ग़लत होने पर भी जो साथ दे वह मित्र नहीं घोर शत्रु है

0






     कई लोग विशेष रूप से किशोर और युवा फ्रेंडशिप डे का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। हर साल उसे नए ढंग से मनाने का प्रयास करते हैं ताकि वो एक यादगार अवसर बन जाए। क्यों मनाया जाता है फ्रेंडशिप डे? फ्रेंडशिप वास्तव में क्या है अथवा होनी चाहिए इस पर कम ही सोचते हैं। क्या फ्रेंडशिप-बैंड बाँधने मात्र से फ्रेंडशिप अथवा मित्रता का निर्वाह संभव है? क्या एक साथ बैठकर खा-पी लेने अथवा मटरगश्ती कर लेने का नाम ही फ्रेंडशिप है? क्या फ्रेंडशिप सेलिब्रेट करने की चीज़ है? फ्रेंडशिप अथवा मित्रता का जो रूप आज दिखलाई पड़ रहा है वास्तविक मित्रता उससे भिन्न चीज़ है। फ्रेंडशिप अथवा मित्रता सेलिब्रेट करने की नहीं निभाने की चीज़ है। फ्रेंडशिप अथवा मित्रता एक धर्म है और धर्म का पालन किया जाता है प्रदर्शन नहीं।

ग़लत होने पर भी जो साथ दे वह मित्र नहीं घोर शत्रु  है



गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं:


धीरज, धरम, मित्र अरु नारी, आपत काल परखिएहु चारि।


धैर्य, धर्म और नारी अर्थात् पत्नी के साथ-साथ मित्र की परीक्षा भी आपत काल अथवा विषम परिस्थितियों में ही होती है। ठीक भी है जो संकट के समय काम आए वही सच्चा मित्र। पुरानी मित्रता है लेकिन संकट के समय मुँह फेर लिया तो कैसी मित्रता? ऐसे स्वार्थी मित्रों से राम बचाए। यहाँ तक तो कुछ ठीक है लेकिन आपत काल अथवा विषम परिस्थितियों की सही समीक्षा भी ज़रूरी है।


     हमारे सभी प्रकार के साहित्य और धर्मग्रंथों में मित्रता पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। सच्चे मित्र के लक्षण बताने के साथ-साथ मित्र के कत्र्तव्यों का भी वर्णन किया गया है। रामायण, महाभारत से लेकर रामचरितमानस व अन्य आधुनिक ग्रंथों में सभी जगह मित्रता के महत्त्व को प्रतिपादित किया गया है। उर्दू शायरी में तो दोस्ती ही नहीं दुश्मनी पर भी ख़ूब लिखा गया है और दुश्मनी पर लिखने के बहाने दोस्ती के नाम पर धोखाधड़ी करने वालों की जमकर ख़बर ली गई है। मिर्ज़ा ‘ग़ालिब’ एक बेहद दोस्तपरस्त इंसान थे पर हालात से बेज़ार होकर ही वो ये लिखने पर मजबूर हुए होंगे:


यह फ़ितना आदमी की  ख़ानावीरानी को क्या कम है,
हुए तुम दोस्त जिसके दुश्मन उसका आसमाँ क्यों हो।

     एक पुस्तक में एक बाॅक्स में मोटे-मोटे शब्दों में मित्र विषयक एक विचार छपा देखा, ‘‘सच्चे आदमी का तो सभी साथ देते हैं। मित्र वह है जो ग़लत होने पर भी साथ दे।’’ क्या यहाँ पर मित्र से कुछ अधिक अपेक्षा नहीं की जा रही है? मेरे विचार से अधिक ही नहीं ग़लत अपेक्षा की जा रही है। ग़लत होने पर साथ दे वह कैसा मित्र? ग़लती होने पर उसे दूर करवाना और दोबारा ग़लती न हो इस प्रकार का प्रयत्न करना तो ठीक है पर किसी के भी ग़लत होने पर उसका साथ देना किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता। हम दोस्ती में ग़लत फेवर की अपेक्षा करते हैं। कई बार दोस्ती की ही जाती है किसी ख़ास उद्देश्य के लिए। ऐसी दोस्ती दोस्ती नहीं व्यापार है। घिनौना समझौता है। स्वार्थपरता है। कुछ भी है पर दोस्ती नहीं। इस्माईल मेरठी फ़र्माते हैं:


दोस्ती और किसी ग़रज़ के लिए,
वो तिजारत है दोस्ती  ही  नहीं।


     ऐसा नहीं है कि अच्छे मित्रों का अस्तित्व ही नहीं है लेकिन समाज में मित्रता के नाम पर ज़्यादातर समान विचारधारा वाले लोगों का आपसी गठबंधन ही अधिक दिखलाई पड़ता है। अब ये समान विचारधारा वाले लोग अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी। अब यदि ये समान विचारधारा वाले लोग अच्छे हैं तो उनकी मित्रता से समाज को लाभ ही होगा हानि नहीं लेकिन यदि समान विचारधारा वाले ये लोग अच्छे नहीं हैं तो उनकी मित्रता से समाज में अव्यवस्था अथवा अराजकता ही फैलेगी। 


     मेरे अंदर कुछ कमियाँ हैं, कुछ दुर्बलताएँ हैं और सामने वाले किसी अन्य व्यक्ति में भी ठीक उसी तरह की कमियाँ और दुर्बलताएँ हैं तो दोस्ती होते देर नहीं लगती। ऐसे लोग एक दूसरे की कमियों और दुर्बलताओं को जस्टीफाई कर मित्रता का बंधन सुदृढ़ करते रहते हैं। व्याभिचारी व चरित्रहीन लोगों की दोस्ती का ही परिणाम है जो आज देश में सामूहिक बलात्कार जैसी घटनाएँ इस क़दर बढ़ रही हैं। इन घटनाओं को अंजाम देने वाले दरिंदे आपस में गहरे दोस्त ही तो होते हैं।


     किसी भी कार्यालय, संगठन अथवा संस्थान में गुटबंदी का आधार प्रायः दोस्ती ही तो होता है न कि कोई सिद्धांत जो उस संगठन अथवा संस्थान को बर्बाद करके रख देता है। सत्ता का सुख भोगने के लिए कट्टर दुश्मन तक हाथ मिला लेते हैं और मिलकर भोलीभाली निरीह जनता का ख़ून चूसते रहते हैं। हर ग़लत-सही काम में एक दूसरे का साथ देते हैं, समर्थन और सहायता करते हैं। क्या दोस्ती है! इसी दोस्ती की बदौलत देश को खोखला कर डालते हैं। 


     एक प्रश्न उठता है कि सिर्फ़ दोस्त की ही मदद क्यों?  हर ज़रूरतमंद की मदद की जानी चाहिए और इस प्रकार से जिन संबंधों का विकास होगा वही उत्तम प्रकार की अथवा उत्कृष्ट मित्रता होगी। एक बात और और वो ये कि जब हम किसी से मित्रता करते हैं तो उस मित्र के विरोधियों को अपना विरोधी और उसके शत्रुओं को अपना शत्रु मान बैठते हैं और बिना पर्याप्त वजह के भी मित्र के पक्ष में होकर उनसे उलझते रहते हैं चाहे वे कितने भी अच्छे क्यों न हों। ये तो कोई मित्रता का सही निर्वाह नहीं हुआ। मित्र ही नहीं विरोधी की भी सही बात का समर्थन और शत्रु ही नहीं मित्र की ग़लत बात का विरोध होना चाहिए। उर्दू के प्रसिद्ध शायर ‘आतिश’ कहते हैं:


मंज़िले-हस्ती में  दुश्मन को भी अपना दोस्त कर,
रात हो जाए तो दिखलावें  तुझे  दुश्मन  चिराग़।


     और यह तभी संभव है जब हमारा विरोधी, प्रतिद्वंद्वी अथवा शत्रु भी कोई सही बात कहे या करे तो उसकी हमारे मन से स्वीकृति हो। ऐसा करके हम शत्रुता को ही हमेशा के लिए अलविदा करके नई दोस्ती का निर्माण कर सकते हैं। जहाँ तक मित्र की मदद करने की बात है अवश्य कीजिए। दोस्त के लिए जान क़ुर्बान कर दीजिए लेकिन तभी जब दोस्त सत्य के मार्ग पर अडिग हो, ग़लत बात से समझौता करने को तैयार न हो और उसका जीवन संकट में पड़ गया हो।


     लेकिन यदि दोस्त कुमार्गगामी है, उसका मार्ग अनुशासन, नैतिकता और धर्म के विरुद्ध है जो समाज, राष्ट्र और मनुष्यता के लिए घातक है तो ऐसी अवस्था में मित्र को समझा-बुझाकर सही मार्ग पर लाना ही सच्ची मित्रता है न कि उसके ग़लत कार्य में बाधा उपस्थित होने पर उसकी मदद करना।  कुमार्गगामी मित्र को मित्र मानना और उसकी सहायता करना बेमानी ही नहीं सामाजिक और राष्ट्रीय अपराध भी है। और सबसे महत्त्वपूर्ण तो ये है कि हमारे ग़लत होने पर भी जो हमारा पक्ष ले, हमारी मदद करे वह भी हमारा मित्र नहीं, घोर शत्रु है। और जो मित्र बेवजह हमारी नुक़्ताचीनी करे, बात-बात पर हमें ग़लत सिद्ध कर नीचा दिखाने का प्रयास करे उस दोस्ती का तो पुनर्मूल्यांकन अपेक्षित है। 


सीताराम गुप्ता



रिलेटेड पोस्ट ……..

 दोस्ती बनाम दुश्मनी – कुछ चुनिन्दा शेर

ये दोस्ती न टूटे कभी

की तू जहाँ भी रहे तू मेरी निगाह में है



आपको  लेख  ग़लत होने पर भी जो साथ दे वह मित्र नहीं घोर शत्रु  है कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | 


filed under- Friendship , Friendship day, broken friendship , friend

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here