अलविदा प्रद्युम्न- शिक्षा के फैंसी रेस्टोरेन्ट के तिलिस्म मे फंसे अनगिनत अभिभावक

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रंगनाथ द्विवेदी।
जज कालोनी,मियाँपुर
जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)।

आज की तारीख़ का सबसे मुफिद और त्वरित फायदेमंद अगर कोई धंधा है तो वे एकमात्र कारआमद लाभकारी धंधा कोई शिक्षालय खड़ा कर चलाना है।ये एक एैसा शैक्षणिक हसीन रेस्टोरेन्ट है जिसके तिलिस्म मे फंसा अभिभावक अपने बच्चे की अच्छी शिक्षा के चक्कर मे खिचा चला आता है,एैसी तमाम इमारते हर शहर मे नाजो अदा से सजी सँवरी खड़ी है।




और सबसे बड़ा इन इमारतो का लब्बो-लुआब ये है कि इनके ज्यादातर जो मालिक है या तो सत्ताधारी पार्टी के मंत्री,विधायक या फिर बड़े-बड़े वे रसुखदार लोग है।जो अपनी सक्षम पहुँच की बदौलत तमाम स्थापित शैक्षणिक मानको को ताक पर रखे रहते है,इनकी सक्षम पहुँच की सलामी शहर के तमाम आलाहजरात के साथ वे अमला भी इनके तलवे को तक भर पाता है जिनके कांधे किसी भी शहर के आखिरी शख्स की आखिरी उम्मीद जुड़ी होती है,आपने भी शायद एकाध किस्से गाहे-बगाहे सुना हो “कि यादव सिंह जैसा अदना शख्स सरेआम पूरी व्यवस्था रुपी अमले को निर्वस्त्र कर धड़ल्ले से पूरी व्यवस्था का रेप करता है और सरकारे मौन साधे रहती है”।



अर्थात इस उदाहरण का अभिप्राय एक हालात और हैसियत किस तरह घुटने टेकती है वे बानगी भर है।सच तो ये है कि इस तरह के विद्यालय संचालको के विरुद्ध नकेल कस पाना दूर की कौड़ी है इनपे न तो पिछली सरकार कुछ कर पाई और न ही लग रहा कि वर्तमान सरकार भी कुछ कर पायेगी।



हाँ कभी-कभी इन शैक्षणिक रेस्टोरेन्ट मे घटित कोई बड़ी घटना इन्हें क्षणिक विचलित जरुर करती है,इन परिस्थितियो मे जनाक्रोश को शांत होने तलक के लिये कार्यवाही का एैसा ढ़िढोरा पिटते है कि जैसे अब इस संस्था को ये मटियामेट कर देगे,लेकिन फिर रफ्ता-रफ्ता इनके इस फैंसी रेस्टोरेन्ट की रौनक पुनः लौटने लगती है और लौट भी आती है। सच तो ये है कि “ये एक एैसी राजनैतिक विरयानी है जो इंतकाल के चालिसवे के बाद किसी नये निकाह मे बड़े मुहब्बत और मन से खाया जाता है”।




अभी हरियाणा के मासुम प्रद्युम्न की वे गले कटी लाश हरियाणा क्या पुरे हिन्दुतान के उन तमाम लाखो करोड़ो प्रद्युम्न के अभिभावको को हिलाकर रख दिया है एक प्रद्युम्न से मासूम ने सारे मुल्क की आँख मे भावना का सैलाब ला दिया है और शायद आक्रोश भी”आक्रोश का ही प्रतिफल था जो रेयान स्कूल से कुछ दूरी पे खुले शराब के ठेके को आग के हवाले कर दिया और पुरस्कार स्वरुप अपने पीठ पे लाठिया खाई जहाँ इन लाठियो को चलाकर हत्यारे को पीट-पीटकर अधमरा करना था वहाँ ये रंड़ियो के दलाल की तरह बस खड़े रहे”।


सच तो ये है कि ये सारे स्कूल संचालक साफ्ट माफ़िया है जिनके चेहरे पे मुस्कान भर है “बाकी ये अंदर से पैशाचिक प्रवृत्ति के अनमोल धरोहर है,इनके अपराध करने की शैली किसी ओपेन अपराधी से ज्यादा खतरनाक है क्योंकि ये सभी बहुत कुल और कोल्ड मर्डर करते है”।किसी शहर मे इनके खिलाफ कोई कार्यवाही अगर किसी भी स्तर पर हो रही हो तो बताये किसी भी बड़े शिक्षा माफ़िया का कोई भी एक रोया मात्र अगर किसी ने टेढ़ा किया हो तो मै मानू।


प्राईवेट स्कूलो मे शोषण की बानगी यत्र,तत्र,सर्वत्र है,क्या भाजपा?,क्या काग्रेंस,क्या सपा?,क्या बसपा? या कोई अन्य राष्ट्रीय पार्टी सच तो ये है कि ये सब “एक से रंगे सियार है और दिखावे की खातिर बस कुछ दिन एक दुसरे की तरफ मुँह कर हुंआ-हुंआ करते है”।कार्यवाही के नाम पर एक खानापुर्ति भर होके रह जाती है।
हर शहर मे बड़ी स्कूलो के बस धड़ल्ले से हमारे आपके बच्चे को ठसा-ठस लादे एक परेशान गंतव्य को लादे अर्थात स्कूल को निकल जाती है।क्या इसकी जाँच होते आप कही देख रहे है जबकि बस के किराये के नाम पर हम हर महिने फिस के साथ बस के भी पैसे जमा कर रहे है। आरटीओ इन्हें टच नही करते इन्हें भी इनकी पहुँच और रसुख का डर सताता है।


हालाँकि मै राजनैतिक लेखो और संदर्भो से अपने कलम की एक निश्चित दूर बनाये रखता हूँ।लेकिन कुछ हालात एैसे बन पड़ते है कि कलम न चाह के भी चित्कार कर उठती है और ये लेख उसी चित्कार की पीड़ा बन लेख मे उतर आये है,”ये चित्कार है उस सात वर्ष के हरियाणा के मासूम प्रद्युम्न की ये महज़ एक राज्य भर नही शायद एैसे तमाम स्कूल है जहाँ मासूम प्रद्युम्न तड़प व छटपटा रहा है”।


मै आदरणीय प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी से कर बंध निवेदन करता हूँ कि वे हमारे देश को आज की तारीख़ मे डिजिटल और न्यू इंडिया बनाये,डोकलाम पे चीन से कुटनीतिक विजय पाये,कश्मीर से आतंक को नेस्तनाबूत करे लेकिन “आज देश के अंदर उनकी सरकार है और सरकार की मानवीय संवेदना का मै आवाहन करता हूँ कि—-प्लीज अस्पतालो और स्कूलो मे तड़प रहे उन अनगिनत प्रद्युम्न कि माँ के आँसूओ को पोछने की संवेदनात्मक कोशिश करे,क्योंकि आज ये हालात डोकलाम और कश्मीर घाटी से ज्यादा दुरुह और घातक हो चुका है।

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