युवाओं में “लिव इन रिलेशन “ की ओर झुकाव …आखिर क्यो ????

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युवाओं में “लिव इन रिलेशन “ की ओर झुकाव ...आखिर क्यो ????


आज कल आधुनिकता का दौर तेजी से बढ़ रहा है
आधुनिक सभ्यता ने इस कदर पाँव पसार लिए हैं कि लगता नहीं है अब युवा वर्ग पीछे की
ओर देखेगा ।युवा वर्ग आखिर शादी की जिम्मेदारियों से बच्चों की जिम्गमेदारियों से
  क्यों भाग रहा है ? आखिर ये समस्या आयी
कैसे
? क्या इसके पीछे कुछ
माता-पिता का व्यवहार तो नहीं



 आधुनिकता के पीछे
भागने वाला कोई भी गरीब व्यक्ति नहीं है
इसके पीछे भागने वाला सम्रद्ध सम्पन्न
मध्यम वर्ग का प्राणी है जो
  समाज में अपनी एक दिखाबटी साख बनाने में विश्वास रखता है ये वो  तबका है जिसको अपने
परिवार से ज्यादा अपने स्टेटस को लेकर चिन्ता रहती है समाज में ………आज की इस
आधुनिक शैली के कारण ही न जाने कितने परिवार टूट चुके हैं ..और परिवार का इस तरह
टूटना कहीं न कहीं बच्चे को भी तोड़ देता है अन्दर से वैवाहिक जीवन की सोच को लेकर
..तब वो बच्चा सोचने लगता है कि अगर विवाह का ये ही हश्र है तो उसको
विवाह नही करना वो इस नतीजे पर
सोचने को विवश हो जाता है |






पैसा बहुत कुछ है लेकिन सब कुछ नहीं




 एक तरफ घर में
माता-पिता के बीच तनाबग्रस्त जीवन और दूसरी ओर बढती हुयी आधुनिक शैली
सोच सकते हैं हम जिस
वक्त बच्चा मेच्योर होने की अवस्था में होता है वो इस मनोदशा से गुज़र रहा हो तो
उसकी सोच कहाँ जा कर कैसा रूप लेगी ।लिव इन की ओर झुकाव होना ऐसे में सम्भव हो
जाता है उनके लिए । विवाह उनको एक बन्धन लगने लगता है ..रोज की माता पिता की ओर से
रोका टोकी
, रोज के माता पिता के झगडे़ अपनी नौकरी का तनाब उस पर किराये के मकान
पर रहने पर किराया देने का बोझ न जान कितने कारण हो जाते है जो वो लिव इन को
स्वीकृति देने लगते हैं उनके
  मन में ….लेकिन वो भूल जाते हैं कि लिव इन रिलेशन के निगेटिव
पक्ष भी होते हैं ..


घटनायें तो दोनो में ही घटतीं हैं ...चाहें विवाह हो या लिव इन
रिलेशन..
….शायद वो इस तरफ ध्यान देता नहीं है या देना नहीं चाहता …..उसको
सोचना चाहिए
—-



-विवाह पर समाज की मोहर लग जाती है 

लिव इन पर खुद लड़के-लड़की का डिसीजन होता है



२-विवाह एक हमारी भारतिय शैली है 

लिव इन विदेश का चलन 


३- विवाह में एक दूसरे से अलग होने पर रिश्ता कानूनी कार्यवाही
की माँग करता है
 


लिव इन में जब तबियत हो बोरिया बिस्तर बाँध कर अलग होने का अपना
डिसीजन



४- विवाह में स्त्री की मदद कानून के द्वारा दिलायी जाती है 

 लिव इन में ऐसा कुछ
नही है (शायद )



निगेटिव पॉइंट दोनों में  ही होते है —-


कभी -कभी लिव इन में एक पक्ष इस तरह जुड़ जाता है दूसरे की भावनाओं
से
, कि अपने दोस्त के
छोड़ कर चले जाने पर अपने आपको हानि देने से भी नही चूकता..या आपने पार्टनर को
हानि देने से भी……


यही हाल विवाह में भी देखा जाता है —-लेकिन हमारा मानना
है कि अगर एक समय बाद उम्मीदें
, अपेक्षाएं दोनों ही रिश्तों में जाग जाती हैं तो युवा लिव इन रिलेशन को प्राथमिकता देते
नज़र क्यों
  आते हैं



घुटन से संघर्ष की ओर



  ये समस्या या इसका
समाधान अभी नहीं निकला तो वो दिन दूर नही .. जिसका परिणाम आगे आने वाले समय और
पीढी को इसका ख़ामियाज़ा न झेलना पड़ेगा …..।



  हमारे  युवा वर्ग को सोचना
चाहिये कोई भी रिश्ता बिना आपसी विश्वास और स्पेस के ज्यादा समय टिकना बहुत
मुश्किल होता है । आपसी सम्बन्ध वही ज्यादा टिकते यानि लम्बा सफर तय करता हैं जिस
जगह पर दोनों के रिश्ते
  में विश्वास और स्पेस होता है । 



        हमारी भारतिय सभ्यता को विदेशी अपना रहे हैं और भारत का युवा विदेशी
सभ्यता के फेरे में पड़ा है ।ये एक गम्भीर सोच का मुद्दा है .. लिव इन रिलेशन कोई
हलुआ नहीं ..झगड़े लिव इन में भी होते हैं और शायद शादी शुदा लोगों से ज्यादा
…विदेश में आये दिन पार्टनर बदल लेते हैं लोग
——ये हिन्दुस्तान में सम्भव है क्या ?? 



हमारी युवा पीढी को शादी और लिव इन के डिफरेन्स को समझना होगा
…….।।।




               
 
लेखिका कुसुम पालीवाल , नोयडा





लेखिका


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