गुजरे हुए लम्हे (परिशिष्ट)-अध्याय 15

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गुज़रे हुए लम्हे

 

आत्मकथा लेखन में ईमानदारी की बहुत जरूरत होती है क्योंकि खुद के सत्य को उजागर करने के लिए साहस चाहिए साथ ही इसमें लेखक को कल्पना को विस्तार नहीं मिल पाता | उसे कहना सहज नहीं होता | बहुत कम लोग अपनी आत्मकथा लिखते हैं | बीनू दी ने यह साहसिक कदम उठाया है | बीनू भटनागर जी की आत्मकथा “गुज़रे हुए लम्हे “को आप अटूट बंधन.कॉम पर एक श्रृंखला के रूप में पढ़ पायेंगे |

गुज़रे हुए लम्हे -परिचय

गुजरे हुए लम्हे -अध्याय 1

गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 2

गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 3

गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय चार

गुज़रे हुए लम्हे अध्याय -5

गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 6

गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 7

गुजरे हुए लम्हे -अध्याय-8

गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 9

गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय -10

गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 11

गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 12

गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय 13

गुज़रे हुए लम्हे -अध्याय -14

अब आगे ….

 

गुजरे हुए लम्हे (परिशिष्ट)अध्याय 15

2019 से आज तक

एक ख़ुशी और दुख अनेक

 (कोरोना- काल)

‘गुजरे हुए लम्हे’ के अंत में मैंने लिखा था यह जीवन यात्रा है… जब तक यात्रा समाप्त नहीं होती इसमें पन्ने जुड़ते रहेंगे। अंतिम अध्याय में मैंने महत्वपूर्ण यात्राओं का वर्णन किया था। अब हम 2019 में आ जाते हैं। मैं इस वर्ष आगरा गई थी जहाँ की कवि गोष्ठी का मैंने विवरण पहले दिया था।

इसी साल हमारी शादी की पचासवीं वर्ष  गाँठ होने वाली थी।  नेहा ने मुझसे पूछा कि हम कहीं घूमने जाना चाहेंगे या एक पार्टी करें। इन्हें तो किसी भी अवसर पर कोई जश्न मनाना इतना पसंद नहीं है इसलिये उसने मुझसे ही पूछा। घूमने जाने के लिये उस समय कमर का दर्द इजाजत नहीं दे रहा था अतः पार्टी करने का ही सोचा । वैन्यू और बाकी चीज़ों पर विचार करने के लिये बहुत समय था पर आगरा में मैंने पूनम के साथ मिल कर मेहमानों की विदाई में देने वाले उपहार की योजना बना ली।  मुझे हमेशा से ही ख़रीदकर देने की बजाय हाथ की बनाई या ख़ुद से डिज़ाइन की हुई चीज़ें देना  पसंद है।  हमने एक कलैंडर बनाया जिसमें अलग अलग फूलों पर मेरे लिखे हुए दोहे और उसी फूल के चित्र थे। 12 दोहे 12 फूलों के चित्र 12 महीनों में।

जैसी कि उम्मीद थी पहले तो ये  थोड़ा नाराज़ हुए  कि ये सब करने की क्या ज़रूरत है फिर थोड़ा समझाने पर मान गये और कहा कि पार्टी सादगी से हो। मुझे भी सादगी ही पसंद है। दोबारा शादी की रस्में पूरी करने की नौटंकी तो मुझे भी पसंद नहीं है। बस एक बार मित्रों और परिवार को इकट्ठा करने का बहाना चाहिये होता है। पार्टी में बस केक काटा जायेगा और कुछ खास नहीं होगा यह निश्चित हो गया।

पहले सोचा था अपूर्व की सोसायटी के कम्यूनिटी हॉल को बुक कर दें पर वह कई जगह से बहुत दूर पड़ता, इसलिये CSOI में ही करवा दिया वहाँ मेरी पहली किताब  ‘मैं सागर ने एक बूंद सही’ का अनावरण भी हुआ था।  स्थान चयन कर लेने के बाद तारीख़ तय करके बुकिंग कराना भी ज़रूरी था 12 दिसंबर की जगह हमने 15 दिसंबर की तारीख़ तय की क्योंकि रविवार को अधिकतर लोगों को आने में सुविधा होती है।

बीबी को तो सर्दियों में आना ही था उनको पहले से ही सूचित कर दिया तो उन्होंने उसके ही अनुसार आने का कार्यक्रम बनाया। उनके साथ नीरू को भी आना था। सब से पहले इन्हीं तीनों के आने की पुष्टि हुई। बाकी लोगों का तो अंतिम क्षण तक ही हाँ और न  चलता रहा।लोगों को कहाँ ठहराना है इसका इंतज़ाम तो तब होता जब पता होता कि कौन कौन आ  रहा है। बीबी को तो घर में ही ठहरना था उनकी तारीख़ भी पक्की थी। अंत में हमें बगल वाले और एक ऊपर वाले फ्लैट की चाबी मिल गई वे लोग दिल्ली से बाहर गये  हुए थे। अत: सब के रहने की व्यवस्था अच्छी हो गई।

आगरा से सभी  आये थे लखनऊ से आशा भाभी और अनुज आये बड़ौदा से चारू सुखदेव भी आये यद्यपि वो शाम को चले गये। पार्टी में शिरकत नहीं कर सके बस सब से मिल लिये। इनके परिवार से नीता और स्वीटी शामिल हुए। दिनेश भैया और उमा दीदी तो यहीं थे। जयश्री की कमी खली वह लंदन गई थी। शशि बीबी के परिवार से कोई नहीं आया, लोकेश भाई साहब भी नहीं आ पाये थे। बीबी की ससुराल के लोग और नेहा के मायके के लोग भी शामिल हुए। पार्टी में क़रीब 50 लोग थे और घर में 20 के लगभग रिश्तेदार ठहरे थे। काफ़ी अच्छा माहौल रहा सब ने मज़े किये। पार्टी में कुछ लोगों ने पुरानी यादें ताज़ा की , कोई पार्टी गेम नहीं रखा था बस एक लकी डिप था।

रात को जब हम लौट रहे थे तभी पता चला था कि  CCA, NRC के विरोध में दिल्ली में कुछ थे हिंसक घटनायें हुई है। धीरे धीरे ये हिंसक विरोध देश भर में उग्र होते चले गये। दिल्ली में शाहीनबाग़ में महिलाओं ने सड़क को घेर लिया और दिल्ली में काफ़ी बड़े स्तर पर दंगे हुए। देश की शांति व्यवस्था बुरे दौर में थी।

देश की राजनीति के साथ पारिवारिक स्तर पर और पड़ौस के स्तर पर भी 2019 में 15 दिसंबर के बाद बुरा वक्त चल रहा था। बीबी वापिस चली गईं थी पर उनके वापिस पहुँचने के दो दिन बाद ही सूचना मिली कि उनका  बड़ा पुत्र जो केवल 62 साल का था अचानक चल बसा। उसकी तो मामूली सी बीमारी की भी कभी ख़बर नहीं आई थी। रिटायरमैट लेने के बाद वह अपनी पत्नी के साथ पर्यटन पर ही रहता था चाहें देश हो या विदेश।  बीबी की  रोती  हुई सूरत  देख कर गले लगाने का मन होता था पर….. मजबूर थे। मेरा अशोक से बचपन का नाता था… मेरे से सिर्फ 9 साल छोटा  था बचपन में उसके हाथ बहुत खेली थी। यहाँ घर में मातम छा गया था। बीबी भाई साहब के दुख का हम अंदाज भी नहीं लगा सकते, परन्तु दोनों ने ही अपने दुख के साथ जीना सीख लिया और ख़ुद को सामान्य जिंदगी में जल्दी ढाल लिया।

 

अशोक के जाने से एक दिन पहिले ही हमारी सोसाइटी में मेरे बेडरूम की खिड़की के पीछे ज़ोर से धम्म की आवाज़ आई। तनु को लगा कोई जैकट गिरी है, आवाज़ जोर की थी हमने बाल्कनी में जाकर देखा हमारे ही ब्लाक लड़का था 20, 22 साल के क़रीब का था जो छत से गिरा/ कूदा था। उसकी मां मेरी परिचित हैं। अस्पताल ले गये पर वहाँ वह मृत घोषित कर दिया गया। माता पिता तो दुर्घटना मानते हैं। आत्महत्या थी या दुर्घटना इसका कोई पक्का आधार नहीं मिला परन्तु हत्या या साज़िश नहीं थी। इतने करीब से यह दुर्घटना देखकर हम काफ़ी दुखी थे। अशोक हमारा अपना था  1 और 1 दो दुख दो नहीं 11 बन गये थे।  कहानी यहीं ख़त्म नहीं हुई। नववर्ष की पार्टी  में सामने वाली सोसाइटी का एक युवक पार्टी से लौटा ही नहीं उसकी लाश दो दिन बाद नाली में मिली। हत्या थी या नशे में नाली में गिरा सी सी टी वी से स्पष्ट ही नहीं हुआ। बहराल 2019 का जाना और 2020 का आना अच्छा नहीं रहा।

     कुछ सालो से इनके मुंह में अजीब किस्म के छाले या ज़ख्म थे जो कसी तरह ठीक नहीं हो रहे थे। डैंटिस्ट, ई.एन. टी. मैडिसन वाले डाक्टर भी जब कोई इलाज नहीं कर पाये तो होम्योपैथिक इलाज किया,किसी के कहने पर दो महीने ग्लूटन फ्री भोजन भी लिया परन्तु ज़रा सा भी लाभ नहीं हुआ। अंत में औनकौलौजिस्ट को दिखाया। उन्होंने कहा कैंसर तो नहीं है, पर इलाज वही करेंगे। इलाज कोई खास नहीं था कुछ महीने निगरानी में रखने के बाद सर्जरी से सारे ज़ख्म खुरच कर निकालने थे। इस प्रक्रिया में एक तरफ़ के तीन दाँत निकालने पड़े। यह सर्जरी हमारी शादी की पचासवीं वर्षगाँठ के बाद अपने पूर्वनि्र्धारित समय पर दिसंबर के अंतिम सप्ताह में सफ़र जंग अस्पताल में हुई।  सफदरजंग अस्पताल से दिनेश भैया  कुछ साल पहले हैड आफ द डिपार्टर्मैंट सर्जरी रिटायर हुए थे इसलिये उन्होंने वहाँ ही यह सर्जरी करवाना उचित समझा।  सफदरजंग अस्पताल में कोई सुधायें तो हैं  नहीं सिर्फ एक दिन रखकर छुट्टी मिल गई। वहाँ भी रहना तो अपूर्व ही को था। आई.सी.यू.की तो लौबी भी रात को सोने लायक नहीं थी। यहाँ दिनेश भैया सब  को जानते थे इस लिये डाक्टर ने अपने कमरे की चाबी दे दी और ये डाक्टर के केबिन में सो  गया। दो दिन नाक की नली से भोजन देना पड़ा फिर कुछ दिन  पतली चीज़े  और धीरे धीरे सामान्य खान खाने लगे। जिन डाक्टर ने यह सर्जरी की थी वे तभी दो दिन  बाद रिटायर हो रहे थे। रिटायर होने के बाद उन्होंने धर्मशिला अस्पताल के औनकौलौजी विभाग में कार्यभार संभाल लिया और फौलो  अप में हमें सुविधा रही। कोविड की वजह से अब तक जाकर दाँत जो निकाले गये थे उनका डेंचर  नहीं बनवा पाये हैं।

2020 में शाहीनबाग़ तो उग्र था ही दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे हुए।  हमारी  तरफ़ तो शांति  थी पर वातावरण में तनाव तो तैर ही रहा था। इसी बीच कोरोना जी विदेश से आ बसे जबकि आये तो अनचाहे मेहमान की तरह ही थे।  कोरोना जैसा संकट भारत ही नहीं विश्व पहली बार देख रहा था। वैज्ञानिकों और चिकित्सकों  के पास भी इलाज और वायरस की विशेष जानकारी नहीं थी, मीडिया भी दिन रात इसी पर लगा रहता था। एक अप्रत्याशित भय से हर एक जूझ रहा था। मार्च 2020 की 22 तारीख़ को देश भर में ताला  बंदी हो गई। ऐसी ताला  बंदी जो कभी नहीं हुई अचानक आवश्यक सेवाओं के अलावा सभी कुछ बंद रहा। रेल के इतिहास में पहली बार रेल सेवायें  बंद थी।

मोदी के आह्वान पर एक बार पूरे देश ने एक साथ एक बार घंटी और तालियाँ बजाकर ध्वनि की और एक बर अंधेरे में दीप जलाकर कोरोना योद्धाओं को प्रतीकात्मक तरीक़े से धन्यवाद कहा और जनता को अहसास दिलाने की कोशिश की कि इस मुश्किल घड़ी में हम सब साथ हैं। इन दोनों अवसरों पर बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया और मोदी विरोधियों ने इसे अंधविश्वास और  टोटका कहकर इसका मजाक उड़ाया।

अपूर्व और नेहा नौएडा में अपने  फ्लैट में रहने लगे थे। आते जाते रहते थे और ख़ुश थे तो  हम भी ख़ुश थे। अपनी गृहस्थी को अपनी  तरह से  सजाया संवारा था परन्तु लाकडाउन के कारण आना जाना नहीं हो पा रहा  था हम लोगों को मिले दो ढाई महीने हो चुके थे।  घर के काम हम तीनों मिलकर कर रहे थे पर मैं थक  जाती थी और कमर और घुटनों का दर्द  बढ़ रहा था। मैं तो यही सोच कर बैठी थी कि जैसे ही सरकार अनुमति देगी मैं अपनी काम वालियों को बुला लूँगी।

इसी बीच हमारी सोसायटी में दो कोविड केस हुए। पहली दफ़ा तो जबरदस्त  सीलिंग हुई थी। न सोसाइटी के गेट से बाहर जा सकते थे न कोई आ सकता था। मैंने अपूर्व के आने की इजाजत ले ली थी पर नौएडा बार्डर उत्तर प्रदेश सरकार ने सील कर रखा था।  दूसरे केस  के समय तक दिल्ली सरकार ने नीतियों में बदलाव कर दिया था। एक ही परिवार के तीन सदस्य जब हल्के लक्षणों के साथ पौसेटिव पाये गये तो सीलिंग नहीं हुई और वे तीनों होम क्वारंटाइन हो गये। कुछ दिन बाद तीनों ठीक भी हो गये।

यद्यपि सरकार ने अनुमति दे दी थी कि घरेलू सहायक सहायिकायें काम पर आ सकते हैं पर सोसायटी की आर. डब्लू. ए किसी सराकार से कम नहीं होती, उनके अपने कानून होते हैं।  अतः काफी बहस के बाद उन्होंने एक सहायिका को एक समय काम करने की इजाजत दी। धीरे धीरे सब प्रतिबंध हट गये और सब अपनी मर्जी से काम करवाने के लिये स्वतंत्र हो गये हैं। कोविड शीघ्र जाने की संभावना तो दिख नहीं रही थी इसलिये खुद को बेवजह थका कर कोई लाभ नहीं दिख रहा था।   हाँ हाथ धोने, मास्क लगाने, सैनिटाइज़ करने और दो गज़ की दूरी बरतने जैसी सावधानियाँ बरतना तो जरूरी था, जो हमने पूरी ईमानदारी के साथ करने की कोशिश की। समय बीतने के साथ उसमें कोताही नहीं की। कोरोना-काल कब तक चलेगा कोई नहीं जानता। लाकडाउन  के बाद अनलाक की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी,परन्तु नौएडा की तरफ से उत्तर प्रदेश सरकार  ने बार्डर नहीं खोला था। अतः अपूर्व और नेहा अभी तक भी नहीं आ पाये थे।

कोविड के संक्रमण काल मे किसी को छींक भी आ जाये तो ख़तरे की घंटी लगती है। कोविड के शुरुआती दौर में अपूर्व को बुखार आया। दो तीन दिन रहा, हम बेहद चिंतित हो गय थे, कोविड का टैस्ट भी करवाया , नैगिटिव आने पर तसल्ली हुई। ये अपने ही घर में क्वारंटाइन रहा।  अभी कुछ दिन पहले मेरा भी गला ख़राब हुआ और हल्का बुख़ार भी हुआ। इन्होंने तो ये समझिये मुझे कमरे में बंद ही कर दिया था। मुझे भरोसा था कि ये कोविड नहीं होगा फिर भी ऐंटीबायटिक तथा कोविड में दिये जाने वाले टौनिक डाक्टर की सलाह पर मुझे दिये गये। कोविड टैस्ट कराने से पहले ही मैं ठीक हो गयी। यह बीमारी दहशत का दूसरा नाम है।

कोरोना काल के ये दिन कट रहे थे। कभी कभी मैं अपूर्व के कमरे में सो जाती थी क्योंकि वहाँ हार्ड बैड है, जो मेरी कमर के लिये बेहतर है, पर इन्हें थोड़ा मुलायम गद्दे पसंद है। दोनों कमरे आमने सामने हैं। 3 जून की सुबह लगभग 4 बजे के पास इनकी ज़ोर ज़ोर की आवाज़ सुनाई दी जो कि कराहने की भी नहीं थी बहुत अजीब सी थी। मैंने जाकर देखा तो आवाज़ के साथ ज़ोर ज़ोर से सर पटक से रहे थे। आँखें ऊपर चढ़ रहीं थी। कुछ प्रतिक्रिया नहीं दे  पा रहे थे। मैंने मम्मी का स्ट्रोक देखा था मुझे उसी के लक्षण लगे। दिल की बीमारी का कोई लक्षण नज़र नहीं आया।  मैं घबरा तो रही थी पर संतुलन बनाये रखा । तनु को जगाया। तनु ने पड़ौस में फोन किया ,एक डाक्टर आ  गये। उन्हें बता दिया था कि कोविड का कोई लक्षण नहीं है। दिनेश भैया को वीडियो काल पर इनकी हालत दिखा दी थी। अपूर्व को भी बता दिया। हमारे पड़ौसी ऐम्बुलैंस का इंतज़ाम करते रहे। दिनेश भैया और अपूर्व ने तय किया कि नौएडा के सैक्टर 71 वाले कैलाश अस्पताल में ले जायेंगे क्योंकि उस समय तक वहाँ कोविड वार्ड नहीं था दूसरे  वहाँ के एक डाक्टर को दिनेश भैया जानते  थे।

अस्पताल जाने से पहले ही इनकी हालत में सुधार आ गया था । थोड़ा बहुत बोल पा रहे थे। अपूर्व आया तो उसे पहचान लिया । अपूर्व के आने से पहले क्या हुआ यह पूरी तरह भूल चुके हैं।  उस समय ख़ुद ही अपने मडिकल पेपर्स कहाँ रखे हैं बताया। असपताल पहुँचते पहुँचते तबियत सुधर गई थी पर जो हुआ था काफ़ी डराने वाला था।  पेस मेकर की वजह से एम. आर आई. नहीं हो सकता था इसलिये सी.टी. स्कैन हुआ। सीटी स्कैन में कुछ नहीं निकला। डाक्टरों ने माना कि संभवतः उस समय मस्तिष्क में कोई क्लौट बना जो तुरंत घुल गया। इसका इलाज शुरू हुआ और इन्हें  आई. सी.यू में रखा गया। कोविड टैस्ट नैगेटव आया यह तसल्ली थी। पेस  मेकर की रिकारडिंग देखी गई तो पता चला कि उस दिन सुबह जिसे  सी़ज़र समझा जा रहा था उस समय दिल की धड़कन असमान्य रूप से बड़ी हुई थी, इसलिये अब हृदय विशेषज्ञ को दिखाकर एनजयोग्राफ़ी की बात हुई।

जब बात हृदय विेशेषज्ञ की हो तो एसकौर्स फौर्टिस में दिखाना सही लगा। कोविड समय वहाँ के क्या हालैात पता किया।  अपूर्व के एक मित्र की मीडिया में होने की वजह से जान पहचान थी तो उन्होंने लेने के लिये हाँ तो कर दिया पर उस समय कोविड के मरीज़ों  की कतार में इतनी  ऐंम्बुलैंस खड़ी थीं कि अंदर लेने में 2 घंटे लग गये होंगे।  इनके साथ अपूर्व और नेहा थे।  मैं और तनु घर पर ही थे। एमरजैंसी से आई.सी.यू तक पहुँचते पहँचते रात के दस बज गये थे। थकान के कारण या हाथ में इजैक्श्न के लिये लगे कैनुलामें सूजन की वजह से इन्हे बुख़ार हो गया था इसलिये फिर से कोविड टैस्ट किया गया, इस बार भी नैगिटिव ही आया।  रिपोर्ट आने के अगले दिन ऐन्जियोग्राफ़ी हुई। एन्जियोग्राफ़ी में मुख्य धमनियाँ ठीक थीं पर एक दो जगह धमनियों मे 80% संकुचन पाया गया। स्टैंट की या सर्जरी की ज़रूरत नहीं थी दवाइयों से ही उसका इलाज होगा यह बताया गया।

 कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई है। अब सवाल यह था कि उस समय दिल की धड़कन क्यों अचानक बढ़ गई उसके लिये  केस दूसरी टीम के पास रैफ़र किया गया। सुपर स्पैशिलिटी का ज़माना है।  हमें बताया गया था कि पेस मेकर केवल दिल की धीमी गति को बढ़ा सकता है यदि किसी कारणवश गति तेज़ हो जाये तो उसे कम करना पेस मेकर के लिये संभव नहीं होता ।इतनी तेज़ हृदयगति दोबारा कभी न हो इसके लिये एक और यंत्र होता है जिसे इम्पान्टेबल कार्डियो वैस्कुलर डिफाइब्रुएटर (आई.सी.डी.) कहते हैं लगाना पड़ेगा। ये बहुत ज़रूरी था 11 जून को यह यंत्र सीने में लगाने की सर्जरी कुशलतापूर्वक हो गई और अगले दिन अस्पताल से छुट्टी मिल गई परन्तु  रक्त जाँच से एक और बात सामने आई कि गुर्दे भी कुशलता से काम नहीं कर रहे हैं। वहीं पर गुर्दों के विशेषज्ञ को दिखाना था। कई जाँच के बाद पता चला कि गुर्दों की कार्य क्षमता कम हो गई है उसे वापिस तो नहीं लाया जा सकता पर दवाइयों और परहेज़ से वहीं का वहीं रोका जा सकता है।

 

जितने दिन ये अस्पताल में रहे आई सी .यू. में ही रहे। कमरे में लाने के अगले दिन बाद ही छुट्टी मिल गई थी क्योंकि कोविड के मरीज़ लगातार बढ़ते जा रहे थे। अस्पताल के नियम भी बहुत सख्त थे एक ही अटैंडैंट पूरे समय रहना था जबकि आई.सी.यू के मरीज के अटैडैट के लिये कोई कमरा नहीं होता दिन रात 10,12 दिन अस्पताल की लौबी में रहना आसान नहीं था फिर कोविड का माहौल……….. मरीज  को अटैडैट से मिलना भी नहीं था फिर भी अस्पताल में उसकी मौजूदगी ज़रूरी थी। किसी तरह बात करके अपूर्व ने रात को घर आने की अनुमति ले ली थी। यह वहाँ कालका जी में अपने एक दोस्त के यहाँ रहने चला जाता था। कोविड के माहौल में जहाँ लोग एक दूसरे की मदद करने से कतरा रहे थे इसके दोस्तों ने बहुत ख़याल रखा, रोज़ अस्पताल जाने वाले को दस दिन प्रेम से घर में रखा।  परिवार के लोगों में दिनेश भैया साथ रहे। मेरी मित्र व पड़ौसी ज़रीना ने जब चाहें तब अपने ड्राइवर को भेजा, पहले भी और बाद में चैक अप के लिये भी। अपूर्व तो बेटा है दिनेश भैया भाई हैं परन्तु अपूर्व के दोस्त और ज़रीना की मदद ने हमें अभिभूत कर दिया। धन्यवाद  और आभार कहना उनकी सहयोग और स्नेह की तौहीन करना लगता है।

70 वर्ष की आयु तक इनकी एक भी दवा नहीं थी 78 से पहले ही दिन भर में दस  बारह दवाइयाँ लेनी पड़ रही हैं। जल्दी ही इन्होंने अपनी दवाइयों की ज़िम्मेदारी ख़ुद संभाल ली थी। कोविड की तो अभी वैक्सीन नहीं है  परन्तु डाक्टरों  ने हैपिटाइटिस बी और निमोनिया का टीकाकरण करवाने की सलाह दी है जिसके इंजैक्शन कुछ कुछ अंतराल बाद जनवरी तक लगने है। पहले हर मैडिकल स्टोर पर इंजैक्शन लगाने को कोई मिल जाता था़ पर आजकल कोविड की वजह से कोई नहीं मिलता। दिनेश भैया आकर लगा जाते हैं।  अन्यथा किसी अस्पताल तक जाना पड़ता। चैकअप के लिये भी पास के धर्मशिला अस्पताल में अच्छे डाक्टर मिल गये हैं, जिनपर दिनेश भैया को भरोसा है। दो दिन पहले चैक अप के लिये तो ये ख़ुद ही ड्राइव करके  चले गये थे। अब स्वास्थ्य ठीक है। बहुत बुरा समय था जो बीत गया।

यह गंभीर बीमारी बिना कोई निशानी छोड़े चली गई मैं इसे ईश्वर की बहुत बड़ी दया मानती हूँ। यद्यपि शारीरिक स्वास्थ्य ठीक होने लगा था पर इस बीमारी ने इनके पूरे व्यक्तित्व को हिला कर रख दिया था। शुरू शुरू में नींद नहीं आती थी बेचैनी बहुत रहती थी। असल में उम्र के हिसाब से इनकी फिटनैस चाल ढाल काफ़ी अच्छी थी। घर की सारी ज़िम्मेदारी इन्होंने उठाई हुई थी। मुझे और बच्चों को एक ऐसी छत्र छाया में रखा था कि हम सब ख़ुद को बहुत महफूज़ समझते थे। परिवार की रीढ़ की हड्डी में हल्का सा क्रैक आने से रीढ़ की हड्डी ही बेचैन थी।धीरे धीरे सब फाइनैंस के मामले टैक्स के मामले बच्चों को समझाने शुरू किये वसीयत बनाई तब जाकर कुछ सुकून मिला।

अब सेहत पहले से अच्छी है दवाइयों का साथ तो अब उम्र भर का है…..एक अच्छी बात है कि अब मुझे बैड टी मिलने लगी है हमेशा का तरह…

 

बीनू भटनागर

19 अगस्त 2020

 

कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई है मौक़ा लगा तो फिर मिलेंगे…

बीनू भटनागर

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