friendship day Archives - अटूट बंधन https://www.atootbandhann.com/category/friendship-day हिंदी साहित्य की बेहतरीन रचनाएँ एक ही जगह पर Sat, 04 Jan 2020 13:21:36 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.1.6 फिर से कैसे जोड़े दोस्ती के टूटे धागे https://www.atootbandhann.com/2018/08/how-to-fix-broken-friendship-in-hindi.html https://www.atootbandhann.com/2018/08/how-to-fix-broken-friendship-in-hindi.html#comments Sun, 05 Aug 2018 08:23:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2018/08/05/how-to-fix-broken-friendship-in-hindi/ हमारे तमाम रिश्तों में दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जिसे हम खुद चुनते हैं , इसलिए इसे हमें खुद ही संभालना होता  है | फिर भी कई बार दो पक्के दोस्तों के बीच में किसी कारण से गलतफहमी हो जाती है और दोनों दोस्त दूर हो जाते हैं |  ऐसा ही हुआ निखिल और सुमेर […]

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फिर से कैसे जोड़े दोस्ती के टूटे धागे

हमारे तमाम रिश्तों में दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जिसे हम खुद चुनते
हैं , इसलिए इसे हमें खुद ही संभालना होता  है | फिर भी कई बार दो पक्के दोस्तों के
बीच में किसी कारण से गलतफहमी हो जाती है और दोनों दोस्त दूर हो जाते हैं |
  ऐसा ही हुआ निखिल और सुमेर के बीच में | निखिल
और सुमेर बचपन के दोस्त थे …. साथ पढ़ते , खाते –पीते , खेलते | कोलेज
 के ज़माने तक साथ थे | एक दिन किसी बात पर दोनों
में बहस हो गयी | बहस ने गलतफहमी का रूप ले लिया और दोनों में बातचीत बंद हो गयी |
भले ही दोनों अन्दर अंदर सोचते रहे की बातचीत शुरू हो पर पहल कौन करे …. अहंकार
आड़े आ जाता , दोनों को लगता वो सही हैं या कम से कम वो गलत तो बिलकुल नहीं हैं …और
देखते ही देखते चार साल बीत गए |

फिर से कैसे जोड़े दोस्ती के टूटे धागे  


जब दो लोग एक दूसरे की जिन्दगी में बहुत मायने रखते हैं तो वो भले ही
एक दूसरे से दूर हो जाएँ , उनमें बातचीत बंद हो जाए पर वो दिल से दूर नहीं हो पाते
| एक दूसरे की कमी उनकी जिन्दगी में वो खालीपन उत्त्पन्न करती है जो किसी दूसरे
 रिश्ते से भरा नहीं जा सकता |

 एक दिन अचानक से निखिल का मेसेज सुमेर के पास आया की “वो उससे मिलना
चाहता है |” सुमेर की आँखों में से आंसू बहने लगे | ये आँसू ख़ुशी और गम दोनों के
थे | उसे लग रहा था कि ये पहल उसने क्यों नहीं की | वो दोनों निश्चित स्थान पर
मिले …. गले लगे रोये , समय जैसे थम गया , लगा ही नहीं की चार लंबे लंबे  साल
बीत चुके हैं | उनके दिल तो अभी भी एक लय पर नृत्य कर रहे थे | हालांकि कुछ समय
उन्होंने जरूर लिया , फिर दोस्ती वैसे ही गाढ़ी हो गयी जैसे की वो कभी टूटी ही नहीं
थी |


जिंदगी के सफ़र में न जाने कितने दोस्त बनते हैं पर कुछ ही ऐसे होते
हैं जिनसे हम आत्मा के स्तर तक जुड़े होते हैं पर न जाने क्यों उनके बीच भी गलतफहमी
हो जाती है … दूरियाँ बन जाती हैं | फिर जिंदगी आगे बढती तो है पर अधूरी अधूरी
सी | अगर आप का भी ऐसा कोई दोस्त है जिससे दूरियाँ बढ़ गयीं हैं तो आज के दिन उससे
मिलिए ,
 फोन करिए ,या एक छोटा सा मेसेज ही
कर दीजिये ….. देखिएगा दोस्ती की फसल फिर से लहलहाने लगेगी और खुशियों की भी |
 

अगर आप को उस दोस्ती को फिर से शुरू करने में दिक्कत आ रही है तो आप
इस लेख की मदद ले सकते हैं। …


सबसे पहले इंतज़ार करिए रेत के बैठने का

अगर आप का झगडा अभी हाल में हुआ है तो आप जाहिर तौर पर आप दोनों ने एक
दूसरे को बहुत बुरा –भला कहा होगा | आप दोनों के मन में मनोवैज्ञानिक घाव होंगे |
अगर आप अपने मन से वो बाते निकल भी दें तो जरूरी नहीं कि आप का दोस्त भी उसी मानसिक
स्थिति में हो | हो सकता है वो आभी उन घावों का बहुत दर्द महसूस कर रहा हो | मेरे
नानाजी कहा करते थे “रोटी ठंडी कर के खाओ “ अर्थात जब थोडा समय बीत जाए तब बात करो
| आज की भाषा में आप इसे “ कुलिंग टाइम “ कह सकते हैं | यकीन मानिए अगर बिना खुद
को ठंडा किये आप ने बात चीत शुरू कर दी तो ये पक्का है कि उसी बात पर आप दुबारा
उतने ही उग्र हो कर झगड़ पड़ेंगे |

अपने गुस्से को संभालना सीखिए 



जिस समय आपकी
अपने प्रिय दोस्त के साथ अनबन होती है , आप के अन्दर बहुत गुस्सा भरा होता है | आप
को लगता है आप जोर –जोर से चिल्ला कर उसके बारे में कुछ कहें या कोई ऐसा हो जिसके
सामने आप अपने मन का हर दर्द कह कर खाली हो जाए | ये एक नैसर्गिक मांग है | पर
यहाँ मैं ये कहना चाहती हूँ , “ आप को जितना मर्जी आये आप अपने दोस्त के बारे में
कहिये , जो मन आये कहिये , आने को खाली करिए पर हर किसी के सामने नहीं | मामला आप
दोनों के बीच था बीच में ही रहना चाहिए | कई बार गलती ये हो जाती है कि खुद को
खाली करने के चक्कर में हम अपने दोस्त के बारे में अंट शंट कुछ भी दूसरों से बोल
देते हैं | जबकि हमारा इंटेंशन नहीं होता | अभी भी हमारे दिल में उस दोस्त के
प्रति नफरत नहीं होती बस हम अपने आप को खाली करना चाहते हैं , इसलिए अपने मन की भड़ास
किसी एक व्यक्ति के सामने निकालिए जिस पर आप विश्वास कर सकते हैं कि वो आप की बात
अपने तक ही रखेगा | अब जैसे सुनिधि और नेहा
 
को ही देख लें | जब नेहा को पता चला की सुनिधि सब को उसके बारे में बता रही
है वो सुनिधि से हंमेशा के लिए दूर हो गयी | मैं ऐसी स्थिति में अपने पति या दीदी  से बात करती हूँ | कई बार ये लोग मेरी गलती भी दिखा देते हैं | जो भी हो ऐसा करने
से दोस्ती के बंधन को पुनः मजबूत करने की डोर आपके हाथ में रहती है |

आलोचना , आंकलन और शिकायत से दूर रहे 



जब किसी की
दोस्ती टूटती है या यूँ कहें की उसमें पॉज आ जाता है तो जो चीज उन्हें आगे बढ़ने से
रोकती है वो है हमारा ईगो यानी अहंकार | अहंकार एक छद्म आवरण है , हमारा अहंकार
हमें वैसे रहने पर मजबूर करता है जैसे हम दुनिया को दिखाना चाहते है कि देखो हम
ऐसे हैं | पहल करने का अर्थ ये लगता है कि अगला कहीं हमें कमजोर न समझ ले या लोग
मुझे ही गलत कहेंगे | इसलिए दोबारा जुड़ने से पहले अपने
  “ शुद्ध रूप “ को समझिये | जो आप वास्तव में है
इस आवरण के बिना | अब अगर आपने पहल कर भी दी है तो ये जरूरी नहीं कि आप का दोस्त
भी ठीक उसी समय अपनी दोस्ती टूटने के दर्द से खाली हो गया हो | हो सकता है वो
शिकायत करें , आरोप लगाए …. उसे मौका दीजिये | ऐसे में आप सिर्फ सुनिए | सुनने
के बाद उन बातों का आकलन मत करिए | ये बातें बार –बार सोचने से
  फिर से अहंकार अपना घर बना लेगा | आप को अपने
दोस्त को भी अपने अहंकार का पर्दा उठा कर देखने का मौका देना होगा |

अपने डर पर काबू पाइए 


 ये सच है
कि लम्बे समय बाद दुबारा हाथ बढ़ने में हमें
 
डर लगता है …. हमारे  प्रस्ताव के
ठुकराए जाने का | एक गाने के बोल याद आ रहे हैं ….
“ हथेली पर तुम्हारा नाम , लिखते हैं , मिटाते हैं …

यकीनन आप ने भी कई बार उसे मेसेज लिखा होगा पर सेंड करने से पहले
डिलीट कर दिया होगा | हिम्मत करिए और सेंड बटन दबा दीजिये | ज्यादा से ज्यादा क्या
होगा … उधर से जवाब नहीं आएगा | वैसे भी आपकी लम्बे समय से बातचीत नहीं हो रही
है , अभी भी नहीं होगी | आप का गया क्या … आपके पास कुछ खोने को नहीं है अलबत्ता एक दोस्त मिल जरूर सकता है | अपने
डर पर काबू पाइए और पहल करिए |

 ब्लेम गेम में मत फंसिए


एक बार दोस्ती
दुबारा शुरू करने के बाद ब्लेम गेम में मत फंसिए | ब्लेम गेम का मतलब होता है
दूसरे से पूंछना , “ तुमने ऐसा क्यों किया “?ये एक ‘क्यों ‘बहुत सारे प्रश्नों को
फिर से खोल देता है | इसका मतलब सीधा सादा ये होता है कि अगले ने ये गलती क्यों की
इसका कारण वो खुद बताये | बेहतर होगा अगर आपके मन में अभी भी कोई चोट है तो दोस्त
को फिर से कांटेक्ट करने से पहले उसे माफ़ कर दें अन्यथा दोस्ती उपरी स्तर पर ही
टिकी रहेगी | हां अगर आपको लगता है कि आप से कोई गलती हुई है तो
 “सॉरी” बोलने में मत झिझकिये |

 विपरीत परिस्थिति के लिए
तैयार रहिये और आगे बढिए



                 
आपने मित्रता
को फिर से स्थापित करने की दिशा में पहला कदम बढाया है | अगर दोनों की सच्ची
मित्रता है तो आपका मित्र आपके बढे हुए कदम के साथ सुर ताल मिला कर चल पड़ेगा पर जरूरी
नहीं कि आप का मित्र भी वापस मित्रता करना चाहता हो | फिर भी एक कदम आगे बढा  कर
आप इस अपराधबोध से मुक्त हो जाते हैं कि आपने दोस्ती के धागे पुनः जोड़ने के लिए कुछ
नहीं किया | बल्कि आपको संतोष होना चाहिए कि आप जितना कर सकते थे आपने किया | अब
बॉल आपके दोस्त के कोर्ट में है | आपने उसके लिए अप्नेव दरवाजे खुले रख छोड़े हैं |

 फिर भी अगर  इतना सब करने के बाद भी आपका दोस्त आपके साथ आगे
चलने को तैयार नहीं है वो आपसे अभद्र व्यव्हार करता है या ख़राब शब्दों का प्रयोग
करता है तो उसके लिए सदा के लिए दरवाजे बंद कर लीजिये और जिंदगी में आगे बढ़ जाइए |

रीयूनियन के फायदे


आप सोच रहे होंगे कि
इतने समय में तो न जाने कितने दोस्त बन गए फिर उस रीयूनियन का फायदा ही क्या ? तो
आइये आपको रीयूनियन के फायदे भी बता दें …
  1. इतने दोस्तों के बाद भी आप जिंदगी में एक खालीपन महसूस कर रहे थे |
    याद रखिये हमारे कितने भी दोस्त हों पर कोई किसी की जगह नहीं ले सकता … हर दोस्त
    ख़ास होता है |
  2. आप दोनों को पता चल गया है कि आप की सीमाएं क्या हैं अब आप उन्हें
    जिंदगी में दुबारा पार नहीं करेंगे |
  3. आप समझ गए हैं कि क्या करना आग में खुद ही हाथ डालना और चिल्लाना है |
  4. कुछ लोग कहते हैं दोस्ती कच्चे कांच सी होती है टूट गयी तो फिर नहीं
    जुडती , एक ये भी कोट कहीं पढ़ा था कि दोस्ती एक बोन चाइना वेस की तरह होती है एक
    बार टूटने पर आप उसे फिर से चिपका सकते हैं | भले ही अब वो पहले जैसे नहीं रही पर
    अब भी अपना काम बखूबी से कर रही है | लेकिन मुझे सबसे सही लगता है की दोस्ती सोने
    की वो माला है जो दुबारा जुड़ने पर भी उतनी ही कीमती रहती है |
  5. अगर आप मित्रता को वास्तव में महत्त्व देते हैं तो समझ लीजिये जिंदगी
    छोटी है … क्या पता कल वक्त , वक्त ही न दे |

 तो फिर फोन उठाइए और दोस्त को
मिला कर स्नेह भरी आवाज में कहिये “हेलो “…


वंदना बाजपेयी 

यह भी पढ़ें। …


उलझे रिश्ते जब जीवन साथी से हों गंभीर राजनैतिक मतभेद


दोस्ती बनाम दुश्मनी – कुछ चुनिन्दा शेर




ये दोस्ती न टूटे कभी

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     कई लोग विशेष रूप से किशोर और युवा फ्रेंडशिप डे का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। हर साल उसे नए ढंग से मनाने का प्रयास करते हैं ताकि वो एक यादगार अवसर बन जाए। क्यों मनाया जाता है फ्रेंडशिप डे? फ्रेंडशिप वास्तव में क्या है अथवा होनी चाहिए इस पर कम ही सोचते हैं। क्या फ्रेंडशिप-बैंड बाँधने मात्र से फ्रेंडशिप अथवा मित्रता का निर्वाह संभव है? क्या एक साथ बैठकर खा-पी लेने अथवा मटरगश्ती कर लेने का नाम ही फ्रेंडशिप है? क्या फ्रेंडशिप सेलिब्रेट करने की चीज़ है? फ्रेंडशिप अथवा मित्रता का जो रूप आज दिखलाई पड़ रहा है वास्तविक मित्रता उससे भिन्न चीज़ है। फ्रेंडशिप अथवा मित्रता सेलिब्रेट करने की नहीं निभाने की चीज़ है। फ्रेंडशिप अथवा मित्रता एक धर्म है और धर्म का पालन किया जाता है प्रदर्शन नहीं।

ग़लत होने पर भी जो साथ दे वह मित्र नहीं घोर शत्रु  है



गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं:


धीरज, धरम, मित्र अरु नारी, आपत काल परखिएहु चारि।


धैर्य, धर्म और नारी अर्थात् पत्नी के साथ-साथ मित्र की परीक्षा भी आपत काल अथवा विषम परिस्थितियों में ही होती है। ठीक भी है जो संकट के समय काम आए वही सच्चा मित्र। पुरानी मित्रता है लेकिन संकट के समय मुँह फेर लिया तो कैसी मित्रता? ऐसे स्वार्थी मित्रों से राम बचाए। यहाँ तक तो कुछ ठीक है लेकिन आपत काल अथवा विषम परिस्थितियों की सही समीक्षा भी ज़रूरी है।


     हमारे सभी प्रकार के साहित्य और धर्मग्रंथों में मित्रता पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। सच्चे मित्र के लक्षण बताने के साथ-साथ मित्र के कत्र्तव्यों का भी वर्णन किया गया है। रामायण, महाभारत से लेकर रामचरितमानस व अन्य आधुनिक ग्रंथों में सभी जगह मित्रता के महत्त्व को प्रतिपादित किया गया है। उर्दू शायरी में तो दोस्ती ही नहीं दुश्मनी पर भी ख़ूब लिखा गया है और दुश्मनी पर लिखने के बहाने दोस्ती के नाम पर धोखाधड़ी करने वालों की जमकर ख़बर ली गई है। मिर्ज़ा ‘ग़ालिब’ एक बेहद दोस्तपरस्त इंसान थे पर हालात से बेज़ार होकर ही वो ये लिखने पर मजबूर हुए होंगे:


यह फ़ितना आदमी की  ख़ानावीरानी को क्या कम है,
हुए तुम दोस्त जिसके दुश्मन उसका आसमाँ क्यों हो।

     एक पुस्तक में एक बाॅक्स में मोटे-मोटे शब्दों में मित्र विषयक एक विचार छपा देखा, ‘‘सच्चे आदमी का तो सभी साथ देते हैं। मित्र वह है जो ग़लत होने पर भी साथ दे।’’ क्या यहाँ पर मित्र से कुछ अधिक अपेक्षा नहीं की जा रही है? मेरे विचार से अधिक ही नहीं ग़लत अपेक्षा की जा रही है। ग़लत होने पर साथ दे वह कैसा मित्र? ग़लती होने पर उसे दूर करवाना और दोबारा ग़लती न हो इस प्रकार का प्रयत्न करना तो ठीक है पर किसी के भी ग़लत होने पर उसका साथ देना किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता। हम दोस्ती में ग़लत फेवर की अपेक्षा करते हैं। कई बार दोस्ती की ही जाती है किसी ख़ास उद्देश्य के लिए। ऐसी दोस्ती दोस्ती नहीं व्यापार है। घिनौना समझौता है। स्वार्थपरता है। कुछ भी है पर दोस्ती नहीं। इस्माईल मेरठी फ़र्माते हैं:


दोस्ती और किसी ग़रज़ के लिए,
वो तिजारत है दोस्ती  ही  नहीं।


     ऐसा नहीं है कि अच्छे मित्रों का अस्तित्व ही नहीं है लेकिन समाज में मित्रता के नाम पर ज़्यादातर समान विचारधारा वाले लोगों का आपसी गठबंधन ही अधिक दिखलाई पड़ता है। अब ये समान विचारधारा वाले लोग अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी। अब यदि ये समान विचारधारा वाले लोग अच्छे हैं तो उनकी मित्रता से समाज को लाभ ही होगा हानि नहीं लेकिन यदि समान विचारधारा वाले ये लोग अच्छे नहीं हैं तो उनकी मित्रता से समाज में अव्यवस्था अथवा अराजकता ही फैलेगी। 


     मेरे अंदर कुछ कमियाँ हैं, कुछ दुर्बलताएँ हैं और सामने वाले किसी अन्य व्यक्ति में भी ठीक उसी तरह की कमियाँ और दुर्बलताएँ हैं तो दोस्ती होते देर नहीं लगती। ऐसे लोग एक दूसरे की कमियों और दुर्बलताओं को जस्टीफाई कर मित्रता का बंधन सुदृढ़ करते रहते हैं। व्याभिचारी व चरित्रहीन लोगों की दोस्ती का ही परिणाम है जो आज देश में सामूहिक बलात्कार जैसी घटनाएँ इस क़दर बढ़ रही हैं। इन घटनाओं को अंजाम देने वाले दरिंदे आपस में गहरे दोस्त ही तो होते हैं।


     किसी भी कार्यालय, संगठन अथवा संस्थान में गुटबंदी का आधार प्रायः दोस्ती ही तो होता है न कि कोई सिद्धांत जो उस संगठन अथवा संस्थान को बर्बाद करके रख देता है। सत्ता का सुख भोगने के लिए कट्टर दुश्मन तक हाथ मिला लेते हैं और मिलकर भोलीभाली निरीह जनता का ख़ून चूसते रहते हैं। हर ग़लत-सही काम में एक दूसरे का साथ देते हैं, समर्थन और सहायता करते हैं। क्या दोस्ती है! इसी दोस्ती की बदौलत देश को खोखला कर डालते हैं। 


     एक प्रश्न उठता है कि सिर्फ़ दोस्त की ही मदद क्यों?  हर ज़रूरतमंद की मदद की जानी चाहिए और इस प्रकार से जिन संबंधों का विकास होगा वही उत्तम प्रकार की अथवा उत्कृष्ट मित्रता होगी। एक बात और और वो ये कि जब हम किसी से मित्रता करते हैं तो उस मित्र के विरोधियों को अपना विरोधी और उसके शत्रुओं को अपना शत्रु मान बैठते हैं और बिना पर्याप्त वजह के भी मित्र के पक्ष में होकर उनसे उलझते रहते हैं चाहे वे कितने भी अच्छे क्यों न हों। ये तो कोई मित्रता का सही निर्वाह नहीं हुआ। मित्र ही नहीं विरोधी की भी सही बात का समर्थन और शत्रु ही नहीं मित्र की ग़लत बात का विरोध होना चाहिए। उर्दू के प्रसिद्ध शायर ‘आतिश’ कहते हैं:


मंज़िले-हस्ती में  दुश्मन को भी अपना दोस्त कर,
रात हो जाए तो दिखलावें  तुझे  दुश्मन  चिराग़।


     और यह तभी संभव है जब हमारा विरोधी, प्रतिद्वंद्वी अथवा शत्रु भी कोई सही बात कहे या करे तो उसकी हमारे मन से स्वीकृति हो। ऐसा करके हम शत्रुता को ही हमेशा के लिए अलविदा करके नई दोस्ती का निर्माण कर सकते हैं। जहाँ तक मित्र की मदद करने की बात है अवश्य कीजिए। दोस्त के लिए जान क़ुर्बान कर दीजिए लेकिन तभी जब दोस्त सत्य के मार्ग पर अडिग हो, ग़लत बात से समझौता करने को तैयार न हो और उसका जीवन संकट में पड़ गया हो।


     लेकिन यदि दोस्त कुमार्गगामी है, उसका मार्ग अनुशासन, नैतिकता और धर्म के विरुद्ध है जो समाज, राष्ट्र और मनुष्यता के लिए घातक है तो ऐसी अवस्था में मित्र को समझा-बुझाकर सही मार्ग पर लाना ही सच्ची मित्रता है न कि उसके ग़लत कार्य में बाधा उपस्थित होने पर उसकी मदद करना।  कुमार्गगामी मित्र को मित्र मानना और उसकी सहायता करना बेमानी ही नहीं सामाजिक और राष्ट्रीय अपराध भी है। और सबसे महत्त्वपूर्ण तो ये है कि हमारे ग़लत होने पर भी जो हमारा पक्ष ले, हमारी मदद करे वह भी हमारा मित्र नहीं, घोर शत्रु है। और जो मित्र बेवजह हमारी नुक़्ताचीनी करे, बात-बात पर हमें ग़लत सिद्ध कर नीचा दिखाने का प्रयास करे उस दोस्ती का तो पुनर्मूल्यांकन अपेक्षित है। 


सीताराम गुप्ता



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की तू जहाँ भी रहे तू मेरी निगाह में है



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फ्रेंडशिप डे पर विशेष :कि जहाँ भी रहे तू मेरी निगाह में हैं https://www.atootbandhann.com/2015/08/blog-pos-15.html https://www.atootbandhann.com/2015/08/blog-pos-15.html#respond Sun, 02 Aug 2015 16:14:00 +0000 https://www.atootbandhann.com/2015/08/02/blog-pos-15/ कि जहाँ भी रहे तू मेरी निगाह में हैं  दोस्त एक छोटा सा शब्द पर अपने अन्दर बहुत सारे अहसास समेटे हुए |दो लोग जिनमें कोई खून का रिश्ता नहीं होता पर तब भी  भावनात्मक रूप से एक –दूसरे से गहरे से जुड़ जाते हैं | एक दूसरे के साथ समय बिताना आनंददायक लगने  लगता […]

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कि जहाँ भी रहे तू मेरी निगाह में हैं 


दोस्त एक छोटा सा शब्द पर अपने अन्दर बहुत सारे अहसास समेटे हुए |दो लोग
जिनमें कोई खून का रिश्ता नहीं होता पर तब भी 
भावनात्मक रूप से एक –दूसरे से गहरे से जुड़ जाते हैं
| एक दूसरे के साथ समय बिताना आनंददायक लगने 
लगता है  | एक दूसरे के  बिना जीना असंभव लगने लगता है एक दूसरे के सुख –दुःख
में पूरी शिद्दत से  भागीदार बनना जैसे
सांसों का हिस्सा बन जाता है | दोस्त के पास या दूर रहने पर दोस्ती में कोई फर्क
नहीं पड़ता वो यथावत रहती है |एक सच यह भी है कि
 हमारे वही रिश्ते चलते हैं
जिनमें सखा भाव हो | चाहे वो भाई –बहन का रिश्ता हो , भाई –भाई का पति –पत्नी का |
कहने वाले तो यहाँ तक कहते हैं कि जब पिता का जूता बेटे के पैर में आने लगे तो उसे
अपना दोस्त समझना चाहिए |
        रिश्तों में कितनी भी दोस्ती
हो पर  दोस्ती शब्द कहते ही सबसे पहले
कृष्ण सुदामा का ख़याल आता है | एक राजा एक भिखारी पर उनकी मित्रता का क्या कहना “
जहाँ दिल एक हों वहां ऊँच  –नीच अमीरी
गरीबी कहाँ दीवार बन पाती है | सूरदास ने अपने लाचार गरीब मित्र से मिलने पर श्री
कृष्ण की मनोदशा का कितना सुन्दर वर्णन किया है ……….

ऐसे
बेहाल बेमायन सो
  पग कंटक जाल लगे पुनि जोए ।
हाय महादुख पायो सखा तुम आये
इते न किते दिन खोये ॥

देख सुदामा की दिन दशा करुणा
करके करूणानिधि रोये ।

पानी परात को हाथ छुयो नहीं
नैनं के जल सों पग धोये ॥
            तुलसी दास जी
ने तो  सुग्रीव और प्रभु राम की मित्रता के
पावन अवसर पर अच्छे और बुरे मित्र के सारे लक्षण ही बता दिए ………
जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक
भारी।।

निज दुख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दुख रज मेरु समना
देत लेत मन संक न धरई। बल अनुमान सदा
हित करई॥

बिपति काल
कर सतगुन नेहा। श्रुति कह संत मित्र गुन एहा॥
उन्होंने बुरे
मित्र के भी लक्षण बताये हैं ……….
आगें कह मृदु बचन बनाई। पाछें अनहित मन
कुटिलाई॥

जाकर ‍िचत
अहि गति सम भाई। अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई॥
सेवक सठ नृप कृपन कुनारी। कपटी मित्र
सूल सम चारी॥

सखा सोच
त्यागहु बल मोरें। सब बिधि घटब काज मैं तोरें
               मित्र वो भी बुरा …….. कहने
सुनने में अजीब लगता है पर ऐसे मित्रों से हम सब को जिंदगी में कभी न कभी दो चार
होना ही पड़ता है | तभी तो शायद दादी माँ के ज़माने से चली आ रही  कहावत आज भी सच है “ पानी पीजे छान के और दोस्ती
कीजे जान के “ मुंह में राम बगल में छुरी वाले ऐसे दोस्त अवसर देखते ही अपना



 असली
रंग दिखा देते हैं | और भोले भाले लोग दिल पकडे आह भरते रह जाते हैं | कोई ऐसा ही
दोस्त मिला होगा तभी तो अब्दुल हमीद आदम कह उठते हैं …….
“दिल अभी पूरी
तरह टूटा नहीं
दोस्तों की
मेहरबानी चाहिए “
जनाब हरी चन्द्र
अख्तर तो साफ़ –साफ़ ताकीद करते हैं ………
हमें भी आ पड़ा है
दोस्तों से काम कुछ यानी
हमारे दोस्तों के
बेवफा होने का वक्त आया
             पर मुझे लगता है कहीं न कहीं इसमें दोस्त की गलती
नहीं हैं | उस शब्द की गलती हैं जिसे हम हर किसी को बाँटते फिरते हैं | आम चलन की भाषा
ने दोस्ती शब्द को बहुत छोटा कर दिया है | यहाँ हर जान –पहचान दुआ सलाम करने वाले
के लिए परिचय में दोस्त शब्द जोड़ दिया जाता है |
शायद अहमद फ़राज़ के शेर में मेरी ही इस बात का समर्थन है ………
तुम तकल्लुफ को इख्लास समझते हो फ़राज़
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला
                  मैं सोचती हूँ आज के
ऍफ़ .बी युग में मेरे ५००० फ्रेंड पर इतराने वालों को के बारे में फ़राज़ साहब क्या
लिखते ? पर लोगों की भी गलती नहीं दोस्ती ,और दोस्तों की संख्या हमें सामाजिक
स्वीकार्यता का अहसास कराती है | जब  रिश्ते –नाते मशीनी हो गए हैं तो अकेलापन घेरता
है | ऐसे में भावनात्मक सुरक्षा का ये सहारा बहुत जरूरी हो जाता है | हम आज के युग
में ऍफ़ .बी फ्रेंड्स की अनिवार्यता को नकार नहीं सकते ……………
झूठा ही सही कम से कम यह अहसास तो है
वक्क्त ,बेवक्त कोई अपना मेरे पास तो है
            वैसे दोस्ती तो कभी भी
कहीं भी किसी से भी हो सकती है | पर बचपन की दोस्ती की बात ही अलग है | साथ साथ खेलना कूदना पढना ,लड़ना झगड़ना | बिलकुल पारदर्शी रिश्ता होता है | जहाँ हम एक दूसरे
को उम्र के साथ बढ़ते हुए पढ़ते हैं | इसमें थोड़ी मीठी सी प्रतिस्पर्धा भी होती है |
भला उसकी गुड़ियाँ मेरी गुड़ियां से महंगी कैसे , मेरे नंबर कम कैसे ? पर उसका भी
मजा है |…….
सवालों के दिन वो जवाबों की राते ……….. याद करते हुए कॉलेज ,हॉस्टल छोड़ते हुए भला
किसकी आँख नम नहीं होती |
                 सच्चे दोस्त किस्मत वालों को
मिलते हैं | इनकी संख्या एक या दो से ज्यादा नहीं हो  सकती | अगर आप को कोइ ऐसा दोस्त मिला है जो आपका
सच्चा हितैषी हैं तो उसे संभाल कर रखे | क्योंकि दोस्ती एक खूबसूरत अहसास के साथ –साथ
एक जिम्मेदारी भरा फर्ज भी है | हमारे खून के रिश्तों में जहाँ मन –मुटाव होने पर
पूरा परिवार संभाल लेता है ,उस दूरी को कम करने का प्रयास करता है | वहीं दोस्ती
का रिश्ता केवल दो व्यक्तियों के अहसासों से जुडा  होता हैं | जिसे खुद ही संभालना होता है |
सहेजना होता है | एक बार रिश्ता कच्चे कांच की तरह  टूटने पर जुड़ना मुश्किल होता है| कई बार अहंकार
भी आड़े आ जाता है | बुलाना ,मानना चाहते हैं पर हम पहल क्युओं करे पर गाडी अटक
जाती हैं | ऐसे ही किसी दर्द से गुज़र के जिगर मुरादाबादी कह उठते हैं ………..
आ की तुझ बिन इस कदर ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता  हूँ मैं
                मित्रता दिवस पर खाली बधाई देने   ,कार्ड
देने से काम नहीं चलेगा अगर आप का कोई सच्चा दोस्त  है तो आप को उसकी जिंदगी में रौशनी
करने का संकल्प लेना पड़ेगा | उसके सुख दुःख में इतना भागी दार बनना पड़ेगा की मन गा
उठे ………

कोई जब राह ना पाए ,मेरे संग आये 
के पग -पग दीप जलाए ,मेरी दोस्ती मेरा प्यार 

वंदना बाजपेयी 




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