अधूरापन : अभिशाप नहीं , प्रेरणा है

2

बड़ा अधूरा सा लगता है ये शब्द ~ अधूरापन | जिसे कहते  ही  मन में न जाने कितने  नकारात्मक विचार  आ जाते हैं ।और साथ ही आ जाते हैं बहुत सारे प्रश्न – क्यों , कब कहाँ , कैसे ? क्योंकि  यह शब्द अपने आप में जीवन की किसी कमी को दर्शाता है। पर सोचिये कि अगर ये थोड़ी सी कमी जीवन में ना हो तो जीवन खत्म सा नहीं हो जायेगा?या यूं भी कह सकते हैं की ये सारी भाग – दौड़  उसी अधूरेपन को पूरा करने के लिए ही तो है | रसायन विज्ञान कहता है की हर एटम अपनी आखरी कक्षा में आठ इलेक्ट्रान रख कर इनर्ट गैसों की तरह बनना चाहता है | पर उसके लिए या तो उसे कुछ इलेक्ट्रान निकालने  होगे या लेने होंगे | एक एटम के दूसरे एटम से जुड़ने की सारी रासायनिक  प्रक्रियाएं इसी अधूरेपन को पूरा करने का ही नतीजा हैं | वर्ना तो न तो नए मोलिक्यूल बनते न नए पदार्थ न ही जीव और वनस्पति जगत का इवोल्यूशन हुआ होता |

१)अधूरापन देता है हर पल पूर्णतया से जीने की प्रेरणा 

 एक पुराना हिंदी गाना है “ आधा है चंद्रमा , रात आधी , रह न जाए तेरी मेरी बात आधी “ | कहने को तो यह महज एक फ़िल्मी गीत है पर कहीं न कहनी इसमें गहरा जीवन दर्शन छिपा है | बात आधी छूट जाने का भय … हर पल को पूर्णता से जीने की प्रेरणा देता है | 
अभी कुछ ही दिन पहले की बात है गूगल सर्च करते हुए “ नीयर डेथ एक्सपीरिएंस” पर  एक व्यक्ति का संस्मरण  पढ़ा | वह व्यक्ति हर समय पैसा कमाने में लगा रहता था | जब उसका प्लेन क्रैश होने वाला था तो उसे केवल और केवल यह लग रहा था की वह अब अपनी ६ साल की बेटी को नहीं देख पायेगा |प्लेन पानी में गिरा वह बच गया | और उसके बाद उसने अपने जीवन में इस अपूर्णता को समझा जो वो अपने परिवार को वक्त न दे कर कर रहा था | अधूरेपन को जानने के बाद ही उसने काम और परिवार के मध्य समय का संतुलन बनाया |                                 
                आज इस अधूरे पन को पूर्णता से सोंचने का कारण भी कुछ अधूरा है | दरसल  मैं
बालकनी में बैठी अपने ख्यालों में खोयी हुई थी  | तभी एक करीबी रिश्तेदार के बच्चे का फोन आया | फॉर्मल बातें करने के बाद उसने गिनाना शुरू किया की  उसके
जीवन में यह कमी है , वो कमी है | इसलिए उसका काम करने का मन नहीं करता |जरा गौर से सोंचिये की ये उसकी ही नहीं कहीं न कहीं
हम सब की परेशानी होती है जहाँ कोई कमी दिखी अधूरापन दिखा बस हार मान कर बैठ गए |
फिर जिंदगी से लगे शिकायत करने या फिर यूं ही उसे घसीटने | 

मैं इस विषय में सोच ही रही थी ,  तभी मेरी निगाह सामने के घर में नन्हे रिशु पर
पड़ी
 |  नन्हा रिशु बहुत देर से अपनी माँ को परेशांन  कर रहा था | अचानक माँ को ख्याल आया | उन्होंने
एक खाली बाल्टी रिशु के आगे रख दी और रिशु को एक खाली
 कटोरी दे कर कहा ,” रिशु नल खोल कर इस बाल्टी को
कटोरी से पानी ला –ला कर भरो | रिशु पूरी तन्मयता से काम में जुट गया | खाली
बाल्टी ने उसे एक उद्देश्य दे दिया था … उसे भरने का |

मुझे अपने ही प्रश्न का
उत्तर मिल गया |
 हम अक्सर अपनी जिंदगी में
किसी खालीपन या कमी की शिकायत करते है | उसे उत्साहहीनता
 का कारण मानते हैं |पर अगर तस्वीर को पलट कर
देखे तो ये कमी ही हमारे लिए प्रेरणा का काम करता
 है | जिससे हम उस कमी को पूरा करने में पूरी
ताकत झोंक देते हैं | कहीं न कहीं यह हमारे ऊपर है की हम उस अधूरेपन से निराश हो
कर हाथ पर हाथ रख कर बैठ जाते हैं या उसे अपने जीवन के उद्देश्य में उत्प्रेरक के
रूप में इस्तेमाल करें |
  २)निराश न हों अधूरेपन से             

                          
अगर आप ध्यान दीजिए तो आदमी को भी  काम करने के लिए प्रेरित ही यह कमी करती है। कोई
भी कदम
, हम इस खालीपन को भरने की दिशा में ही
उठाते हैं। मनोवैज्ञानिकों
 का कहना है कि मनुष्य जीवन भर असंतुलित को संतुलित करने में लगा रहता है | और तो और हमें भूख भी तभी लगती है जब ताकत की कमी महसूस हो रही हो | आप किसी भी घटना को ले लीजिए हर घटना के पीछे किसी न किसी कमी को पूरा करने का कारण  छिपा होता है यहाँ तक की परोपकार व् आतंकवाद के पीछे भी | कोई  व्यक्ति किस तरह के कपड़े पहनता है,किस तरह के रंग पसंद करता है |   किस तरह कि किताब पढन या गाने सुनना पसंद करता  हैकिस तरह का कार्यक्रम देखना पसंद करता है और कैसी संस्था से जुड़ा है ये सब अपने जीवन की उस कमी को दूर करने से सम्बंधित है। अभी कुछ समय पहले एक कैंसर के मरीजों के वेलफेयर संसथान में जाना हुआ | ज्यादातर स्वयंसेवी वो थे जिन्होंने कैंसर से अपने किसी प्रियजन को खोया है | वो किसी और कैंसर पेशेंट की सेवा करके अपने जीवन की कमी पूरा करना कहते हैं | 

कभी नदी में पड़ने वाली भंवर  को देखा है | शायद नदी की तलहटी में एक छोटी सी कमी या अधूरापन होता है | फिर कैसे चारों  तरफ से जल आ कर उसे भरता ही रहता है , भरता ही रहता है ~ बिना रुके बिना थके | 

ऐसी  ही एक प्रेरणादायी घटना याद आ रह है जो   हमारे देश में सुनामी के दौरान घटी जहाँ एक
दंपत्ति ने अपने तीनों बच्चों को खो दिया | उन्होंने अपनी आँखों
  के सामने अपने बच्चों को लहरों द्वारा लीलते
देखा | इस हृदयविदारक घटना के बाद उन्हें अपना जीवन बेमानी लगने लगा | बाद में
उन्होंने सुनामी में अनाथ हुए बच्चों को गोद लेने का मन बनाया | उन्होंने कई
बच्चों को गोद लिया | उनके जीवन को उद्देश्य मिला व् बच्चों को माता –पिता का
प्यार |
  
                                मोटे तौर पर
देखा जाए तो
अगर कमी ना हो तो ज़रूरत नहीं
होगी
, तो जोश और जूनून से काम करने की ज़रूरत  नहीं होगी तो आकर्षण नहीं होगा, और अगर आकर्षण नहीं होगा तो लक्ष्य भी नहीं होगा |अक्सर देखने में आता है की दो बच्चे
जो समान रूप से इंटेलिजेंट होते हैं पर अलग –अलग आर्थिक स्तिथि के होते हैं उनमें
से प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल करने की अदम्य  इच्छा आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थी की  होती है क्योंकि वह सफल होकर धन से वह सब
वस्तुएं प्राप्त करना चाहता है | यह कमी उसके लिए प्रेरणा का काम करती है और वह
लक्ष्य पर फोकस कर पाता है | जबकि संपन्न छात्र जिन सुविधाओं को पहले से भोग रहा
होता है | उन्हीं को प्राप्त करने के लिए बहुत मेहनत  करने की प्रबल इच्छा शक्ति उसके अन्दर नहीं होती
| हां वह किसी और दिशा में आगे बढ़ना चाह सकता  है | क्योंकि 
 कमियां सबके जीवन में होती हैं बस
उसके रूप और स्तर अलग-अलग होते हैं। और इस दुनिया का हर काम उसी कमी को पूरा करने
के लिए किया जाता रहा है और किया जाता रहेगा। चाहे जैसा भी व्यवहार हो
, रोज का काम  हो, ऑफिस  जाना हो, प्रेम सम्बन्ध हो या किसी से नए रिश्ते बनाना  हो|  सारे काम जीवन के उस खालीपन को भरने कि दिशा में
किये जाते है।
 ये ज़रूर हो सकता है कि कुछ लोग उस कमी के पूरा हो जाने के
बाद भी उसकी बेहतरी के लिए काम करते रहते हैं।






३)अधूरेपन पर मैस्लो के पिरामिड 


                               महान मनोवैज्ञानिक मैस्लो ने कहा है कि व्यक्ति का जीवन पांच प्रकार कि ज़रूरतों  के आस – पास घूमता है।  जिन्हें मैस्लो की हाईरेकी  पिरामिड
के नाम से जाना जाता है | उन्हें इस प्रकार से क्रम बद्ध कर सकते हैं …..
पहली मौलिक ज़रूरतें; भूख, प्यास और शारीरिक आवश्यकताओं  की।
दूसरी जरूरतें – सुरक्षा की हैं ( जान और माल की सुरक्षा ) 
तीसरी संबंधों या प्रेम की ( मानसिक सुरक्षा ) 
चौथी आत्मा-सम्मान की
 पांचवी   व्यक्ति अपनी क्षमताओं का पूरा प्रयोग करने की ( जो जिस काम को करना चाहता हो )  
ये तो रही  मैस्लो की हाईरेकी  की पायदानों की बात |आंकड़े कुछ भी कहें  पर हम सब इन सारी कमियों को अपने जीवन में दूर कर पाए ऐसा जरूरी नहीं है |  पर प्रयास ज़रूर करते हैं।कई घटनाएँ
ऐसी सुनने में आती हैं जहाँ लोगों ने अपने जीवन की  कमियों को अपनी ताकत में
बदला हैं और जिसके कारण आज वो विश्व प्रसिद्द हैं | जैसे  अल्बर्ट आइंस्टीन
 और
अब्राहम लिंकन स्टीफेन हॉकिंग , निक व्युजेसिक आदि | अभी हाल में मेरी फ्रेंड लिस्ट में जुडी केतकी जानी का नाम मैं विशेष रूप रूप से लेना चाहूँगी | जिन्होंने एलोपेसिया से अपने सारे बाल गंवाने के बाद mrs india में भाग लिया व् विशेष पुरूस्कार भी पाया | वो लगातार एलोपेसिया से उपजी हीन भावना से जूझ रहे लोगों के लिए काम कर रही हैं | इससे पहले व् सामान्य नौकरी पेशा स्त्री थी | उनके जीवन की कमी ने उन्हें कुछ खास करने को प्रेरित किया | 



४)अधूरापन अभिशाप नहीं है 
  जैसा की अभी हाल ही में 
प्रधानमंत्री मोदी ने विकलांग व्यक्तियों को दिव्यांग नाम दिया है | आपने
भी महसूस किया होगा की विकलांग व्यक्ति के किसी अन्य अंग में अद्भुत छमता उत्पन्न
हो जाती है | एक अंग की कमी दूसरे अंग के अत्यधिक विकास की प्रेरणा बनती है |
                                 सच ही है हम सब
के जीवन में कहीं न कहीं अधूरापन है | हम अगर उसे नकारात्मक तौर पर लेते हैं तो हम
सफल होने का एक अवसर खो देते हैं |  अगर
इंसान चाहे तो अपने जीवन के अधूरेपन को ही अपनी प्रेरणा का सबसे बड़ा स्रोत बना
सकता है ।निराशा से इतर गौर करने की बात यह है की  जो अधूरापन हमें जीवन में कुछ कर गुजरने की
प्रेरणा दे
,
भला वह बुरा कैसे हो
सकता है।वैसे तो जीवन के हर क्षेत्र में कहीं न कहीं अधूरापन रहता ही है | पर जरूरत है हम समझें की हमें अपने जीवन में ये अधूरापन सबसे ज्यादा कहाँ महसूस हो रहा | जिसके कारण जीवन में बेचैनी है | सबसे पहले काम उस पर करना है | प्रयास करना है की वो अधूरापन भर जाए | अगर ऐसा है तो दूसरा क्षेत्र खोजिये वहां पूरा करने का प्रयास करिए | ये जीना का उद्देश्य भी है और जीने का मज़ा भी | वैसे जितने रचनात्मक लोग होते है उनका अधूरापन कभी भरता ही नहीं है | यही उनको और अच्छा काम करने की प्रेरणा देता है | जैसा की जिगर मुरादाबादी कहते हैं …
फ़िक्र ए मंजिल है न होश ए जादा ए मंजिल मुझे 
जा रहा हूँ जिस तरफ ले जा रहा है दिल मुझे 


                   अगर ऐसा है तो शुक्रिया कहिये उस अधूरेपन को जिसे आप अभिशाप समझ रहे थे वो तो आपके जीने की प्रेरणा है | 

2 COMMENTS

  1. आपने अपने भूमिका में ही रसायन शास्त्र के माध्यम से अधूरापन को सम्पूर्ण करने की कुदरती व्यवस्था को समझा दिया है। प्रेरणा देती सुन्दर आलेख साथ ही सादर आग्रह है कि मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों –
    मेरे ब्लॉग का लिंक है : http://rakeshkirachanay.blogspot.in

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here