रक्षा बंधन का एक धागा हमारे कश्मीर की कलाई पर …

रक्षा बंधन  का एक धागा हमारे  कश्मीर की कलाई पर ...

अबकी बरस भेज भैया को बाबुल सावन में लीजो बुलाय …बंदिनी फिल्म का यह गीत चाहे कितना भी पुराना क्यों ना हो जाए फिर भी चिर नूतन है | कारण है इससे हर बहन की भावनाएं  जुड़ी हैं | जो बहनें साल भर  मायके नहीं  जा पाती हैं उनके लिए सावन मायके जाने का एक बहाना होता है | सावन के अंत में ही आता है रक्षा बंधन का त्यौहार | जो बहनें -बेटियाँ सावन में मायके जाती हैं वो रक्षा बंधन मना  कर ही वापस ससुराल आती हैं | मायके से चलते समय अपने अंजुरी  से मुट्ठी भर चावल के दाने छिड़क कर भाई और भतीजों के लिए मंगलकामनायें करना नहीं भूलती | 




अगर मैं अपनी बात करूँ तो विवाह के इतने वर्षों बाद भी आज भी मायके से आते समय आँखे नम हो जाती हैं | माँ भी तो ऐसा ही करती हैं …और मेरी बेटी भी कई बार मैं दीवारों को अपनी हथेलियों से छूटे हुए जैसे उन सब स्मृतियों को अपने अंदर भर लेना चाहती हूँ , जो मेरे बचपन की वहाँ  पर छूट गयीं है | ये भाव मन को आल्हादित करता है कि दीवारें साक्षी होती हैं , उन्होंने सब देखा है | कितनी बार उनके रंग बदले गए हैं, कितनी बार प्लास्टर भी झड़ा है , फिर भी अंदर कहीं गहराई में वो स्मृतियाँ अभी भी सहेजे हुए हैं | स्नेह के कितने बन्धनों की वो साक्षी रही हैं | वहीँ से मैं पुन : समेट लेना चाहती हूँ वो सारी स्मृतियाँ जो जो पूरे वर्ष भर मुझे जीवन के हर ताप में नम रखती हैं | 




बहन बेटियाँ सदा से ऐसी होती आयीं हैं | कितने चुटकुले बने हैं महिलाओं के मायके के प्रति प्रेम से | कौन सी महिला होगी जिसने पति या ससुराल वालों से मायके के लिए ताजने ना सुने हो | “इतने साल साल हो गए पर मन तो वहीँ रखा रहता है इनका ” कितना कुछ छिपा जाती हैं महिलाएं पर मायके के नाम पर जो आँखों में चमक आती है वो छुपाये नहीं छिपती | कितनी बार ऐसा हुआ कि भाइयों ने निष्ठुरता दिखाई  | जल्दी से राखी बाँध दो कह कर अपने कामों में लग गए | मायके आई बहन के पास दो घंटा बैठ कर बात भी नहीं की | आहत बहन आँखों में आँसूं  लिए लौट गयी ससुराल | पर जब भी मायके से कोई खबर आई तुरंत दौड़ी चली आई … ना कोई गिला ना शिकवा | 




क्यों करती हैं हम बहने ऐसा ? 
क्यों न करें आखिर हमारी नार जो वहां गड़ी हुई हैं | कितना भी दूर रहे कहीं भी रहे पर मन में लौट -लौट वहीँ जाता रहा है … रहेगा | 




कहना ना होगा कि एक ना एक दिन भाई भी समझते हैं इस प्रेम की कीमत और चाहें जितने निष्ठुर हो कभी ना कभी झुकते ही हैं इस प्रेम के आगे | भले ही बरसों बात सुध लें पर जब समझ आती है तो बहनों के कानों में भी भाइयों के फोन बज उठते हैं ,  ” बहुत दिन हो गए मिले हुए , इस बार रक्षा बंधन पर जरूर आना |” 




आखिरकार कच्चे धागे का ये बंधन होता ही इतना पक्का है |


तभी तो अम्मा सदा कहती आयीं हैं , ” पानी बांटने से बंटा है कभी “


इस बार का रक्षा बंधन और भी विशेष है क्योंकि इस बार उसके साथ स्वतंत्रतता दिवस भी आ रहा है | और यह स्वतंत्रता दिवस हमारे लिए इस लिए भी ख़ास है क्योंकि इस बार अभी कुछ ही दिन पहले हमारा प्यारा भाई कश्मीर धारा ३७० की कैद से आज़ाद हुआ है | कितना दुःख झेला है भाई ने | आतंक ने कितना सीना छलनी किया है उसका | कितने भाई बहन वहां से  भगा दिए  | कितना भीषण रक्तपात हुआ , जो बचे उनको भी कहाँ सुकून लेने दिया आतंकवाद ने |  कितना कराहा ता वो | और हम बहनें भी विवश थे | क्या करते सिवाय आँख नम करने के | अभी  तक का मिलना भी कोई मिलना था वो भी दूर हम भी दूर | इस बार हम भाई बहन परस्पर एक दूसरे को ढेर सारा प्यार और दुलार भेज पायेंगे जो अभी तक दिल में भरा था , लेकिन जिसके इजहार में पराये पन की बू थी | 




जबसे कश्मीर से धारा 370 हटाई गयी है , तबसे  हमारा पड़ोसी , हमारा पकिस्तान हमारे खिलाफ विश्व को एक जुट कर ये प्रयास कर रहा है कि  कि भाई बहन के इस प्रेम में बाधा पड़े | उसका नजरिया तो फिर भी समझ में आता है पर जिस तरह से कुछ अपने   धारा 370 हटाये जाने का विरोध कर रहे हैं तो आम आदमी के लिए ये समझना मुश्किल हो जाता है कि ये हमारा पक्ष रख रहे हैं या पकिस्तान का | मुझे तो इनमें वो निष्ठुर भाई नज़र आते हैं जिन्हें बहनों का प्रेम नज़र नहीं आता | जो एक बार पराई की गयी को फिर अपनाना ही नहीं चाहते | 




खैर कुछ मुट्ठी भर लोगों के विमुख होने से , निष्ठुर होने से या दुष्प्रचार करने से बहनों का प्रेम कभी कम हुआ है भला … वो तो लौट -लौट कर उमड़ता ही रहता है |  




इस बार पूरे देश की बहनें अपने कश्मीरी भाईयों  को राखी बाँधने  के लिए थाली तैयार कर रही हैं | माथे पर प्रेम की प्रतीक लाल रोली का टीका, अक्षुण्य प्रेम के के लिए अक्षत के दाने छितराए हुए | आरती का थाल और रेशम के मुलायम धागे जो इस रिश्ते  को और मजबूत करेंगे | 




वो फैलाते रहे नफरत हम तो प्यार बांटेंगे | 


प्यार हमेशा जीता है …जीतेगा | 


हम बांधेंगे  ….इस बार रक्षा बंधन का धागा हमारे कश्मीर की कलाई पर 


गम जदा या खौफजदा ना होना भैया … हम हैं ना तुम्हारे साथ 


वंदना बाजपेयी 


यह भी पढ़ें …

निर्णय लो दीदी – ओमकार भैया को याद करते हुए

एक पाती भाई बहन के नाम – डॉ भारती वर्मा ‘बौड़ाई ‘

आया राखी का त्यौहार -भाई बहन पर कुछ कवितायें

रक्षा बंधन स्पेशल -फॉरवर्ड लोग

 आपको   लेख  रक्षा बंधन  का एक धागा हमारे  कश्मीर की कलाई पर …   ” कैसा लगा   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |




keywords: raksha bandhan, rakhi, bhai -bahan, kashmir, dhara 370, India

Share on Social Media

1 thought on “रक्षा बंधन का एक धागा हमारे कश्मीर की कलाई पर …”

  1. जयहिंद। बहुत अच्छे विचार।अभी कुछ दिनों तक उसके घावों पर मरहम लगाना पड़ेगा।

Leave a Comment

error: Content is protected !!