case study-क्या जो दिखता है वो बिकता है ?

0
                                एक सवाल अक्सर उठता रहता है जो दिखता क्या वही बिकता है  या जो बिकता है वही दिखता है ?सवाल भले ही उलझन भरा हुआ है पर हम सब के लिए बहुत मह्त्वपूर्ण है |

case study-क्या जो दिखता है वो बिकता है ?

case study-क्या जो दिखता है वो बिकता है ?

आप में से कई लोग सोच रहे होंगे , ” अरे हमें इससे क्या , हम कोई व्यापारी थोड़े ही हैं | अगर आप ऐसा सोच रहे हैं तो आप गलत हैं क्योंकि  हम सब लोग कहीं न कहीं कुछ न कुछ  बेंच रहे हैं |  अगर आप नौकरी कर रहे हैं तो भी आप  उस कार्य के लिए अपनी क्षमता बेंच रहे हैं , डॉक्टर या इंजिनीयर हैं तो अपना ज्ञान बेंच रहे हैं , कलाकार हैं तो अपनी कला बेंच रहे हैं | यानी हम सब कुछ न कुछ बेंच रहे हैं …. इसलिए ये  जानना हम सब के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है |

जो दिखता है वो बिकता है

                                      नीलेश व् महेश दोनों साइंस टीचर हैं | दोनों के पास अपने सब्जेक्ट का ज्ञान है पर नीलेश जी ने अपने   प्रचार के लिए अख़बारों में व् विभिन्न वेबसाइट्स पर ऐड दिए | जिसमें विज्ञान के अच्छे टीचर चाहिए तो संपर्क करें में अपनी प्रोफेशनल योग्यता व्  अपना फोन नम्बर डाल दिया | उसके पास बहुत सारे कॉल्स आये व् उसे शुरुआत में ही बहुत सारे बच्चे पढ़ाने के लिए मिल गए | महेश जी ने केवल आस -पास के बच्चों को पढ़ाना  शुरू किया | उनके पास शुरुआत में बहुत कम बच्चे थे | इस तरह से ये लगता है कि जो दिखता है वही बिकता है | इस आधार पर बड़ी -बड़ी कम्पनियां विज्ञापन करती रहती है भले ही उनका प्रोडक्ट स्थापित हो गया हो | ताकि मार्किट में उनका प्रोडक्ट बराबर दिखता रहे | ऐसा करने से उसके बिकने की सम्भावना बढ़ जाती है |

मेरे घर के पास में एक रिलायंस स्टोर है | वहां क्वालिटी वाल्स ने  स्कीम लगा रखी है दो छोटी ब्रिक लेने पर 50 रुपये की छूट | बड़ा -बड़ा लिखा होने के बावजूद उनकी कम्पनी की एक लड़की काउंटर पर खड़ी रहती है जो बिल भरने आये लोगों को बचत के बारे में समझा कर आइस  क्रीम खरीदने को कहती है | अक्सर लोग जो आइस क्रीम खरीदने नहीं आये होते हैं बार -बार चार्ट दिखाए जाने पर आइस क्रीम खरीद लेते हैं | इसी तरह  लक्स साबुन को ही लें साधना भी लक्स से नहाती थी और सोनम कपूर भी | सारी  सुंदर अभिनेत्रियाँ  लक्स साबुन से नहाती हैं ये लक्स के विज्ञापन का तरीका है | लक्स एक स्थापित ब्रांड है फिर भी विज्ञापन बार -बार इसलिए दिखाए जाते हैं ताकि लोग उसी ब्रांड से चिपके रहे  कोई दूसरा प्रोडक्ट न लें | क्योंकि अगर उन्होंने कोई दूसरा प्रोडक्ट लिया तो लक्स को उसकी क्वालिटी से फिर से टकराना पड़ेगा पूरा विज्ञापन उद्योग इसी पर टिका है …. “जो दिखता है वो बिकता है “इसीलिये विज्ञापन बार -बार दिखाए जाते हैं |

जो बिकता है वो दिखता है 

                              कुछ लोगों का इसके विपरीत भी तर्क  होता है | उनके अनुसार जो माल बिकता है वही दि खता है | जैसे अगर  टी वी का कोई ब्रांड या कोई अन्य सामान बार -बार  बिक रहा है तभी वो हर दुकान पर दिखाई देगा | जो सामन बिक नहीं रहा दुकान दार उसे अपनी दूकान पर नहीं रखेंगे | मैगी पर बैन के बाद कई नूडल्स बाज़ार में आये थोड़े बहुत बिके भी , पर जब मैगी वापस लौटी तो फिर से मार्किट पर छा गयी | हर दूकान पर किसी और ब्रांड की नूडल्स हो न हों पर मैगी जरूर होती है | क्योंकि वो बिकती है इसी लिए हर दुकान पर दिखती है | जैसे  अगर आप लेखक हैं आप की कोई रचना लोगों को पसंद आ गयी तो लोग उसे शेयर करेंगे | आपने अपनी हर रचना को पूरी शिद्दत से लिखा उसका प्रचार किया | पर वही रचना हर वाल पर दिखेगी , जो लोगों को पसंद आई है|

इसी क्रम में एक उदाहरण हालिया रिलीज फिल्म ” राजी” है | आलिया भट्ट की छोटे बजट की इस फिल्म का   शुरूआती प्रचार नहीं हुआ , पर क्योंकि फिल्म अच्छी बनी थी | इसलिए हॉल से निकलने वाले व्लोगों ने इसकी बहुत प्रशंसा की | समीक्षकों ने जगह -जगह समीक्षाएं लिखी | माउथ पब्लिसिटी इतनी जबरदस्त हुई कि ३० करोंड़ के बज़ट की फिल्म देखते ही देखते 100 करोंड़ क्लब में शामिल हो गयी | किसी लो बज़ात फिल्म के लिए ये किसी चमत्कार से कम नहीं है | और ये सब बिना किसी विज्ञापन या प्रचार के हुआ |  यानी जो बिकता है वही दिखता है |

दिखता या बिकता से महत्वपूर्ण है कौन टिकता है 

                                             ऊपर के उदाहरणों से दोनों बातें तय हो रही है जो दिखता है वो बिकता है ये फिर जो बिकता है वही दिखता  है | परन्तु इन दोनों से महत्वपूर्ण बात ये है कि मार्किट में टिकता वही है जिस प्रोडक्ट में  दम हो | जैसे मान लीजिये नीलेश को शुरू में बहुत सारे ट्यूशन मिल गए व् महेश को बहुत कम | निखिल के पढ़ाने के तरीके से विद्यार्थी खुश  नहीं हुए धीरे -धीरे उसका नाम गिरने लगा उसे कम ट्यूशन मिलने लगे पर महेश के पढ़ाने के तरीके को उसके  विद्यार्थियों ने पसंद किया माउथ पब्लिसिटी से उसका काम आगे बढ़ा | एक साल के अंदर निखिल के ट्यूशन बहुत कम व् महेश जी के ट्यूशन बहुत हो गए |

                                       आप इसको ऐसे भी समझ सकते हैं कि  आप विज्ञापन देख कर कोई प्रोडक्ट  घर लाते हैं परन्तु इस्तेमाल करने पर आप उससे संतुष्ट नहीं होते | तो क्या आप उसे दुबारा खरीदेंगे … नहीं ना |

                                             यानि जो दिखता है उसे शुरूआती बढ़त तो मिल जाती है पर बिकने के लिए उस प्रोडक्ट में दम भी होनी चाहिए | किसी नए प्रोडक्ट को लांच करते समय उसका दिखना जरूरी है , अगर लोग देखेंगे ही नहीं तो खरीदेंगे कैसे ? माउथ पब्लिसिटी से  पर्सनल चीजे धीरे -धीरे बिकना शुरू हो जाती हैं जैसे आपकी ट्यूशन  या कोई अन्य स्किल या आपकी किताब इन सब चीजों में आप धैर्य रख सकते हैं पर अगर आपने बड़ा धन खर्च करके कोई प्रोडक्ट लाने की कोशिश की है तो उसका विज्ञापन करके उसे शुरूआती मजबूती देना जरूरी है | आपका प्रोडक्ट लोगों को खरीदने के बाद पसंद आये व्या उसे लोग फॉर खरीदना चाहे इसके लिए उसकी क्वालिटी पर विशेष ध्यान रखने व्नि उसे बनाये रखने की बहुत जरूरत है |

यानी आप कह सकते हैं कि ” जो दिखता है वो बिकता है , जो बिकता है वो दिखता है “पर” टिकता वही है जिस प्रोडक्ट में दम हो | “

नीलम गुप्ता

यह भी पढ़ें …

आपको  लेख case study-क्या जो दिखता है वो बिकता है ?  कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके email पर भेज सकें 


keywords:case study, marketing tips, quality management, role of advertisement

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here