टूटते रिश्ते – वजह अवास्तविक उम्मीदें तो नहीं

अवास्तविक उम्मीदों से न टूटे रिश्ते की डोर


 शादियों का मौसम है |
खुशियों का माहौल है | नए जोड़े बन रहे हैं | कितने अरमानों से दो लोग एक दूसरे के
जीवन में प्रवेश करते हैं | मांग के साथ तुम्हारा मैंने माग लिया सनसार की धुन पर
थिरकता है रिश्ता | फिर क्या होता है की कुछ ही दिनों में आपस में चिक- चिक शुरू
होजाती है |सपनों का राजकुमार / राजकुमारी शैतान का भाई/बहन  नज़र आने लगता है | एक की पसंद के रंग दूसरे की
आँखों में चुभने लगते हैं और एक की पसंद का खाना दूसरे के हलक के नीचे ही नहीं
उतरता  और शादी टूटने की नौबत आ जाती है | हालांकि
ये हर घर का किस्सा नहीं है | फिर भी अब इसका प्रतिशत बढ़ रहा है |

संभल कर -अवास्तविक उम्मीदों से न टूटे रिश्ते की डोर 

मेरी घनिष्ठ मित्र रीता की बेटी निधि और रोहन की शादी हुए अभी एक साल भी
नहीं हुआ है  की उनके रिश्ते के टूटने की
खबर आने लगी | पिछले साल उनकी शादी को याद करती  हूँ तो कितनी ही अच्छी स्मृतियाँ ताज़ा हो जाती
हैं | रीता ने शादी के खर्च में जैसे खजाने के द्वार खोल दिए हों | और क्यों न
खोलती एक ही तो बेटी है उसकी |फिर उनकी खुशियों की गारंटी भी उसके पास थी | निधि
और रोहन पिछले कई सालों से एक दूसरे को जानते थे | उन्होंने ने ही विवाह का फैसला
किया था | परिवार वालों ने तो बस मोहर लगायी थी |उस दिन दोनों की ख़ुशी छिप नहीं
रही थी |  दोनों ही एक दूसरे को पा कर बहुत
खुश थे | यह ख़ुशी विवाह समारोह में परिलक्षित हो रही थी |  निधि और रोहन दोनों ही अच्छे परिवारों से हैं |
कोई  ऐसा दोष भी दोनों में दृष्टि गत नहीं  था | हम सब को इस विवाह के सफल होने की उम्मीद
थी | शुरू –शुरू में उनकी खुशियों की खबर आती रहती थी |
फिर अचानक से ऐसा क्या हो गया जो दोनों एक –दूसरे से अलग होना चाहते हैं  | मैंने दोनों से अलग –अलग बात करने का निश्चय
किया | ताकि इस टूटते हुए रिश्ते को संभाला 
जा सके | पर दोनों से बात करके मेरे आश्चर्य की सीमा न रही | एक खूबसूरत
रिश्ता छोटी –छोटी बातों पर टूटने की कगार पर था | ज्यादातर रिश्ते टूटने में
दोनों परिवारों के बीच कुछ कटुता होती है | पर यहाँ मामला केवल उन दोनों के बीच का
था | ये केवल निधि और रोहन का ही मामला नहीं है | ऐसा पहले भी होता आया है , जब
दोनों में से एक या दोनों एक –दूसरे से ऐसी उम्मीदें पाल लेते हैं | जिनका पूरा
होना मुश्किल है | हालांकि पहले ये  प्रतिशत बहुत कम था |
एक बात यह भी है  की पहले संयुक्त
परिवारों के दवाब के कारण रिश्ता वेंटिलेटर पर चलता रहता था | दो लोग साथ  जरूर रहते थे पर पास  नहीं | 
पर अब पति – पत्नी के अकेले रहने , तलाक  
के समाज द्वारा मान्य  होने व्
दोनों के आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के कारण इन  अवास्तविक उम्मीदों पर रिश्ते टूटने लगे हैं |

जाने कैसे अवास्तविक उम्मीदों से टूटती है रिश्ते की डोर 

             समस्या को समस्या कह देना
किसी समस्या का अंत नहीं है | उसका समाधान खोजना आवश्यक है | जहाँ तक मैं समझती  हूँ की 
जिस तरह फिल्मों और टी .वी में “ परफेक्ट रिश्ते को  दिखाया जाता है | उसे देखकर युवा मन अपने जीवन
साथी  के लिए आदर्श कल्पनाएँ पाल लेते हैं
| जो हकीकत के धरातल पर पूरी होती नहीं दिखती तो मन असंतोष से भर जाता है | पहले
आपसी खटपट होती है जो रिश्ते की डोर को कमजोर करती है फिर एक –दूसरे से अलग होकर
कोई दूसरा परफेक्ट साथी ढूँढने की चाह उत्पन्न होती है | दुखद है जब दो लोग एक
दूसरे का हाथ थाम कर जीवन सफ़र में आगे बढ़ते हैं तो महज इन छोटी – छोटी अवास्तविक
उम्मीदों से रिश्ता टूट जाए | भले  ही
रिश्ते स्वर्ग में बनते हो पर निभाए धरती पर जाते हैं | और उनको ख़ूबसूरती से
निभाना एक कला है | आज मैं यहाँ उन अवास्तविक अपेक्षाओं  पर चर्चा करूँगी  जिनकी वजह से रिश्ते टूट जाते हैं या कमजोर पड़  जाते हैं |

वो सदैव  रोमांटिक  ही रहेंगे –
                 कोई भी रिश्ता एक
दूसरे के प्रति प्रेम  के साथ ही शुरू होता
है | एक दूसरे को पसंद करना ही किसी रिश्ते की बुनियाद होती है | जाहिर है शुरू –शुरू
में इसका इज़हार भी बहुत होता है | एक दूसरे ने क्या कपडे पहने हैं | कैसा दिख रहा
है | कैसे बोल रहा है | इस बात पर साधारणतया ध्यान  भी बहुत जाता है | परन्तु जैसे  –जैसे रिश्ता पुराना पड़ता जाता है | जीवन की और जरूरते  प्राथमिकताओं में आ जाती हैं | इसका अर्थ यह
नहीं है की प्रेम कम हुआ है बल्कि अर्थ यह है की अगला व्यक्ति जिम्मेदार है | जो
प्रेम के साथ अपनी जिम्मेदारियों को भी निभाना चाहता है | अगर आप अपने साथी से कुछ
खास बातें ही एक्स्पेक्ट करते रहेंगे 
तो  आपको भी दुःख होगा व् यह साथी
को भी उलझन होगी की की उसे हर समय आप को खुश करने के लिए कुछ खास काम करने होंगे |

ऐसी स्थिति में वो काम प्रेम नहीं ड्यूटी बन जायेंगे जिससे उनका सारा आनंद  ही खत्म हो जाएगा | बेहतर यही है की रोमांस को
केवल बाँहों में बाहें डाल कर फिल्म  देखने
, कैंडल लाईट डिनर  करने या महंगे गिफ्ट
खरीद कर देने तक ही सीमित नहीं कर दिया जाए | जरूरी है रोमांटिक तरीकों के अलावा
छिपे हुए प्रेम को पहचाना जाए जो एक दूसरे का ख्याल रखने , चिंता फिकर करने या हर
परिस्तिथि में साथ खड़े होने से आता है | जैसे जैसे कपल प्रेम के  इन छिपे हुए तरीकों को समझना शुरू कर देंगे
वैसे वैसे रिश्ता प्रगाढ़ होता जाएगा |

वो हमेशा सही ही बात बोलेंगे –

           जो तुमको हो पसंद
वही बात कहेंगे ,
                 तुम दिन को अगर रात
कहो रात कहेंगे …

                                 ये
फ़िल्मी गीत सुनने में जितना हिट  है  वास्तविक जीवन में उतना ही फ्लॉप है |  अब जरा कोई रोमांटिक फिल्म याद करिए जो आप को
बहुत पसंद आई हो | जब आप उसके एक – एक डायलाग पर गौर करेंगे तो आप पायेंगे की
उसमें भी कुछ शब्द या वाक्य आप के मुताबिक़ सही नहीं थे | अब जरा सोचिये जो फिल्म
इतनी मेहनत से सोच –समझ कर बनायी जाती है | जिसके एक –एक डायलाग पर घंटों काम होता
है | वहाँ भी कुछ गलतियाँ हो जाती हैं तो यह तो जीवन है | अगर  आपस में यह अपेक्षा की जाए की अगला हमेशा सही
बात ही बोलेगा तो दूसरे को अवश्य यह  महसूस
होगा की उसका काम बस  एक व्यक्तिगत मनोरंजक
का रह गया है | तो वो सोच –सोच कर बोलेगा | अर्थात कम बोलेगा |
रिश्ते दिल से बनते एन दिमाग से नहीं | आपसी बात –चीत कम होना किसी रिश्ते के
टूटने का एक बड़ा कारण है | अगर कोई बात आप के मन की नहीं कही जा रही है तो बस उसके
कहने का इंटेंशन देखना चाहिए | अगर वो हर्ट करने के लिए नहीं कही गयी है , तो ठीक
है | क्योंकि हर कोई गलती करता है यहाँ तक की अकेले में बोले तब भी |

वो किसी और की तरफ ध्यान न दें

अक्सर रिश्ते टूटने
 और गलतफहमियों की जड़ में यह बात होती है |
यह सच है की प्रेम में पजेसिव फीलिंग्स लाता है | छोटा बच्चा अपनी माँ पर अधिकार
भाव
  के चलते उसे को किसी को छूने  भी नहीं देना चाहता है यहाँ तक की पिता को भी
नहीं |
  पर समझदारी आते आते ही वह यह बात
समझने लगता है | यही बात रिश्तों में भी होती है | 

हर रिश्ता शुरूआती “ एक दूजे के
लिए “ वाले दौर से गुज़रता है जहाँ तीसरे के लिए कोई स्थान नहीं होता | परन्तु ऐसा
लम्बे समय तक नहीं हो सकता | मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है | आप को पा लेने के बाद
अगला किसी और को नोटिस ही नहीं करेगा , ये न केवल अव्यवारिक है अपितु असंभव भी है
| ओशो कहते हैं की आपके किसी गुण के कारण अगर आपका साथी आपको पसंद करता है तो
  इसका मतलब है वह उस गुण का ग्राही है | वह हर
किसी में , जिसमें वो गुण होगा नोटिस करेगा | पर गुणों को नोटिस करने व् प्रेम
करने में अंतर है | प्रेम समग्र व्यक्तित्व के गुण –दोषों के साथ होता है , केवल
एक गुण से नहीं |

ओशो एक बड़ी ही सुन्दर कहानी कहते हैं ,” एक पुरुष था | सौन्दयानुरागी | उसकी
पत्नी बहुत सुन्दर थी | वह अपनी पत्नी की सुन्दरता की बहुत प्रशंसा
  करता था | पत्नी खुश रहती | परन्तु जब वह किसी
और स्त्री की सुन्दरता की प्रशंसा कर देता तो वह चिढ जाती | झगडे होते | धीरे –धीरे
उसे सौन्दर्य से ही चिढ हो गयी | सुंदर वस्तुओ की तरफ ध्यान देना बंद कर दिया |
अवचेतन मन में झगड़ों का भय बैठ
  गया |
पत्नी की सुन्दरता की भी तारीफ़ नहीं करने लगा | पत्नी अब भी दुखी रहने लगी…कैसा
पति है ,कुछ भी अच्छे से अच्छा पहन लो ,
  कभी तारीफ़ ही नहीं करता |
कहने का मतलब ये है की जो आपका जीवनसाथी है उस पर इतना दवाब न डालिए की वो
किसी और की तारीफ़ ही न कर सके | ऐसे में एक अजीब सी घुटन महसूस होगी | जो रिश्ते
में दरार का काम करेगी |

हमारे बीच कभी लड़ाई या झगडा नहीं होगा 

                   दूर से देखों तो
चाँद कितना प्यारा लगता है | सुन्दर , शीतल , निर्मल … पर उसी चाँद पर रहना पड़े
तो ? क्या तब भी यही भाव  रहेंगे ? उसी तरह
दो साथी जब साथ रहे और उनमें कभी झगडा न हो यह अवास्तविक परी कल्पना ही है | दो
लोग बिलकुल एक जैसे नहीं हो सकते | बिलकुल झगडा न होने का मतलब या तो दोनों एक –
दूसरे के प्रति इनडिफ़रेंट रुख अपनाए हुए हैं | यानी किसी के होने या न होने का
मतलब   ही नहीं है | या फिर दोनों में से
एक दूसरे के स्लेव ( गुलाम ) की तरह रह रहा है | दोनोही परिस्थितियों में जीवन का
सुख कहाँ है |
ये छोटे –मोटे झगडे रिश्तों को तोड़ते नहीं उन्हें मजबूत बनाते हैं | जहाँ
झगड़ों के दौरान एक दूसरे को अच्छी तरह समझते हैं वहीं रूठने –मनाने के दौर से गुज़र
कर रिश्ता और निखर कर आता है | व् एक दूसरे के प्रति फुल एक्सेप्टेंस की मोहर
लगाता है |

मेरे सारे रिश्ते मेरे जीवनसाथी को पसंद करेंगे 

मेरी माँ मेरी पत्नी को या पत्नी माँ को पसंद क्यों नहीं करती ? मेरे परिवार में मेरे पति से ज्यादा मेरी बहन के पति को क्यों पसंद किया जाता है ?ये बहुत छोटी या मामूली बात लग सकती है पर एक बार ये बात दिमाग में आते ही हम जीवन साथी में कमियाँ देखना शुरू कर देते हैं |  यह बहुत अवास्तविक
अपेक्षा है की आप की जिंदगी में जितने दूसरे रिश्ते हैं वो आप के साथी को उस हद तक
पसंद  करें या अच्छा समझे जैसा की आप समझते
हैं | आपको अपने साथी के साथ जिंदगी बितानी है उन्हें नहीं | हर किसी की आपके साथी
के बारे में अपनी अलग राय हो सकती है | बेहतर है की न तो आप उनकी राय बदलने की
कोशिश करिए न अपनी |व्यक्ति कैसा होना चाहिए इसकी हर किसी की अपनी एक परिभाषा
होती  है | तभी तो हर कोई एक ही व्यक्ति की
तरफ आकर्षित नहीं होता | अगर आप चाहेंगे  की आप का हर रिश्तेदार आप के साथी की प्रशंसा
करे तो निश्चित तौर पर आप अपने साथी पर कुछ खास तरह का व्यवहार करने का दवाब
डालेंगे  | जो आपसी रिश्तों के लिए किसी भी
तरफ से मुफीद नहीं है | क्योंकि मुखौटा लगा कर जीना आसान नहीं होता न आपके लिए न
आपके साथी के लिए |

वो हमेशा मेरी भावनाओं को समझेगे

              यह सच है की  रिश्तों में एक –दूसरे को समझना जरूरी है पर आप
के साथी के लिए यह असंभव है की वो सदा आपकी भावनाओं को समझ सके | या आपके मन की
बात आप के बिना कहे जान सकें | इस्श्वर तक को अपने मन की बात समझाने के लिए हम रोज
प्रार्थना में लम्बी लिस्ट पकडाते हैं पूरे उच्चारण के साथ | फिर जीवन साथी तो
इंसान है भगवान् नहीं | जरूरी है की आप अपने साथी  को खुल कर अपनी भावनाओं के बारे में या किसी बात
के लिए आप क्या महसूस करते हैं बताएं |अपने साथी से उम्मीद करना की वो आपके मन की
बात पढ़ लेंगे, और उसी के मुताबिक काम  करेंगे , नासमझी  ही कहलाएगी | कोई भी रिश्ता आपसी संवाद से मजबूत
 होता है | जितना खुल कर एक दूसरे से बात
करेंगे , अपना पॉइंट ऑफ़ व्यू समझायेंगे , समय व्यतीत करेंगे तो  रिश्ता मजबूत होगा |

कोशिश कीजिये की अवास्तविक उम्मीदों से न टूटे रिश्ते की डोर 

                                     
जब भी कोई रिश्ता शुरू होता है तो बहुत अरमानों के साथ शुरू होता है | उसे
जीवन भर निभाने का भाव  होता है | इस नन्हे
पौधे को स्नेह का खाद –पानी देने का संकल्प होता है | पर इन  अवास्तविक अपेक्षाएं की धूप इस  पौधे को पनपने ही नहीं देती | अगर आप का रिश्ता
भी ऐसी धूप  से झुलस  रहा है तो पिक्चर परफेक्ट अपेक्षाएं हटा कर स्नेह
की छाया  दीजिये …कोशिश कीजिये की अवास्तविक उम्मीदों से न टूटे रिश्ते की डोर | सहेजिये , संभालिये और  फिर रिश्ते की घने बरगद के नीचे बैठ जीवन का
आनंद  लीजिये |

आपको आपको  लेख  टूटते रिश्ते – वजह अवास्तविक  उम्मीदें तो नहीं  कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

keywords: relationship, relationship problems,happy couple , marriage
Share on Social Media

2 thoughts on “टूटते रिश्ते – वजह अवास्तविक उम्मीदें तो नहीं”

  1. बहुत ही सुन्दर सटीक सार्थक एवं सकारात्मक आलेख…. बिल्कुल मेरे मन की बात!

Leave a Comment

error: Content is protected !!