2018 में लें हार न मानने का संकल्प

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2018 में लें  हार न मानने का संकल्प

 ये लो मिठाई , निक्की की पहली कमाई की है , फायनली सब कुछ ठीक हो गया
, मेरे दरवाजा खोलते ही श्रीमती शर्मा ने कहा | मैंने खुश हो कर मिठाई का डब्बा
हाथ में लिया और उन्हें बधाई देते हुए कहा ,” अब देखिएगा निक्की सफलता की नयी
दास्ताने लिखेगी | घंटे भर हमने चाय के कप के साथ हँसी –ख़ुशी के माहौल में बातचीत
की | उनके जाने के बाद मैं निक्की के बारे में सोंचने लगी | निक्की बचपन से ही मल्टी टेलेंटेड रही है |पढाई में अव्वल , खूबसूरत पेंटिंग बनाना , कागज़ और गत्तों
से डॉल हाउस बनाना और गायकी  तो इतनकी गज़ब की क्या कहा जाए | सबकी तारीफें सुन श्रीमती शर्मा बेटी पर फूली न समाती|उन की तरह
हम सब को विश्वास था की निक्की जीवन में बहुत सफल होगी | पढाई में हमेशा फर्स्ट
आने वाली निक्की का बारहवीं से मन थोडा पढाई से हटने लगा | बारहवीं में उसने बायो
व् मैथ्स का कॉम्बीनेशन लिया था |उसने ने NEET व् AIEEE पेपर २ दोनों की परीक्षा
दी | उसका NEET के द्वारा बिहार के छोटे शहर में सेलेक्शन भी हो गया |बधाइयों का
ताँता लग गया | निक्की  भी बहुत खुश थी क्योंकि बचपन से
 वो डॉक्टर बनना चाहती थी |वो मेडिकल कॉलेज के
लिए रवाना हो गयी | महीने भर बाद उस के रोते हुए फोन आने लगे , मम्मा मैं डॉक्टर
नहीं बन पाऊँगी| मैं घर आना चाहती हूँ | माँ – पिता के हाथ से जैसे तोते उड़ गए |
उन्होंने बहुत समझाया पर वो इनकार करती रही | दिल्ली की लड़की शायद छोटे शहर में
एडजस्ट न हो पा रही हो सोंच कर पिता उसे हफ्ते भर के लिए दिल्ली ले कर आये | पर
उसने वापस जाने से मना कर दिया | उसे तो डॉक्टर बनना ही नहीं है | उसकी द्रणता  देखकर माता – पिता ने हथियार डाल दिए | नेक्स्ट ऑप्शन के तौर पर AIEEE का
आर्कीटेक्चर चुना |साल तो बर्बाद हो गया था पर अगले वर्ष उसने आर्कीटेक्चर  ज्वाइन
किया |कुछ ही महीनों में वो पिछड़ने लगी , ऊबने लगी | उसने माँ से इसे भी छोड़ने को
कहा | माता – पिता डर गए | पर उसने अगले एग्जाम को देने से उसने इनकार कर दिया |
क्योंकि उसे लगता था उसका पास होना मुश्किल है | पूरा घर निराशा की गिरफ्त में आ
गया | श्रीमती शर्मा की गिरती सेहत इस बात का प्रमाण दे देती | तभी किसी ने सलाह
दी निक्की गाना तो अच्छा गाती है | इसी में इसका कैरियर बनवा दीजिये | निक्की की
सिंगिंग क्लासेज शुरू हो गयीं | निक्की ने रियाज शुरू किया पर कुछ दिन बाद उसे भी
छोड़ दिया | हैरान परेशान सी निक्की को समझ नहीं आ रहा था की उसके साथ ऐसा क्यों हो
रहा है | आखिर वो क्यों बार – बार असफल हो रही है | मल्टी टेलेंटेड निक्की मल्टी
फेलियर निक्की
में बदल रही थी |निक्की गहरे अवसाद में घिर गयी | महीनों खाना ,
सोना , दैनिक चर्या का क्रम बिगड़ा रहा | फिर निक्की ने ही कहा वो कम्प्यूटर कोर्स
करेगी | बेटी में वापस आशा का संचार देख कर माता – पिता जो उसे खो देने के भय से
भयभीत थे तुरंत राजी हो गए | निक्की ने कम्प्यूटर्स की परीक्षा बहुत अच्छे नंबरों
से पास की | घर में एक छोटा सा स्टार्ट अप खोला |और आज निक्की की पहली कामाई की
मिठाई …. वाकई बहुत मीठी है |
 जीवन में कभी आशा है तो कभी निराशा , कभी सुख ,कभी दुःख , कभी सफलता
तो कभी असफलता | जीवन इन सब से मिलकर ही बनता है | अगर हम इसको सहज भाव से लेते
हैं तो कोई मुश्किल नहीं है | पर जहाँ हमें आशा सुख और सफलता आल्हादित करती है वही
निराशा , दुःख और असफलता हमारी हिम्मत तोड़ देते हैं |इन पलों में असीम वेदना से
गुज़रते व्यक्ति को लगता है कि काश कोई ऐसे जादू की छड़ी होती जो हमें इन सब हारों
से निकाल
 लेती | तो आज मैं आपको वो जादू
की छड़ी ही दे रही हूँ | वो है कभी हार न मानने का संकल्प | जी हाँ , इस लेख को
लिखने की यही खास वजह है | 2018 आने वाला है | हम सब एक बार फिर नए जोश के साथ नए
साल का स्वागत करना चाहते हैं | हम सबको आशा है कि नया साल अपने थैले में हमारे
लिए बहुत सारी
  खुशियाँ और सफलता ले कर
आयेगा | मैं पूरे विश्वास के साथ कहती हूँ कि ऐसा जरूर होगा | बस आपको , मुझको ,
हम सब को एक संकल्प लेने की आवश्यकता है …

आइये लें 2018 में हार न मानने का संकल्प

दुःख , निराशा और असफलता में से आज मैं इस लेख के लिय असफलता का चयन
कर रही हूँ | क्योंकि असफलता ही है जो दुःख और निराशा के मूल में हैं | हम सब सफलत
होना चाहते हैं |फिर भी हो नहीं पाते | कई बार उससे निकलने के लिए हम दूसरा ,
तीसरा प्रयास भी करते हैं पर बार – बार असफल होते जाते हैं |एक के बाद एक असफलताएं
झेलना कोई आसान काम नहीं है |  जाहिर है
असफलताएं हमारी हिम्मत तोडती हैं | कई बार तो हिम्मत इतनी टूट जाती है की हम
जिंदगी से ही हार मान कर बैठ जाते हैं | और उसके बाद आने वाले मौके हमे दिखाई ही
नहीं देते | और हमारे जीवन में हारने का सिलसिला शुरू हो जाता है | पूरा समाज
हमारे ऊपर लेवल लगा देता है …. “असफल “


आपको शायद अमिताभ बच्चन की वो फिल्म याद हो जिसमें एक मासूम बच्चे के
हाथ पर गोद दिया जाता है ,” मेरा बाप चोर है “ अपमान निराशा से भरे उस बच्चे में
विद्रोह जागता है और यहीं से शुरू होती है उसके एंग्री यंग मैंन बनने
 की कहानी |वो पहले सफलता हासिल करता है फिर
दुश्मनों से बदला लेता है |हम अमिताभ बच्चन की फिल्मों पर तालियाँ बजाते हुए घर
लौट आते हैं | पर
  जब समाज हमारी  आत्मा के  ऊपर असफल का गोदना गोद देता है तो हम उसे सीने
से चिपका कर बैठ जाते हैं | जैसे वो हमेशा से हमारे लिए ही बना हो |उसे अपना नसीब
मान कर दोबारा प्रयास करना छोड़ देते हैं | कभी सोंचा है क्यों ? क्योंकि हम दोबारा
कोशिश करना ही नहीं चाहते |

क्यों लें हार न मानने का संकल्प


कभी किसी बच्चे को देखिये जो अपनी माँ से ABCD सीख रहा है | माँ
सिखाना चाहती  है A और बच्चा लिख रहा है B , या फिर यूँ ही आड़ी तिरछी रेखाएं खींच
रहा है | माँ बार – बार प्यार से समझाती है | फिर शाम को घूमने जाने या आइस क्रीम
का लालच देती है | अब बच्चा ध्यान से सीखना चाहता है | पर उससे होता नहीं है | गलत
लिखता है तो कभी सही | कभी टीचर डांटती है कभी माँ , कभी सहपाठी मजाक उड़ाते हैं |
पर बच्चा प्रयास करता ही रहता है | अन्तत: सीख ही जाता है | 

ये हार न मानने की
पहली जीत है | 


अब जरा ध्यान से देखिये … वो बच्चा आप हैं , मैं हूँ , हम सब हैं
| जब बचपन में
  हार न मान कर सीख ही लिया
तो बड़े पर क्यों डरते हैं | शायाद बड़े होने के साथ – साथ हमारा ईगो बड़ा हो जाता है
| हम हारने से नहीं हारने के बाद समाज को फेस करने से डरते हैं | जरा सोंचिये अगर
हम पूरी दुनिया में अकेले हो तो
 क्या
हारने के बाद हम दूसरी , तीसरी , चौथी या अनगिनत कोशिशे नहीं करते |

इस बात से मैं सहमत हूँ कि जब भी हम किसी  काम को शुरू करते हैं और उसमें पूरा तन –मन लगा
देते हैं | तो हम सफलता की उम्मीद करते हैं | पर हमेशा सफलता हमारे हाथ में नहीं
होती | ऐसे में मन गहरी निराशा में चला जाता है |यही वो समय है जिसके लिए कहा जाता
है की परछाई भी हमारा साथ छोड़ देती हैं | हम इस प्रश्न में इतना उलझ जाते हैं कि
की देखते ही नहीं की उस समय भी जिंदगी हमारे सामने कई दरवाजे खोलती है , कई
खिड़कियाँ खोलती है
  कुछ नहीं तो कुछ झरोखे
तो होते ही हैं | जहाँ से हम निकल कर निराशा से इतर खुली हवा में सांस ले सकते हैं
| पर … नहीं हम हार मान कर बैठ जाते हैं | अगर आप भी किसी ऐसे मौके पर हार मान
कर लम्बे समय से बैठे हुए हैं | तो भी निराश मत होइए , हार मत मानिए … क्योंकि
अभी भी आप के पास और मौके हैं |


कभी – कभी ऐसा भी होता है की पहले तो काफी समय निराशा में गँवा देते
हैं उसके बाद  हम दूसरे मौके  के आने पर  पहले ये सोंच कर और निराश हो जाते हैं की हमने
इतना समय तो बैठे – बैठे गँवा दिया अब क्या फायदा अब तो कुछ शुरू करेंगे तो नए
सिरे से अब ABCD पढनी पड़ेगी | यानी कि हम पहले खुद ही निराश होकर अपना समय खराब
करते हैं | फिर बाद में सोंचते हैं की लो अब तो वो समय भी गया | इस तरह
 खुद ही एक जहरीले चक्र में फंस जाते हैं |जिससे
आगे बढ़ना कठिन हो जाता है |

कैसे ले कभी हार न मानने का संकल्प


 ये सही है की इस जहरीले चक्र से निकलना मुश्किल होता है पर असंभव नहीं
| इसके लिए तो सबसे पहले हमें ये सोंचना होगा की कोई भी असफलता बेकार नहीं जाती
हैं | हर असफलता से हम सीखते हैं | लेकिन इसके लिए सीखने की इच्छा शक्ति होनी
चाहिए | अगर आप असफलता को अपने झूठे अहंकार से सहला रहे हैं तो माफ़ कीजिये ये लेख
आपके लिए नहीं है | लेकिन अगर आप वास्तव में निराशा से निकलना चाहते हैं तो निम्नाकित
प्रयास करें …

1)सबसे पहले तो  सोंचे की आपने क्या – क्या गलती की हैं | उन
गलतियों पर से सबक लीजिये की उन्हें सुधारिए | ये क्रम तब तक चलना चाहिए जब तक
सफलता न मिल जाए | परन्तु यह इतना आसान नहीं होता इसके लिए स्वयं को भावनात्मक रूप
से असफलता से दूर करना पड़ेगा | तभी आप उसका बारीकी से आकलन कर सकते हैं | इसलिए
मैं क्यों हारा की जगह ये क्यों हारा वाला भाव लाना होता है | तब हम सही तरीके से
समझ पाते हैं की हमारे प्रयास में कहाँ कमी रह गयी थी |ये गलतियां कुछ इस प्रकार
हो सकती हैं …


2      अ )  हमने पूरी कोशिश
नहीं की
3      ब )हमारी टीम सही नहीं
थी
4       स )हम अपनी टीम का सही
तरीके से संचालन  नहीं कर पाए
5       द )परिश्रम में कमी थी
6       प )निर्णय गलत लिए
7        न )या हमने तब काम छोड़
दिया जब थोड़े और प्रयास से सफलता मिलने ही वाली थी |
        


जब आप अपनी हार की इस तरह से एनालिसिस करेंगे तो आप देखेंगे की अरे ये सब
कमियाँ तो आसानी से दूर की जा सकती हैं |

2)दूसरे असफलता के समय हमें अपने स्वजनों और अपने रिश्तों को बारीकी
से समझने का मौका मिलता है | असफलता के समय में हमें केवल वही लोग साथ देते हैं जो
हमें वास्तव में प्यार करते हैं | बाकी सारे रिश्ते पीछे हट जाते हैं |या बात –
बात पर तंज मारते हैं | इसे हमें सफल और असफल व्यक्तियों के प्रति समाज के बेहवियर
को समझने का मौका मिलता है |कभी कभी असफलताएं आप को इतना अकेला कर देती हैं की आप
टूट जाते हैं | लेकिन ये भी सच है की यही वो समय है जब आप हिम्मत करके अगर उठ गए
तो आप रिश्तों के बंधनों से आज़ाद हो जाते हैं | कहने का मतलब ये हैं की सफलता के
लिए इमोशनली बैलेंस्ड होना बहुत जरूरी है | आपने एक शब्द सुना होगा EQ . दरसल
सफलता के लिए सिर्फ IQ ही नहीं EQ भी जरूरी होता है | मतलब हम भावनात्मक दवाब को
कितनी आसानी से झेल लेते हैं | असफलताएं जब हमें अकेला कर देती हैं तो हम चाहते न
चाहते भावनात्मक रूप से मजबूत हो जाते हैं |
3) अगर हमने कई क्षेत्रों  में
प्रयास किया है और हार झेली है तो इसमें दुखी होने के स्थान पर खुश होना चाहिए |
क्योंकि आपको अब कई क्षेत्रों का अनुभव हो गया है | अब आप जब भी प्रयास करेंगे तो
उस
 क्षेत्र में काम शुरू करने वाले को
केवल उसी क्षेत्र के अनुभव होंगे | जबकि आप को अन्य क्षेत्रों के भी अनुभव होंगे |
और जैसा की कहा गया है की ज्ञान कभी बेकार नहीं जाता | आप विभिन्न
 अनुभवों को जब एक साथ करेंगे तो आप के सफल होने
के चांसेज ज्यादा बढ़ जायेंगे |


4) कई बार किसी काम में असफल होने के बाद हम दोबारा प्रयास इस लिए
नहीं कर पाते
 क्योंकि हमारे पास फाइंनेस
की कमी होती है | ऐसी स्थिति में कोई ऐसा काम शुरू करिए जिसमें बहुत कम
 धन लगता हो | क्योंकि काम कोई छोटा नहीं होता |
आप जिस काम को आज छोटा समझते हैं उसमें भी कई अति सफल व्यक्ति हैं | शुरू में कम
लागत से काम की शुरुआत करिए |जैसे – जैसे लागत निकलना शुरू होने लगे उसमें ज्यादा
धन इन्वेस्ट कर सकते हैं | पर यह इन्वेस्टमेंट इस तरीके से होना चाहिए कि आपके पास
काम डूबने की स्थिति में एक अच्छी रकम बची रहे |

5 ) आपको इस बात में विरोधाभास लग सकता है पर ये बात सही है कि
असफलताएं हमें खुद को समझने का मौका देती हैं | जब हम सफल होते हैं तो हम दूसरों
को समझने की कोशिश करते हैं | क्योंकि हमें टीम चलानी होती है | पर जब हम असफल
होते हैं तो निराशा में हमें खुद को समझने का मौका मिलता है | अब जैसे निक्की  को ही
लीजिये | निक्की  डॉक्टर बनना चाहती थी पर उसे गन्दगी या इन्फेक्शन से बहुत असुविधा
लगती थी | उसे घंटों एक कमरे में बैठना भी पसंद नहीं था | अगर उसका मेडिकल में
सेलेक्शन नहीं हुआ होता तो उसे पता ही नहीं चला कि उसे की डॉक्टर का काम इन्फेक्शन
और पीब , मवाद , दर्द तकलीफ  से गुज़रते हुए मरीजों को न सिर्फ छूना बल्कि संवेदना व् प्यार से उनका इलाज़ करना भी है |जो करने में वो सहज नहीं थी | आर्कि
टेक्चर न किया होता तो उसे पता ही नहीं चलता कि वो मॉडल बनाने से प्यार तो
करती है पर इतना नहीं की घंटों पेपर ड्राफ्टिंग करें या खड़े हो कर बिल्डिंग का काम
करें | सिंगिंग उसे पसंद थी पर बस कभी – कभी पार्टी में गाने की हद तक वो इसमें
अपना कैरियर नहीं  बना सकती थी | क्योंकि वो रोज़  18 घंटे रियाज़ नहीं कर सकती थी |
इतनी असफलताओं से उसे अपने बारे में समझने का मौका मिला की उस का माइंड टेक्निकल
है पर वो घर के कम्फर्ट ज़ोन में रह कर काम करना चाहती हैं | अगर उसको पहली बार में
ही सफलता मिल जाती तो वो समझ ही न पाती कि वो अन्दर से क्या है | उसका बेसिक नेचर
क्या है | और जीवन भर उस काम को करती जिसे वो पसंद नहीं करती थी | हम सब एक बेसिक
नेचर को ले कर आते हैं | और उसी काम को खूबी से कर सकते हैं | उसी में सफलता पा
सकते हैं |और सबसे बड़ी बात हमें हमारा काम खेल लगने लगता है | जिस कारण हम खुश
रहने लगते हैं |




हर कोई जीनियस है | लेकिन अगर आप मछली का टेलेंट पेड़ पर चड़ने की
क्षमता से नापेंगे तो वो जिंदगी भर अपने आप को मूर्ख समझेगी -आइन्स्टीन 


                   अब तो आप
समझ ही गए होंगे की बार – बार असफल होना उतना बुरा नहीं है | बुरा है हार मान कर
बैठ जाना और कोशिश करना छोड़ देना |बस इसके लिए एक बात जरूरी है की लाख असफलताएं आये खुद पर विश्वास बनाए रखे | बार – बार खुद से दोहराते रहे …” कुछ भी हो जाए मैं हार नहीं मानूँगा और अपनी जिंदगी के साथ कुछ न कुछ तो अच्छा कर ही लूँगा | 
        

 2018 का गीत – तुझे बस चलते जाना है …


 एक बार ,
दो बार , तीन बार या कई बार जितनी बार भी असफलताएं झेली हो , उन्हें भूल कर हर बार
अगला प्रयास करिए क्योंकि हो सकता है ये अगला प्रयास ही आपके लिए सफलता की दरवाज़ा
खोलने वाला हो | और अगर नहीं भी खोलता है तो भी कम से कम आपको जीने का मकसद तो
देता है | आपकी रचनात्मकता का विकास करता है | हार मान कर बैठ जाने के स्थान पर जब
आप कुछ करते हैं तो आशा में जी रहे होते हैं ,इसलिए खुश रहते हैं , और इसीलिए
स्वस्थ रहते हैं |

 जैसा की संदीप माहेश्वरी कहते
हैं कि न रुक कर बैठ जाना है , और न भागना है , बस चलते जाना है |





तो फिर ख़ुशी – ख़ुशी स्वागत करिए 2018 का | यूँ तो हर बार ही हम नए साल पर
बहुत सारे संकल्प लेते हैं | इस बार 2018 की शुरुआत इस संकल्प के साथ करिए … की
आप परिस्थियाँ कैसे भी आयें कभी हार नहीं मानेगे और अपना प्रयास जारी रखेंगे |
चलते चलते मुझे लोकप्रिय कवि हरिवंश राय बच्चन की पंक्तियाँ याद आ रही हैं …
लहरों से डर कर कभी नौका पार नहीं होती

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

वंदना बाजपेयी
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अतीत से निकलने के लिए बदलें खुद को सुनाई जाने वाली कहानी



आपको आपको  लेख  2018 में लें  हार न मानने का संकल्प कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

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6 COMMENTS

  1. वंदना जी,नए साल में सकारात्मक सोच लिए बहुत ही प्रेरणास्पद आलेख। सच में जो जिंदगी में हार नहीं मानता वहीं आगे बढ़ सकता हैं।

  2. सही है … कोशिश केरने वाले कभी हारते नहीं …
    इसलिए जीत का संकल्प लेना चाहिए … हार न मानने का संकल्प लेना चाहिये …

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