निर्णय लेने में होती है दिक्कत -अपनाए भगवद्गीता के सात नियम

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निर्णय लेने में होती है दिक्कत -अपनाए भगवद्गीता के सात नियम

बहुत पुरानी एक कहानी है कि एक बच्चा था उसे निर्णय लेने में दिक्कत होती थी | एक बार की बात है कि वो अपने माता -पिता के साथ बाज़ार गया | बच्चा छोटा था तो पिता ने सोचा कि इतनी दूर बाज़ार आ कर थक गया होगा चलो इसे पहले कुछ खिला देते हैं | वो एक आइसक्रीम की दूकान पर गए उन्होंने बच्चे से कहा , ” बेटा वैनिला लोगे या स्ट्राबेरी | बच्चे को दोनों पसंद थी | वो बहुत देर तक निर्णय नहीं ले पाया कि उसे कौन सी आइसक्रीम खानी है | देर हो रही थी इसलिए पिता ने सोचा की चलो पहले सामान खरीद लें शायद बच्चे को अभी भूख नहीं लगी है तो बाद में कुछ खिला देंगे | वो बच्चे के साथ कपड़ों की दूकान पर गए | यहाँ भी बच्चा फैसला नहीं ले पाया | पिता ने फिर सोचा , चलो पहले जुटे खरीद लेते हैं | पर बच्चा नहीं समझ पाया कि उसे कौन से जूते पसंद है | लिहाज़ा माता -पिता बच्चे के सामान के स्थान पर अन्य खरीदारी कर के घर वापस आ गए | बच्चे को न जूते मिले न कपडे न ही आइसक्रीम , जबकि सबसे पहले उससे ही पूंछा गया था | ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वो किसी भी चीज में निर्णय नहीं ले पाया | हममें से कई लोग निर्णय नहीं ले पाते हैं , या फिर सही निर्णय नहीं ले पाते हैं  जिस कारण समय निकल जाने पर वो जीवन भर पछताते हैं | अधिकतर देखा गया है कि जो लोग जल्दी निर्णय लेते हैं और अपने निर्णय पर टिके रहते हैं वो सफल होते हैं | यानि अनिर्णय की स्थिति में रहने वाले ज्यादातर लोग असंतुष्ट , असफल और दुखी रहते हैं | भगवद्गीता ने आज से पाँच हज़ार साल पहले निर्णय  लेने का तरीका भगवान् श्री कृष्ण ने सिखाया है | भगवद्गीता सिर्फ धार्मिक पुस्तक नहीं है यह जीवन दर्शन है | अक्सर लोग इसे केवल धार्मिक पुस्तक समझ कर पढ़ते हैं और इसके मूल भाव को नहीं समझ पाते जबकि  भगवद्गीता में मनुष्य के जीवन में आने वाली तमाम समस्याओं के समाधान प्रस्तुत हैं |

अगर निर्णय लेने में होती है दिक्कत -अपनाए भगवद्गीता के सात नियम /7 decision making lessons from shri Bhagvad Geeta by krishna


महाभारत के युद्ध के समय जब कौरवों और पांडवो की दोनों सेनायें आमने -सामने थीं तो अर्जुन मोह ग्रसित होकर युद्ध से इनकार कर देते हैं | उसी समय भगवान् कृष्ण उन्हें गीता का ज्ञान देते हैं | जो आज भी व्यवाहरिक है | यानि 5000 साल पहले भगवान् श्री कृष्ण भगवद्गीता में ऐसे कई नियम बता गए थे जो मनुष्य को निर्णय लेने में मदद करते हैं | आइये इनमें से प्रमुख 7 सूत्रों पर चर्चा  करते हैं | 

1) आपका निर्णय भावनाओं पर आधारित न हो 

                                          जब भी हम कोई काम करते हैं तो हमें अच्छा या बुरा महसूस होता है | ये अच्छा या बुरा महसूस होना भावनाएं हैं | श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि कोई भी निर्णय विवेक पर आधारित हो भावनाओं पर नहीं | जब भी हम भावनाओं पर आधारित निर्णय लेते हैं तो वो निर्णय गलत ही होते हैं | जैसे एक विद्यार्थी है उसे पढने में अच्छा नहीं लगता , टीवी देखने में या वीडियो गेम खेलने में ज्यादा मजा आता है ज्यादा अच्छा फील होता है | परन्तु अगर वो अपनी फीलिंग्स के आधार पर पढाई नहीं करेगा और सारा समय टीवी या मोबाइल में बर्बाद कर देगा तो क्या उसका निर्णय सही कहा जाएगा | जाहिर है नहीं | feelings are temporary आज अगर  विद्यार्थी ने फीलिंग्स के आधार पर निर्णय ले लिया तो सारी उम्र अच्छी नौकरी न मिल पाने के कारण वो खुश नहीं रहेगा | जाहिर है तब उसकी अपने बारे में  भावनाएं भी अच्छी नहीं रहेंगी | इसलिए जो निर्णय विवेक पर आधारित न हो कर भावनाओं पर आधारित होते हैं वो हमेशा गलत होते हैं | 

2 ) अत्यधिक दुःख या अत्यधिक ख़ुशी की अवस्था में निर्णय न लें 

                                                            गीता के छठे अध्याय में कहा गया है कि जब भी कोई निर्णय लें अपने दिमाग को संतुलित करके लें | आपने महसूस किया होगा कि जब हम बहुत खुश होते हैं तो हर बात में हां बोल देते हैं और जब हमारा मूड खराब होता है तो अच्छी से अच्छी बात भी हमें नागवार गुज़रती है और हम उसे करने से मना  कर देते हैं | अर्जुन के साथ भी यही हो रहा था | वो मोह में थे , इसलिए उन्होंने युद्ध करने से इंकार कर दिया था | अकसर क्रोध या मोह में लिए गए निर्णय गलत ही  होते हैं |

जैसे कि शर्मा जी को उनकी कम्पनी के मालिक ने इंटरव्यू ले कर आदमी रखने की जिम्मेदारी सौंपी | शर्मा जी  जानते थे कि उनका भाई अयोग्य है पर मोह वश उन्होंने योग्य आदमी को छोड़ कर अपने भाई को उस कम्पनी में नौकरी पर रखा | उसने काम में लापरवाही की जिस कारण मालिक को नुक्सान हुआ | जब मालिक को पता चला कि  शर्मा जी ने भाई होने के कारण उसे नौकरी पर रखा है तो उन्होंने उसे निकाल दिया व् शर्मा जी की पदावनति कर दी | शर्मा जी अगर सही निर्णय ले कर योग्य उम्मेदवार को चुनते तो बाद में अपने निर्णय पर न पछताते |

इसी तरह अभी हाल की घटना है | दो बहने एक दस साल की एक बारह साल की  माता -पिता के काम पर जाने के बाद घर पर टीवी  देख रही थीं | रिमोट बड़ी बहन के हाथ  में था | छोटी बहन अपनी पसंद का कार्यक्रम देखना चाहती थी | दोनों में झगडा हुआ | बड़ी बहन ने रिमोट नहीं दिया | छोटी बहन ये कहते हुए दूसरे कमरे में चली गयी कि ठीक है आज के बाद अकेली ही टीवी देखना | दूसरे कमरे में जा कर उसने चुन्नी का फंदा बना कर आत्महत्या कर ली | ये निर्णय क्रोध में लिया गया था जिसमें एक जीवन जरा सी बात पर समाप्त हो गया  और परिवार को कभी न भरने वाला घाव दे गया |

3) अपने निर्णय के साथ डटे रहे





                                                श्री भगवद्गीता में एक शब्द पर बार – बार चर्चा की गयी है वो  है निष्काम कर्म | श्री कृष्ण बार -बार कहते हैं कि कर्म करो फल की चिंता मत करो |  अगर हमारा ध्यान केवल  फल पर है तो हम उस काम करने के निर्णय पर डटे  नहीं रह पायेंगे | जैसे अगर आप वजन कम करने के लिए टहलना शुरू करते हैं परन्तु एक महीने बाद भी आप का वजन कम नहीं होता तो आप निराश हो कर टहलना बंद कर देते हैं | जबकि आप को पता है कि मात्र टहलने से वजन कम होने में बहुत समय लगता है , और आप टहलने के और भी बहुत सारे फायदे जानते हैं फिर भी क्योंकि आपका ध्यान एंड रिजल्ट पर लगा था आप  हताश होते हैं और टहलना बंद कर देते हैं | बहुत से लोग ब्लॉगिंग शुरू करते है पर उनका ध्यान कमाई  पर लगा रहता है | ऐसे में कुछ दिन लिखने के बाद ही वो डीमोटिवेटेड  फील करने लगते हैं और काम को बीच में ही छोड़ देते हैं | अगर आप सिर्फ कर्म को महत्व देंगे और लगातार करते जायेंगे तो देर सबेर अच्छे परिणाम आने लगेंगे |

4) परिवर्तन अवश्यसंभावी है

                                      हम कई बार अनिर्णय की स्थिति में ये सोच कर रहते हैं कि जैसा है वैसा ही चलता रहे | पर श्री कृष्ण गीता में आगाह करते हैं कि आगे बढ़ कर निर्णय लो क्योंकि परिवर्तन अवश्यसंभावी है | परिवर्तन तो होना ही है | इसी को आज कल कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलना भी कहते हैं | आप निर्णय लेने से कितना भी बचे एक निर्णय तो हो ही जाता है … काम न करने का निर्णय |

युद्ध भूमि में अर्जुन को मोह है कि वो अपने सारे प्यारे रिश्तों को खो देंगे | इस कारण वो अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर नहीं निकला चाहते हैं , युद्ध नहीं लड़ना चाहते हैं | तब कृष्ण समझाते हैं जिस बात से तुम दर रहे हो वो तो होना ही है | तुम्हें अपने सारे प्यारे रिश्तों को खोना ही है क्यों इस परिवर्तन को रोका नहीं जा सकता , इसलिए आगे बड़ो और युद्ध करो |

हिमाचल प्रदेश में रहने वाले मुकेश जी के बेटे को MIT अमेरिका में एडमिशन मिल गया | मुकेश जी का दिल घबरा  गया कि वो बुढ़ापे में अकेले रह जायेंगे , बेटा दूर चला जाएगा | उन्होंने बेटे को रोक लिया | बेटा निराश था इस कारण उसके इंटरव्यू गड़बड़ होने लगे | काफी समय बाद उसकी चेन्नई में नौकरी लगी | बेटे को पिता से दूर रहना ही पड़ा परन्तु मुकेश जी के गलत निर्णय से उसका MIT में पढ़कर और काबिल बनने  का सपना सपना ही रह गया |

5) क्या आपको अपने निर्णय पर विश्वास है

                                                  श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि विश्वास ही फलदायी होता है | अगर आप कोई काम करने का निर्णय लेते हैं पर बेमन से लेते हैं तो वो काम पूरा नहीं होगा | इसलिए काम  शुरू करने से पहले पूरी तरह विचार करलें कि क्या आपये काम कर सकते हैं , क्या आप में ये क्षमता है , क्या आप को अपने ऊपर विश्वास है ?

नकुल के पिता चाहते थे कि वो इंजीनीयर बने | उन्होंने दसवीं पास करते ही उसकी कोचिंग लगवा दी | नकुल जानता था कि वो इतना होशियार नहीं है , उसको अपनी सफलता पर विश्वास नहीं था | लिहाज़ा उसका मन पढने में नहीं लगा | नकुल का सेलेक्शन भी नहीं हुआ उसके पिता का कोचिंग में लगाया पैसा भी बर्बाद हुआ |अगर किसी को खुद पर विश्वास नहीं है कि वो ये काम कर सकेगा तो उसे उस काम को करने का निर्णय नहीं लेना चाहिए | ऐसे में वो  काम वह कभी नहीं कर पायेगा | उसका मन हमेशा उसे रोक देगा | दूसरे जिसे विश्वास है की वो ये काम कर सकता है उसका मन सौ तरीके ढूंढ लेगा |

6)विश्वास पैदा करने के लिए अपना रोल मॉडल बनाए

                                                गीता के पाठ ३ श्लोक २१ में भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं कि जो महान  लोग करते हैं लोग उसका अनुसरण करते हैं | अब मान लीजिये की आप दुविधा में है | आप को अपनी क्षमता पर विश्वास तो है पर पूर्ण विश्वास नहीं है | ऐसे समय में आप उन लोगों  को अपना रोल मॉडल बनाएं जिन्होंने वो  कार्य सफलता पूर्वक किया है | इससे आपका विश्वास बढ़ जाता है आप में हिम्मत आती है और आप अनिर्णय की स्थिति से निकल कर निर्णय ले पाते हैं |

वसुधा की शादी तय होने वाली थी | वसुधा नौकरी करती थी | उसे पूर्ण विश्वास नहीं था कि वो नौकरी व् घर दोनों संभल लेगी | वसुधा इसी कारण  विवाह में आना कानी कर रही थीं |तभी उसके पास में रीता भाभी रहने आयीं वो नौकरी भी करतीं व् घर भी अच्छे से संभालती | इसके लिए उनका समय प्रबंधन  कमाल का था | उन्हें देख कर वसुधा  को विश्वास हो गया कि वो भी समय प्रबंधन से दोनों काम कर सकती है | उसने विवाह  के लिए हाँ कह दी |

7) जो निर्णय समाज के हित में है वही सही निर्णय है 

                                     श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि जो निर्णय समाज के हित में है वही सही निर्णय है | अर्जुन को अपने ही प्रियजनों से युद्ध करना था परन्तु यह समाज में नैतिक मूल्यों को स्थापित करने के लिए जरूरी था | अगर अर्जुन अपने मोह की रक्षा हेतु युद्ध न करने का निर्णय लेते तो समाज का पतन होता | और एक पतनशील समाज का अंत होना ही निश्चित है | यानि जो निर्णय मेरे लिए लाभकारी है  और समाज के लिए अहित कारी है वो अन्तत : अहितकारी ही सिद्ध होगा |

इसका बहुत सटीक उदाहरण भ्रस्टाचार में दिखाई देता है | एक व्यक्ति  ‘क ‘अपने ओहदे का फायदा उठा कर रिश्वत ले कर काम करता है | उसे ये गलत नहीं लगता | पर ये गलत यहीं रुकेगा नहीं | उसी से काम करवाने एक डॉक्टर आता है और पैसे दे कर काम करवाता है | अब वो डॉक्टर अपना घाटा  पूरा करने के लिए रिश्वत लेने लगता है |एक दिन क ‘के बेटे का एक्सीडेंट हो जाता है वो उसे ले कर हॉस्पिटल जाता है | पर डॉक्टर उस मरीज का ओपरेशन पहले करता है जो कम सीरियस है क्योंकि उसके पिता ने रिश्वत दी हुई है | ” क ‘का बेटा मर जाता है | एक निर्णय जो समाज के हित में नहीं था पर क ‘के हित में दिख रहा था अन्तत : ‘क ‘ के लिए भी अहितकर साबित होता है |

                                 तो ये थे  साथ नियम जो गीता में बताये गए हैं | इसके अतिरिक्त गीता के अनुसार जब आप अनिर्णय की स्थिति में हो तो अपने किसी हितैषी से सलाह भी ले सकते हैं , जैसा की अर्जुन ने भगवान कृष्ण से सलाह ले कर किया , व्  आप ईश्वर ( किसी शक्ति ) में पूर्ण विश्वास होना चाहिए जिसको आप अपने समस्त काम समर्पित करके अपराध मुक्त (गिल्ट फ्री) महसूस करके निष्काम कर्म करनेका निर्णय ले सकते हैं | गीता का 5000 पहले दिया गया ज्ञान आज की भी समस्याओं को सुलझाने में समर्थ है | इसलिए जब   भी निर्णय लेने में असुविधा हो इन्हें दोहराए व् इसी की सहयता से निर्णय ले कर जीवन में आगे बढें |

वंदना बाजपेयी

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5 COMMENTS

  1. वंदना जी,बहुत ही सुंदर,जीवन में बहुत उपयोगी आने वाली पोस्ट। साथ ही में विविध उदाहरणों से आपने इसे और रोचक बनाकर अच्छे से समझाया हैं।

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