social articles Archives - अटूट बंधन https://www.atootbandhann.com/category/social-articles हिंदी साहित्य की बेहतरीन रचनाएँ एक ही जगह पर Fri, 03 Dec 2021 06:58:49 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.1.6 खुल के जिए जीवन की तीसरी पारी https://www.atootbandhann.com/2021/12/%e0%a4%96%e0%a5%81%e0%a4%b2-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%9c%e0%a4%bf%e0%a4%8f-%e0%a4%9c%e0%a5%80%e0%a4%b5%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%a4%e0%a5%80%e0%a4%b8%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%aa%e0%a4%be.html https://www.atootbandhann.com/2021/12/%e0%a4%96%e0%a5%81%e0%a4%b2-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%9c%e0%a4%bf%e0%a4%8f-%e0%a4%9c%e0%a5%80%e0%a4%b5%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%a4%e0%a5%80%e0%a4%b8%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%aa%e0%a4%be.html#comments Thu, 02 Dec 2021 09:30:58 +0000 https://www.atootbandhann.com/?p=7298 आमतौर पर परिवार की धुरी बच्चे होते हैं | माता -पिता की दुनिया उनके जन्म लेने से उनका कैरियर /विवाह  हो जाने तक उनके चारों ओर घूमती है | कहीं ना कहीं आम माओ की तो बच्चे पूरी दुनिया होती है, इससे इतर वो कुछ सोच ही नहीं पाती | पर एक ना एक दिन […]

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आमतौर पर परिवार की धुरी बच्चे होते हैं | माता -पिता की दुनिया उनके जन्म लेने से उनका कैरियर /विवाह  हो जाने तक उनके चारों ओर घूमती है | कहीं ना कहीं आम माओ की तो बच्चे पूरी दुनिया होती है, इससे इतर वो कुछ सोच ही नहीं पाती | पर एक ना एक दिन बच्चे माँ का दामन छोड़ कर अपना एक नया घोंसला बनाते हैं .. और माँ खुद को ठगा हुआ महसूस करती है |  मनोविज्ञान ने इसे एम्टी नेस्ट सिंड्रोम की संज्ञा दी है | पर क्या नए आकाश की ओर उड़ान भरते, अपने जीवन की खुशियाँ तलाशते और अपनी संतान को तराशने में लगे बच्चों को दोष देना उचित है ?  या स्वयं ही इस उम्र की तैयारी की जाए | आइए इस विषय पर पढ़ें सुपरिचित साहित्यकार शिवानी जयपुर का लेख

खुल के जिए जीवन की तीसरी पारी

 

यू ट्यूब पर देखें .. तीसरी पारी

यही तो वो समय है…
एक ही जीवन हम कई किश्तों में, कई पारियों में जीते हैं। आमतौर पर एक बचपन की पारी होती है जो शादी तक चलती है। उसके बाद शादी की पारी होती है जो घर गृहस्थी और बच्चों की ज़िम्मेदारी तक चलती रहती है। और उसके बाद एक तीसरी पारी होती है जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और अपने काम-धंधे में लग जाते हैं या पढ़ाई और नौकरी के सिलसिले में कहीं बाहर चले जाते हैं। या फिर शादी के बाद अपनी ज़िंदगी में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि माता-पिता के लिए समय बचता ही नहीं या बहुत कम बचता है। ऐसे में पति पत्नी अकेले रह जाते हैं। मुझे लगता है कि ये जो तीसरी पारी है, पति-पत्नी के संबंधों में बहुत ही महत्वपूर्ण है। बहुत सारे ऐसे सपने होते हैं, बहुत सारी इच्छाएँ होती है जिन्हें चाह कर भी गृहस्थी के तमाम उत्तरदायित्वों को निभाते हुए पूरा नहीं कर पाते हैं। इस समय जब बच्चे बाहर हैं और अपने आप में व्यस्त हैं, मस्त हैं… तब रात-दिन बच्चों को याद करके और उनकी चिंता करके अपने आप को गलाते रहने से कहीं बेहतर है कि पति-पत्नी एक-दूसरे को फिर से नये सिरे से समझें और समय दें।
न जाने कितने किए हुए लड़ाई-झगड़े हैं, कितनी अधूरी छूटी हुई लड़ाइयाँ हैं, गिले-शिकवे भी हैं, उनकी स्मृतियों से बाहर आएँ और इस समय का सदुपयोग करें। “चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों” इस तर्ज़ पर फिर से आपस में प्रेम किया जा सकता है! इस बार आप निश्चित रूप से बेहतर कर पाएँगे क्योंकि एक दूसरे को पहले से अधिक जानते हैं।
बच्चे जो एक बार बाहर चले जाते हैं, बहुत ही मुश्किल होता है उनका लौट कर आना। आप अगर बड़े शहरों में हैं तो फिर भी कुछ संभावना बनती है। लेकिन अगर छोटे शहरों में है और बच्चे बड़ी पढ़ाई कर लेते हैं तो फिर छोटे शहरों में उनका भविष्य नहीं रह जाता है। तो मान के चलिए कि ये बची हुई उम्र आप पति-पत्नी को एक-दूसरे के सहारे ही काटनी है। इस उम्र का एक-दूसरे का सबसे बड़ा सहारा आप दोनों ही हैं। तो अब तक की कड़वाहट को भूलकर नयी शुरुआत करने की कोशिश करिए।
अपनी और साथी की पसंद का खाना मिल-जुलकर बनाइए। पसंद का टीवी शो या फिल्म देखिए। सैर-सपाटा कीजिए।अपने शहर को नये सिरे से जानने की कोशिश करिए। मंदिर और पुरातत्व की ऐसी जगहें जहाँ आमतौर पर बच्चे जाना पसंद नहीं करते तो आप भी नहीं जाते थे, वहाँ जाइए। किसी पुस्तकालय की सदस्यता ग्रहण कर लीजिए और छूट गई आदत को पुनः पकड़ लीजिए। पुराने एल्बम निकालकर उस समय की मधुर स्मृतियों को ताज़ा किया जा सकता है। जिन दोस्तों और रिश्तेदारों से मिले अर्सा हो गया है, उनसे मिलना-जुलना करें या फिर फोन पर ही पुनः सम्पर्क बनाएँ। मान कर चलिए कि सब अपने-अपने एकाकीपन से दुखी हैं। सबको उस दुख से बाहर लाकर गैट टुगेदर करिए। छोटी-छोटी पार्टी रखिए। छुट्टी के दिन पूल लंच या डिनर करिए। एक दूसरे के घर या किसी पब्लिक प्लेस पर चाय-शाय पीने का कार्यक्रम करिए। और हाँ, अपने शौक जो पहले पूरे नहीं कर पाए थे, उन्हें अब पूरा कर सकते हैं।
सिलाई-कढ़ाई, बुनाई, पेंटिंग, बागवानी, टैरेस गार्डन आदि विकल्प मौजूद हैं,उन पर विचार किया जा सकता है। अगर लिख सकते हैं तो अपने उद्गार लिखना शुरू किया जा सकता है। डायरी लेखन या सोशल मीडिया लेखन भी अच्छा विकल्प है। सामाजिक सरोकारों से जुड़ी संस्थाओं से जुड़कर खाली समय का सदुपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा अब तक अगर अपनी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं को नज़रंदाज़ करते रहे हैं, तो उन पर ध्यान दीजिए। उचित चिकित्सकीय परामर्श लेकर खान-पान और जीवनशैली को बेहतर बनाने की कोशिश शुरू की जा सकती है।योग और प्राकृतिक चिकित्सा शुरू कर सकते हैं। स्वास्थ्य का ध्यान रखना सबसे पहली आवश्यकता है ही ना! तो खुद को व्यस्त और मस्त रखना अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है।
कभी-कभी बच्चों से भी मिलना-जुलना करिए। उन्हें बुलाइए या आप उनके पास जा सकते हैं।
आजकल तो दूर रहकर भी वीडियो कॉल जैसी सुविधाएँ हमें परस्पर जोड़े रखती हैं। ज़माने के बदलाव को समझते हुए, आत्मसात करते हुए बच्चों को दोस्त मानकर चलना ही बेहतर है। इससे भी बहुत सी घरेलू समस्याएँ सुलझ सकती हैं। उनके सलाहकार की बजाए सहयोगी बनेंगे तो आपको भी बदले में सहयोग ही मिलेगा। हो सके तो बचपन से ही उनकी आँखों में विदेश जाने का सपना न बोएँ। हम में से बहुत से माता-पिता ये भूल कर चुके हैं। उन्हें लगता है कि बच्चों की तरक्की में हम क्यों बाधा बनें? पर मुझे लगता है कि ऐसा सोचना ठीक नहीं है। जब हम बच्चों को ज़िम्मेदार बनाने की बात सोचते हैं तो याद रखें उनकी एक ज़िम्मेदारी हम भी होते हैं। इसमें कोई शर्म या झिझक की बात नहीं है। देश में ही बच्चे दूर कहीं रहें तो मौके बेमौके आ-जा सकते हैं! पर विदेश से आने-जाने का हाल हम सब जानते-समझते हैं। और फिर कोविड महामारी ने भी यही समझाया है जो हम बचपन से सुनते आए हैं- “देख लिया हमने जग सारा, अपना घर है सबसे प्यारा।”
किसी भी परिस्थितिवश अकेले रह रहे प्रौढ़ दम्पत्तियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं ये दिन, इन्हें व्यर्थ न जाने दें। हनीमून वाला समय याद करिए और जी लीजिए फिर से वो रूहानी पल। आजकल सिंगिंग एप्स आ गए हैं तो अपने गाने के छूट गए शौक को सँवारिए। सोशल मीडिया भी परिचय का दायरा बढ़ाने का अच्छा माध्यम हो सकता है बशर्ते कि उसका उपयोग पूरी सावधानी से किया जाए। कुछ ऑनलाइन सीखने-सिखाने का काम किया जा सकता है। अपने हुनर को निखारने के साथ-साथ उससे पैसा भी बनाया जा सकता है। या ज़रूरतमंद लोगों को मुफ्त में सिखाकर सेवा का संतोष भी पाया जा सकता है।
इन दिनों महिलाओं को, खासकर घरेलू महिलाओं को एकाकीपन की समस्या अधिक हो रही है। क्योंकि उनकी दिनचर्या का एक बड़ा हिस्सा बच्चे होते हैं। उनकी कमी उन्हें सबसे अधिक खलती है। और महामारी के इस दौर में बच्चे पहले से कहीं अधिक समय घर में रहे हैं। घर उनकी उपस्थिति से भरा-भरा रहता था। इसलिए अब उनकी कमी और भी शिद्दत से महसूस हो रही है। इसलिए अपने शौक यानि कि हॉबी को पुनर्जीवित करिए। यकीन मानिए बच्चे भी आपको खुश और निष्फिक्र देखकर सुकून ही महसूस करेंगे।
बच्चे बाहर हैं, उनकी चिंता होना बहुत ही स्वाभाविक है। पर आजकल बच्चे बहुत समझदार और यथार्थवादी हैं। वे अपने समय का सदुपयोग करना जानते हैं। उन पर भरोसा रखिए। इससे आपको भी मन की शांति मिलेगी। और जब आप तन-मन से स्वस्थ और प्रसन्न होंगे तो किसी भी विपरीत परिस्थिति में बच्चों को अधिक समझदारी से सम्हाल सकते हैं। उनके लिए मददगार साबित हो सकते हैं। यदि आप खुद ही हैरान परेशान हैं तो बच्चों के लिए भला क्या कर पाएँगे? इसलिए अपनी तीसरी पारी को सुख-चैन से बिताने की योजना बनाइए। इस खूबसूरत अवसर को बेकार न जाने दें। स्वस्थ रहें, मस्त रहें और एक-दूसरे का ख्याल रखें।और सच्ची बात ये भी है कि इससे मिलने वाली खुशी से तुलना करें तो ये सब आपकी जेब पर बिल्कुल भी भारी नहीं पड़ने वाला है।
जब तक जीवन है,जीना न छोड़ें
जब तक साथी है,अकेला न छोड़ें
आनी-जानी है ये दुनिया
जाने से पहले, आना न छोड़ें
शिवानी जयपुर
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बिना पढ़ें कबीर दास जी को ज्ञान कहाँ से मिला https://www.atootbandhann.com/2021/06/%e0%a4%ac%e0%a4%bf%e0%a4%a8%e0%a4%be-%e0%a4%aa%e0%a5%9d%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a4%ac%e0%a5%80%e0%a4%b0-%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%b8-%e0%a4%9c%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%9c%e0%a5%8d.html https://www.atootbandhann.com/2021/06/%e0%a4%ac%e0%a4%bf%e0%a4%a8%e0%a4%be-%e0%a4%aa%e0%a5%9d%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a4%ac%e0%a5%80%e0%a4%b0-%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%b8-%e0%a4%9c%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%9c%e0%a5%8d.html#comments Wed, 30 Jun 2021 05:51:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/?p=7158     “मसि कागद छूऔं नहीं, कलम गहौं नहि हाथ चारों जुग कै महातम कबिरा मुखहिं जनाई बात”   इसका शाब्दिक अर्थ है कि : मैंने कागज और स्याही छुआ नहीं और न ही कलम पकड़ी है | मैं चारो युगों के महात्म की बात मुँहजुबानी  बताता हूँ |   कबीर दास जी का यह […]

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“मसि कागद छूऔं नहीं, कलम गहौं नहि हाथ

चारों जुग कै महातम कबिरा मुखहिं जनाई बात”

 

इसका शाब्दिक अर्थ है कि : मैंने कागज और स्याही छुआ नहीं और न ही कलम पकड़ी है | मैं चारो युगों के महात्म की बात मुँहजुबानी  बताता हूँ |

 

कबीर दास जी का यह दोहा  बहुत प्रसिद्ध है जो कबीर दास जी के ज्ञान पर पकड़ दिखाता है | इस दोहे का  प्रयोग आम लोग दो तरह से करते हैं | एक तो वो जो कबीर के ज्ञान की सराहना करना चाहते हैं | दूसरे उन लोगों के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए इसका प्रयोग करते हैं जो किताबें ज्यादा पढ़ते हैं या ज्यादा किताबें पढ़ने पर जोर देते हैं .. उनका तर्क होता है कि ज्यादा किताबें पढ़ने से क्या होता है .. कबीर दास जी  को तो वैसे ही ज्ञान हो गया था |

 

पढ़ने वाले लोग इसका उत्तर बहुधा इस बात से देते हैं की कबीर जैसे सब नहीं हो सकते | वस्तुतः ये जानने वाली बात है कि कबीर दास जी को इतना ज्ञान कैसे मिला ..

 

बिना पढ़ें कबीर दास जी को ज्ञान कहाँ से मिला

कबीर दास जी के जीवन का ही एक प्रसिद्ध किस्सा है, इस पर भी ध्यान दें | कृपया इसे थोड़ा -बहुत हर फेर की गुंजाइश के साथ पढ़ें  ..

उस समय काशी में रामानंद नाम के संत उच्च कोटि के महापुरुष माने जाते थे। कबीर दासजी ने उनके आश्रम के मुख्य द्वार पर आकर विनती की कि “मुझे गुरुजी के दर्शन कराओ” लेकिन उस समय जात-पात समाज में गहरी जड़े जमाए हुए था। उस पर भी काशी का माहौल, वहां पंडितो और पंडों का अधिक प्रभाव था। ऐसे में किसी ने कबीर दास की विनती पर ध्यान नहीं दिया। फिर कबीर दासजी ने देखा कि हर रोज सुबह तीन-चार बजे स्वामी रामानन्द खड़ाऊं पहनकर गंगा में स्नान करने जाते हैं। उनकी खड़ाऊं से टप-टप की आवाज जो आवाज आती थी, उसी को माध्यम बनाकर कबीरदास ने गुरु दीक्षा लेने की तरकीब सोची।

 

कबीर दासजी ने गंगा के घाट पर उनके जाने के रास्ते में और सब जगह बाड़ (सूखी लकड़ी और झाड़ियों से रास्ता रोकना) कर दी। और जाने के लिए एक ही संकरा रास्ता रखा। सुबह तड़के जब तारों की झुरमुट होती है, अंधेरा और रोशनी मिला-जुला असर दिखा रहे होते हैं तब जैसे ही रामानंद जी गंगा स्नान के लिए निकले, कबीर दासजी उनके मार्ग में गंगा की सीढ़ियों पर जाकर लेट गए। जैसे ही रामानंद जी ने गंगा की सीढ़ियां उतरना शुरू किया, उनका पैर कबीर दासजी से टकरा गया और उनके मुंह से राम-राम के बोल निकले। कबीर जी का तो काम बन गया। गुरुजी के दर्शन भी हो गए, उनकी पादुकाओं का स्पर्श भी मिल गया और गुरुमुख से रामनाम का मंत्र भी मिल गया। अब गुरु से दीक्षा लेने में बाकी ही क्या रहा!

 

कबीर दासजी नाचते, गाते, गुनगुनाते घर वापस आए। राम के नाम की और गुरुदेव के नाम की माला जपने लगे। प्रेमपूर्वक हृदय से गुरुमंत्र का जप करते, गुरुनाम का कीर्तन करते, साधना करते और उनका दिन यूं ही बीत जाता। जो भी उनसे मिलने पहुंचता वह उनके गुरु के प्रति समर्पण और राम नाम के जप से भाव-विभोर हो उठता। बात चलते-चलते काशी के पंडितों में पहुंच गई।

 

गुस्साए लोग रामानंदजी के पास पहुंचे और कहा कि आपने कबीर  को राममंत्र की दीक्षा देकर मंत्र को भ्रष्ट कर दिया। गुरु महाराज! यह आपने क्या किया? रामानंदजी ने कहा कि ”मैंने तो किसी को दीक्षा नहीं दी।” लेकिन वह  जुलाहा तो रामानंग… रामानंद… मेरे गुरुदेव रामानंद की रट लगाकर नाचता है, इसका मतलब वह आपका नाम बदनाम करता है। तब कबीर दासजी को बुलाकर उनसे दीक्षा की सच्चाई के बारे में पूछा गया। वहां काशी के पंडित इकट्ठे हो गए। कबीर दासजी को बुलाया गया। रामानंदजी ने कबीर दास से पूछा ‘मैंने तुम्हे दीक्षा कब दी? मैं कब तुम्हारा गुरु बना?’

 

कबीर दास जी ने सारा किस्सा बताया|

 

स्वामी रामानंदजी उच्च कोटि के संत-महात्मा थे। घड़ी भर भीतर गोता लगाया, शांत हो गए। फिर सभा में उपस्थित सभी लोगों से कहा ‘कुछ भी हो, मेरा पहले नंबर का शिष्य यही है।’ इसने गुरु से दीक्षा पाने के लिए जो प्रयत्न किया है वह इसकी साफ नियत दिखाता है। इसके मन में कोई पाप नहीं। बस, इस तरह रामानंदजी ने कबीर दासजी को अपना शिष्य बना लिया।

 

कबीर अपने दोहों में, साखियों में वेद की बात करते हैं, द्वैत और अद्वैत  की बात करते हैं , परम ज्ञान की बात करते हैं .. वो ज्ञान उन्हें गुरु से सुन कर प्राप्त हुआ | हम देखते हैं की कबीर दास जी के बहुत से दोहे गुरु के माहत्म के ऊपर हैं |निसन्देह  उन्होंने ज्ञान देने वाले के महत्व को समझा है, माना है | हालांकि इससे कबीर का  महत्व कम नहीं हो जाता क्योंकि उन्होंने एक अच्छे विद्यार्थी की तरह वो सारा ज्ञान आत्मसात कर लिया | वो उनका जीवन बन गया | गुरु के महत्व के साथ-साथ शिष्य का भी महत्व है |

गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ी गढ़ी काटैं खोंट।
अंतर हाथ सहार दे, बाहर बाहैं चोट।

 

कुमति कुचला चेला भरा, गुरु ज्ञान जल होय।
जनम जनम का मोरचा, पल में डारे धोय।

 

गुरु गोविंद दोऊ खड़े , काके लागू पाँय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।

 

गुरु बिन ज्ञान न होत है , गुरु बिन दिशा अज्ञान।
गुरु बिन इंद्रिय न सधे, गुरु बिन बढे न शान।

 

गुरु को सिर राखीये, चलिए आज्ञा माहिं।
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोकों भय नाहीं।

तो अंत में आते हैं मुख्य मुद्दे पर की ना पढ़ने के पक्ष में इस दोहे को कहने वाले ये ध्यान रखे कबीर दास जी ने भले ही कागज कलम ना छुआ हो पर उन्हें ज्ञान सुन कर मिला  है | इसलिए या तो हम  स्वयं पढ़ें या हम को ऐसा गुरु मिले जिसने इतना पढ़ रखा हो की वो सीधे सार बता दे | आजकल लाइव में या यू ट्यूब वीडियो में हम उनसे सुनकर सीखते हैं जिन्होंने पढ़ा है | जीवन सिखाता है पर हम  अपने और अपने द्वारा देखे गए आस -पास के जीवन से कितना कुछ सीख पाएंगे | तर्क के आधार पर अपने सीखे को भी तभी काट पाएंगे जब जब ऐसे लोगों का  जीवन देखेंगे या सुनेंगे, पढ़ेंगे जो हमारे दायरे से बाहर हैं |

वंदना बाजपेयी

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*मोह* ( साहित्यिक उदाहरणो सहित गहन मीमांसा )

हिंदी कविता में आम आदमी

अन्त: के स्वर – दोहों का सुंदर संकलन

 

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किसानों को गुमराह करने का षड़यंत्र क्यों? https://www.atootbandhann.com/2018/12/kisanon-ko-gumrah-karne-ka-shanyantr-kyon.html https://www.atootbandhann.com/2018/12/kisanon-ko-gumrah-karne-ka-shanyantr-kyon.html#comments Sun, 02 Dec 2018 14:03:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2018/12/02/kisanon-ko-gumrah-karne-ka-shanyantr-kyon/ राजधानी की सड़कें एक बार फिर देशभर से आए किसानों के नारों से गूंजती रहीं। लेकिन प्रश्न यह है कि विभिन्न राजनीतिक दलों, कृषक समूहों और समाजसेवी संगठनों की पहल पर दिल्ली आए किसानों को एकत्र करने का मकसद अपनी राजनीति चमकाना है या ईमानदारी से किसानों के दर्द को दूर करना? यह ठीक नहीं […]

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किसानों को गुमराह करने का षड़यंत्र क्यों?
राजधानी की सड़कें एक बार फिर देशभर से आए किसानों के नारों से गूंजती रहीं। लेकिन प्रश्न यह है कि विभिन्न राजनीतिक दलों, कृषक समूहों और समाजसेवी संगठनों की पहल पर दिल्ली आए किसानों को एकत्र करने का मकसद अपनी राजनीति चमकाना है या ईमानदारी से किसानों के दर्द को दूर करना? यह ठीक नहीं कि राजनीतिक-सामाजिक संगठन अपने हितों की पूर्ति के लिए किसानों का इस्तेमाल करें। 

 किसानों को गुमराह करने का षड़यंत्र क्यों?

किसान देश का असली निर्माता है, वह केवल खेती ही नहीं करता, बल्कि अपने तप से एक उन्नत राष्ट्र की सभ्यता एवं संस्कृति को भी रचता है, तभी ‘जय जवान जय किसान’ का उद्घोष दिया गया है। राष्ट्र की इस बुनियाद के दर्द पर राजनीति करना दुर्भाग्यपूर्ण है। कर्ज माफी और फसलों के उचित दाम के अलावा उनकी एक प्रमुख मांग किसानों के मसले पर संसद का विशेष सत्र बुलाना भी है। इसके लिए उन्होंने देश की सबसे बड़ी पंचायत तक पैदल मार्च भी किया। कथित किसान हितैषी नेताओं ने जिस तरह कर्ज माफी पर नए सिरे से जोर दिया उससे यही रेखांकित हुआ कि उनके पास किसानों की समस्याओं के समाधान का कोई ठोस उपाय नहीं, बल्कि वे किसानों को ठगने एवं गुमराह करने का षड़यंत्र कर रहे हैं। 
बार-बार देखने में आ रहा है कि किसानों को गुमराह कर या उनके नाम पर अपनी राजनीति चमकाने की कुचेष्टाएं हो रही है। हाल के समय में यह तीसरी-चैथी बार है जब किसानों को दिल्ली लाया गया। इसके पहले उन्हें इसी तरह मुंबई भी ले जाया चुका है। समझना कठिन है कि परेशानी एवं त्रासद स्थितियों को झेल रहे किसानों को बार-बार दिल्ली या मुंबई में जमा करने से उनकी समस्याओं का समाधान कैसे हो जाएगा? जो राजनीतिक दल यह मांग लेकर सामने आए हैं कि किसानों की समस्याओं पर विचार करने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया जाए, उन्हें बताना चाहिए कि बीते साढ़े चार सालों में संसद सत्र के दौरान उन्होंने यह मांग क्यों नहीं सामने रखी? सवाल यह भी है कि किसानों की समस्याओं के बहाने अडाणी-अंबानी, नोटबंदी-जीएसटी, दुर्योधन-दुशासन, राफेल सौदे, राम मंदिर- बाबरी मस्जिद आदि का जिक्र करने का क्या मतलब यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि आगामी आम चुनाव के चलते विपक्षी नेता किसान-हित के बहाने अपने पक्ष में माहौल बनाने में लगे हुए हैं।
मजबूरी का नाम गांधी नहीं, किसान है। यानि मजबूरी आदर्श या आदर्श की मजबूरी। दोनों ही स्थितियां विडम्बनापूर्ण हैं। पर कुछ लोग किसी कोने में आदर्श की स्थापना होते देखकर अपने बनाए समानान्तर आदर्शों की वकालत करते हैं। यानी स्वस्थ परम्परा का मात्र अभिनय। प्रवंचना का ओछा प्रदर्शन। सत्ताविहीन असंतुष्टों की तरह आदर्शविहीन असंतुष्टों की भी एक लम्बी पंक्ति है जो दिखाई नहीं देती पर खतरे उतने ही उत्पन्न कर रही है। किसानों के हितैषी बनने वाले, उनकी समस्याओं पर घडियाली आंसू बनाने वाले, असल में उनके दुख-दर्द एवं परेशानी के नाम पर अपने राजनीतिक हितों की रोटियां सेक रहे हैं। सब चाहते हैं कि हम आलोचना करें पर काम नहीं करें। हम गलतियां निकालें पर दायित्व स्वीकार नहीं करें। ऐसा वर्ग आज बहुमत में है और यही वर्ग किसान हितवाहक होने का स्वांग रच रहा है। 
आज जरूरत ऐसा माहौल बनाने की है कि किसानों को अव्वल तो कर्ज लेने की जरूरत ही न पड़े, और अगर लें, तो पूंजीगत कर्ज लें। ऐसा कर्ज, जो उनकी अर्जन क्षमता बढ़ाए,  किसानों को उन्नत खेती की ओर अग्रसर करें, आधुनिक तकनीक एवं संसाधन उपलब्ध कराएं। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। किसान प्राकृतिक आपदा एवं अभावों के भी शिकार होते हैं। बाढ़ या सूखे से उनकी फसलें तबाह हो जाती हैं। इसका मुआवजा देने की घोषणाएं सरकारें करती रही हैं। मजेदार कहानी यह है कि सरकारी खजाने से किसानों के नाम पर धन निकलता है मगर वह बीमा कम्पनियों के खातों के हवाले हो जाता है। क्या इससे बड़ा अपमान हम धरती के अन्नदाता का और कुछ कर सकते हैं कि उसकी खराब हुई फसल का मुआवजा उसे दो रुपये से लेकर बीस रुपये तक के चेकों में दें। बीमा कम्पनियों ने महाराष्ट्र में ऐसा ही किया।
 एक और विडम्बनापूर्ण स्थिति देखने में आती रही है कि किसान बार-बार कर्ज के जाल में फंसता रहा है। कुछ किसान तो सिर्फ कर्ज-माफी की सोचते हैं। उन्हें इसका लाभ मिलता भी है, क्योंकि चुनाव के समय राजनीतिक दल वोट बैंक को प्रभावित करने के लिये उदार भाव से कर्ज माफ करने की घोषणाएं करते हैं। पहले कर्ज-माफी केंद्र सरकार ही किया करती थी, लेकिन अब राज्य सरकारें भी इस ओर बढ़ चली हैं। इस कारण समय पर कर्ज चुकाने वाले ईमानदार किसान ठगे रह जाते हैं। राज्य का यह नैतिक कर्तव्य है कि वह उन लोगों को प्रोत्साहित करे, जो वैधानिक तरीकों से ईमानदारीपूर्वक काम करते हों। मगर अब तो जिन किसानों ने जान-बूझकर कर्ज नहीं चुकाया, वही फायदे में रहते हैं। यह परंपरा भी वास्तविक किसानों के लिये बर्बादी का कारण बन रही है। 
कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि में किसान की कर्ज माफी की योजनाएं नाकाम होने के बावजूद इस तरह की योजनाओं को किसानों की समस्याओं के समाधान का सशक्त माध्यम माना जा रहा है। पता नहीं क्यों इस बुनियादी बात को समझने से इन्कार किया जा रहा है कि किसान जब तक कर्ज लेने की स्थिति में बना रहेगा तब तक उसकी बदहाली दूर होने वाली नहीं? समय की मांग यही है कि विपक्ष दल किसानों को राजनीतिक मोहरा बनाना बंद कर कृषि संकट के समाधान के कुछ कारगार उपायों के साथ सामने आए। ऐसे उपायों की तलाश में मोदी सरकार को भी जुटना चाहिए, क्योंकि उसके तमाम प्रयासों के बाद भी किसान समस्या ग्रस्त हैं और फिलहाल उसकी आय बढ़ने एवं समस्याएं कम होने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है।  
राजनीतिक दल दुर्गा बनना चाहते हैं, पर दुर्गा सामने नहीं देखना चाहते। वे चाहते हैं भगतसिंह पैदा हों, पर पड़ोस में। कारण भगतसिंह को जवानी में शहीद होना पड़ता है। वोट बैंक पर आधिपत्य का अर्थ है निरन्तर उन्नतिशील बने रहना एवं स्वस्थ शासन करना। जनता के दिलों पर शासन उस श्वेत वस्त्र के समान है, जिस पर एक भी धब्बा छिप नहीं सकता। जबकि भारतीय राजनीतिक उस मुकाम पर है जहां मुकाबला होता है उसका ”पोल्का डाॅट“ वाले वस्त्रधारी से, जिस पर एक और ”डाॅट“ लग जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ता। कुछ ऐसे व्यक्ति सभी जगह होते हैं जिनसे हम असहमत हो सकते हैं, पर जिन्हें नजरअन्दाज करना मुश्किल होता है। चलते व्यक्ति के साथ कदम मिलाकर नहीं चलने की अपेक्षा उसे अडं़गी लगाते हैं। सांप तो काल आने पर काटता है पर राजनीतिक दुर्जनता तो पग-पग पर काटती है।
 यह निश्चित है कि सार्वजनिक जीवन में सभी एक विचारधारा, एक शैली व एक स्वभाव के व्यक्ति नहीं होते। अतः आवश्यकता है दायित्व के प्रति ईमानदारी के साथ-साथ आपसी तालमेल व एक-दूसरे के प्रति गहरी समझ की। अगर हम किसानों मंे आदर्श स्थापित करने के लिए उसकी जुझारू चेतना को विकसित कर सकें तो निश्चय ही आदर्शविहिन असंतुष्टों की पंक्ति को छोटा कर सकेंगे। ऐसा होने पर ही किसानों को कभी दिल्ली तो कभी मुम्बई में अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने की एवं राजनीतिक दलों के स्वार्थों का मोहरा बनने की जरूरत नहीं पडे़गी।
 
ललित गर्ग 
लेखक -ललित गर्ग
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वंदना बाजपेयी

  हिन्दुओं में पितृ पक्ष का बहुत महत्व है | हर साल भद्रपद शुक्लपक्ष पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के काल को श्राद्ध पक्ष कहा जाता है |  पितृ पक्ष के अंतिम दिन या श्राद्ध पक्ष की अमावस्या को  महालया  भी कहा जाता है | इसका बहुत महत्व है| ये दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि जिन्हें अपने पितरों की पुन्य तिथि का ज्ञान नहीं होता वो भी इस दिन श्रद्धांजलि या पिंडदान करते हैं |अर्थात पिंड व् जल के रूप में अपने पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं | हिन्दू शस्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष में यमराज सभी सूक्ष्म शरीरों को मुक्त कर देते हैं | जिससे वे अपने परिवार से मिल आये व् उनके द्वरा श्रद्धा से अर्पित जल और पिंड ग्रहण कर सके |श्राद्ध तीन पीढ़ियों तक का किया जाता है |  


क्या बदल रही है श्राद्ध पक्ष के प्रति धारणा 


                                         मान्यता ये भी है की पितर जब संतुष्ट होते हैं तो वो आशीर्वाद देते हैं व् रुष्ट होने पर श्राप देते हैं | कहते हैं श्राद्ध में सबसे अधिक महत्व श्रद्धा का होता है | परन्तु क्या आज हम उसे उसी भाव से देखते हैं | शायद नहीं |कल यूँहीं कुछ परिचितों  से मिलना हुआ |
उनमें से एक  ने श्राद्ध पक्ष की अमावस्या के लिए अपने पति के
साथ सभी पितरों का आह्वान करके श्राद्ध करने की बात शुरू कर दी
| बातों ही बातों में खर्चे की बात करने लगी | फिर
बोली की क्या किया जाये महंगाई चाहे जितनी हो खर्च तो करना ही पड़ेगा
, पता नहीं कौन सा पितर नाराज़ बैठा हो और ,और भी रुष्ट
हो जाए
| उनको भय था की पितरों के रुष्ट हो जाने से उनके
इहलोक के सारे काम बिगड़ने लगेंगे
| उनके द्वारा सम्पादित
श्राद्ध कर्म में श्रद्धा से ज्यादा भय था
| किसी अनजाने
अहित का भय
|

पढ़िए – सावधान आप कैमरे की जद में हैं


वहीँ  दूसरी  , श्राद्ध
पक्ष में अपनी सासू माँ की श्राद्ध पर किसी अनाथ आश्रम में जा कर खाना व् कपडे
बाँट देती हैं
| व् पितरों का आह्वान कर जल अर्पित कर देती
है
| ऐसा करने से उसको संतोष मिलता है | उसका कहना है की जो चले गए वो तो अब वापस नहीं आ सकते पर उनके नाम का
स्मरण कर चाहे ब्राह्मणों को खिलाओ या अनाथ बच्चों को
, या
कौओ को
…. क्या फर्क पड़ता है |


 तीसरी सहेली बात काटते हुए कहती हैं ,
ये सब पुराने ज़माने की बातें है | आज की भाग
दौड़ भरी जिन्दगी में न किसी के पास इतना समय है न पैसा की श्राद्ध के नाम पर
बर्बाद करे
| और कौन सा वो देखने आ रहे हैं ?आज के वैज्ञानिक युग में ये बातें पुरानी हो गयी हैं हम तो कुछ नहीं करते |
ये दिन भी आम दिनों की तरह हैं | वैसे भी छोटी
सी जिंदगी है खाओ
, पियो ऐश करो | क्या
रखा है श्राद्ध व्राद्ध करने में
|



श्राद्ध के बारे में भिन्न भिन्न हैं पंडितों के मत 

तीनों सहेलियों की सोंच , श्राद्ध
करने का कारण व् श्रद्धा अलग
अलग है |प्रश्न ये है की जहाँ श्रद्धा नहीं है केवल भय का भाव है क्या वो असली
श्राद्ध हो सकता है
|प्रश्न ये भी है कि जीते जी हम सौ दुःख
सह कर भी अपने बच्चों की आँखों में आंसूं नहीं देखना कहते हैं तो मरने के बाद
हमारे माता
पिता या पूर्वज बेगानों की तरह हमें श्राप
क्यों देने लगेंगें
| शास्त्रों के ज्ञाता पंडितों की भी इस
बारे में अलग
अलग राय है ………..


उज्जैन
में संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रमुख संतोष पंड्या के अनुसार
, श्राद्ध में भय का कोई स्थान नहीं है। वो लोग जरूर भय रखते होंगे जो सोचते
हैं कि हमारे पितृ नाराज न हो जाएं
, लेकिन ऐसा नहीं होता।
जिन लोगों के साथ हमने
40-50 साल बिताएं हैं, वे हमसे नाखुश कैसे हो सकते हैं। उन आत्माओं से भय कैसा?


वहीं इलाहाबाद से पं. रामनरेश त्रिपाठी भी मानते हैं कि
श्राद्ध भय की उपज नहीं है। इसके पीछे एक मात्र उद्देश्य शांति है। श्राद्ध में हम
प्याज-लहसून का त्याग करते हैं
, खान-पान, रहन-सहन, सबकुछ संयमित होता है। इस तरह श्राद्ध जीवन
को संयमित करता है। भयभीत नहीं करता। जो कुछ भी हम अपने पितरों के लिए करते हैं
,
वो शांति देता है। शास्त्र
में एक स्थान पर कहा गया है
, जो लोग श्रद्धापूर्वक श्राद्ध
नहीं करते
, पितृ उनका रक्तपान करते हैं। इसलिए श्रद्धा बहुत
आवश्यक है और श्रद्धा तभी आती है जब मन में शांति होती है।

क्यों जरूरी है श्राद्ध 

अभी ये निशिचित तौर पर नहीं कहा जा सकता की जीव मृत्यु के बाद कहाँ जाता है | नश्वर शरीर खत्म हो जाता है | फिर वो श्राद्ध पक्ष में हमसे मिलने आते भी हैं या नहीं | इस पर एक प्रश्न चिन्ह् है |  पर इतना तो सच है की उनकी यादें स्मृतियाँ हमारे साथ धरोहर के रूपमें हमारे साथ रहती हैं |स्नेह और प्रेम की भावनाएं भी रहती हैं |  श्राद्ध पक्ष के बारे में पंडितों  की राय में मतभेद हो सकता है |
शास्त्रों में कहीं न कहीं भय उत्पन्न करके इसे परंपरा बनाने की
चेष्टा की गयी है
| लेकिन बात  सिर्फ इतनी नहीं है शायद उस समय की अशिक्षित जनता को यह बात
समझाना आसांन नहीं रहा होगा की हम जिस जड़ से उत्पन्न हुए हैं हमारे जिन पूर्वजों
ने न केवल धन सम्पत्ति व् संस्कार अपितु धरती
, आकाश ,
जल , वायु का उचित उपयोग करके हमारे लिए छोड़ा
है
| जिन्होंने हमारे जीवन को आसान बनाया है | उनके प्रति हमें वर्ष में कम से कम एक बार तो सम्मान व्यक्त करना चाहिए | उस समय के न के आधार पर सोंचा गया होगा की पूर्वज न जाने किस योनि
में गया होगा
उसी आधार पर अपनी समझ के अनुसार ब्राह्मण ,
गाय , कौवा व् कुत्ता सम्बंधित योनि  के प्रतीक
के रूप में चयनित कर लिए गए
|

पढ़िए – क्या आप जानते हैं की आप के घरका कबाड़ भी हो सकता है अवसाद का कारण


जैसे जैसे ज्ञान बढ़ा इन
प्रतीकों पर प्रश्नचिन्ह लगने लगे
| केवल इन्हें ही क्यों
चुना गया इस पर विवाद होने लगा
| कुछ लोगों में श्राद्ध कर्म
से अरुचि होने लगी और कुछ लोग उसे मात्र किसी भय
, या अनिष्ट
आशंका मान कर लकीर के फ़कीर की तरह ढोने लगे
| जहाँ कर्मकांड
भावना पर हावी होने लगा
| भावना हीन भोजन जब हम नहीं
स्वीकारते
,तो पितर जो आत्मा रूप में हैं वो क्योंकर
स्वीकारेंगे
उन्हें अगर कुछ चाहिए भी तो बस
भावना की पवित्रता और श्रद्धा
|आपको ये जानकार
आश्चर्य होगा की विदेशों में भी अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए
थैंक्स गिविंग डे होते हैं |
जहाँ अपने उनको उनके द्वारा दिए गए प्रेम के लिए धन्यवाद देने की
परंपरा है
| यह भी लगभग इन्ही दिनों पड़ता है |



लौकिक हों या अलौकिक रिश्ते टूटते नहीं हैं 

अगर हम थोडा गहराई में जाए तो देखेंगे की हमारे देश में
रिश्तों को समलने व् सहेजने की भावना पर बहुत बल दिया गया है
|तमाम त्यौहार रिश्तों को सजाने व् संवारने के लिए बनाए गए हैं |
श्राद्ध पक्ष इसी परंपरा की एक कड़ी है |रिश्ते
चाहे लौकिक हो या लोक के परे
| जो हमारे अत्यंत प्रिय हैं या
रहे हैं उनके प्रति हमारा भी कुछ कर्तव्य बनता है
| जितने
रिश्ते जीवित हैं उन्हें हम सम्बंधित त्योहारों पर उपहार
, सम्मान
देकर या अपनी प्रेमपूर्ण व्यवहार करके उनके प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं
|
हमारे प्रियजन जो इस लोक से परे चले गए हैं उनके प्रति हम अपना
प्रेम कैसे व्यक्त करे
, अपनी कृतज्ञता कैसे व्यक्त करे क्योंकि रिश्ते टूट कर भी नहीं टूटटे , चाहे आप इसे
विज्ञान के धरातल पर डीएनए से जोड़ कर देखे या भावना के धरातल पर प्रेम से जोड़ कर
देखे
|





अंधविश्वास नहीं विश्वास के साथ व्यक्त करिए श्रद्धा 





                      यहाँ ये नहीं सोचना है की वो ले रहे हैं या नहीं |
पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता का भाव , श्रद्धा
का भाव हमारे मन में असीम संतोष उत्पन्न करता है
| सुद्रण  करता है उस डोर को जो टूट कर भी नहीं टूटती | जहाँ प्रेम है
वहां भय का कोई स्थान नहीं है
| इसलिए श्राद्ध पक्ष में लकीर
के फ़कीर न बन कर चाहे तो पुरानी परम्परा के अनुसार
, चाहे
किसी नयी परंपरा की शुरुआत करके या महज नाम स्मरण कर हाथ जोड़ कर अपने पूर्वजों के
प्रति श्रद्धा तो व्यक्त करिए हर उस पूर्वज  के लिए जिसने हमारे जीवन को आसान बनाया है | साथ ही ये श्रद्धा हमें संकल्प लेना पर विवश करती है की हमें भी आने वाली नस्लों के लिए जीवन आसान बनाना है | 




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अलविदा प्रद्युम्न- शिक्षा के फैंसी रेस्टोरेन्ट के तिलिस्म मे फंसे अनगिनत अभिभावक https://www.atootbandhann.com/2017/09/blog-post_25-2.html https://www.atootbandhann.com/2017/09/blog-post_25-2.html#respond Tue, 12 Sep 2017 07:57:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2017/09/12/blog-post_25-2/ रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)। आज की तारीख़ का सबसे मुफिद और त्वरित फायदेमंद अगर कोई धंधा है तो वे एकमात्र कारआमद लाभकारी धंधा कोई शिक्षालय खड़ा कर चलाना है।ये एक एैसा शैक्षणिक हसीन रेस्टोरेन्ट है जिसके तिलिस्म मे फंसा अभिभावक अपने बच्चे की अच्छी शिक्षा के चक्कर मे खिचा चला आता है,एैसी तमाम इमारते […]

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रंगनाथ द्विवेदी।
जज कालोनी,मियाँपुर
जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)।

आज की तारीख़ का सबसे मुफिद और त्वरित फायदेमंद अगर कोई धंधा है तो वे एकमात्र कारआमद लाभकारी धंधा कोई शिक्षालय खड़ा कर चलाना है।ये एक एैसा शैक्षणिक हसीन रेस्टोरेन्ट है जिसके तिलिस्म मे फंसा अभिभावक अपने बच्चे की अच्छी शिक्षा के चक्कर मे खिचा चला आता है,एैसी तमाम इमारते हर शहर मे नाजो अदा से सजी सँवरी खड़ी है।




और सबसे बड़ा इन इमारतो का लब्बो-लुआब ये है कि इनके ज्यादातर जो मालिक है या तो सत्ताधारी पार्टी के मंत्री,विधायक या फिर बड़े-बड़े वे रसुखदार लोग है।जो अपनी सक्षम पहुँच की बदौलत तमाम स्थापित शैक्षणिक मानको को ताक पर रखे रहते है,इनकी सक्षम पहुँच की सलामी शहर के तमाम आलाहजरात के साथ वे अमला भी इनके तलवे को तक भर पाता है जिनके कांधे किसी भी शहर के आखिरी शख्स की आखिरी उम्मीद जुड़ी होती है,आपने भी शायद एकाध किस्से गाहे-बगाहे सुना हो “कि यादव सिंह जैसा अदना शख्स सरेआम पूरी व्यवस्था रुपी अमले को निर्वस्त्र कर धड़ल्ले से पूरी व्यवस्था का रेप करता है और सरकारे मौन साधे रहती है”।



अर्थात इस उदाहरण का अभिप्राय एक हालात और हैसियत किस तरह घुटने टेकती है वे बानगी भर है।सच तो ये है कि इस तरह के विद्यालय संचालको के विरुद्ध नकेल कस पाना दूर की कौड़ी है इनपे न तो पिछली सरकार कुछ कर पाई और न ही लग रहा कि वर्तमान सरकार भी कुछ कर पायेगी।



हाँ कभी-कभी इन शैक्षणिक रेस्टोरेन्ट मे घटित कोई बड़ी घटना इन्हें क्षणिक विचलित जरुर करती है,इन परिस्थितियो मे जनाक्रोश को शांत होने तलक के लिये कार्यवाही का एैसा ढ़िढोरा पिटते है कि जैसे अब इस संस्था को ये मटियामेट कर देगे,लेकिन फिर रफ्ता-रफ्ता इनके इस फैंसी रेस्टोरेन्ट की रौनक पुनः लौटने लगती है और लौट भी आती है। सच तो ये है कि “ये एक एैसी राजनैतिक विरयानी है जो इंतकाल के चालिसवे के बाद किसी नये निकाह मे बड़े मुहब्बत और मन से खाया जाता है”।




अभी हरियाणा के मासुम प्रद्युम्न की वे गले कटी लाश हरियाणा क्या पुरे हिन्दुतान के उन तमाम लाखो करोड़ो प्रद्युम्न के अभिभावको को हिलाकर रख दिया है एक प्रद्युम्न से मासूम ने सारे मुल्क की आँख मे भावना का सैलाब ला दिया है और शायद आक्रोश भी”आक्रोश का ही प्रतिफल था जो रेयान स्कूल से कुछ दूरी पे खुले शराब के ठेके को आग के हवाले कर दिया और पुरस्कार स्वरुप अपने पीठ पे लाठिया खाई जहाँ इन लाठियो को चलाकर हत्यारे को पीट-पीटकर अधमरा करना था वहाँ ये रंड़ियो के दलाल की तरह बस खड़े रहे”।


सच तो ये है कि ये सारे स्कूल संचालक साफ्ट माफ़िया है जिनके चेहरे पे मुस्कान भर है “बाकी ये अंदर से पैशाचिक प्रवृत्ति के अनमोल धरोहर है,इनके अपराध करने की शैली किसी ओपेन अपराधी से ज्यादा खतरनाक है क्योंकि ये सभी बहुत कुल और कोल्ड मर्डर करते है”।किसी शहर मे इनके खिलाफ कोई कार्यवाही अगर किसी भी स्तर पर हो रही हो तो बताये किसी भी बड़े शिक्षा माफ़िया का कोई भी एक रोया मात्र अगर किसी ने टेढ़ा किया हो तो मै मानू।


प्राईवेट स्कूलो मे शोषण की बानगी यत्र,तत्र,सर्वत्र है,क्या भाजपा?,क्या काग्रेंस,क्या सपा?,क्या बसपा? या कोई अन्य राष्ट्रीय पार्टी सच तो ये है कि ये सब “एक से रंगे सियार है और दिखावे की खातिर बस कुछ दिन एक दुसरे की तरफ मुँह कर हुंआ-हुंआ करते है”।कार्यवाही के नाम पर एक खानापुर्ति भर होके रह जाती है।
हर शहर मे बड़ी स्कूलो के बस धड़ल्ले से हमारे आपके बच्चे को ठसा-ठस लादे एक परेशान गंतव्य को लादे अर्थात स्कूल को निकल जाती है।क्या इसकी जाँच होते आप कही देख रहे है जबकि बस के किराये के नाम पर हम हर महिने फिस के साथ बस के भी पैसे जमा कर रहे है। आरटीओ इन्हें टच नही करते इन्हें भी इनकी पहुँच और रसुख का डर सताता है।


हालाँकि मै राजनैतिक लेखो और संदर्भो से अपने कलम की एक निश्चित दूर बनाये रखता हूँ।लेकिन कुछ हालात एैसे बन पड़ते है कि कलम न चाह के भी चित्कार कर उठती है और ये लेख उसी चित्कार की पीड़ा बन लेख मे उतर आये है,”ये चित्कार है उस सात वर्ष के हरियाणा के मासूम प्रद्युम्न की ये महज़ एक राज्य भर नही शायद एैसे तमाम स्कूल है जहाँ मासूम प्रद्युम्न तड़प व छटपटा रहा है”।


मै आदरणीय प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी से कर बंध निवेदन करता हूँ कि वे हमारे देश को आज की तारीख़ मे डिजिटल और न्यू इंडिया बनाये,डोकलाम पे चीन से कुटनीतिक विजय पाये,कश्मीर से आतंक को नेस्तनाबूत करे लेकिन “आज देश के अंदर उनकी सरकार है और सरकार की मानवीय संवेदना का मै आवाहन करता हूँ कि—-प्लीज अस्पतालो और स्कूलो मे तड़प रहे उन अनगिनत प्रद्युम्न कि माँ के आँसूओ को पोछने की संवेदनात्मक कोशिश करे,क्योंकि आज ये हालात डोकलाम और कश्मीर घाटी से ज्यादा दुरुह और घातक हो चुका है।

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अतिथि देवो भव – तब और अब


चमत्कार की तलाश में बाबाओं का विकास


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अपने लिए जिए तो क्या जिए


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” अतिथि देवो भव् ” : तब और अब https://www.atootbandhann.com/2017/08/blog-post_97.html https://www.atootbandhann.com/2017/08/blog-post_97.html#comments Thu, 31 Aug 2017 14:34:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2017/08/31/blog-post_97/ किरण सिंह  आजकल अधिकांश लोगों के द्वारा यह कहते सुना जाता है कि आजकल लोग एकाकी होते जा रहे हैं , सामाजिकता की कमी होती जा रही है, अतिथि को कभी देव समझा जाता था लेकिन आजकल तो बोझ समझा जाने लगा है आदि आदि..!  यह सही भी है किन्तु जब हम इस तरह के […]

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किरण सिंह 

आजकल अधिकांश लोगों के द्वारा यह कहते सुना जाता है कि आजकल लोग एकाकी होते जा रहे हैं , सामाजिकता की कमी होती जा रही है, अतिथि को कभी देव समझा जाता था लेकिन आजकल तो बोझ समझा जाने लगा है आदि आदि..! 



यह सही भी है किन्तु जब हम इस तरह के बदलाव के मूल में झांक कर देखते हैं तो पाते हैं कि इसमें दोष किसी व्यक्ति विशेष का न होकर आज की जीवन शैली, शिक्षा  – दीक्षा , एकल तथा छोटे परिवारों का होना, घरों के नक्शे तथा पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण है! 
एकल परिवारों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा मनोनुकूल जीवनशैली तो रहती है जहाँ किसी अन्य का रोक – टोक नहीं होता इसीलिये इसका चलन बढ़ भी रहा है ! किन्तु एकल परिवारों तथा आज की जीवनशैली में मेहमानवाजी के लिए समय निकालना जरा कठिन है! 



संयुक्त परिवार में हर घर में बूढ़े बुजुर्ग रहते थे जिनके पास काम नहीं होता था या कर नहीं सकते थे तो जो भी आगन्तुक आते थे बूढ़े बुजुर्ग बहुत खुश हो जाया करते थे क्योंकि कुछ समय या दिन उनके साथ बातें करने में अच्छा गुजर जाता था तथा मेहमान भी मेहमानवाजी और अपनापन से प्रसन्न हो जाते थे! इसके अलावा बच्चे भी मेहमानों को देखकर उछल पड़ते थे क्योंकि एक तो मेहमान कुछ न कुछ मिठाइयाँ आदि लेकर आते थे इसके अलावा घर में भी तरह-तरह का व्यंजन बनता था जिसका बच्चे लुत्फ उठाते थे! तब घर की बहुओं को चूल्हा चौका से ही मतलब रहता था बहुत हुआ तो थोड़ा बहुत आकर मेहमानों को प्रणाम पाती करके हालचाल ले लिया करतीं थीं और बड़ों के आदेश पर खाने पीने आदि की व्यवस्था करतीं थीं! मतलब संयुक्त परिवार में हर आयु वर्ग के सदस्यों में काम बटे हुए होते थे जिससे मेहमान कभी बोझ नहीं लगते थे बल्कि उनके आने से घर में और खुशियों का माहौल रहता था ! 




किन्तु एकल परिवारों में बात से लेकर खाने – पीने रहने – सोने तक सब कुछ का इन्तजाम घर की अकेली स्त्री को ही करना पड़ता है क्योंकि पुरुष को तो आॅफिस टूर आदि से फुर्सत ही नहीं मिलता और घर में जब स्मार्ट और सूघड़ बीवी हो तो वे निश्चिंत भी हो जाते हैं ! और बच्चों पर भी पढ़ाई का बोझ इतना रहता है कि उनके पास मेहमानवाजी करने का फुर्सत नहीं रहता! यदि वे मेहमानों के साथ बैठना चाहें भी तो मम्मी पापा का आदेश होता है कि जाओ तुम फालतू बातों में मत पड़ो अपनी पढ़ाई करो!  ऐसे में मेहमानों के आगमन पर काम के बोझ के साथ-साथ स्त्रियों का अपना रूटीन खराब हो जाता है ! जिससे खीजना स्वाभाविक ही है! 






जहाँ घरेलू स्त्री है वहाँ तो फिर भी ठीक है किन्तु जहाँ पर पति पत्नी दोनों ही कार्यरत हैं वहाँ की समस्या तो और भी जटिल है! और उससे भी ज्यादा मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करने वाले दम्पत्तियों के पास तो मेहमानों के लिए बिल्कुल भी समय नहीं है क्योंकि उनका रुटीन भी कुछ अलग है ! कभी नाइट शिफ्ट तो कभी डे शिफ्ट… ऐसे में उनके पास सिर्फ वीकएंड बचता है जिसमें उन्हें आराम भी करना होता है और घूमना भी होता है जो कि निर्धारित ही रहता है ऐसे में उनके पास अचानक कोई मेहमान टपक पड़े तो फिर दिक्कत तो होगी ही! 



अब हम बात करते हैं कि पहले अतिथि देव क्यों होते थे ! इसका सीधा उत्तर है कि पहले अतिथि बिना आमन्त्रण के नहीं आते थे , और जब कोई किसी को आमन्त्रित करता है तो अवश्य अपना समय, सामर्थ्य को देखते हुए आत्मीय जन को ही करता होगा तो वैसे अतिथि तो कभी भी प्रिय ही होंगे! 




बात मित्रों की हो या रिश्तेदारों की जाना वहीं चाहिए जहाँ पर आत्मीयता हो और आपके जाने से आपके मित्र या रिश्तेदार को खुशी मिले! यदि मित्रों या रिश्तेदारों के पास जाना हो तो जाने से पहले सूचित अवश्य कर दें ताकि आपका मित्र या रिश्तेदार आपके लिए समय निकाल सके! 



जाने के बाद मेजबान के कार्य में थोड़ी बहुत मदद अवश्य करें! 
# अपना सामान यथास्थान ही रखें ! बच्चे साथ हों तो उनपर ध्यान दें! 
# घर का सामान यदि बिखर गया हो तो धीरे से ठीक कर दें! 
# और सबसे जरूरी कि जो भी व्यंजन खाने पीने के लिए परोसे जायें उसका तारीफ अवश्य कर दें! 
फिर देखियेगा आप अवश्य ही अतिथि के रूप में देव ही महसूस करेंगे! 


मेजबानों को भी चाहिए कि अपने कीमती समय में से थोड़ा समय निकालकर मेहमानों को खुशी – खुशी दें ! विश्वास करें इससे खुशियों में गुणोत्तर बढ़ोत्तरी होगी! 


परिचय …
साहित्य , संगीत और कला की तरफ बचपन से ही रुझान रहा है !
याद है वो क्षण जब मेरे पिता ने मुझे डायरी दिया.था ! तब मैं कलम से कितनी ही बार लिख लिख कर काटती.. फिर लिखती फिर……… ! जब पहली बार मेरे स्कूल के पत्रिका में मेरी कविता छपी उस समय मुझे जो खुशी मिली थी उसका वर्णन मैं शब्दों में नहीं कर सकती  ….!
घर परिवार बच्चों की परवरिश और पढाई लिखाई मेरी पहली प्रार्थमिकता रही ! किन्तु मेरी आत्मा जब जब सामाजिक कुरीतियाँ , भ्रष्टाचार , दबे और कुचले लोगों के साथ अत्याचार देखती तो मुझे बार बार पुकारती रहती थी  कि सिर्फ घर परिवार तक ही तुम्हारा दायित्व सीमित नहीं है …….समाज के लिए भी कुछ करो …..निकलो घर की चौकठ से….! तभी मैं फेसबुक से जुड़ गई.. फेसबुक मित्रों द्वारा मेरी अभिव्यक्तियों को सराहना मिली और मेरा सोया हुआ कवि मन  फिर से जाग उठा …..फिर करने लगी मैं भावों की अभिव्यक्ति..! और मैं चल पड़ी इस डगर पर … छपने लगीं कई पत्र पत्रिकाओं में मेरी अभिव्यक्तियाँ ..! 
पुस्तक- संयुक्त काव्य संग्रह काव्य सुगंध भाग २ , संयुक्त काव्य संग्रह सहोदरी सोपान भाग 2
मेरा एकल काव्य संग्रह है .. मुखरित संवेदनाएं

फोटो कोलाज 
फर्स्ट फोटो क्रेडिट – आध्यात्म विश्वविद्यालय
सेकंड फोटो क्रेडिट – legacy of wisdom

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फेसबुक :क्या आप दूसरों की निजता का सम्मान करते हैं ? https://www.atootbandhann.com/2017/08/blog-post_29-2.html https://www.atootbandhann.com/2017/08/blog-post_29-2.html#respond Sat, 26 Aug 2017 07:18:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2017/08/26/blog-post_29-2/ किरण सिंह  निजता एक तरह की स्वतंत्रता है | एक ऐसा दायरा जिसमें व्यक्ति खुद रहना चाहता है | इस स्वतंत्रता पर हर व्यक्ति का हक़ है – रौन पॉल  जिस प्रकार महिलाएँ किसी की बेटी बहन पत्नी तथा माँ हैं उसी प्रकार पुरुष भी किसी के बेटे भाई पति तथा पिता हैं इसलिए यह […]

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किरण सिंह 
निजता एक तरह की स्वतंत्रता है | एक ऐसा दायरा जिसमें व्यक्ति खुद रहना चाहता है | इस स्वतंत्रता पर हर व्यक्ति का हक़ है – रौन पॉल 
जिस प्रकार महिलाएँ किसी की बेटी बहन पत्नी तथा माँ हैं उसी प्रकार पुरुष भी किसी के बेटे भाई पति तथा पिता हैं इसलिए यह कहना न्यायसंगत नहीं होगा कि महिलायें सही हैं और पुरुष गलत ! पूरी सृष्टि ही पुरुष तथा प्रकृति के समान योग से चलती है इसलिए दोनों की सहभागिता को देखते हुए दोनों ही अपने आप में विशेष हैं तथा सम्मान के हकदार हैं! 
महिलाएँ आधुनिक हों या रुढ़िवादी हरेक की कुछ अपनी पसंद नापसंद, रुचि अभिरुचि बंदिशें, दायरे तथा स्वयं से किये गये कुछ वादे होते हैं इसलिए वे अपने खुद के बनाये गये दायरे में ही खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं ! उन्हें हमेशा ही यह भय सताते रहता है कि लक्ष्मण रेखा लांघने पर कोई रावण उन्हें हर न ले जाये ! वैसे तो ये रेखाएँ समाज तथा परिवार के द्वारा ही खींची गईं होती हैं किन्तु अधिकांश महिलाएँ इन रेखाओं के अन्दर रहने की आदी हो जातीं हैं इसलिए आजादी मिलने के बावजूद भी वे अपने लिये स्वयं रेखाएं खींच लेतीं हैं… ऐसे में इन रेखाओं को जो भी उनकी इच्छा के विरुद्ध लांघने की कोशिश करता है तो शक के घेरे में तो आ ही जाता है भले ही कितना भी संस्कारी तथा सुसंस्कृत क्यों न हो! 
यह बात आभासी जगत में भी लागू होता  है जहाँ महिलाओं को अभिव्यक्ति की आजादी मिली है ! यहाँ किसी का हस्तक्षेप नहीं है फिर भी अधिकांश महिलाओं ने अपना दायरा स्वयं तय कर लिया है.! जहाँ तक अपने बारे में जानकारी देना सही समझती हैं वे अपने प्रोफाइल, पोस्ट तथा तस्वीरों के माध्यम से दे ही देतीं हैं! और दायरों के अन्दर कमेंट के रिप्लाई में कुछ जवाब दे ही देतीं हैं |
इसीलिये बिना विशेष घनिष्टता या बिना किसी विशेष जरूरी बातों के मैसेज नहीं करना चाहिए और यदि कर भी दिये तो  रिप्लाई नहीं मिलने पर यह  समझ जाना चाहिए कि अमुक व्यक्ति को व्यक्तिगत तौर पर बातें करने में रुचि नहीं है या फिर उसके पास समय नहीं है और दुबारा मैसेज नहीं भेजना चाहिए ! 
इसके अलावा  कमेंट तथा रिप्लाई भी दायरों में रह कर ही करना चाहिए !  जिससे पुरुषों के भी स्वाभिमान की रक्षा हो सके तथा वे अपने हिस्से का सम्मान प्राप्त कर सकें! 


यह भी पढ़ें ……….
परिचय …
साहित्य , संगीत और कला की तरफ बचपन से ही रुझान रहा है !
याद है वो क्षण जब मेरे पिता ने मुझे डायरी दिया.था ! तब मैं कलम से कितनी ही बार लिख लिख कर काटती.. फिर लिखती फिर……… ! जब पहली बार मेरे स्कूल के पत्रिका में मेरी कविता छपी उस समय मुझे जो खुशी मिली थी उसका वर्णन मैं शब्दों में नहीं कर सकती  ….!
घर परिवार बच्चों की परवरिश और पढाई लिखाई मेरी पहली प्रार्थमिकता रही ! किन्तु मेरी आत्मा जब जब सामाजिक कुरीतियाँ , भ्रष्टाचार , दबे और कुचले लोगों के साथ अत्याचार देखती तो मुझे बार बार पुकारती रहती थी  कि सिर्फ घर परिवार तक ही तुम्हारा दायित्व सीमित नहीं है …….समाज के लिए भी कुछ करो …..निकलो घर की चौकठ से….! तभी मैं फेसबुक से जुड़ गई.. फेसबुक मित्रों द्वारा मेरी अभिव्यक्तियों को सराहना मिली और मेरा सोया हुआ कवि मन  फिर से जाग उठा …..फिर करने लगी मैं भावों की अभिव्यक्ति..! और मैं चल पड़ी इस डगर पर … छपने लगीं कई पत्र पत्रिकाओं में मेरी अभिव्यक्तियाँ ..! 
पुस्तक- संयुक्त काव्य संग्रह काव्य सुगंध भाग २ , संयुक्त काव्य संग्रह सहोदरी सोपान भाग 2
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संवेदनशील समाज : अपने लिए जिए तो क्या जिए https://www.atootbandhann.com/2017/08/blog-post_20.html https://www.atootbandhann.com/2017/08/blog-post_20.html#respond Sun, 20 Aug 2017 03:08:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2017/08/20/blog-post_20/ – प्रदीप कुमार सिंह ‘पाल’,  शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक रोज के अख़बारों में न जाने कितनी खबरें ऐसी होती हैं जहाँ संवेदनहीनता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है | क्या आज हम सब संवेदनहीन हो गए हैं ? हमारे पास दूसरों  की मदद करने का समय ही नहीं है या हम करना ही नहीं चाहते […]

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प्रदीप कुमार सिंह पाल’, 
शैक्षिक एवं वैश्विक
चिन्तक
रोज के अख़बारों में न जाने कितनी खबरें ऐसी होती हैं जहाँ संवेदनहीनता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है | क्या आज हम सब संवेदनहीन हो गए हैं ? हमारे पास दूसरों  की मदद करने का समय ही नहीं है या हम करना ही नहीं चाहते ? क्या आज  का जमाना ऐसा हो गया है जो ” मेरा घर मेरे बच्चो में सिमिट गया है |कहीं न कहीं हम सब पहले की तरह मिलजुल कर रहना चाहते हैं | एक संवेदनशील समाज चाहते हैं | पर हम सब चाहते हैं की इसकी शुरुआत कोई दूसरा करे | पर हर अच्छे काम की पहल स्वयं से करनी पड़ती है | एक बेहतर समाज निर्माण के लिए हर व्यक्ति के सहयोग की आवश्यकता होती है | 

 बढ़ रही है असंवेदनशीलता  


यह सचमुच दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक चलती-फिरती सड़क पर कोई
हादसा हो जाए
, हादसे का शिकार
इंसान मदद के लिए चिल्लाता रहे और लोग उसकी ओर नजर डालकर आगे बढ़ जाएं या तमाशबीन
बनकर फोटो और वीडियो उतारने लगें। सब कुछ करें
, बस उसकी मदद के लिए आगे न आएं। आखिर यह किस समाज में जी
रहें हम
? शायद सेल्फी व फोटो की
दीवानगी और मदद करने के जज्बे की कमी ने यह सब आम कर दिया है। इस बार हादसा
कर्नाटक के हुबली में हुआ
, जहां बस की टक्कर
से बुरी तरह जख्मी
18 वर्षीय साइकिल
सवार काफी देर तक सहायता के लिए चिल्लाता रहा
, लेकिन कोई उसकी मदद को न आया। दुर्घटना के शिकार की मदद न
करना और उसकी तस्वीरें खींचते रहना
, खुद हमारी और हमारी व्यवस्था, दोनों की
संवेदनहीनता का नतीजा है। ऐसे मामलों में लोगों को पुलिसिया प्रताड़ना से बचाने के
लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी व्यवस्था दे रखी है।


            *   अभी हाल ही की एक घटना में दो बच्चियों ने टीन पर चाॅक से
लिखकर अपने सौतेले पिता का पाप उकेरा। उन्होंने लिखा कि
मम्मी प्यारी मम्मी, हमारी इज्जत की सहायता करना, तुम हमको इस नर्क में छोड़कर क्यों चली गई। तुझे मालूम है
हमारे साथ क्या-क्या हो रहा है। हमको लड़ने की शक्ति देना
, ताकि हम पापा को मिटा सकें। मम्मी, हम तुम्हारे बिना अधूरे हैं। हमारे पास आ जाओ, हम तुमको बहुत याद करती हैं।एक राहगीर ने उसे पढ़कर पुलिस को खबर कर दी।
पुलिस ने तुरन्त कार्यवाही करके आरोपी पिता को जेल भेज दिया। दोनों बच्चियों को एक
स्वयं सेवी संस्था को सौप दिया गया है। बच्चियों की इस मार्मिक पुकार को सुनकर
किसी का भी हृदय तथा आंखें भर आयेंगी। इन बच्चियों की हर तरह से मदद की जानी
चाहिए। समाज में उन्हें भरपूर प्यार तथा सुरक्षा मिले। हमारी ऐसी सदैव प्रार्थना
है।


             *   एक सात साल की रूसी बच्ची का दिल जन्म से ही उसके सीने के
बाहर है। सीने की त्वचा के ठीक पीछे यह साफ तौर पर नजर आता है। अमेरिका में उसका
आॅपरेशन होने वाला है जो कि उसके लिए जीवन मौत का सवाल है। वर्सेविया बोरन
गोंचारोवा नाम की यह बच्ची पेट की एक बीमारी से पीड़ित है। इस दुर्लभ बीमार के
दुनिया में एक लाख में से केवल पांच लोग ही होते हैं। बच्ची ने बताया कि ये देखिये
ये मेरा दिल है। इसे इस तरह देखने वाली मैं अकेली ऐसी इंसान हूं। मैं चलती हूं
,
छलांग लगाती हूं, हालांकि मुझे दौड़ना नही चाहिए लेकिन मैं दौड़ती हूं।


              *  यूपी पुलिस का दावा है कि राज्य में लड़कियों के मोबाइल
नंबरों की खुलेआम बिक्री हो रही है। मोबाइल फोन रिचार्ज करने वाली दुकानों पर
लड़कियों के मोबाइल नंबर बिक रहे हैं। महिला हेल्पलाइन पर
15 नवम्बर 2012 से 31 दिसम्बर 2016 के बीच कुल 6,61,129 शिकायतें दर्ज कराई गई हैं। इनमें से 5,82,854 शिकायतें टेलीफोन पर परेशान करने को लेकर थी।
इस मामले से पुलिस को सख्ती से निपटना चाहिए। मोबाइल रिचार्ज एजेंट बनाना काफी
आसान है। मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी से जुड़ी एजेंसी से संपर्क करना होता है और फिर
एक फार्म व सिक्योरिटी जमाकर दुकान खोल सकते हैं। सरकार को इस मामले में सख्त कदम
उठाने चाहिए।

दिल को तसल्ली देती हैं कुछ अच्छी खबरें 

                चीन के साथ वर्ष 1962 के युद्ध के बाद सीमा पार कर जाने पर 50 साल से अधिक समय तक भारत में फंसा रहा एक चीनी
सैनिक वांग क्वी अपने भारतीय परिवार के सदस्यों के साथ चीन पहुंचा जहां उसका भव्य
स्वागत किया गया। उसका अपने परिवार के लोगों से भावनात्मक मिलन हुआ। वर्ष
1969 में भारतीय जेल से छुटने के बाद वह मध्य
प्रदेश के बालाघाट जिला स्थित तिरोदी गांव में बस गए। इस सैनिक के दुःख की झलक
बीबीसी के हालिया टीवी फीचर को चीनी सोशल मीडिया पर प्रसारित किया गया। इसके बाद
चीन सरकार ने भारत के साथ मिलकर उनकी वापसी के लिए प्रयास शुरू किये।


                फ्रांस की आइरिस मितेनेयर ने मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता के 65वें सत्र में वर्ष 2017 का ताज अपने नाम कर लिया वहीं हैती की राक्वेल पेलिशियर
दूसरे स्थान पर रहीं। मूल रूप से पेरिस की रहने वाली
24 वर्षीय आइरिस दंत शल्य चिकित्सा में स्नातक की पढ़ाई की है,
उनका लक्ष्य दांतों और मुख की स्वच्छता संबंधी
जागरूकता फैलाने का है। प्रतियोगिता में भारत से रोशमिता अकेली नहीं थी। पूर्व मिस
यूनिवर्स एवं भारतीय अभिनेत्री सुष्मिता सेन प्रतियोगिता में जज की भूमिका में थी।
सुष्मिता ने वर्ष
1994 में यह खिताब
जीता था। समारोह में उन्हें
‘‘बाॅलीवुड
सुपरस्टार पूर्व मिस यूनिवर्स और महिला अधिकारों की हिमायती
’’ कहकर संबोधित किया गया था। वहीं अभिनेत्री
प्रियंका चोपड़ा ने दुनिया में बाल अधिकारों की निराशाजनक स्थिति को देखते हुए एक
भावनात्मक अपील की है। उन्होंने कहा है कि दुनियाभर के चार करोड़
80 लाख बच्चे संघर्ष, आपदाओं का सामना कर रहे हैं। उन्हें आपकी जरूरत है।
प्रियंका को हाल में यूनिसेफ की ग्लोबल गुडविल एंबेसडर घोषित किया गया है।

                पाकिस्तान की एक सुखद खबर यह है कि हाल के वर्षों में सोच बदली
है और लोग
, खासकर महिलाएं सिनेमाघरों
में जाने लगी हैं। सिनेमा मालिकों ने मल्टीप्लेक्सों में पैसा लगाकार जो जोखिम
लिया था
, वह भी मुनाफा देने लगा
है। आज ज्यादातर बड़े शहरों में एक से ज्यादा मल्टीप्लेक्स हैं और निवेशक अब दूसरे
दर्जे के छोटे शहरों-कस्बों की ओर देख रहे हैं। ये मल्टीप्लेक्स इसलिए फायदे में
नहीं हैं कि ये पश्चिम का सिनेमा दिखाते हैं
, बल्कि इसलिए मुनाफे में हैं कि ये वह दिखा रहे हैं, जो पब्लिक देखना चाह रही है। पाकिस्तान में
मनोरंजन से भरी पारिवारिक भारतीय फिल्मों की जबर्दस्त मांग है और बड़े मुनाफे का
जरिया भी। पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों को फिर से दिखाने के फैसले का हार्दिक
स्वागत किया गया है।



                देश के गुमनाम नायकों का पद्मश्री जैसा सम्मान सुखद अहसास
कराता है। पहली बार सरकार ने पद्मश्री जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों के लिए आवेदन की
प्रक्रिया को आॅनलाइन और पारदर्शी बनाया
, और कई योग्य लोग सामने आए। किसी खास राजनीतिक विचारधारा की तरफ झुकाव को
किनारे करके योग्य और मेधावी लोगों को राष्ट्रीय सम्मान या पुरस्कार देना किसी भी
सरकार के कामकाज का हिस्सा होना चाहिए। मगर अतीत में हमने गणतंत्र दिवस से जुड़े
सम्मानों व पुरस्कारों के राजनीतिकरण पर तमाम तरह के सवाल उठते देखे हैं। भला हो
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का
, जिन्होंने इस
सम्मानों के लिए योग्यता को एकमात्र कसौटी बना दिया।

क्या है असंवेदनशीलता का कारण 

लोग पढ़े-लिखे हों या अनपढ़जब वे यह मान बैठते हैं कि आसानी से बड़ी कमाई की जा सकती हैतो वे धोखे का शिकार बनने के लिए तैयार हो जाते हैं। उत्तर प्रदेश के नोएडा से आॅनलाइन धोखाधड़ी करने वाली कंपनी का पकड़ा जाना बहुत कुछ कहता है। हमारी मानसिकता के बारे मेंहमारे प्रशासन के बारे में और यह भी कि इन दोनों के मेल से जो स्थितियां बनती हैंवे गलत तरीके अपनाने वालों को कितना बड़ा आधार देती हैं।


डाॅ0 एल्फ्रेड एडलर मानते हैं, ‘असुरक्षित व्यक्ति सबसे पहले हमारे भरोसे को हिलाता है।’ डाॅ. एडलर महान साइकोथिरेपिष्ट थे उनका नाम फ्रायड और जुंग के साथ लिया जाता है। इनफीरियोरिटी काॅम्प्लेक्स’ उन्हीं का दिया शब्द है। उनकी मशहूर किताब हैअडरस्टैंडिंग ह्नयूमन नेचर। हमारी जिंदगी में किसी का असर इतना नहीं होना चाहिए कि कोई आए और हमें परेशान कर चला जाए। हमें उसके असर को एक किनारे कर अपने में लौटना चाहिए। अपनी खूबी और खामी को तभी हम ठीक से समझ पाएंगे। हम पर किसी का कुछ भी असर होलेकिन खुद में हमारा भरोसा नहीं टूटना चाहिए।

ख़ुशी देती है संवेदनशीलता ~अपने लिए जिए तो क्या जिए 

                
                दूसरों की खुशी के लिए खर्च करना हमें बेहतर करता है। यह
हमें मानवीय ही नहीं
, धनी भी बनाता है।
अर्थशास्त्री जाॅन सी ब्रुक्स ने जब अमेरिका के सबसे बड़े उद्योगपतियों में एक जाॅन
राॅकफेलर की यह बात सुनी कि
मैंने इतना पैसा
इसलिए कमाया
, क्योंकि मुझमें
लोगों की मदद करने का जज्बा था। मैंने लोगों को दिया
, इसलिए मुझे मिला। साथी अर्थशास्त्रियों से उन्होंने कहा कि
तुम सिर्फ पैसे देखते हो
, जबकि पैसा जो
खुशी देता है
, हम उसे देखते
हैं। खुश व्यक्ति ज्यादा उत्पादक होता है।

प्रसिद्ध मार्निया
राॅबिन्स ने इस बात को वैज्ञानिक तरीके से समझाया है। वह कहती हैं कि जब हम अपनी
खुशी के लिए कुछ करते हैं
, तो डोपामाइन
हार्मोन निकलता है
, जो एक तीव्र
इच्छा तो पैदा करता है
, मगर संतुष्टि
नहीं देता। लेकिन दूसरों का भला सोचने पर आॅक्सीटोसिन हार्मोन निकलता है। यह
निःस्वार्थी
, दयालु और
प्रेमपूर्ण बनाता है। यह हार्मोन सही मात्रा में नहीं निकले
, तो इंसान आत्मकेंद्रित और अवसाद की ओर चला जाता
है। 


अगर हमें सचमुच आगे बढ़ना है, तो देना सीखना
होगा।एक संवेदनशील समाज वही होता है जहाँ हम सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए भी जीते हैं | 





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सावधान ! आप कैमरे की जद में हैं https://www.atootbandhann.com/2017/08/blog-post_64.html https://www.atootbandhann.com/2017/08/blog-post_64.html#respond Sat, 19 Aug 2017 05:35:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2017/08/19/blog-post_64/ अर्चना बाजपेयी रायपुर (छत्तीस गढ़ )    क्लिक , क्लिक , क्लिक … हमारा स्मार्टफोन यानी हमारे हाथ में जादू का पिटारा | जब चाहे , जहाँ चाहे सहेज लें यादों को | कोई पल छूटने न पाए , और हम ऐसा करते भी हैं | माँल  में गए तो चार साड़ियों की फोटो खींच भेज दी […]

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अर्चना बाजपेयी

रायपुर (छत्तीस गढ़ )  
 क्लिक , क्लिक , क्लिक … हमारा स्मार्टफोन यानी हमारे हाथ में जादू का पिटारा | जब चाहे , जहाँ चाहे सहेज लें यादों को | कोई पल छूटने न पाए , और हम ऐसा करते भी हैं | माँल  में गए तो चार साड़ियों की फोटो खींच भेज दी सहेलियों को व्हाट्स एप पर | तुरंत सबकी राय आ गयी | खुद को भी फैसला लेने में आसानी हुई | ये तस्वीरे हम खुद खींचते हैं अपनी सुविधा से अपनी मर्जी से | पर अगर यही काम कोई दूसरा करे बिना हमारी जानकारी के बिना हमारी मर्जी के तो ? 


       अक्सर अख़बारों में पढने को मिल जाता है कि बड़े –बड़े शॉपिंग माल्स में ट्रायल
रूम्स में छोटे कैमरे लगे होते हैं जो वस्त्र बदलते समय महिलाओ  की तस्वीरे उतार लेते हैं | महिलाओ को सचेत
रहने को कहा जता है  व् कई  ऐसे उपाय बताये जाते हैं जिससे वो आसानी से जान
सके कि ट्रायल रूम में कोई कैमरा लगा है या नहीं | इन ख़बरों के आने के बाद से ज्यादातर
महिलाएं सतर्कता से काम लेने लगी  हैं | पर
आज हम इस लेख में उन छिपे हुए कैमरों की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि उन उन कैमरों  की बात कर रहे हैं जो लोग हाथों में लिए घुमते
हैं और यहाँ वहाँ ,ईधर  उधर  बिना १,२,३ रेडी ,स्माइल प्लीज कहे फोटो खीचते
रहते  हैं | जी हाँ ! आप सही समझे हम बात
कर रहे हैं आपके हाथों में हर वक्त रहने वाले मोबाइल फोन की |

      कहते
हैं हर आविष्कार के कुछ लाभ होते हैं व् कुछ हानि वही बात मोबाइल फोन पर भी लागू
होती है | आज से १० -१५ साल पहले मोबाइल इतने सुलभ नहीं थे | केवल वहीँ लोग जो
फोटोग्राफी के शौक़ीन थे अपने पास कैमरा रखते थे वो भी २४ x ७ नहीं | किसी विशेष
बात पर विशेष जगह पर ही फोटो खीची जाती थी | उस समय आम आदमी फोटो खिचवाने  के लिए मौके तलाशता था | जो उसे शादी पार्टी
आदि समारोहों में ही मिलते थे | बकायदा तैयार होकर ग्रुप फोटो खिचवाने स्टूडियो
जाया जाता था | वाजिब बात है सबके पास अपनी गिनी चुनी ही तस्वीरे होती थी | कितने
खूबसूरत पल जिन्हें यादों में सहेजना चाहते थे ,रह जाते थे | मोबाइल ने यह मुश्किल
आसान कर दी है | हर किसी के पास कैमरा है … जब चाहे जितनी चाहे फोटो खींचों
,पसंद आये रखों बाकी सब डिलीट |


 आज कल हर
हाथ में मोबाइल है और मोबाइल में अच्छी किस्म का कैमरा | पर इससे जिंदगी की कुछ
मुश्किलें बढ़ी भी है | अब आप को सड़क पर बाज़ार में हँसते  –बोलते खाते –पीते , कभी भी किसी असावधान
मुद्रा में कैद कर सकता है | सिर्फ कैद ही नहीं कर सकता है वीडियो बना कर फेस बुक
, व्हाट्स एप पर शेयर भी कर सकता है | अभी पिछले दिनों व्हाट्स एप पर एक वीडियो
बहुत शेयर हुआ जिसमें दुल्हन वरमाल डालते समय गिर गयी थी | किसकी  शादी थी वो लड़की कौन थी इससे किसी को मतलब नहीं
पर उसके गिरने के दृश्य पर हँसने  वाले
वहां मौजूद लोग ही नहीं अपितु कई अनजान –अजनबी भी बने | रेखा अपने ९ साल के दो
जुड़वां  बच्चों के साथ मॉल गयी थी | मॉल
में बच्चों ने बहुत शरारते करनी शुरू कर दी | रेखा ने उन्हें संभालने  की कोशिश की पर गुस्से पर काबू न पा सकी जोर से
चिल्ला –चिल्ला कर बच्चों को डांटा फिर बच्चों के पलट कर जबाब देने पर वहीँ बैठ सर
पकड़ कर रोने लगी | बच्चे तो थोड़ी देर में शांत हो गए पर शाम को रेखा के पास कई फोन
आने लगे | दरसल किसी ने उसका वीडियो बना कर “ आजकल की मम्मी “ के नाम से फेस बुक
पर डाल  दिया था |


   श्रीमान
और श्रीमती देसाई सडक  पर झगड़ पड़े | आप को
कुछ नहीं आता से शुरू हुई बात दोनों के पुरखो के सत्कर्म उछालने तक खीच गयी | थोड़ी
देर बाद उस झगड़े की वीडियो उनके दूसरे शहर में रहने वाले एक मित्र ने व्हाट्स एप
पर ये कहते हुए भेजी की उनके पास कहीं से आई है ……… क्या बात है सब ठीक है |
नयी माँ सुलेखा अपने १ १/२  साल के बच्चे
के साथ मॉल में गयी | बच्चा कभी गोद में चढ़ता  कभी उतरता | साडी   ठीक से पिन अप न होने की वजह से इस आपाधापी में
पल्ला कभी अपने स्थान पर न रह पाता | शातिर मोबाइल कैमरों ने उसे खीच कर अपने
दोस्तों को भेजना शुरू कर दिया |


     वैसे
महिलाओं को खतरा ज्यादा है पर इन मोबाईल कैमरों की जद में हर कोई है क्या स्त्री
,क्या पुरुष | गंजा सर खुजाते हुए किशोरी लाल व् कही  ट्रेन न छूट जाए इस लिए हाँफते –दांफ्ते दौड़
लागते मोटी  तोंद  वाले बैंक मैनेजर शैलेश कुमार जी | यहाँ आम और
ख़ास का फर्क भी नहीं है रिक्शे वाला हो सब्जी वाला हो या काम वाली उसकी कुछ
असावधानीवश की गयी हरकते कैमरे में कैद हो सकती हैं और जस्ट फॉर फन आँन   लाइन हो सकती हैं | क्या आपने कभी सोचा है जो
आप दिन भर व्हाट्स एप पर तमाम फुहडाना ,बेवकूफाना हरकतें देखते रहते हैं उनमें से
कई किसी  आम घटना को चुपके से कैमरे में
कैद करके बनायीं गयी है| ये वो आम बातें भी होती हैं जो हम भी अक्सर करतें हैं
…. पर दूसरे का मजाक उड़ाने में पीछे नहीं हटते |


वैसे तो हम जब भी घर के बाहर होते हैं हमें इस बात
का हमेशा ख्याल रहता है कि कोई हमें देख रहा है और हमारा प्रयास  भी यही रहता है कि हम घर के बाहर शिष्ट व् सभ्य
 व्यवहार करे | पर पहले बात इतनी गंभीर
नहीं थी | कुछ दिनों बाद बात आई गयी हो जाती थी | पर आज के समय में हमें जब यह पता
है कि  घर के बाहर न सिर्फ लोग हमारी
हरकतों को  देख रहे हैं बल्कि अपने कैमरे
में कैद कर के किसी असावधानी को पूरी दुनियाँ  तक पहुंचा सकते हैं, तो हमें ज्यादा सावधान रहने
की आवश्यकता है | वैसे ये स्वतंत्रता दिवस का महीना है ऐसे में एक विचार मन में
उठाना स्वाभाविक है कि इंसान की निजी स्वतंत्रता को धत्ता बधाती इस तरह की
फोटो  बाजी के विरुद्ध  क्या एक सख्त कानून की आवश्यकता है ?




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sarahah app : कितना खास कितना बकवास https://www.atootbandhann.com/2017/08/sarahah-app.html https://www.atootbandhann.com/2017/08/sarahah-app.html#comments Fri, 18 Aug 2017 06:50:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2017/08/18/sarahah-app/ अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब फेसबुक पर sarahah एप लांच हुआ और देखते ही देखते कई लोगों ने डाउनलोड करना शुरू कर दिया | मुझे भी अपने कई सहेलियों की वाल पर sarahah एप दिखाई दिया और साथ ही यह मेसेज भी की यह है मेरा एक पता जिसपर आप मुझे कोई भी मेसेज […]

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अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब फेसबुक पर sarahah एप लांच हुआ और देखते ही देखते कई लोगों ने डाउनलोड करना शुरू कर दिया | मुझे भी अपने कई सहेलियों की वाल पर sarahah एप दिखाई दिया और साथ ही यह मेसेज भी की यह है मेरा एक पता जिसपर आप मुझे कोई भी मेसेज कर सकते हैं | वो भी बिना अपनी पहचान बाताये | आश्चर्य की बात है इसमें मेरी कई वो सखियाँ भी थी जो आये दिन अपनी फेसबुक वाल पर ये स्टेटस अपडेट करती रहती थी की ,मैं फेसबुक पर लिखने पढने के लिए हूँ , कृपया मुझे इनबॉक्स में मेसेज न करें | जो इनबॉक्स में बेवजह आएगा वो ब्लाक किया जाएगा | अगर आप कोई गलत मेसेज भेजेंगे तो आपके मेसेज का स्क्रीनशॉट शो किया जाएगा , वगैरह , वगैरह | मामला बड़ा विरोधाभासी लगा , मतलब नाम बता कर मेसेज भेजने से परहेज और बिना नाम बताये कोई कुछ भी भेज सकता है | जो भी हो इस बात ने मेरी उत्सुकता सराह एप के प्रति बढ़ा दी | तो आइये आप भी जानिये सराह ऐप के बारे में ,” की ये कितना ख़ास है और कितना बकवास है |

क्या है sarahah  app 


                   सराह एक मेसेजिंग एप है | जिसमें कोई भी व्यक्ति अपनी प्रोफाइल से लिंक किसी भी व्यक्ति को मेसेज भेज सकता है |मेसेज प्राप्त कर सकता है | सबसे खास बात इसमें   उसकी पहचान उजागर नहीं होगी |यानी की बेनाम चिट्ठी | सराह एप में आप मेमोरी भी क्रीऐट कर सकते हैं व् उन लोगों के नामों का भी चयन कर सकते हैं जिन्हें  आप मेसेज भेजना चाहते हैं |आप साइन इन कर उन लोगों को भी खोज सकते हैं जिनका पहले से एकाउंट है | इसे डाउनलोड करने के लिए आप को इसके वेब प्लेटफॉर्म  पर जा कर एकाउंट बनाना होगा |आप इसे गूगल प्ले स्टोर या एप्पल के एप स्टोर से भी डाउनलोड कर सकते हैं |इसकी ऐनड्रोइड की एप साइज़ १२ एम बी है |

कहाँ से आया ये sarahah  app 


                                  सराह एप सऊदी अरेबिया से आया है | जिसे वहां के वेब  डेवेलपर  Zain al-Abidin Tawfiq ने डेवेलप किया है | पहले उन्होंने इसे इस लिए डेवेलप किया था की कम्पनी के     कर्मचारी  मालिकों को अपना फीड बैक दे सके जो वो खुले आम सामने सामने  नहीं दे पाते हैं | पर देखते ही देखते यह एप वायरल  हो गया | अबक इसके ३० लाख से भी अधिक यूजर बन चुके हैं | भारत में हर
दिन इसे हजारों लोग डाउनलोड कर रहे हैं |

क्या  है sarahah  का मतलब 
                             ” सराह ” का शाब्दिक अर्थ है इमानदारी | पर जब आप अपना नाम छुपा कर कुछ भेज रहे हैं तो इमानदारी कहाँ रहती है | हां , सकारात्मक आलोचना की जा सकती है | अगर आप सामने कहने से परहेज करते हों | पर ये सुनने वाले किए ऊपर है की वो अपनी आलोचना सुन कर आपको ब्लॉक करता है या नहीं |

क्या खास है sarahah app  में 


                                 सराह  मेसेज देने ,लेने के अतिरिक्त कुछ ज्यादा नहीं कर सकता | हो सकता है भविष्य में इसमें कुछ फीचर जोड़े जाए | वैसे मेसेज देने के लिए व्हाट्स एप व् फेसबुक मेसेंजर भी है | तो फिर इसमें ख़ास क्या है | जहाँ तक आलोचना करने का सवाल है तो लोग फेक फेसबुक आई डी बना कर भी कर लेते हैं | फेसबुक पर फेक आई डी वाले लंबी – लंबी बहसे करते देखे गए हैं | कई की ओरिजिनल आई डी है | पर उन्होंने नाम के अलावा  बाकी सब हाइड कर रखा है | फोटो भी उनकी अपनी नहीं है | मतलब ये की वो लोग कुछ भी लिखने के लिए स्वतंत्र हैं | वैसे भी अगर आप की फ्रेंड लिस्ट छोटी है तो इसमें कुछ भी ख़ास नहीं |क्योंकि सब आपके ख़ास जान – पहचान वाले ही होंगे |  हां अगर फ्रेंड लिस्ट बड़ी है और  कुछ ऐसे लोग आपसे जुड़े हैं जो आपको मेसेज करने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं तो वो इस एप के माध्यम से कर सकते हैं | दिल की बात कह सकते हैं | यहाँ पर बात सिर्फ तारीफ की नहीं , बेहूदा मेसेजेस व् बेफजूल आलोचना की भी हो सकती है |

                                                            अगर आप किसी बिजनिस या क्रीएटीव  फील्ड से जुड़े हैं तो आप इसका प्रयोग ” सेल्फ प्रोमोशन ” में कर सकते हैं | ऐसे में आप नकारात्मकता व् आलोचना से भरी सैंकड़ों पोस्टों को भूल जाइए , व् कुछ तारीफों वाली चिट्ठियों को अपनी वाल पर शेयर करिए | जिससे लोगों को लगे आपका काम या बिजनेस कितना  प्रशंसनीय है |आपके फ्रेंड्स व् फोलोवेर्स अचंभित  हो सकते हैं की आप या आपका काम कितना लोकप्रिय है | इसके लिए आप अच्छी सी चिट्ठियाँ अपने खास दोस्तों या परिवार के सदस्यों से खुद ही लिखवा सकते हैं | ये बात उनके लिए है जिनके लिए सेल्फ प्रोमोशन में सब कुछ जायज है  पर इसके लिए आपको इतना मजबूत होना पड़ेगा की आप अनेकों अवांछित चिट्ठियों से अप्रभावित रह सकें |

क्या बकवास है sarahah app में 

                                      बेनामी चिट्ठियाँ , बेनामी फोन कॉल्स , अब बेनामी मेसेजेस  महिलाओं के लिए हमेशा खतरे की घंटी हैं | sarahah चाहें जितनी ईमानदारी का दावा करें पर अश्लीलता में ये इमानदारी बर्दाश्त नहीं की जा सकती | एक खबर के मुताबिक़ एक लड़की ( नाम जानबूझकर गुप्त रखा है ) ने सराह एप डाउन लोड  किया | उसे रेप के मेसेजेस मिलने लगे | उसने इसका स्क्रीनशॉट twitter पर शेयर किया है |

                                                      *     उसने एप डीलीट कर दिया | पर क्या ये गंदे शब्द उसके दिमाग से डीलीट हो सकेंगे |जाहिर है जिसने भी ये एप डाउनलोड किया उसके मन में ये जानने की इच्छा होगी की लोग मेरे बारे में क्या सोंचते हैं  ( मतलब तारीफ़ सुनने की इच्छा ,कुछ हद तक सकारात्मक आलोचना भी )|  एक सर्वे के अनुसार   महिलाओं को सुन्दरता पर,  किस करने , डेट पर ले चलने व् याद में मजनू बनने  के मेसेजेस बहुतायत से मिल रहे हैं | जो उनकी परेशानियों  में इजाफा  ही करेंगे |इसके अतिरिक्त  स्त्री हो या पुरुष नकारात्मक आलोचना से भरे मेसेज मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं | अगर व्यक्ति मानसिक तौर पर बहुत मजबूत नहीं है तो ये मेसेजेस उसके आत्मविश्वास को तोड़ते हैं | इससे अपने काम  के प्रति उदासीनता , फेसबुक छोड़ने व् अवसाद की वजह भी पैदा हो  सकती है |

*आज का जमाना फ्रेनिमीज का है | मतलब आप की दोस्त भी है और आपकी प्रतिस्पर्द्धी भी | ऐसे में आपकी अपनी खास सखी या मित्र लगातार आपके काम पर नकारात्मक फीड बैक देके आपका मनोबल तोड़ भी सकता है | वो भी बिलकुल छिपे हुए | वो कहते हैं  आस्तीन के सांप |

अब रही बात अच्छे सकारात्मक मेसेजेस की | तो कोई किसी की तारीफ फ्री में नहीं करता | वो नाम तो बताना ही चाहेगा |  जैसे की  लेखन क्षेत्र को ही लें | कोई आप के लेखन की  बहुत तारीफ करेगा | आप खुश हो कर उसे अपनी फेसबुक वाल पर शेयर करेंगे | फिर इनबॉक्स मेसेज आएगा ,” जी ये तो मैंने लिखा | वही इनबॉक्स मेसेज जिससे आप बचना चाहते थे | अब मजबूरन आप को रिप्लाई करना पड़ेगा .. thank you so  much | इसे कहते हैं आ बैल मुझे मार |

*एक और बड़ा खतरा जो सराह एप से हो सकता है वो है हैकर्स से | ये सब सब जानते हैं की कोई भी साइट हैक हो सकती है | तो सराह क्यों नहीं | अगर आप अंधाधुंध उबाऊ , पकाऊ या मेसेजेस डाल रहे हैं तो आप की आईडेंटीटी जग जाहिर हो सकती है | जैसा की सन २००२ में कनाडा की ऐश्ले मेडिसन नाम की डेटिंग साइट के साथ हुआ था | १३ साल से चल  रही इस साइट को हैक करने के बाद हैकर्स ने यूजर्स को धमकी देनी शुरू कर दी की वो उनकी पहचान उनके घरवालों को बता देंगे | जानकारी के मुताबिक इसके एवज में उन्होंने साइट से धन की मांग की थी |  हैकर्स आपकी फेसबुक आईडी भी हैक  कर सकते हैं | आपके नाम से दूसरों को मेसेजेस भेज सकते हैं |

जानिये sarahah एप की प्राईवेसी पालिसी के बारे में 

                                                                  सराह एप कितना खास कितना बकवास जानने के बाद आपको ये जानना जरूरी है की आप ने अगर  सराह एप डाउनलोड कर लिया है तो इसकी प्राइवेसी पोलिसी क्या है | अगर आपको अवांछित मेसेजेस मिल रहे हैं तो आप मेसेज की रिपोर्ट कर सकते हैं यूजर को ब्लाक कर सकते हैं | पर किसने ये भेजा है पता लगाना आसान नहीं है | सेटिंग में जा कर आप दो काम कर सकते हैं …
1 ) ये मेसेज सर्च में न दिखाई दे 
२ ) नान रजिस्टर यूजर्स आपको मेसेज न कर सकें 
                                                    फिर भी किसने आप को मेसेज भेजा है ये आप किसी तरह से नहीं जान सकते | सराह एप में लॉग  आउट तो दिखता है पर डिलीट कैसे करें इसका कोई ऑप्शन नहीं है | इसके लिए आपको मेसेजिंग सर्विस के वेबसाइट वेर्जन कर लॉग  इन करना पड़ेगा |

                                                                       सराह एप से पहले सीक्रेट और व्हिस्पर जैसे मिलते जुलते आ  चुके है | सकारात्मक आलोचना या प्रशंसा सुनने के लिए अगर आपने सराह एप डाउनलोड किया है तो याद रखिये एक नकारात्मक  मेसेज बहुत तकलीफ भी देसकता है | फैसला आप पर है |

वंदना बाजपेयी 

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