जरूरी है प्रेम करते रहना – सरल भाषा  में गहन बात कहती कविताएँ

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जरूरी है प्रेम करते रहना

 

कविताएँ हो कहानियाँ हों या लेख, समीक्षा  सरल भाषा में गहन बात कह देने वाली महिमा पाठकों को हमेशा पहले से बेहतर,  नया  लिख कर चौंकाती रही हैं | सबकी प्रिय, जीवट, कलम की धनी साहित्यकार पत्रकार महिमा श्री का नया कविता संग्रह “जरूरी है प्रेम करते रहना” अपनी अलहदा कविताओं के माध्यम से बहुत जल्द ही पाठक को अपनी गिरफ्त में ले लेता है | हर कविता आपको रोकती है | एक गहन चिंतन मन में शुरू हो जाता है | क्योंकि हर कविता गहरी संवेदना से निकल कर आरी है और  उनमें एक जीवन दर्शन है |

 

जब महिमा किताब का शीर्षक “जरूरी है प्रेम करते रहना” रखना चुनती हैं, तब वो चुनती हैं जिजीविषा उन तमाम विपरीत परिस्थितियों के विरुद्ध जो हिम्मत और हौसला तोड़ देती है .. ये प्रेम, जीवन का राग है | बुरे में से अच्छा बचा लेने की ख्वाहिश  भर नहीं है जीवन जीने का सकारात्मक दृष्टिकोण है | तमाम विद्रूपताओं के बीच जीवन के पक्ष में युद्धरत सेनानी का जीवन को देखने का नजरिया कभी सतही नहीं हो सकता, वो गहनता  एक -एक  शब्द में एक -एक कविता में दृष्टिगोचर होती है |

 

जरूरी है प्रेम करते रहना – सरल भाषा  में गहन बात कहती कविताएँ

 

अपनी भूमिका में वो लिखती हैं, “पीड़ा से एक रागात्मक संबंध इस कदर हो गया था कि लगता ही ना था  कि इससे आजाद हो पाऊँगी |इस दौरान सीखा की कठिन परिस्थितियों से जीवन में मुँह मोड़ने के बजाय “जरूरी है प्रेम करते रहना” ये भव पाठक को पूरे संग्रह में दिखता है |

 

कविता संग्रह तीन खंडों में हैं | हर खंड एक खूबसूरत कोट से शुरू होता है |जैसे  पहला खंड काफ्का के कथन

“हम मरने के लिए नहीं जीने के लिए अभिशप्त हैं”|

दूसरा खंड स. बी. फग्रयुसन के कोट

“प्रेम संवेदना से ज्यादा कुछ नहीं पर प्रेम प्रतिबद्धता  से अधिक है|”

तीसरा “अकुलाहटें मेरे मन की”

कविताओं को विभिन्न नजरिए से पढ़ते हुए महिमा की कविताओं पर अपने विचार रखने के लिए मैंने स्वयं उन्हें कुछ खंडों में रखने की कोशिश की है | जिन पर क्रमवार अपने दृष्टिकोण को साझा करना चाहूँगी |

महिमाश्री  की कविताओं में जीवन की साँझ

जरूरी है प्रेम करते रहना

हम मनुष्य हैं, टूटते हैं, जुडते हैं, फिर टूटते हैं और फिर फिर जुडते हैं | कई बार दुख उदासी हावी हो जाती  है पर उनसे जूझ कर निकलना ही जीवन है | जिजीविषा का अर्थ ये नहीं की हर समय सकारात्मक रहना है बल्कि तमाम निराशाओं  का मुकाबला कर सकारात्मकता चुनना है | ऐसे में जीवन की साँझ के दर्शन कई कविताओं में होते है | अगर अंधेरा ना हो तो उजाले का महत्व क्या है ? उजाले की राह जाने से पहले इस अंधकार से  रूबरू होना भी जरूरी है | इन कविताओं में कहीं कहीं T. S. Eliot की गहनता देखने को मिलेगी |मुझे Mollow Men की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं …

Is it like this
In death’s other kingdom
Waking alone
At the hour when we are
Trembling with tenderness
Lips that would kiss
Form prayers to broken stone.

संग्रह की पहली कविता “कर्क रोग से लड़ते हुए” में ही उस गहनता के दर्शन हो जाते हैं |

जब हम जीत के करीब होता हैं तो अक्सर नई चुनौतियाँ सामने आ जाती हैं |

 

वो कहती हैं..

“धारा के विपरीत चलने की ख्वाहिशों ने कुछ अलग करने का

हौसला तो दिया

पर सोचा ही था अब इस पर साथ चल कर देखते हैं

खुद धारा ने रास्ता बदल लिया”

 

आदमी एक पर ख्वाहिशें अनेक हैं | कब पूरी हुई हैं किसी की सारी तभी तो कविता “ख्वाहिशों के दिए “में वो लिखती हैं ..

“ख्वाहिशें हजार वाट की

आँखों में जलती हैं

जैसे गंगा में जलते हैं असंख्य दिए”

 

कविता “विकलता एक श्राप है में जब वो लिखती हैं, “टूटे हुए पंख किताबों में ही अच्छे लगते हैं” तब वो शिकस्त झेले हुए इंसान की पीड़ा व्यक्त करती हैं |

 

महिमाश्री  की कविताओं में आशा का उजाला

जरूरी है प्रेम करते रहना

                          निराशा को परे झटक कर शुरू होता है एक युद्ध, आस-निराश के बीच में वहाँ  से कविताएँ सँजोती हैं जीवन के कतरे जिन्हें गूथ कर तैयार होता है आशा का पुष्प हार …तभी तो हाल नंबर 206 कविता में कहती हैं

हॉल नंबर 206 के बेड के सिरहाने

जिंदगी सुबह की धूप सी पसरने लगती है

आहिस्ता .. आहिस्ता

 

“मेरी यायावरी” में वो कहती हैं ..

“ढूँढना है मुझे फ़ानी हों से पहले

स्वेद बूंदों के सूखने का रहस्य

जीवन चाहे दो पल का शेष हो, दो बरस काया दो युगों का  मृत्यु अवश्यंभावी है | दिक्कत ये नहीं है जी जीवन कितना शेष है, पीड़ा ये है की जो जीवन हम जी रहे हैं उसमें जीवन कितना था |  “विदा होने स पहले” कविता पढ़ते हुए मुझे बेन जॉनसन की कविता “A lily of a day” याद आ गई | जीवन जीवंतता से भरपूर होना चाहिए | इस कविता  में महिमा  जीवन के अंतिम क्षण तक कुछ सीखने की बात करती हैं | यही जीवन जीने का सही तरीका है ..

जीवन वीथिका में शेष बचे वर्ष

के झड़ने से पहले

सीख लेना है मल्लाहों के गीत

अंकित कर लेना है

अधर राग पर कुछ नाम

जिन्हें पुकार सकूँ

विदा होने से पहले

मेरी  यायावरी हो या “विदा होने  से पहले” दोनों कविताएँ जीवन के पक्ष में खड़ी कविताएँ हैं |

 

महिमा की कविताओं में प्रेम

जरूरी है प्रेम करते रहना

महिमा की कविताओं में प्रेम किसी किशोरी का दैहिक आकर्षण नहीं है | वो परमात्मा से आत्मा से एकीकार है | वो केवल स्त्री पुरुष के प्रेम की ही बात नहीं करती अपितु उनके प्रेम राग में बहन भाई और तमाम रिश्ते समाहित हैं | अब “दीदिया के लिए” एक ऐसी कविता है जिसमें बहन के प्रति उमड़ते हुए प्रेम की सहज धारा को महसूस किया जा सकता है | अधिकांशतः छोटी बहनों ने बड़ी बहन के विदा हो जाने पर यह महसूस किया होगा | कविता के सौन्दर्य को बढ़ाते रूपक को देखिए, यहाँ  बेटी को मायके का  वसंत कह कर संबोधित किया है जिसके विदा  होते ही पतझड़ आ जाता है ..

 

“इधर आंधी आई थी बड़ी तेज

पतझड़ के साथ

वसंत तुम्हारे आँचल में हल्दी चावल के संग जो चला गया था”

 

मन रे काहे ना धीर धरे में वो कहती हैं ..

अनुपस्थिति उपस्थिति से पहले आती है

जिसकी अनुपस्थिति सबसे ज्यादा होती है

वह होता है हर समय उपस्थित “

 

“तुम्हारा मौन” प्रेम का कितना अनुपम रूप प्रस्तुत करती है  ..

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सुनना चाहती हूँ तुम्हें

और

मुखर हो जाती हैं

दीवारें, कुर्सियाँ..

टेबल, चम्मच,

दरवाजे

 

महिमाश्री  की कविताओं में स्त्री

भरमाओ मत देवता बनने का सावंग बन करो साथ चलना है तो चलो देहरी सिर्फ मेरे लिए हरगिज नहीं ...

 

महिमा की कविताओं में स्त्री दबी घुटी स्त्री नहीं है वो अपने हक की बात करती सवाल उठाती स्त्री है| दैहिक  सौन्दर्य की जो परिभाषा पुरुष गढ़ता है, और स्त्री जीवन पर्यंत ढोती है यह शोषण का अधिकार भी उसने स्वयं दिया है |.. महिमा उससे इतर विराट सौन्दर्य की बात करती हैं जो अपनी समग्रता में है | देवता और स्वामी बनने के स्थान पर जीवन के सफर में बराबर के साझीदार बनो ..

“भरमाओ मत

देवता बनने का स्वांग बंद  करो

साथ चलना है  तो चलो

देहरी सिर्फ मेरे लिए

हरगिज नहीं …”

 

सुंदरता देखने वाले की आँखों में होती है | पर दूसरों के लिए यही आँखें ये प्रतिमान बनाती चलती हैं | बाजार ने स्त्री सौन्दर्य की परिभाषा गठित कर स्त्री को सबसे ज्यादा छला है | “गढ़ने होंगे सौन्दर्य के नए प्रतिमान” में वो  कहती हैं ..

छाती के बिना भी वो स्त्री ही है

आकार बदल जाने से रिश्ते नहीं बदलते

ममत्व कहती का  मोहताज नहीं कोई उसे बात दो जरा

बालों के बिना पहले से भी ज्यादा खूबसूरत हो गई है

सौन्दर्य के प्रतिमान तो गढ़े  जाते हैं |”

 

महिमाश्री  की कविताओं में समकाल

वो कवि ही क्या जिसकी कलम समकालीन अव्यवस्थाओं पर ना चले | महिमा गहनता  से समकाल की रग पकड़ती हैं और  सवाल करती हैं ? चाहे वो ओ यजीदी  बच्चियों” हो या लॉक डाउन का समय “लोकतंत्र बनाम भीड़तंत्र” हो या “बाल दिवस” में भीख माँगते बच्चे हों या “सोशल मीडिया विमर्श” हो |वो कहती हैं, भीड़, भीड़ का शोर करने वालों ये भीड़ कौन है , हमीं तो तो हैं | हम भीड़ से शिकायत करते हैं पर हम खुद ही भीड़ बन जाते हैं..

“दूर से देखती हूँ

 कहती हूँ

ओहो, देखो तो जरा कितनी भीड़ है

फिर मैं  भी भीड़ बन जाती हूँ”

 

महिमाश्री की कविताओं में आध्यात्म

जरूरी है प्रेम करते रहना

 

उम्र को कुतर रहासमय का चूहा

नियति के हाथों में है जिंदगी की बिसात

महिमा श्री की कविताओं में आध्यात्म सहज ही आया है | जैसे वो उनके जीवन का एक अंग हो |जो लोग महिमा को निजी तौर पर जानते हैं वो उनके इस आध्यात्मिक अवगुंठन से परिचित हैं |जो नहीं जानते उनको इन रचनाओं से उनके आध्यात्मिक मर्मज्ञ होने के दर्शन अवश्य होंगे |

कविता बुद्ध भीतर ही मिलेंगे” में वो कहती हैं सुजाता अंतर्मन की पुकार है, अपनी खीर भी खुद बनानी पड़ेगी कहते हुए वो कहती हैं कि बुद्ध को बाहर खोजना व्यर्थ है आनंद और शांति प्राप्त करने के लिए आत्म चेतना  को जागृत करना ही एक मात्र रास्ता है |

“मोक्ष”कविता में वो भारतीय दर्शन के अद्वैत वाद से प्रभावित दिखती हैं | “मन भरता  वैराग का आलोक” में वो कहती हैं किसी को प्रेम  करने से पहले जरूरी है खुद से प्रेम करना | ये बहुत ही महत्वपूर्ण बात है, असली प्रेम वही से उपजता है जब खुद का प्याला पूरा भर हो वरना प्रेम के नाम पर व्यक्ति ऐसा व्यक्ति ढूँढता है जो उसे पूर्ण कर सके | अपेक्षाओं की बुनियाद पर रखा ये प्रेम कभी पूर्ण नहीं होता | आगे लिखती है ..

“एक प्रेम ही है जो बचा ले जाती है

जरूरी है प्रेम करते रहना”

“अजपा गीत” में वो सुख- दुख और बार बार देह धारण करने क्रम को जर अमर आत्मा के उस चक्रव्यूह में फंसे होने की बात कहती जिसे कोई अभिमन्यु भेद नहीं पाया है | एक सुंदर रुपक | इसी कविता में आगे वो अश्वत्थामा का रुपक ले इस मृत्यु लोक में जीव के त्रिशंकु बन पीड़ा के भोगने की बात करती हैं ..

 

अश्वत्थामा हूँ मैं

त्रिशंकु बनी जन्म -मरण की पीड़ा के बीच फँसी

किसी श्राप को जीती

धरती अम्बर के बीच लटकी

अनित्य -अव्यक्त चराचर जगत को भोगती

प्रतीक्षा के अंतहीन राग को सुनती

सीख रही हूँ अखिल विश्व के चैतन्य गीत

अंत में मैं यही कहना चाहूँगी कि यूँ तो हर कवि की कविताएँ उसके अनुभव जगत का आईना होती हैं पर महिमा जीवन को गहराई से देखती हैं | उनकी कविताओं में जहाँ एक ओर  संवेदना का स्तर गहन है, वहीं भाषा शिल्प के लिहाज से भी सुंदर हैं |लोकोदय  प्रकाशन द्वारा प्रकाशित  एक पतला सा कविता संग्रह है ये पर उसमें पाठकों को बांध लेने की क्षमता है | अपने इस कविता संग्रह से साहित्य में एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में दर्ज हुई महिमा को उनके भविष्य के लिए बहुत शुभकामनाए, स्नेह, आशीर्वाद

जरूरी है प्रेम करते रहना -कविता संग्रह

लेखिका -महिमाश्री

प्रकाशक -लोकोदय प्रकाशन

पृष्ठ -80

मूल्य -130 रुपये

समीक्षक -वंदना बाजपेयी

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