भगवान शिव और भस्मासुर की कथा नए संदर्भ में

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हमारी पौराणिक कथाओं को जब नए संदर्भ में समझने की कोशिश करती हूँ तो कई बार इतने नए अर्थ खुलते हैं जो समसामयिक होते हैं l अब भस्मासुर की कथा को ही ले लीजिए l

क्या थी भस्मासुर की कथा 

कथा कुछ इस प्रकार की है कि भस्मासुर (असली नाम वृकासुर )नाम का एक असुर दैत्य था l क्योंकि असुर अपनी शक्तियां बढ़ाने के लिए भोलेनाथ भगवान शिव की पूजा करते थे l तो भस्मासुर ने भी एक वरदान की कह में शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की l आखिरकार शिव प्रसन्न हुए l शिव जी उससे वरदान मांगने के लिए कहते हैं l तो वो अमर्त्य का वरदान माँगता है l

भगवान शिव उससे कहते हैं कि ये तो नहीं मिल सकता क्योंकि ये प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है l तुम कोई और वरदान मांग लो l ऐसे में भस्मासुर काफी सोच-विचार के बाद उनसे ये वरदान माँगता है कि मैं जिस के भी सर पर हाथ रखूँ  वो तुरंत भस्म हो जाए l

भगवान शिव  तथास्तु कह कर उसे ये वरदान दे देते हैं l

अब शिवजी ने तो उसकी तपस्या के कारण वरदान दिया था पर भस्मासुर उन्हें ही भस्म करने उनके पीछे भागने लगता है l अब दृश्य कुछ ऐसा हो जाता है कि भगवान भोले शंकर जान बचाने के लिए आगे-आगे भागे जा रहे हैं और भस्मासुर पीछे -पीछे l इसके ऊपर एक बहुत बहुत ही सुंदर लोक गीत है,

“भागे-भागे भोला फिरते जान बचाए ,

काँख तले मृगछाल दबाये

भागत जाए जाएँ भोला लट बिखराये,

लट बिखराये पाँव लंबे बढ़ाए रे, भागत जाएँ …

अब जब विष्णु भगवान ने भस्मासुर की ये व्यथा- कथा देखी l तो तुरंत एक सूदर स्त्री का मोहिनी रूप रख कर भस्मासुर के सामने आ गए l भस्मासुर उन्हें देख उस मोहिनी पर मग्ध हो गया और उसके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रख दिया l मोहिनी  ने तुरंत माँ लिया पर उसने कहा कि तुम्हें मेरे साथ नृत्य करना होगा l भस्मासुर ने हामी भर दी l उसने कहा कि नृत्य तो मुझे नहीं आता पर जैसे-जैसे तुम करती जाओगी मैं पीछे-पीछे करता जाऊँगा l

नृत्य शुरू हुआ l

जैसे- जैसे मोहिनी नृत्य करती जाती भस्मासुर भी नृत्य करता जाता l नृत्य की एक मुद्रा में मोहिनी अपना हाथ अपने सिर पर रखती है तो उसका अनुसरण करते हुए भस्मासुर भी अपना हाथ अपने सिर पर रखता है l ऐसा करते ही भस्मासुर भस्म हो जाता है l

तब जा के शिव जी की जान में जान आती है l

 

भगवान शिव और भस्मासुर की कथा नए संदर्भ में

असुर और देव को हमारी प्रवृत्तियाँ हैं l अब भस्मासुर को एक प्रवृत्ति की तरह ले कर देखिए l

तो यदि एक गुण/विकार को लें तब मुझे मुझे तारीफ में ये अदा नजर आती है l

एक योग्य व्यक्ति कि आप तारीफ कर दीजिए तो भी वो संतुष्ट नहीं होगा l उसको अपनी कमजोरियाँ नजर आएंगी और वो खुद उन पर काम कर के उन्हें दूर करना चाहेगा l कई बार तारीफ करने वाले से भी प्रश्न पूछ- पूछ कर बुराई निकलवा लेगा और उनको दूर करने का उपाय भी जानना चाहेगा l कहने का तात्पर्य ये है कि वो तारीफ या प्रोत्साहन से तुष्ट तो होते हैं पर संतुष्ट नहीं l

 

परंतु अयोग्य व्यक्ति तुरंत तारीफ करने वाले को अपने से कमतर मान लेता है l उसके अहंकार का गुब्बारा पल भर में बढ़ जाता है l अब ये बात अलग है कि  तारीफ करने वाला भी शिव की तरह भस्म नहीं होता क्योंकि उसे उसकी मोहिनी यानि की कला, योग्यता बचा ही लेती है l

 

अलबत्ता भस्मासुर के बारे में पक्का नहीं कहा जा सकता l वो भस्म भी हो सकते हैं या कुछ समय बाद उनकी चेतना जागृत भी हो सकती है lऔर वो अपना परिमार्जन भी कर सकते हैं l

वंदना बाजपेयी

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