन्हीं सालों में महिला
सशक्तिकरण और महिला दिवस मनाने का चलन बहुत ज्यादा बढ़ गया है। तो एक सीधा सा सवाल
हमारे मन में आता है कि ये जो बदलाव आया है
, जागरूकता
आई है वो इन सशक्तिकरण अभियान और महिला दिवस मनाने से आई है या कि जागरूकता आने के
कारण सशक्तिकरण का विचार आया
? ये
एक जटिल सवाल है। दरअसल दोनों ही बातें एक दूसरे से इस कदर जुड़ी हुई हैं कि हम
इसे अलग कर के नहीं देख सकते। ये एक परस्पर निर्भर चक्र है। जागरूकता है तो प्रयास
हैं और प्रयास हैं तो जागरूकता है। पर फिर भी परिणाम संतोषजनक नहीं हैं।



पढ़ें – बालात्कार का मनोविज्ञान और सामाजिक पहलू 

जब तक महिला सशक्तिकरण को व्यक्तिगत रूप से देखा
जाएगा तब तक वांछित परिणाम आ भी नहीं सकते। जिन परिवारों में महिलाओं की स्थिति
पहले से बेहतर है
, वो
आर्थिक रूप से
, सामाजिक
रूप से और वैचारिक रूप से आत्मनिर्भर हैं उनका परम कर्त्तव्य हो कि अपने पूरे जीवन
में वे कम से कम पांच अन्य महिलाओं के लिए भी इस दिशा में कुछ काम करें।

कहीं कहीं सशक्तिकरण का आशय स्वतंत्रता समझा गया है
और स्वतंत्रता का आशय पुरुषों के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश या उनके द्वारा किए
जाने वाले काम करने से लिया गया जो कि सर्वथा गलत है और भटकाव ही सिद्ध हुआ।

महिला सशक्ति तब है जब वो अपनी योग्यता और क्षमता और
इच्छा के अनुसार पढ़ सके
, धनोपार्जन
कर सके। परिवार में सभी
, सभी
यानि कि पुरुष सदस्य भी उसके साथ पारिवारिक जिम्मेदारियों को वहन करें। महिला
सशक्त तब है जब उसके साथ परिवार का प्रेम और सुरक्षा भी हो। किसी भी प्रकार के
सशक्तिकरण के लिए पुरुष विरोधी होना आवश्यक नहीं है। पर इसके लिए पुरुषों की
मानसिकता में बदलाव लाना बेहद आवश्यक है। घर की बड़ी बूढ़ी महिलाएं ही इस दिशा में
महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। यानि घूम फिर कर गेंद महिलाओं के पाले में ही आ
गिरती है। 

महिलाओं के सशक्तिकरण की राह में हमारे अंधविश्वास, रूढ़ियां, सामाजिक
व्यवस्था और मानसिकता ही सबसे बड़ी बाधा है और इन सबका पीढ़ी दर पीढ़ी पालन और
हस्तांतरण भी महिलाओं द्वारा किया जाता है। अगर महिलाएं इनमें कुछ बदलाव करके इसे
अगली पीढ़ी को सौंपती हैं तो धीरे धीरे बदलाव आता जाता है। इसमें सबसे बड़ी बाधा
है 
ILK यानि
लोग
क्या कहेंगे
’? पर
सच बात तो आज यही है कि लोग तो इंतज़ार कर रहे होते हैं कि कोई कुछ नया बेहतर करे
, परंपरा तोड़े तो सबके लिए रास्ता खुले! बस इसी
हिम्मत और पहल की आवश्यकता है।
 


पढ़ें #Metoo से डरें नहीं साथ दें 

मैं यहां एक उदाहरण देना चाहूंगी । एक महिला हैं।
उम्र है कोई साठ साल। जे एल एफ में जाती थीं। वहीं से पढ़ने लिखने का शौक हुआ।
अपने शहर के एक बड़े व्यापारिक घराने से हैं। अभी हाल ही में उन्होंने कविता लिखना
शुरू किया है। परिवार ने हंसी उड़ाई। फिर भी वो लिखती रहीं। फिर उन्होंने अपनी
पुस्तक छपवानी चाही। पति को बहुत मुश्किल से मनाया। उन्होंने कहा जितना खर्च हो
देंगे पर किसी को पता न चले कि तुमने कोई किताब लिखी है। किताब छपकर आ चुकी है पर
उसका विधिवत विमोचन नहीं हो पाया है! क्योंकि परिवार नहीं चाहता। मुझे उनकी
बेटियों और बहुओं से पूछना है कि एक स्त्री होकर अगर आप दूसरी स्त्री के लिए
, जो कि आपकी मां है,
इतना भी नहीं कर सकते तो आप भी कहां सशक्त हैं? आप अपनी कुंठाओं से,डर
से जब तक बाहर नहीं आते आप कमज़ोर ही हैं।

आज भी किसी सफल महिला को देखकर लोगों को ये कहते
सुना जा सकता है कि पति ने बहुत साथ दिया इसलिए यहां तक पहुंची है। पर स्थिति ये
भी हो सकती है कि अगर पति ने सचमुच साथ दिया होता तो जहां है
, वहां से कहीं ज्यादा आगे होती,सफल होती। इसलिए कहती हूं कि सशक्तिकरण के लिए हम
महिलाओं को ही एक दूसरे का साथ देना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।
पुराने परंपरागत तरीकों को , जो कि अब आधुनिक युग में अपनी उपयोगिता खो चुके हैं, छोड़कर अच्छे और नये विचारों के साथ,सबको साथ लेकर आगे बढ़ने से ही समाज में बदलाव आ
सकता है।पर याद रहे बदलाव और तरक्की सदैव सामूहिक हो तो ही समाजोपयोगी होती है। एक
सक्षम महिला जब तक अन्य महिलाओं को भी सक्षम बनाने की दिशा में काम नहीं करेगी
,उसका सक्षम होना समाज के लिए कभी उपयोगी न होगा।
इसलिए अगर हम चाहते हैं कि महिलाएं अधिक से अधिक तरक्की करें जिससे समाज आगे बढ़े
तो सामूहिक हितों की ओर कदम बढ़ाने होंगे।
शिवानी जयपुर


लेखिका-शिवानी जयपुर




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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष -मैं स्त्री https://www.atootbandhann.com/2018/03/blog-post_8-2.html https://www.atootbandhann.com/2018/03/blog-post_8-2.html#respond Thu, 08 Mar 2018 03:17:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2018/03/08/blog-post_8-2/ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष  मैं  ———— अपने पराये रिश्तों में इतना विष मिला  पीकर नीलकंठ हो गई मैं अब  विष भी अमृत सा लगता हैं नहीं लगता अब कुछ बुरा अच्छे-बुरे की सीमाओं से  ऊपर उठ गई हूँ मैं बहुत कुछ है इस संसार में जो अभी तक  देखा नहीं जो अभी तक  किया […]

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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष -मैं स्त्री

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष 


मैं 
————
अपने
पराये रिश्तों में
इतना विष मिला 
पीकर नीलकंठ
हो गई मैं
अब 
विष भी
अमृत सा लगता हैं
नहीं लगता
अब कुछ बुरा
अच्छे-बुरे की
सीमाओं से 
ऊपर उठ गई हूँ मैं
बहुत कुछ है
इस संसार में
जो अभी तक 
देखा नहीं
जो अभी तक 
किया नहीं
हरी मखमली दूब पर
लेट कर
दिन में सूरज से 
आँख मिला कर
तो रात में 
चाँद की
चाँदनी में नहा कर
उलझाना है उन्हें
नदी के संग 
नदी बन कर
बहते जाना है मुझे
हवा के संग
दूर -दूर तक की
यात्राएँ करनी है मुझे
तितलियों के संग उड़ना
जुगनुओं के संग
गाहे-बगाहे
चमकना है मुझे
जिन गौरैयों को
पापा के संग मिल
क्षण भर के लिए भी
पकड़ा था उन्हें
मनाना है मुझे
श्यामा और सुंदरी
मेरी जिन गायों ने
दूध देकर दोस्ती का
रिश्ता निभाया था मुझसे
कहाँ हैं वे अब
उन्हें ढूँढना है मुझे
और वो जूली बिल्ली
जिसे थैले में रख 
घंटाघर छोड़ कर 
आए थे हम
क्योंकि अपने ही
बच्चों को काटने लगी थी वो
कहाँ होगी वो
और उसकी बेटी स्वीटी
सोचती हूँ 
उन्हें भी तो ढूँढ कर
कुछ समझाना-दुलराना होगा
और वो मिट्ठू
जो एक दिन
भूल से बरामदे में
रह गया था
उसी दिन किसी
दूसरी बिल्ली ने पंजे मार
घायल कर डाला था उसे
कि फिर वो जी ही नहीं पाया था
उसके दुःख में माँ ने
तीन दिन तक खाना ही नहीं
खाया था
कहाँ होगा वो
किस रूप में फिर
जन्मा होगा वो
ये भी तो पता लगाना है
कितने ही काम हैं ऐसे
जो करने है मुझे
तो भला कैसे मैं
उलझी रह सकती हूँ मैं इसमें
कि किसने मुझे 
कब, क्या कह कर
दुखी किया
मैं सही हूँ या गलत
यह सिर्फ और सिर्फ 
मैं जानती हूँ
किस राह चलना है ये भी
मैं जानती हूँ
क्या करना है मुझे
ये भी मैं ही जानती हूँ
तो जिन रिश्तों ने दर्द दिया
उन्हें वैसा ही छोड़
अपने लक्ष्य के लिए
आगे बढ़ना भी मैं ही
जानती हूँ, इसलिए चल पड़ी हूँ
अब नहीं रुकूँगी मैं
पीछे मुड़ कर
देखूँगी नहीं मैं।
——————-
२—स्त्री—१
————
स्त्री 
माँ बहन बेटी 
भाभी चाची मौसी 
नानी दादी किसी भी 
रूप में हो 
वह एक स्त्री है 
इससे ज़्यादा और कुछ नहीं 
दूसरों के लिए 
स्त्री 
पूछना चाहती है 
बहुत कुछ 
ग़ुस्से में
घर के अंदर या बाहर 
तेज़ आवाज़ में 
बोलता पुरुष सही
और घर के अंदर भी 
बोलती हुई स्त्री 
ग़लत क्यों?
शराब के नशे में 
सिर से पाँव तक डूबे 
गालियाँ देते 
मारते-पीटते
पुरुष को सहती 
विज्ञान द्वारा 
प्रमाणित होने पर भी 
बेटा न उत्पन्न कर पाने का ठीकरा 
उसी के माथे पर 
क्यों फोड़ दिया जाता है 
ज़िम्मेदार पुरुष 
अपने पुरुषत्व को सहेजते 
सबके सामने मूँछों पर ताव देते
पुरुष को 
स्वयं योग्य होते हुए भी 
विवश हो 
उसे स्वीकारती, 
सफलता की ओर बढ़ती स्त्री 
‘चालू है’ की सोच रखते पुरुष 
और यहाँ तक की 
स्त्री की भी 
मानसिकता से लड़ती 
घर में 
चकरघिन्नी सी घूमती 
अपने को भूल 
घर, सारे रिश्ते सहेजती- समेटती
कुछ क्षण
अपने को महसूस करती स्त्री 
असहनीय क्यों होती है?
ऐसे कितने ही प्रश्न 
उमड़ते हैं उसके अंदर
वह जानती है
अगर वह पूछेगी तो 
प्रताड़ना के सिवा 
कुछ नहीं पाएगी
इसी से खुली आँखों में 
उन्हें लिए 
स्वयं से पूछती है प्रश्न
सही होते हुए भी 
ग़लत क्यों है वह 
ग़लत नहीं तो 
सहती क्यों है वह
सहती है तो 
दुखी क्यों होती है वह 
यह सब सोचती 
खड़ी क्यों है वह 
जब रहते हैं
अनुत्तरित प्रश्न
उन्हें सहेज कर 
आँखों में 
कर लेती है 
पलकें बंद 
और चलती रहती है उसकी 
अनवरत यात्रा इसी तरह 
मैं कहना चाहती हूँ 
हर स्त्री से 
रुको वहीं 
जहाँ तुम्हें रुकना हो 
मौन रहो वहीं 
जहाँ तुम्हें मौन रहना हो 
मन की सुनो 
यदि पथ है सही 
लक्ष्य स्वयं गढ़ो
अपनी राह पर आगे 
बेधड़क बढ़ो।
————————— 
३—स्त्री-२
——————-
सारे 
रिश्तों से लदी 
उन्हें अपने में समेटे 
घर की मालकिन
होने के बोझ से 
दबी सी 
भरे-पूरे घर में भी 
अकेली होती है स्त्री 
लिखती है 
रेशम के धागों से 
भविष्य का महाकाव्य
निबटा कर 
घर के काम-काज 
ऊन और सलाइयाँ लिए 
बैठती है धूप में 
बुनती है वर्तमान के
सुंदर डिज़ाइन
रसोई में 
मसालों की सुगंध में 
रची-बसी 
रचती है रोज 
एक नई कविता 
जीवन की
अपने नए 
सपनों के साथ।
———————
४—सुनो
————
सुख
मिले तो
उसे जीने को
शामिल करो सबको
पर दुःख में
बहते आँसुओं को
थामने-पोंछने
अपना हाथ
अपना रुमाल
स्वयं बनो
पर
इत्तनी भी
उन्मुक्त
दर्पयुक्त न बनो
कि अपनों,
आस-पास गुजरने वालों की
पदचाप सुन कर
उन्हें पहचान ही न सको
अस्तित्व
बराबरी की 
प्रतियोगिता से संपृक्त हो
बाज़ारवाद की
चपेट से बचते हुए सोचो
तुम अर्थ हो
घर-संसार का
सफलता में कहीं
तुम पीछे हो किसी के
तो कहीं
कोई पीछे है तुम्हारे
सबके साथ
मिल कर लिखती हो
जीवन के अध्याय 
तो फिर
अपने लिए
किसी एक दिवस की
आवश्यकता क्यों अनुभव करें
हर दिवस तुम्हारा
हम सबका है
वो जो
लोहे के बंद दरवाज़े है
उन्हें खोल कर
लिखो नई इबारत
जो कल
नया इतिहास रचेंगी
अपने
रंगों को समेट
उठो, चलो, दौड़ो मिल कर
देखो……
दूर-दूर तक
सारा आकाश तुम्हारा है
सारा आकाश हमारा है।
————————————
डा० भारती वर्मा बौड़ाई


कवियत्री
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